आज का पंचाग, आपका राशि फल, सनातन हिन्दू संस्कृति के महिनों का महत्व, भारत में नेत्र सर्जरी का इतिहास, अंग्रेजी चिकित्सा पद्धति में जो आज सही है वो कल गलत हो जाता है ऐसा क्यों?

🕉️ श्री गणेशाय नमः 🕉️ जगत् जनन्यै जगदंबा भगवत्यै नम 🕉️ नमः शिवाय 🕉️ नमो भगवते वासुदेवाय नमः सभी मित्र मंडली को आज का पंचांग एवं राशिफल भेजा जा रहा है इस का लाभ उठाएंगे । ✡️शनि देव की स्तुति:–✡️ *नीलांजन समाभासं रवि पुत्रं यमाग्रजम् छाया मार्तंड संभूतम् तं नमामि शनिश्चरम्*।। ✡️हिंदी व्याख्या:–✡️नील अजन के समान जिनकी दीप्ति है जो सूर्य भगवान के पुत्र तथा यमराज के बड़े भ्राता हैं सूर्य की छाया से जिन की उत्पत्ति हुई उन शनेश्वर देवता को मैं प्रणाम करता हूं।
✡️शनि देव गायत्री:– ✡️
🕉️ *कृष्णांगाय विद्महे रविपुत्रायधीमहि तन्न:सौरि प्रचोदयात्।। हिन्दी ब्याख्या,:–यथाशक्ति शनि गायत्री का जप करने के बाद शमी युक्त पायस जीके दशांश हवन करना चाहिए एक लोहे के पात्र में तेल रखकर उसका पूजन करें अपने मुख की छाया देखकर कृष्ण तिल उसमें डाल देवे छाया पात्र को दान कर दें।। आपका ✍️ *पंडित चक्रधर प्रसाद मैदुली ✡️फलित ज्योतिष शास्त्री*✡️8449046631
🕉️दैनिक पंचांग✡️
वीर विक्रमादित्य संवत् ✡️
✡️2078✡️
✡️ज्येष्ठ मासे ✡️
✡️23 प्रविष्टे गते ✡️
✡️शनि वासरे ✡️
✡️दिनांक ✡️ :05 – 06 – 2021(शनिवार)✡️
सूर्योदय :05.44 पूर्वाह्न
सूर्यास्त :07.06 अपराह्न
सूर्य राशि :वृषभ
चन्द्रोदय :02.28 पूर्वाह्न
चंद्रास्त :02.57 अपराह्न
चन्द्र राशि :मीन कल 11:28 अपराह्न तक, बाद में मेष
विक्रम सम्वत :विक्रम संवत 2078
अमांत महीना :बैशाख 25
पूर्णिमांत महीना :ज्येष्ठ 10
पक्ष :कृष्ण 11
तिथि :दशमी 4.07 पूर्वाह्न तक, बाद में एकादशी
नक्षत्र :रेवती 11.28 अपराह्न तक, बाद में अश्विनी
योग :आयुष्मान 2.49 पूर्वाह्न तक, बाद में सौभाग्य
करण :बव 5:11 पूर्वाह्न तक, बाद में बालव
राहु काल :9.10 पूर्वाह्न से – 10.50 पूर्वाह्न तक
कुलिक काल :5.49 पूर्वाह्न से – 7.29 पूर्वाह्न तक
यमगण्ड :2.11 अपराह्न से – 3.52 अपराह्न तक
अभिजीत मुहूर्त :11.58 पूर्वाह्न से – 12.52 अपराह्न तक
दुर्मुहूर्त :07:31 पूर्वाह्न-से – 08:24 पूर्वाह्न-तक
[5/6, 07:46] चक्रधर प्रसाद शास्त्री: मित्रों बहुत से मित्रों ने राशि नाम एवं प्रसिद्ध नाम के माध्यम से राशिफल देखने की प्रक्रिया जानी चाही इसके विषय मेंमें महर्षि पाराशर जी ने पाराशरी नामक ग्रंथ में लिखा है कि:–
*देशे ग्रामे गृहे युद्धे, सेवायां व्यवहार के। नाम राशे प्रधानत्वं , जन्म राशि न चिंन्तयेत्*।।
हिंदी ब्यख्या:–
प्रदेश में घर के बाहर गांव में युद्ध के समय सेवारत में व्यवहारिक नाम की प्रधानता होती है स्थानों पर जन्म राशि का चिंतन न करके प्रचलित नाम की राशि का चिंतन करना चाहिए।
*विवाह सर्वमांगल्यै, यात्रायां ग्रह गोचरे । जन्म राशे प्रधानत्वम्, नाम राशि न चिंन्तयेत्*।।
हिन्दी ब्याख्या:–
विवाह के समय मां सभी प्रकार के मांगलिक कार्यों में यात्रा में ग्रह गोचर दशा के पूजन में जन्म राशि की प्रधानता होती है प्रसिद्ध नाम राशि का चिंतन नहीं करना चाहिए।।
✡️आज के लिए राशिफल (05-06-2021) ✡️
✡️मेष ✡️05-06-2021
वित्तीय परिणाम उम्मीद से कम हो सकते हैं और आपको इस स्थिति से निपटने के लिए अतिरिक्त प्रयास करने पड़ सकते हैं। सोच-समझकर निवेश करना उचित रहेगा। यदि पैतृक संपत्ति के संबंध में कोई संघर्ष है, तो प्रयास करें और इसे सौहार्दपूर्वक हल करें। काम से संबंधित यात्रा हो सकती है, जिससे नए रास्ते खुलेंगे। कुल मिलाकर आपका स्वास्थ्य ठीक रहेगा लेकिन अपनी आंखों का विशेष ध्यान रखें। बच्चे बहुत अच्छा करेंगे और आप उन पर गर्व करेंगे।
भाग्यशाली दिशा : दक्षिण पूर्व
भाग्यशाली संख्या : 5
भाग्यशाली रंग : सफ़ेद रंग
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✡️वृष ⚛️05-06-2021
आज आपका लक आपके साथ रहेगा। कार्यालय में आज सभी काम समय पर पूरे होंगे। आपका वैवाहिक जीवन खुशियों से भरा रहेगा। जीवनसाथी के साथ भोजन के लिए किसी भोजनालय में जायेंगे। आज आप स्वयं को स्वस्थ अनुभव करेंगे। घर पर अचानक से कई अतिथि आ सकते हैं, जिससे घर के वातावरण में एकदम से बदलाव आ जायेगा। राजनीतिज्ञ के मान-सम्मान में वृद्धि होगी। समाज में लोग आपके काम की सराहना करेंगे। शनि स्तोत्र का पाठ करें, समाज में आपका मान-सम्मान बढ़ेगा।
भाग्यशाली दिशा : दक्षिण पश्चिम
भाग्यशाली संख्या : 9
भाग्यशाली रंग : नारंगी रंग
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✡️मिथुन ✡️05-06-2021
संयुक्त व्यापार में लाभ हो सकता है । मिथुन राशि के विद्यार्थियों को परिश्रम से ज्यादा परिणाम मिल सकता है। पुराने निवेश से भी लाभ होने के योग बन रहे हैं। परिवार के लोगों से संबंधों में सुधार हो सकता है। आवश्यक कार्य आवश्यक कार्य समाप्त हो जाएंगे। आप कुछ नए काम शुरू करने का भी मन बना सकते हैं। किसी भी बात को बहुत लंबा न खींचें। आज आपका स्वास्थ्य पहले से अच्छा रहेगा।
भाग्यशाली दिशा : उत्तर पश्चिम
भाग्यशाली संख्या : 6
भाग्यशाली रंग : हल्का हरा
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⚛️कर्क ⚛️05-06-2021
आज का दिन आपके लिए स्वास्थ्य के लिए अच्छा रहेगा अपराहन बाद उतार-चढ़ाव भरा हो सकता है। राजकीय बाधा दूर होकर लाभ की स्थिति बनेगी। यात्रा मनोनुकूल रहेगी। विरोधी पस्त होंगे। निवेश शुभ रहेगा। जोखिम न लें। प्रेम-प्रसंग के मोर्चे पर सबकुछ संतोषजनक बना रहेगा। आर्थिक पक्ष मजबूत रहेगा। चिड़ियों को गेहूं का दलिया डालें, आपकी सभी परेशानियां दूर होगी। भाग्योदय का समय है। अपनी पूरी परिश्रम से अपने कार्य में लग जाए सफल होंगे।
भाग्यशाली दिशा : पश्चिम
भाग्यशाली संख्या : 2
भाग्यशाली रंग : हल्का लाल
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✡️सिंह ✡️05-06-2021
आज आपको पूर्वार्ध में वांछित परिणाम नहीं मिल सकते हैं। आपको विभिन्न स्तरों पर कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है। आप भ्रमित रह सकतें हैं। इस स्थिति के कारण आप समय पर काम पूरा नहीं कर पाएंगे। इस समय संसाधनों की कमी के कारण कुछ व्यावसायिक योजनाओं को रोकना पड़ सकता है। स्वास्थ्य आपकी चिंता का कारण बन सकता है। आगे चलकर हालात सुधरेंगे और कठिनाइयों का समाधान मिलेगा। आप अपने भाइयों, बहनों और दोस्तों के समर्थन और सहयोग से प्रगति करेंगे।
भाग्यशाली दिशा : दक्षिण
भाग्यशाली संख्या : 3
भाग्यशाली रंग : नीला रंग
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✡️कन्या✡️05-06-2021
आज आपका मन पूजा-पाठ में अधिक लगा रहेगा। परिवार के साथ किसी मंदिर में जा सकते हैं। जो बच्चे घर से दूर रहकर किसी परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं, उन्हें शिक्षकों का पूरा-पूरा सहयोग मिलेगा। आप किसी सरकारी सेवा के लिए चयनित भी हो सकते हैं। किसी को उधार दिया हुआ धन आज आपको वापस मिल सकता है। पीपल के नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाएं, जीवन में सबका सहयोग मिलता रहेगा।
भाग्यशाली दिशा : पूर्व
भाग्यशाली संख्या : 5
भाग्यशाली रंग : हल्का पीला
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✡️तुला ✡️05-06-2021
आर्थिक नजरिए से दिन आपके लिए अनुकूल रहेगा। पति-पत्नी के बीच गलतफहमी दूर हो सकती है। दाम्पत्य जीवन आपके लिए सुखमय रहेगा। विद्यार्थियों के लिए समय थोड़ा नकारात्मक हो सकता है। आज कोई भी काम पूरा करने में आपको सहयोग मिल सकता है। आपकी आवश्यकतायें भी पूरी हो सकती हैं। पैसों से जुड़े कुछ मामले आपके लिए भी चिंतित हो सकते हैं। पिता की स्वास्थ को लेकर चिंता रहेगी। अपनी स
स्वास्थ का ध्यान रखें।
भाग्यशाली दिशा : उत्तर
भाग्यशाली संख्या : 4
भाग्यशाली रंग : लाल रंग
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✡️वृश्चिक ⚛️05-06-2021
आज वैचारिक दृढ़ता और मानसिक स्थिरता के कारण कार्यसफलता में सरलता होगी। अतिथियों का आगमन होगा। उन पर व्यय होगा। अविवाहित लोगों को विवाह या प्रेम प्रस्ताव मिल सकते हैं। जल्दबाजी में लिए फैसले गलत साबित होंगे। व्यापार को बढ़ाने के लिए कर्ज लेना पड़ सकता है। शुभ समाचार प्राप्त होंगे। परिवार में बेवजह तनाव रह सकता है। पारिवारिक सदस्यों के साथ मनमुटाव हो सकता है। कार्यालय में कोई आपकी योजनाओं में बाधा उत्पन्न कर सकता है।
भाग्यशाली दिशा : पूर्व
भाग्यशाली संख्या : 5
भाग्यशाली रंग : हल्का नीला
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✡️धनु ✡️05-06-2021
लंबे समय से पोषित सपने अब पूरे हो सकते हैं। आपके पिछले प्रयास अब फल देंगे। व्यवसायी व्यवसाय के एक नए क्षेत्र में प्रवेश कर सकते हैं। अधिवक्ता चिकित्सक एवं आंकिक शाखा के अधिकारियों के लिए आर्थिक रूप से समय शुभ है और आगे भी धन लाभ का संकेत है, किन्तु खर्च भी बढ़ जाएगा। आप घर पर किसी कार्यक्रम या उत्सव के आयोजन में शामिल होंगे। लाभकारी यात्रा भी हो सकती है।
भाग्यशाली दिशा : पश्चिम
भाग्यशाली संख्या : 7
भाग्यशाली रंग : हरा रंग
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✡️मकर ✡️05-06-2021
आज पारिवारिक स्तर पर खुशियों में वृद्धि हो सकती है, लेकिन छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा करने की आदत से आपकी खुशियों पर पानी फिर सकता है। अच्छा होगा आज के दिन क्रोध करने से बचे रहें। दूसरे लोगों से मिलना-जुलना आपके लिये लाभकारी होगा। बच्चे किसी काम के लिये आपके सहायता मांग सकते हैं। आपको उनकी सहायता करके अच्छा लगेगा। आपको कुछ नया सिखने का अवसर मिलेगा। स्वास्थ्य के प्रति आपको थोड़ी सावधानी रखनी चाहिए। काली उड़द का दान करें, आपकी सभी परेशानियाँ दूर होगी।
भाग्यशाली दिशा : दक्षिण
भाग्यशाली संख्या : 2
भाग्यशाली रंग : सफ़ेद रंग
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✡️कुंभ ⚛️05-06-2021
व्यापार में विवाद की स्थिति बन सकती है। आपका परिश्रम भी बढ़ सकता है। आज आप छोटी-छोटी बातों पर परेशान हो सकते हैं। आज कुछ कामों में थोड़ी देरी भी हो सकती है। पैसों के मामले में कोई बड़ा फैसला खुद न करें। किसी अनुभवी से सलाह ले लें तो बहुत अच्छा होगा। अपनी बात ठीक ढंग से शायद नहीं कह पाएंगे। स्वास्थ के मामले में कुंभ राशि वालों के लिए दिन थोड़ा ठीक रहेगा। आपकी आर्थिक स्थिति में भी सुधार होगा। आपकी सामाजिक छवि बढ़ेगी।
भाग्यशाली दिशा : पूर्व
भाग्यशाली संख्या : 9
भाग्यशाली रंग : पीला रंग
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✡️मीन ✡️05-06-2021
आज भागीदारी में लाभ होगा। प्रतिष्ठित व्यक्तियों से भेंट होगी। मार्गदर्शन व सहयोग प्राप्त होगा। दिखावे पर खर्च होगा। पर्यटन की भी संभावना है। वाहन व मशीनरी के प्रयोग में सावधानी रखें। मूल्यवान वस्तुएं संभालकर रखें। जीवनसाथी के साथ रिश्तों में गहराई बढ़ सकती है। आर्थिक पक्ष मजबूत रहेगा। दूसरों की मदद करेंगे। घर-परिवार या पड़ोस में कोई कठिन परिस्थिति बने तो सकारात्मक रहें। आजीविका के नए स्त्रोत स्थापित होंगे।
भाग्यशाली दिशा : उत्तर पश्चिम
भाग्यशाली संख्या : 3
भाग्यशाली रंग : गुलाबी रंग
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आपका ✍️ *पंडित चक्रधर प्रसाद मैदुली फलित ज्योतिष शास्त्री* जगदंबा ज्योतिष कार्यालय सोडा सरोली रायपुर देहरादून मूल निवासी ग्राम वादुक पत्रालय गुलाडी पट्टी नन्दाक जिला चमोली गढ़वाल उत्तराखंड फोन नंबर ✡️ 8449046631,9149003677✡️✡️✡️✡️

जानें हिंदी महीनों के बारे में
राजेश मंत्री
शास्त्रों के अनुसार चैत्र मास से हिंदु धर्म का नववर्ष प्रारंभ होता है, चैत्र मास से लेकर फाल्गुन मास तक कुल 12 महीने होते हैं। इन सभी महीनों का अपना अपना महत्व होता हैं, अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार हिंदु नववर्ष की शुरुआत मार्च-अप्रैल माह में होती है जिसे गुड़ी पड़वा कहा जाता है, जाने इन महीनों की महिमा और महत्व ।

1- चैत्र मास- हिन्दू कैलेंडर का ये पहला महीना है, चैत्र महीने के पहले दिन उत्तरी भारत, मध्य भारत में चैत्र के पहले दिन से चैत्र नवरात्रि‍ की शुरुआत होती है । वहीं महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा, तमिलनाडु में चैत्री विशु और कर्नाटका एवं आंध्रप्रदेश में उगादी जैसे त्‍योहार मनाए जाते हैं ।

2- बैसाख मास- बैसाख का महीना हिन्दू कैलेंडर का ये दूसरा महीना है जो अप्रैल-मई महीने में आता है । बैसाख में पंजाब में किसान भाई कटाई का पर्व बैसाखी काफी धूमधाम से मनाते है । बैसाख पूर्णिमा को भगवान बुद्ध के जन्मोत्सव बुद्ध पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता हैं ।

3- ज्येष्ठ मास- हिन्दू कैलेंडर का ये तीसरा महीना है जो मई-जून में आता है । ज्येष्ठ मास में अमावस्या के दिन शनि जयंती मनाते है । इसके अलावा दशमी के दिन गंगा दशहरा एवं ज्येष्ठ माह की शुक्ल पक्ष एकादशी को निर्जला एकादशी व्रत रखा जाता है और इसी महीने में वट पूर्णिमा या वट सावित्री की व्रत पूजा होती है ।

4- आषाढ़ मास- आषाढ़ का महीना हिंदू कैलेंडर का यह चौथा महीना होता है जो जून-जुलाई महीने में आता है । आषाढ़ महीने की पूर्णिमा के दिन गुरु पूर्णिमा का महापर्व मनाया जाता है, और आषाढ़ मास में ही देव शयनी एकादशी भी आती है ।

5- श्रावण मास- श्रावण का महीना हिन्दू कैलेंडर के पांचवा एवं सबसे पवित्र महीना माना जाता है जो जुलाई-अगस्त महीने में आता है । श्रावण महिना भगवान शिव जी को समर्पित है और इसी महीने से अनेकों बड़े पर्व त्यौहार शुरू हो जाते है । श्रावन मास की पूर्णिमा के दिन ही रक्षाबंधन मनाने के साथ कावण यात्रा निकाली जाती है ।

6- भाद्रपद मास- भाद्रपद हिन्दू कैलेंडर का छठवां महीना है जो अगस्त-सितम्बर महीने में आता है और इसी महीने में भगवान श्रीकृष्ण की जन्‍माष्‍टमी पर्व मनाया जाता है । इसके अलावा भी हरितालिका तीज, गणेश चतुर्थी, ऋषि पंचमी, अष्टमी के दिन राधा अष्टमी और अनंत चतुर्दशी भी इसी महीने होती है। इसी महीने पितृ पक्ष की भी शुरुआत होती है ।

7- अश्विनी मास- अश्विनी का महीना हिंदु कैलेंडर का सातवां महीना होता है जो सितम्बर-अक्टूबर महीने में आता है । अश्विनी मास में ही शारदीय नवरात्रि, दुर्गापूजा, कोजागिरी पूर्णिमा, विजयादशमी दशहरा जैसे बड़े पर्व उत्‍सव मनाए जाते हैं ।

8- कार्तिक मास- हिन्दू कैलेंडर का आठवां महीना कार्ति‍क का होता है जो अक्टूबर-नवम्बर महीने में आता है । कार्तिक मास में गोवर्धन पूजा, भाई दूज, कार्तिक पूर्णिमा, गुरु नानक जयंती एवं इसी मास से देव उठनी एकादशी से शुभ कार्यों का शुभारंभ होता हैं ।

9- मार्गशीष मास- मार्गशीष का महीना हिन्दू कैलेंडर का नवां महीना होता है जो नवम्बर –दिसम्बर महीने में आता है । मार्गशीष मास में वैकुण्ठ एकादशी मनाने के साथ इसी माह में अन्‍नपूर्णा माता की पूजा भी की जाती है ।

10- पौष मास- हिन्दू कैलेंडर का दसवां महीना पौष का है जो दिसम्बर-जनवरी के समय आता है । पौष मास में चहु ओर जिसमें अत्याधिक ठण्ड पड़ती है । इसी माह संकट चौथ, लौहड़ी, पोंगल एवं मकर संक्राति जैसे कई त्यौहार मनाये जाते है ।

11- माघ मास – हिन्दू कैलेंडर का ग्‍यारहवां महीना माघ का होता है जो जनवरी-फरवरी महीने में आता है । माघ मास में बसंत पंचमी, महाशिवरात्रि, रथ सप्तमी जैसे त्यौहार भी मनाये जाते है ।

12- फाल्गुन मास- हिन्दू कैलेंडर का बारहवां और अंतिम मास होता है जो फरवरी- मार्च महीने में आता है । फाल्गुन मास में रंगों का सबसे बड़ा त्यौहार होली को बड़ी धूमधाम से मनाई जाती एवं शीतलाष्‍टमी भी मनाई जाती है ।

इसके अलावा पुरषोत्तम माह अधिक मास भी होता जो हिन्दू कैलेंडर में एक अतिरिक्त बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता हैं ।

*बाबा रामदेव ने मधु मख्खी के छत्ते को पत्थर मारा है जो बहोत सोची समझी स्टाइल से भारत की प्रकृतिक चिकित्सा को आहिस्ता आहिस्ता खत्म कर रहे थे और उसमे काफी हद तक सफल भी थे*
IMA यानी इंडियन मेडिकल एसोसिएशन एक NGO है उसको इतनी तकलीफ क्यों हुई है?

अब बाबा जो नही पूछ पाए वो अब जनता पूछ रही है IMA को और सरकार को भी कि…

1.एलोपैथी की दवाई में MRP की जगह प्रोडक्शन कॉस्ट बता दे तो बड़ी बड़ी फार्मास्युटिकल कंपनीया कितनी लूंट मचा रही है वो जनता को समज आएगा

2.एक ही दवाई की बीस कंपनी के अलग दाम क्यों है?

3.डॉक्टरों को यूरोप की टूर कंपनी वाले क्यों देते हैं ?
डॉक्टरो के घर के AC, TV, Fridge और बहोत सारी बाते pharma कंपनीयो की देन क्यों होती है..?

4.जेनरिक दवाइयों को सरकार को क्यों लाना पड़ा है?

5.कुछ मेडिकल स्टोर्स 20 से 30 % डिस्काउंट क्यों देते हैं? इतना डिस्काउंट है तो कमाई कितनी है?

6.हॉस्पिटल्स के कमरे का किराया 3 हजार से 60 हजार एक दिन का क्यों है? भारत की 5 स्टार 7 स्टार होटल से भी इन हॉस्पिटल्स का भाडा ज्यादा क्यों है?

7.मेडिक्लेम आने के बाद 1996 से मेडिकल ट्रीटमेंट इतनी महेंगी क्यों हुई?

8.बड़े दवाई के डिस्ट्रीब्यूटर दस बीस करोड़ की प्रॉपर्टी गाजर मूली के जैसे क्यों खरीदते हैं?

9.जब भी कोई नया हॉस्पिटल तयार होता है तो वहा की pharmacy वाला करोडों में कैसे बिकती है

10.केंद्र सरकार भी दवाई की ऊपर भाव क्यों नही बांध सकती है?

11.लूंट का लाइसेंस किसने दिया इन फार्मा कंपनियों को?

12.सभी बातों को साइंस से प्रमाणित किया जाना अच्छी बात है लेकिन विज्ञान में आज जो सही है वो कल गलत हो जाता है ऐसा क्यों है?

13.दूसरी पारम्परिक दवाईओ को जो आज तक हमारी दादीमाँ और वैध देते आये थे उसको नजरअंदाज करने के लिए ब्रेन वॉश किस ने किया?

14.दूसरी सब चिकित्सा पद्धतियों को क्यों नजरअंदाज किया गया?

15.एलोपैथी की उम्र कितनी ? प्राचीन आयुर्वेद कितना पुराना?,
महर्षि चरक को किसने भुला दिया?

16.भारत मे मौसम अलग अलग है..उस हिसाब से हमारे खान पान है, सेंकडो मिठाई खाने के बाद हमारे बाप दादा 100 साल निकाल लेते थे।

17.डायबिटीज में सुगर की मात्रा हर चार-पाच साल में नीचे लाने का पाप किसका है? याने जो 4 साल पहले sugar patient नही था, वो अचानक से अब Diabetes का रोगी हो गया

18.हम गर्मी में खरबूजा कलिंगड लिम्बु पानी गुलकंद खाकर दस बीस साल पहले 40 डिग्री में काम करते थे ।

 हमारी लड़ाई बाबा रामदेव ने शुरू की है और बाबा से तकलीफ IMA को ये है की वो 18000 अठारह हजार करोड़ का टर्न ओवर कर रहे हैं और कमाई का बड़ा हिस्सा सामाजिक कार्यो को दे देते हैं इसलिए लोकप्रिय है,

लाखो छोटे किसानो को रोजी रोटी दी है एलोवेरा तुलसी इत्यादि वनस्पति और जड़ीबूटियों की खेती वाले के लिए रामदेव बाबा बहोत मायने रखते है। ✌🏼✌🏼

*बाबा रामदेव ने भारत की जनता की आवाज़ उठाई हैं और pharma कंपनियो की मोनोपॉली पे वार किया है …* 💪🏻💪🏻

आप को क्या करना है वो आप को तय करना है। 🤔

*जय आयुर्वेद जय भारत*
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ये “IMA” भी कितनी नादान है जब 🔥
1. जब 1800 का कॉन्टेक्ट लेंस बाजार में 18000 में बिकने की खबर छपी तब भी IMA नहीं बोली

2. जब दवा कंपनियों ने मेडिकल स्टोर वालों को खांसी की 100 शीशी पर 200 शीशी का गिफ्ट आफर मिला तब भी IMA नहीं बोली

3. जब सर्जिकल आइटम 80-85% की छूट पर दुकानदार को दिए तब भी IMA नहीं बोली

4. जब दवा प्रिंट रेट का मात्र 25-30 % लेकर दुकानों पर बेची और दुकानदार ने प्रिंट रेट से 20% ऊपर कस्टमर से वसूले तब भी IMA नहीं बोली

5. जब प्रिंट रेट अचानक हर चार महीने में 25%बढ़ी तब भी IMA नहीं बोली.

6. जब MRI, XRay, HRCT की रेट अचानक दुगुनी,चौगुनी हो गयी तब भी IMA नहीं बोली

7. जब लेब की रिपोर्ट एक डॉक्टर से दूसरे डॉक्टर तक जाते ही खारिज हो जाती है तब भी IMA नहीं बोली

8. जब एम्बुलेंस ड्राइवर को,डॉक्टर या अन्य स्टाफ को एक मरीज लाते ही 25% कमीशन दिया जाता है तब भी IMA नहीं बोली

9. जब डॉक्टर के घर के गेट पर कमीशन राशि और गिफ्ट लिए कंपनियों के MR रोज परेड करते है तब भी IMA नहीं बोली

10. जब एक पर्टिकुलर डॉक्टर की लिखी दवा शहर के एक मात्र पर्टिकुलर मेडिकल स्टोर पर उपलब्ध हो तब भी IMA नहीं बोली

बस बाबा ने आपके करोड़ों ग्राहक को योग से निरोग कर दिया तो आपको हर्निया की शिकायत हो गयी
आपकी इज्जत कम हो गयी
आपकी मानहानि हो गई…

*देश की जनता तक सत्य पहुँचना जरूरी हैं।*

भारत में #आँखों_की_सर्जरी का इतिहास

भारत में 200 वर्ष पहले आँखों की सर्जरी होती थी…शीर्षक देखकर आप निश्चित ही चौंके होंगे ना!!! बिलकुल, अक्सर यही होता है जब हम भारत के किसी प्राचीन ज्ञान अथवा इतिहास के किसी विद्वान के बारे में बताते हैं तो सहसा विश्वास ही नहीं होता. क्योंकि भारतीय संस्कृति और इतिहास की तरफ देखने का हमारा दृष्टिकोण ऐसा बना दिया गया है

मानो हम कुछ हैं ही नहीं, जो भी हमें मिला है वह सिर्फ और सिर्फ पश्चिम और अंग्रेज विद्वानों की देन है. जबकि वास्तविकता इसके ठीक विपरीत है. भारत के ही कई ग्रंथों एवं गूढ़ भाषा में मनीषियों द्वारा लिखे गए दस्तावेजों से पश्चिम ने बहुत ज्ञान प्राप्त किया है… परन्तु “गुलाम मानसिकता” के कारण हमने अपने ही ज्ञान और विद्वानों को भुला दिया है.

भारत के दक्षिण में स्थित है तंजावूर. छत्रपति शिवाजी महाराज ने यहाँ सन 1675 में मराठा साम्राज्य की स्थापना की थी तथा उनके भाई वेंकोजी को इसकी कमान सौंपी थी. तंजावूर में मराठा शासन लगभग अठारहवीं शताब्दी के अंत तक रहा. इसी दौरान एक विद्वान राजा हुए जिनका नाम था “राजा सरफोजी”. इन्होंने भी इस कालखंड के एक टुकड़े 1798 से 1832 तक यहाँ शासन किया. राजा सरफोजी को “नयन रोग” विशेषज्ञ माना जाता था. चेन्नई के प्रसिद्ध नेत्र चिकित्सालय “शंकरा नेत्रालय” के नयन विशेषज्ञ चिकित्सकों एवं प्रयोगशाला सहायकों की एक टीम ने डॉक्टर आर नागस्वामी (जो तमिलनाडु सरकार के आर्कियोलॉजी विभाग के अध्यक्ष तथा कांचीपुरम विवि के सेवानिवृत्त कुलपति थे) के साथ मिलकर राजा सरफोजी के वंशज श्री बाबा भोंसले से मिले. भोंसले साहब के पास राजा सरफोजी द्वारा उस जमाने में चिकित्सा किए गए रोगियों के पर्चे मिले जो हाथ से मोड़ी और प्राकृत भाषा में लिखे हुए थे. इन हस्तलिखित पर्चों को इन्डियन जर्नल ऑफ औप्थैल्मिक में प्रकाशित किया गया.

प्राप्त रिकॉर्ड के अनुसार राजा सरफोजी “धनवंतरी महल” के नाम से आँखों का अस्पताल चलाते थे जहाँ उनके सहायक एक अंग्रेज डॉक्टर मैक्बीन थे. शंकर नेत्रालय के निदेशक डॉक्टर ज्योतिर्मय बिस्वास ने बताया कि इस वर्ष दुबई में आयोजित विश्व औपथेल्मोलौजी अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन में हमने इसी विषय पर अपना रिसर्च पेपर प्रस्तुत किया और विशेषज्ञों ने माना कि नेत्र चिकित्सा के क्षेत्र में सारा क्रेडिट अक्सर यूरोपीय चिकित्सकों को दे दिया जाता है जबकि भारत में उस काल में की जाने वाले आई-सर्जरी को कोई स्थान ही नहीं है. डॉक्टर बिस्वास एवं शंकरा नेत्रालय चेन्नई की टीम ने मराठा शासक राजा सरफोजी के कालखंड की हस्तलिखित प्रतिलिपियों में पाँच वर्ष से साठ वर्ष के 44 मरीजों का स्पष्ट रिकॉर्ड प्राप्त किया. प्राप्त अंतिम रिकॉर्ड के अनुसार राजा सर्फोजी ने 9 सितम्बर 1827 को एक ऑपरेशन किया था, जिसमें किसी “विशिष्ट नीले रंग की गोली” का ज़िक्र है. इस विशिष्ट गोली का ज़िक्र इससे पहले भी कई बार आया हुआ है, परन्तु इस दवाई की संरचना एवं इसमें प्रयुक्त रसायनों के बारे में कोई नहीं जानता. राजा सरफोजी द्वारा आँखों के ऑपरेशन के बाद इस नीली गोली के चार डोज़ दिए जाने के सबूत भी मिलते हैं.

प्राप्त दस्तावेजों के अनुसार ऑपरेशन में बेलाडोना पट्टी, मछली का तेल, चौक पावडर तथा पिपरमेंट के उपयोग का उल्लेख मिलता है. साथ ही जो मरीज उन दिनों ऑपरेशन के लिए राजी हो जाते थे, उन्हें ठीक होने के बाद प्रोत्साहन राशि एवं ईनाम के रूप में “पूरे दो रूपए” दिए जाते थे, जो उन दिनों भारी भरकम राशि मानी जाती थी. कहने का तात्पर्य यह है कि भारतीय इतिहास और संस्कृति में ऐसा बहुत कुछ छिपा हुआ है (बल्कि जानबूझकर छिपाया गया है) जिसे जानने-समझने और जनता तक पहुँचाने की जरूरत है… अन्यथा पश्चिमी और वामपंथी इतिहासकारों द्वारा भारतीयों को खामख्वाह “हीनभावना” से ग्रसित रखे जाने का जो षडयंत्र रचा गया है उसे छिन्न-भिन्न कैसे किया जाएगा… (आजकल के बच्चों को तो यह भी नहीं मालूम कि “मराठा साम्राज्य”, और “विजयनगरम साम्राज्य” नाम का एक विशाल शौर्यपूर्ण इतिहास मौजूद है… वे तो सिर्फ मुग़ल साम्राज्य के बारे में जानते हैं…).

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विश्व के पहले शल्य चिकित्सक – आचार्य सुश्रुत || Father of Surgery : Sushruta

सुश्रुत प्राचीन भारत के महान चिकित्साशास्त्री एवं शल्यचिकित्सक थे। उनको शल्य चिकित्सा का जनक कहा जाता है

शल्य चिकित्सा (Surgery) के पितामह और ‘सुश्रुत संहिता’ के प्रणेता आचार्य सुश्रुत का जन्म छठी शताब्दी ईसा पूर्व में काशी में हुआ था। इन्होंने धन्वन्तरि से शिक्षा प्राप्त की। सुश्रुत संहिता को भारतीय चिकित्सा पद्धति में विशेष स्थान प्राप्त है।

(सुश्रुत संहिता में सुश्रुत को विश्वामित्र का पुत्र कहा है। विश्वामित्र से कौन से विश्वामित्र अभिप्रेत हैं, यह स्पष्ट नहीं। सुश्रुत ने काशीपति दिवोदास से शल्यतंत्र का उपदेश प्राप्त किया था। काशीपति दिवोदास का समय ईसा पूर्व की दूसरी या तीसरी शती संभावित है। सुश्रुत के सहपाठी औपधेनव, वैतरणी आदि अनेक छात्र थे। सुश्रुत का नाम नावनीतक में भी आता है। अष्टांगसंग्रह में सुश्रुत का जो मत उद्धृत किया गया है; वह मत सुश्रुत संहिता में नहीं मिलता; इससे अनुमान होता है कि सुश्रुत संहिता के सिवाय दूसरी भी कोई संहिता सुश्रुत के नाम से प्रसिद्ध थी। सुश्रुत के नाम पर आयुर्वेद भी प्रसिद्ध हैं। यह सुश्रुत राजर्षि शालिहोत्र के पुत्र कहे जाते हैं (शालिहोत्रेण गर्गेण सुश्रुतेन च भाषितम् – सिद्धोपदेशसंग्रह)। सुश्रुत के उत्तरतंत्र को दूसरे का बनाया मानकर कुछ लोग प्रथम भाग को सुश्रुत के नाम से कहते हैं; जो विचारणीय है। वास्तव में सुश्रुत संहिता एक ही व्यक्ति की रचना है।)

सुश्रुत संहिता में शल्य चिकित्सा के विभिन्न पहलुओं को विस्तार से समझाया गया है। शल्य क्रिया के लिए सुश्रुत 125 तरह के उपकरणों का प्रयोग करते थे। ये उपकरण शल्य क्रिया की जटिलता को देखते हुए खोजे गए थे। इन उपकरणों में विशेष प्रकार के चाकू, सुइयां, चिमटियां आदि हैं। सुश्रुत ने 300 प्रकार की ऑपरेशन प्रक्रियाओं की खोज की। सुश्रुत ने कॉस्मेटिक सर्जरी में विशेष निपुणता हासिल कर ली थी। सुश्रुत नेत्र शल्य चिकित्सा भी करते थे। सुश्रुतसंहिता में मोतियाबिंद के ओपरेशन करने की विधि को विस्तार से बताया गया है। उन्हें शल्य क्रिया द्वारा प्रसव कराने का भी ज्ञान था। सुश्रुत को टूटी हुई हड्डियों का पता लगाने और उनको जोडऩे में विशेषज्ञता प्राप्त थी। शल्य क्रिया के दौरान होने वाले दर्द को कम करने के लिए वे मद्यपान या विशेष औषधियां देते थे। मद्य संज्ञाहरण का कार्य करता था। इसलिए सुश्रुत को संज्ञाहरण का पितामह भी कहा जाता है। इसके अतिरिक्त सुश्रुत को मधुमेह व मोटापे के रोग की भी विशेष जानकारी थी। सुश्रुत श्रेष्ठ शल्य चिकित्सक होने के साथ-साथ श्रेष्ठ शिक्षक भी थे। उन्होंने अपने शिष्यों को शल्य चिकित्सा के सिद्धांत बताये और शल्य क्रिया का अभ्यास कराया। प्रारंभिक अवस्था में शल्य क्रिया के अभ्यास के लिए फलों, सब्जियों और मोम के पुतलों का उपयोग करते थे। मानव शारीर की अंदरूनी रचना को समझाने के लिए सुश्रुत शव के ऊपर शल्य क्रिया करके अपने शिष्यों को समझाते थे। सुश्रुत ने शल्य चिकित्सा में अद्भुत कौशल अर्जित किया तथा इसका ज्ञान अन्य लोगों को कराया। इन्होंने शल्य चिकित्सा के साथ-साथ आयुर्वेद के अन्य पक्षों जैसे शरीर सरंचना, काय चिकित्सा, बाल रोग, स्त्री रोग, मनोरोग आदि की जानकारी भी दी है.

सुश्रुतसंहिता आयुर्वेद के तीन मूलभूत ग्रन्थों में से एक है। आठवीं शताब्दी में इस ग्रन्थ का अरबी भाषा में ‘किताब-ए-सुस्रुद’ नाम से अनुवाद हुआ था। सुश्रुतसंहिता में १८४ अध्याय हैं जिनमें ११२० रोगों, ७०० औषधीय पौधों, खनिज-स्रोतों पर आधारित ६४ प्रक्रियाओं, जन्तु-स्रोतों पर आधारित ५७ प्रक्रियाओं, तथा आठ प्रकार की शल्य क्रियाओं का उल्लेख है।

सुश्रुत संहिता दो खण्डों में विभक्त है : पूर्वतंत्र तथा उत्तरतंत्र

पूर्वतंत्र : पूर्वतंत्र के पाँच भाग हैं- सूत्रस्थान, निदानस्थान, शरीरस्थान, कल्पस्थान तथा चिकित्सास्थान । इसमें १२० अध्याय हैं जिनमें आयुर्वेद के प्रथम चार अंगों (शल्यतंत्र, अगदतंत्र, रसायनतंत्र, वाजीकरण) का विस्तृत विवेचन है। (चरकसंहिता और अष्टांगहृदय ग्रंथों में भी १२० अध्याय ही हैं।)

उत्तरतंत्र : इस तंत्र में ६४ अध्याय हैं जिनमें आयुर्वेद के शेष चार अंगों (शालाक्य, कौमार्यभृत्य, कायचिकित्सा तथा भूतविद्या) का विस्तृत विवेचन है। इस तंत्र को ‘औपद्रविक’ भी कहते हैं क्योंकि इसमें शल्यक्रिया से होने वाले ‘उपद्रवों’ के साथ ही ज्वर, पेचिस, हिचकी, खांसी, कृमिरोग, पाण्डु (पीलिया), कमला आदि का वर्णन है। उत्तरतंत्र का एक भाग ‘शालाक्यतंत्र’ है जिसमें आँख, कान, नाक एवं सिर के रोगों का वर्णन है।

सुश्रुतसंहिता में आठ प्रकार की शल्य क्रियाओं का वर्णन है:

(१) छेद्य (छेदन हेतु)
(२) भेद्य (भेदन हेतु)
(३) लेख्य (अलग करने हेतु)
(४) वेध्य (शरीर में हानिकारक द्रव्य निकालने के लिए)
(५) ऐष्य (नाड़ी में घाव ढूंढने के लिए)
(६) अहार्य (हानिकारक उत्पत्तियों को निकालने के लिए)
(७) विश्रव्य (द्रव निकालने के लिए)
(८) सीव्य (घाव सिलने के लिए)

सुश्रुत संहिता में शल्य क्रियाओं के लिए आवश्यक यंत्रों (साधनों) तथा शस्त्रों (उपकरणों) का भी विस्तार से वर्णन किया गया है। इस महान ग्रन्थ में २४ प्रकार के स्वास्तिकों, २ प्रकार के संदसों (), २८ प्रकार की शलाकाओं तथा २० प्रकार की नाड़ियों (नलिका) का उल्लेख हुआ है। इनके अतिरिक्त शरीर के प्रत्येक अंग की शस्त्र-क्रिया के लिए बीस प्रकार के शस्त्रों (उपकरणों) का भी वर्णन किया गया है। ऊपर जिन आठ प्रकार की शल्य क्रियाओं का संदर्भ आया है, वे विभिन्न साधनों व उपकरणों से की जाती थीं। उपकरणों (शस्त्रों) के नाम इस प्रकार हैं-

1. अर्द्धआधार,
2. अतिमुख,
3. अरा,
4. बदिशा
5. दंत शंकु,
6. एषणी,
7. कर-पत्र,
8. कृतारिका,
9. कुथारिका,
10. कुश-पात्र,
11. मण्डलाग्र,
12. मुद्रिका,
13. नख
14. शस्त्र,
15. शरारिमुख,
16. सूचि,
17. त्रिकुर्चकर,
18. उत्पल पत्र,
19. वृध-पत्र,
20. वृहिमुख
तथा
21. वेतस-पत्र

आज से कम से कम तीन हजार वर्ष पूर्व सुश्रुत ने सर्वोत्कृष्ट इस्पात के उपकरण बनाये जाने की आवश्यकता बताई। आचार्य ने इस पर भी बल दिया है कि उपकरण तेज धार वाले हों तथा इतने पैने कि उनसे बाल को भी दो हिस्सों में काटा जा सके। शल्यक्रिया से पहले व बाद में वातावरण व उपकरणों की शुद्धता (रोग-प्रतिरोधी वातावरण) पर सुश्रुत ने विशेष जोर दिया है। शल्य चिकित्सा (सर्जरी) से पहले रोगी को संज्ञा-शून्य करने (एनेस्थेशिया) की विधि व इसकी आवश्यकता भी बताई गई है।

इन उपकरणों के साथ ही आवश्यकता पड़ने पर बांस, स्फटिक तथा कुछ विशेष प्रकार के प्रस्तर खण्डों का उपयोग भी शल्य क्रिया में किया जाता था। शल्य क्रिया के मर्मज्ञ महर्षि सुश्रुत ने १४ प्रकार की पट्टियों का विवरण किया है। उन्होंने हड्डियों के खिसकने के छह प्रकारों तथा अस्थिभंग के १२ प्रकारों की विवेचना की है। यही नहीं, सुश्रुतसंहिता में कान संबंधी बीमारियों के २८ प्रकार तथा नेत्र-रोगों के २६ प्रकार बताए गए हैं।

सुश्रुत संहिता में मनुष्य की आंतों में कर्कट रोग (कैंसर) के कारण उत्पन्न हानिकर तन्तुओं (टिश्युओं) को शल्य क्रिया से हटा देने का विवरण है। शल्यक्रिया द्वारा शिशु-जन्म (सीजेरियन) की विधियों का वर्णन किया गया है। ‘न्यूरो-सर्जरी‘ अर्थात्‌ रोग-मुक्ति के लिए नाड़ियों पर शल्य-क्रिया का उल्लेख है तथा आधुनिक काल की सर्वाधिक पेचीदी क्रिया ‘प्लास्टिक सर्जरी‘ का सविस्तार वर्णन सुश्रुत के ग्रन्थ में है।

अस्थिभंग, कृत्रिम अंगरोपण, प्लास्टिक सर्जरी, दंतचिकित्सा, नेत्रचिकित्सा, मोतियाबिंद का शस्त्रकर्म, पथरी निकालना, माता का उदर चीरकर बच्चा पैदा करना आदि की विस्तृत विधियाँ सुश्रुतसंहिता में वर्णित हैं।

सुश्रुत सहिंता को हिंदी में पढने के लिए कृपया यहाँ क्लिक करे -> http://peterffreund.com/Vedic_Literature/sushruta/

सुश्रुत सहिंता को अंग्रेजी में पढने के लिए कृपया यहाँ क्लिक करे -> http://chestofbooks.com/health/india/Sushruta-Samhita/index.html

सुश्रुत संहिता में मनुष्य की आंतों में कर्कट रोग (कैंसर) के कारण उत्पन्न हानिकर तन्तुओं (टिश्युओं) को शल्य क्रिया से हटा देने का विवरण है।

शल्यक्रिया द्वारा शिशु-जन्म (सीजेरियन) की विधियों का वर्णन किया गया है।

‘न्यूरो-सर्जरी‘ अर्थात्‌ रोग-मुक्ति के लिए नाड़ियों पर शल्य-क्रिया का उल्लेख है तथा आधुनिक काल की सर्वाधिक पेचीदी क्रिया ‘प्लास्टिक सर्जरी‘ का सविस्तार वर्णन सुश्रुत के ग्रन्थ में है।

आधुनिकतम विधियों का भी उल्लेख इसमें है। कई विधियां तो ऐसी भी हैं जिनके सम्बंध में आज का चिकित्सा शास्त्र भी अनभिज्ञ है।

संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि प्राचीन भारत में शल्य क्रिया अत्यंत उन्नत अवस्था में थी, जबकि शेष विश्व इस विद्या से बिल्कुल अनभिज्ञ था।

#अतुल्य_वैज्ञानिक_भारत ( सभार विनीत त्रिपाठी)