बिगब्रेकिंग : शिक्षकों के स्थानांतरण पर चला हंटर, लगाई रोक, जिन्होंने नये विद्यालयों में कार्यभार ग्रहण कर लिया उनकी ज्वाईनिंग भी निरस्त

धामी सरकार द्वारा चुनाव आचार संहिता से एक दिन पहले किए गए शिक्षकों के स्थानांतरण आदेशों पर राज्य में आदर्श आचार संहिता लागू होने के कारण स्थानान्तरित शिक्षकों को कार्यमुक्त / कार्यभार ग्रहण न कराये जाने के सम्बन्ध में शासन द्वारा बड़ा आदेश जारी कर दिया गया है। अब किसी शिक्षक ने अगर नई तैनाती पर भी ज्वाइन कर लिया है तो उसको फिर से पूर्व तैनाती पर भेजा जाएगा। अब शिक्षकों के स्थानांतरण पर शाशन की स्पष्ट रूप से रोक लग गयी है। वैसे तो पहले से ही अधिकांश विद्यालयों के प्रधानाचार्यों ने चुनाव आचार संहिता का संदर्भ देकर स्थानान्तरित हुए शिक्षकों को अटका रखा है। लेकिन जिन्होंने चतुराई अथवा अपने प्रभाव से ज्वाईन कर लिया था उनकी ज्वाईनिंग भी निरस्त कर उन्हें वापस अपने पूर्ववर्ती विद्यालय वापसी के शासनादेश आदेश हो गये हैं।
एक विधि विशेषज्ञ का कहना है कि चुनाव अधिसूचना जारी होने के बाद जिस प्रकार समान्य स्थानांतरण नहीं किए जा कते हैं। उसी तरह चुनाव पूर्व हुए सामान्य स्थानांतरण रोके भी नहीं जा सकते हैं। हां जिन कर्मचारियों की चुनाव में ड्यूटी होगी वे चुनाव अधिकारी से अनुमति लेकर नये स्थान पर जावाईन भी कर सकते हैं, और तत्पश्चात अपनी चुनाव ड्यूटी पर जा सकते हैं। उन्होंने कहा कि चुनाव पूर्व हुए स्थानांतरण अग्रेत्तर रोकने के आदेश समझ से परे हैं।
उपर्युक्त विषयक माध्यमिक शिक्षा अनुभाग-2 उत्तराखण्ड शासन के कार्यालय ज्ञाप संख्या: 137 / XXIV-B-1 / 22-13 (05)/2021 दिनांक 12 जनवरी, 2022 द्वारा निर्देशित किया गया है कि माध्यमिक शिक्षा के अन्तर्गत कार्यरत शिक्षकों के शासनादेश संख्या 87, 90, 91, 92, 94 दिनांक 7 जनवरी, 2022 तथा बेसिक शिक्षा विभाग के अन्तर्गत कार्यरत शिक्षकों के शासनादेश संख्या 78 79 80 दिनांक 7 जनवरी, 2022 द्वारा कतिपय शिक्षकों के स्थानान्तरण किये गये हैं, किन्तु दिनांक 8 जनवरी, 2022 के अपराह्न 03:30 बजे राज्य में आदर्श चुनाव आचार संहिता प्रभावी हो गई है के दृष्टिगत किसी भी कार्मिक / शिक्षक को कार्यमुक्त / कार्यभार ग्रहण न कराया जाय। इस मध्य यदि किसी कार्मिक द्वारा स्थानान्तरित स्थल से कार्यमुक्त होकर नवीन स्थल पर कार्यभार ग्रहण कर लिया गया है, तो उसे निष्प्रभावी करते हुये उन्हें उनकी मूल तैनाती स्थल (स्थानान्तरण से पूर्व विद्यालय) पर ही अग्रेत्तर आदेशों तक बनाये रखना सुनिश्चित किया जाय।अतः निर्देशित किया जाता है कि उक्त आदेशों को अनुपालन तत्काल सुनिश्चित किया जाय। साथ ही यदि कोई शिक्षक कार्यमुक्त होकर नवीन स्थल पर पहुंच गया हो तो उसे तत्काल उसके पूर्ववर्ती विद्यालय में वापस करना सुनिश्चित कराया जाय।
बता दें कि इससे हरीश रावत सरकार में भी आचार संहिता लगने के ऐन पहले भारी संख्या में शिक्षकों के स्थानांतरण हुए थे लेकिन तब शिक्षकों ने चुनाव आयोग या चुनाव अधिकारी की अनुमति लेकर अथवा अपने प्रभाव से नये स्थान पर जावाईन भी कर लिया था। पहले तो शासन से इस तरह की रोक नहीं लगी थी।  परन्तु इस बार चुनाव आचार संहिता का संदर्भ देते हुए शाशन ने ५ दिन पहले जारी अपने ही आदेश पर रोक लगा दी है। जिसके अनुपालन में स्थानांतरण के आदेश निर्गत होने के ६ दिन बाद महानिदेशक शिक्षा ने भी सभी स्थानांतरण निरस्त करते हुए जिन्होंने ज्वाईनिंग कर ली उनकी वापसी के आदेश निर्गत कर दिया। बता दें कि स्थानांतरण आदेश में ज्वाईनिंग के लिए केवल दस दिनों का समय दिया गया था। ऐसे में जिन शिक्षकों को प्रधानाचार्यों ने कार्यमुक्त कर दिया था उन्होंने नये विद्यालयों में जावाईन भी कर लिया है। निरस्ती के नये शासनादेशों के कारण ऐसे शिक्षकों सैकड़ों शिक्षकों को वापस पूर्ववर्ती विद्यालय जाना पड़ेगा।
 बता दें कि कांग्रेस और कुछ बामपंथी दलों के साथ ही मीडिया ने भी सरकार द्वारा अंतिम समय में किए गए उठाया गया था। संभवतः इसी कारण शासन ने अपने ही ५ दिन पहले के आदेश पर अग्रिम आदेशों तक रोक लगाई है। इससे एक तरह से धामी सरकार द्वारा हुए उक्त स्थानांतरण आदेश खटाई में पड़ गए हैं। नयी सरकार गठन तक चुनाव आचार संहिता लागू रहेगी और उसके बाद तो निर्णय फिर नयी सरकार को लेने हैं कि पूर्ववर्ती स्थगित शासनादेश प्रभावी रहेंगे भी कि नहीं? चार वर्षों के संघर्षों के बाद बमुश्किल धामी सरकार ने बीमार शिक्षकों को कुछ राहत देने का प्रयास किया था जिसके लिए पिछले चार माह से स्थानान्तरण की कवायद चल रही थी अब शाशन द्वारा चुनाव आचार संहिता की आड़ में आदेश के सापेक्ष चलने वाली नियमित प्रक्रिया को स्थगित ही करना था तो सवाल यही है कि समूची स्थानांतरण प्रक्रिया में सरकारी मशीनरी के उपयोग का औचित्य क्या था? इसी लिए कुछ शिक्षकों ने अब न्याय की शरण में जाने की बात भी कही। जानकारों और परामर्शदाताओं का मानना है कि सरकारी शिक्षकों के विरुद्ध केवल एक पक्षीय मांइंड सैट भी ठीक नहीं है इससे अंततोगत्वा सरकारी शिक्षा को ही छति होगी।