आज का पंचाग आपका राशि फल, वेदमंत्र केलव गुरुकुलम में या परम्परा के गुरू से ही मूल रूप में गृहण करने चाहिए, तभी वेदों के सूत्र सुदीर्घ जीवन के लिए प्रस्फुटित होंगे

​ 𝕝𝕝 🕉 𝕝𝕝
*श्री हरिहरो*
*विजयतेतराम*

*🌹।।सुप्रभातम्।।🌹*
🗓 आज का पञ्चाङ्ग 🗓

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*_रविवार, १२ मार्च २०२३_*

सूर्योदय: 🌄 ०६:३६
सूर्यास्त: 🌅 ०६:२२
चन्द्रोदय: 🌝 २३:०३
चन्द्रास्त: 🌜०९:०६
अयन 🌖 उत्तरायणे
(दक्षिणगोलीय)
ऋतु: 🎋 बसंत
शक सम्वत:👉१९४४ (शुभकृत)
विक्रम सम्वत:👉२०७९ (नल)
मास 👉 चैत्र
पक्ष 👉 कृष्ण
तिथि👉पञ्चमी(२२:०१ से षष्ठी
नक्षत्र 👉 स्वाती (०८:०० से
विशाखा)
योग 👉 व्याघात (१८:४३ से
हर्षण)
प्रथम करण 👉 कौलव
(१०:०७ तक)
द्वितीय करण 👉 तैतिल
(२२:०१ तक)
*≛≛≛≛≛≛≛≛≛≛≛≛≛≛≛≛≛≛≛≛≛*
॥ गोचर ग्रहा: ॥
🌖🌗🌖🌗
सूर्य 🌟 कुम्भ
चंद्र 🌟 वृश्चिक (२६:१८ से)
मंगल🌟 मिथुन
(उदित, पश्चिम, मार्गी)
बुध🌟कुम्भ(अस्त,पूर्व,मार्गी)
गुरु🌟मीन(उदित,पूर्व,मार्गी)
शुक्र🌟मेष (उदित, पश्चिम)
शनि 🌟 कुम्भ
(उदित, पूर्व, मार्गी)
राहु 🌟 मेष
केतु 🌟 तुला
*≛≛≛≛≛≛≛≛≛≛≛≛≛≛≛≛≛≛≛≛≛≛≛≛*
शुभाशुभ मुहूर्त विचार
⏳⏲⏳⏲⏳⏲⏳
*≛≛≛≛≛≛≛≛≛≛≛≛≛≛≛≛≛≛≛≛≛≛≛≛*
अभिजित मुहूर्त 👉 १२:०३ से १२:५१
अमृत काल 👉 २३:२५ से २५:०३
विजय मुहूर्त 👉 १४:२५ से १५:१३
गोधूलि मुहूर्त 👉 १८:२० से १८:४५
सायाह्न सन्ध्या 👉 १८:२३ से १९:३५
निशिता मुहूर्त 👉 २४:०२ से २४:५०
राहुकाल 👉 १६:५४ से १८:२३
राहुवास 👉 उत्तर
यमगण्ड 👉 १२:२७ से १३:५६
होमाहुति 👉 मंगल (०८:०० से गुरु)
दिशाशूल 👉 पश्चिम
अग्निवास 👉 पाताल (२२:०१ से पृथ्वी)
चन्द्रवास 👉 पश्चिम (उत्तर २६:१९ से)
शिववास 👉 नन्दी पर (२२:०१ से भोजन में)
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☄चौघड़िया विचार☄
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॥ दिन का चौघड़िया ॥
१ – उद्वेग २ – चर
३ – लाभ ४ – अमृत
५ – काल ६ – शुभ
७ – रोग ८ – उद्वेग
॥रात्रि का चौघड़िया॥
१ – शुभ २ – अमृत
३ – चर ४ – रोग
५ – काल ६ – लाभ
७ – उद्वेग ८ – शुभ
नोट– दिन और रात्रि के चौघड़िया का आरंभ क्रमशः सूर्योदय और सूर्यास्त से होता है। प्रत्येक चौघड़िए की अवधि डेढ़ घंटा होती है।
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शुभ यात्रा दिशा
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उत्तर-पश्चिम (पान का सेवन कर यात्रा करें)
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तिथि विशेष
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श्री रंग पञ्चमी, मंगल मिथुन में २९:०१ से, शुक्र मेष में ०८:२७ से, विद्या एवं अक्षर आरम्भ मुहूर्त प्रातः ०८:१० से दोपहर १२:३७ तक आदि।
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आज जन्मे शिशुओं का नामकरण
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आज ०८:०० तक जन्मे शिशुओ का नाम स्वाती नक्षत्र के चतुर्थ चरण अनुसार क्रमशः (ता) नामक्षर से तथा इसके बाद जन्मे शिशुओ का नाम विशाखा नक्षत्र के प्रथम, द्वितीय, तृतीय एवं चतुर्थ चरण अनुसार क्रमशः (ती, तू, ते, तो) नामक्षर से रखना शास्त्रसम्मत है।
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उदय-लग्न मुहूर्त
कुम्भ – २९:१६ से ०६:४२
मीन – ०६:४२ से ०८:०६
मेष – ०८:०६ से ०९:३९
वृषभ – ०९:३९ से ११:३४
मिथुन – ११:३४ से १३:४९
कर्क – १३:४९ से १६:११
सिंह – १६:११ से १८:३०
कन्या – १८:३० से २०:४७
तुला – २०:४७ से २३:०८
वृश्चिक – २३:०८ से २५:२८
धनु – २५:२८ से २७:३१
मकर – २७:३१ से २९:१२
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पञ्चक रहित मुहूर्त
अग्नि पञ्चक – ०६:३१ से ०६:४२
शुभ मुहूर्त – ०६:४२ से ०८:००
रज पञ्चक – ०८:०० से ०८:०६
अग्नि पञ्चक – ०८:०६ से ०९:३९
शुभ मुहूर्त – ०९:३९ से ११:३४
रज पञ्चक – ११:३४ से १३:४९
शुभ मुहूर्त – १३:४९ से १६:११
चोर पञ्चक – १६:११ से १८:३०
शुभ मुहूर्त – १८:३० से २०:४७
रोग पञ्चक – २०:४७ से २२:०१
शुभ मुहूर्त – २२:०१ से २३:०८
मृत्यु पञ्चक – २३:०८ से २५:२८
अग्नि पञ्चक – २५:२८ से २७:३१
शुभ मुहूर्त – २७:३१ से २९:१२
रज पञ्चक – २९:१२ से ३०:३०
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आज का राशिफल
🐐🐂💏💮🐅👩
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मेष🐐 (चू, चे, चो, ला, ली, लू, ले, लो, अ)
आज आपके कार्यो में लचरता रहेगी। किसी भी निर्णय पर ज्यादा देर नही टिकेंगे। आप अपने ही गैरजिम्मेदार व्यवहार के कारण कष्ट उठाएंगे। कार्यो में लापरवाही भी अधिक रहेगी। हर कार्य में शक करने के कारण परिवार अथवा कार्य क्षेत्र पर तनातनी हो सकती है। व्यवसाय विपरीत रहने से धन लाभ आज मुश्किल से ही हो पायेगा। किसी दूर रहने वाले रिश्तेदार से सुखद समाचार मिलेगा। परिवार में किसी की बीमारी पर खर्च होगा। सरकारी कार्यो के पीछे व्यर्थ की भाग दौड़ करनी पड़ेगी। सेहत का विशेष ध्यान रखें।

वृष🐂 (ई, ऊ, ए, ओ, वा, वी, वू, वे, वो)
आज के दिन खर्च विशेष रहेंगे लेकिन धन लाभ के अवसर भी मिलने से तालमेल बना रहेगा। कार्य क्षेत्र के साथ साथ घरेलु कार्य अधिक रहने से व्यस्तता बढ़ेगी। मध्यान के समय धन लाभ के अवसर भी मिलेंगे परन्तु आशा के अनुसार सफलता नहीं मिल पाएगी। घर में सजावट एवं बदलाव लाने के लिए समय एवं धन खर्च होगा। सन्तानो की जिद के चलते थोड़े असहज रहेंगे। कार्य क्षेत्र पर प्रतिस्पर्धा अधिक रहने का लाभ नही उठा पाएंगे। प्रतिष्ठा को लेकर आज आप अधिक संवेदनशील रहेंगे। नौकरी पेशा जातको को थोड़ी परेशानी रहेगी। संध्या का समय एकांत वास में बिताना पसंद करेंगे।

मिथुन👫 (का, की, कू, घ, ङ, छ, के, को, हा)
आज आप पिछले कुछ दिनों की अपेक्षा बेहतर स्वास्थ्य अनुभव करेंगे। बड़े लोगो से व्यवहारिक ज्ञान मिलेगा। आज कुछ अलग करने का प्रयास करेंगे इसमें कुछ हद तक सफल भी रहेंगे परन्तु धन अथवा अन्य कारण से बाधा आएगी। सामाजिक कार्यो के प्रति रूचि लेने से प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी। बड़बोलेपन के कारण मान हानि हो सकती है संयमित व्यवहार करें। किसी परिजन अथवा सहकर्मी का विपरीत व्यवहार रंग में भंग का कार्य करेगा क्रोध में आकर कोई गलत हरकत ना करें। संध्या के समय धन लाभ होने से आयवश्यक कार्य पूर्ण कर पाएंगे।

कर्क🦀 (ही, हू, हे, हो, डा, डी, डू, डे, डो)
आपका आज का दिन भी थोड़ा उतार चढ़ाव वाला रहेगा। संबंधो में चाह कर भी मधुरता नहीं रख पाएंगे। परिजनों से बात-बात पर मतभेद बनेंगे। गलतफहमियां भी आज अधिक परेशान करेंगी। कार्य क्षेत्र पर प्रतिस्पर्धा अधिक रहने से अधिक ध्यान देना पड़ेगा। आज आपके हिस्से का लाभ कोई अन्य व्यक्ति ले सकता है। संभावित अनुबंध निरस्त होने से मन भारी रहेगा। धन लाभ के लिए किसी की मान गुहार करनी पड़ेगी फिर भी काम चलाऊ प्राप्ति हो जाएगी। लंबी यात्रा की योजना स्थगित करनी पड़ सकती है। पारिवारिक खर्च अधिक बढ़ने से परेशानी होगी।

सिंह🦁 (मा, मी, मू, मे, मो, टा, टी, टू, टे)
आज के दिन सेहत में थोड़ी गिरावट रह सकती है। परंतु बाकि सब कार्य एवं व्यवहार यथावत चलते रहेंगे। कार्य क्षेत्र पर थोड़े समय में ही अधिक लाभ मिल जाएगा। समय निकाल कर पर्यटन की योजना बनाएंगे। पौरिणीक धार्मिक स्थलों की यात्रा हो सकती है। परिवार में भी आज भावनात्मकता अधिक रहने से एक दूसरे के विचारों की कद्र करेंगे। उगाही करने पर उधारी की वापसी हो सकेगी। संध्या के बाद स्थिति में परिवर्तन आने से क्रोध एवं नकारात्मक भावनाएं बढ़ेंगी।

कन्या👩 (टो, पा, पी, पू, ष, ण, ठ, पे, पो)
आपको आज का दिन मिश्रित फल देगा। दिन के पूर्वार्ध में पूर्व में बनाई योजनाये सही दिशा में आगे बढ़ेगी परन्तु कुछ समय बाद किसी के विरोध अथवा अन्य कारणों से इनमे बदलाव करना पड़ेगा। आयवश्यक कार्यो में विलम्ब होने से निराशा होगी। यात्रा की में भी विघ्न आने से स्थगित करनी पड़ सकती है। पारिवारिक वातावरण स्वार्थ पर आधारित रहेगा। स्त्री एवं संतान के मध्य तालमेल बनाना मुश्किल खड़ी करेगा। धन लाभ के लिए आज अधिक बौद्धिक परिश्रम करना पड़ेगा। खर्च आय से अधिक रहेंगे। सन्तानो से कष्ट होगा।

तुला⚖️ (रा, री, रू, रे, रो, ता, ती, तू, ते)
आपका दिन आनंद से बीतेगा दिन के पूर्वार्ध में कार्य व्यवसाय बेहतर चलेगा इसमें व्यस्तता भी अधिक रहेगी मध्यान से पहले का समय घरेलू आवश्यकताओ की पूर्ति करने में बीतेगा। आज विपरीत लिंगीय आकर्षण से बच कर रहे अन्यथा धन एवं मान हानि भी होगी। सन्तानो के ऊपर आज गर्व होगा। लेकिन आपके किसी गलत आचरण के कारण सम्मान को ठेस पहुच सकती है। धन लाभ प्रचुर मात्रा में होगा परन्तु घरेलु खर्च अधिक रहने से बचत मुश्किल से ही कर पाएंगे। पुराने मित्रों एवं संबंधियों से मिलने पर खुशी होगी।

वृश्चिक🦂 (तो, ना, नी, नू, ने, नो, या, यी, यू)
आज आप किसी के बहकावे अथवा प्रलोभन में ना आये संवेदनशीलता अधिक रहने से आँख बंद करके किसी भी कार्य के लिए सहमति ना दें अन्यथा भारी हानि हो सकती है। पैतृक सम्पति सम्बंधित मामले उलझने से पारिवारिक वातावरण बिगड़ेगा। सरकारी कार्य भेंट पूजा के बिना करना संभव नहीं रहेगा। पुराने मित्रों से आकस्मिक भेंट आनंदित करेगी। कार्य क्षेत्र अधिक सतर्क रहें चोरी अथवा अन्य कारणों से नुक्सान हो सकता है। पारिवारिक समस्याओं की लापरवाही करने से स्थिति विकट हो सकती है। धार्मिक अनुष्ठानों पर खर्च करेंगे।

धनु🏹 (ये, यो, भा, भी, भू, ध, फा, ढा, भे)
आपका आज का दिन सामान्य से अधिक शुभ फल देने वाला रहेगा। सामाजिक एवं व्यावसायिक क्षेत्र पर अपनी प्रतिभा दिखाने का सुअवसर मिलेगा फिर भी इससे आर्थिक लाभ की आशा ना रखे सम्बन्ध प्रगाढ़ होंगे। धन लाभ के लिए आज थोड़ा अधिक बौद्धिक एवं शारीरिक परिश्रम करना पड़ेगा। धार्मिक कार्यो में भी सहभागिता देंगे। मध्यान के समय कार्य व्यवसाय में गति रहने से व्यस्तता रहेगी। शारीरिक रूप से थका हुआ अनुभव होगा। परिजनो की इच्छा पूर्ती पर खर्च करेंगे। गृहस्थ सुख सामान्य रहेगा। ऊपरी आय की भी संभावना है।

मकर🐊 (भो, जा, जी, खी, खू, खा, खो, गा, गी)
आज आपको सरकारी कार्यो से आकस्मिक लाभ होगा। पिता से संबंध बेहतर होने का लाभ मिलेगा। घर में मांगलिक कार्य के कारण अथवा अन्य घरेलु कार्यो में अधिक व्यस्त रहेंगे। कार्य क्षेत्र पर भी आशा के अनुरूप व्यवसाय होने से धन लाभ होगा। सुख के ऊपर फिजूल खर्च भी अधिक रहेंगे। घर में मेहमानों के आने से चहल-पहल रहेगी। आज किसी के ऊपर अतिविश्वास ना करें। अतिक्रोध बने बनाये कार्य को चौपट कर सकता है ध्यान रहे। आय के नविन साधनों की प्राप्ति होगी। घर में आनंद का वातावरण रहेगा।

कुंभ🍯 (गू, गे, गो, सा, सी, सू, से, सो, दा)
आज के दिन आप लाभ-हानि की परवाह नही करेंगे। सामाजिक एवं पारिवारिक क्षेत्र पर आज आप भाग्यशाली माने जाएंगे। आपके अधिकांश कार्य सरलता से बनते चले जाएंगे। जायदाद सम्बंधित कार्यो को आज करना शुभ रहेगा। सरकार की तरफ से लाभदायक समाचार मिल सकता है। विदेश सम्बंधित कार्यो में भी सफलता सुनिश्चित रहेगी। धार्मिक क्षेत्र पर योगदान के लिए सम्मानित किए जाएंगे। परिवार में भी आज आपको विशेष स्नेह एव सुविधा मिलेगी। स्वास्थ्य भी उत्तम रहेगा। धन लाभ के लिए प्रतीक्षा करनी पड़ेगी।

मीन🐳 (दी, दू, थ, झ, ञ, दे, दो, चा, ची)
आपका आज का दिन शारीरिक रूप से अशुभ रहेगा। प्रातः काल से ही आँख में जलन अथवा अंगों में दर्द रहने से निष्क्रियता रहेगी। कार्यो में उत्साहहीनता रहने के कारण पूर्व निर्धारित योजनाएं टालनी पड़ सकती है। व्यवसायिक स्थल पर प्रतिस्पर्धा के कारण टकराव की स्थिति बनेगी। आज के दिन शालीनता के साथ व्यवहार करना फायदेमंद रहेगा। अधिक क्रोध एवं ईर्ष्या की प्रवृति धन के साथ-साथ प्रियजनों से आपसी व्यवहार बिगाड़ेगी। भाग्योन्नति में बाधाएं आएँगी।
*≛≛≛≛≛≛≛≛≛≛≛≛≛≛≛≛≛≛≛≛≛≛≛≛*


वेदमंत्र केलव गुरुकुलम में या परम्परा के गुरू से ही मूल रूप में गृहण करने चाहिए, तभी वेदों के सूत्र जीवन में प्रस्फुटित होंगे। नहीं तो तुष्टिकरण योजना के अंतर्गत अब अनेक उर्दूमय नकल बाजार में उपलब्ध है उससे तो विकृति ही उत्पन्न होगी। जीवन को शास्वत यानी अमरत्व प्रदान करने के लिए वेदों में सूत्र और ऋचाओं के रूप में एक सुनिश्चित संख्या में मंत्र हैं उनका सस्वर वांचन और नियमित अभ्यास आपको दीर्घ जीवी बना देगा। लेकिन आजकल वेदों से भी भारी छेडछाड़ करके उन्हें लोग अपने हिसाब से प्रस्तुत करते हैं। सबसे अधिक दुरूपयोग के कुछ उदाहरण देखे जा सकते हैं।….. 

फाइनल इयर ग्रेजुएशन (संस्कृत) की परीक्षा में अक्सर एक विषय “संस्कृत वांग्मय का इतिहास” भी होता है। चूँकि आजकल जो संस्कृत पठन-पाठन और परीक्षा की बहुत सतही और निम्न स्तरीय  पद्दति चलती है, उसमें इस बात पर जोर दिया जाता है कि छात्र-छात्राएं कितना रट सकते हैं, इसलिए इस विषय में भी काफी रटना पड़ता है। इसमें जो महत्वपूर्ण प्रश्न होते हैं उनमें से एक है “वेदांगों के नाम और उनका महत्व बताएं”। इस सवाल के साथ समस्या ये होती है कि व्याकरण और ज्योतिष वेदांग होंगे, ये तो आसानी से याद रहता है। बाकि के चार में से छन्द एक है ये परीक्षा में जैसे तैसे याद आता है। इसके आगे के तीन बड़ी मुश्किल से याद आते हैं।

इस समस्या को सुलझाने के लिए हम लोग याद रखते हैं कि छन्द को वेदों का पैर, कल्प को हाथ, ज्योतिष को नेत्र, निरुक्त को कान, शिक्षा को नाक, व्याकरण को मुख कहा गया है। इस तरह शरीर के छह अंगों से मिलाकर हम लोग इस प्रश्न का उत्तर याद रखते हैं। किसी भी परीक्षा के वेदांग वाले प्रश्न में किसी का भी लिखा हुआ उत्तर देख लेंगे तो ये वाक्य लिखा मिलेगा ही मिलेगा – छन्द को वेदों का पैर, कल्प को हाथ, ज्योतिष को नेत्र, निरुक्त को कान, शिक्षा को नाक, व्याकरण को मुख कहा गया है। अब सवाल है कि वेदों को आखिर इन छः हिस्सों में बाँटने की जरूरत ही क्यों पड़ती है? एक तो ये जानकारी को “स्पेशलाइज” कर देता है। दूसरे आप किस हिस्से पर अधिक पकड़ रखते हैं, ये वेद सिखाने वालों को भी समझ में आता है।

वेद के मन्त्रों के उच्चारण की विधि “शिक्षा” में बताई जाती है। ये वेदांग का पहला भाग है जिसमें स्वर-वर्ण आदि के उच्चारण की शिक्षा दी जाती है। इतनी सदियों तक जब बर्बर कबीलाई आक्रमणकारी और धर्म परिवर्तन के लिए आये हमलावर जब पुस्तकों को जला रहे थे, तब भी वेद अपने मूल रूप में बचे रहे क्योंकि “शिक्षा” नाम का वेदांग था। इसके जरिये बिलकुल पक्का-पक्का उच्चारण एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी बढ़ता रहा। सर काटकर सवा मन जनेऊ जलाने की घटनाओं के बाद भी वेद पूरा-पूरा रटकर बैठे हरेक व्यक्ति की हत्या संभव नहीं हो पाई इसलिए वेद अपने मूल रूप में बचे रह गए।

किस वैदिक कर्म में कौन से मन्त्र का प्रयोग होगा, ये “कल्प” नाम के वेदांग से पता चलता है। अब इसकी तीन शाखायें होती हैं- श्रौतसूत्र, गृह्यसूत्र और धर्मसूत्र। यज्ञों से सम्बंधित नियम “कल्प” में बताये जाते हैं। कल्प का मोटे तौर पर अर्थ हिस्सा भी लगाया जा सकता है। यानि कौन सा मन्त्र किस हिस्से का है, ये कल्प से पता चलता है। वैदिक ग्रन्थ अपने सही क्रम में रहें, ये “कल्प” से सुनिश्चित हो पाया। इसके बाद व्याकरण आता है। शब्दों के उदात्त, अनुदात्त तथा स्वरित स्वरों की स्थिति का बोध व्याकरण से होता है।

इसके बाद “निरुक्त” की बारी आती है। इससे शब्दों का अर्थ समझा जाता है। शब्दों का प्रयोग जिन-जिन अर्थों में किया गया है, वो सभी अलग-अलग अर्थ “निरूक्त” के जरिये बताये जाते हैं। आज की शिक्षा पद्दत्ति से तुलना करें तो “लिंग्विस्टिक्स” में शायद शिक्षा, व्याकरण और निरुक्त तीनों मिलकर साथ आएंगे। यज्ञ और अन्य आयोजनों के लिए समय-घड़ी भी देखनी होगी, इसलिए वेदांग का एक हिस्सा “ज्योतिष” है। अंत में आते हैं “छन्द”। हर मन्त्र का अपना एक छन्द होता है। यानि अक्षर और मात्राओं की गिनती तय होगी। किसी किस्म की हेरफेर, अक्षर-मात्राओं को बदल देने को वैदिक मन्त्रों का छन्दों में होना, अत्यंत कठिन बना देता है।

उदाहरण के तौर पर आप देख सकते हैं कि आजकल जो हिंदी कविता लिखी जाती है, वो बेतुकांत होती है। ऐसा इसलिए है क्योंकि बेतुकांत कविता लिख डालना आसान होता है। इसकी तुलना में किसी से पञ्चचामर छन्द में
“हिमाद्रि तुंग शृंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती –
स्वयंप्रभा समुज्जवला स्वतंत्रता पुकारती –“
जैसी कोई कविता लिख देने कहा जाये, या अनुष्टुप, गायत्री जैसे किसी छन्द में लिख देने कहा जाए तो अधिकांश लोग हाथ खड़े कर देंगे। शिव तांडव इसी कठिन पञ्चचामर छन्द में रचित है। तुलसीदास, कबीर, रैदास जैसा कुछ दोहा-चौपाई में रच देना भी आसान काम नहीं होता।

इतने विभागों में होने का लाभ ये हुआ कि विश्व की सबसे प्राचीन रचना होने पर भी वेद अभी तक, अपने मूल स्वरुप में ही बचे रहे। विश्व धरोहर को इतनी सदियों तक बचाकर रखने के लिए जिनकी प्रशस्ति होनी चाहिए थी, उन्हें आमतौर पर इसके लिए गालियाँ पड़ती हैं। बर्बर कबीलाई हमलावर, धर्म परिवर्तन के लिए जुटे “सोल हार्वेस्टर्स” और उनकी फेंकी बोटियों पर पलने वाले ऐसी गाली गलौच करते दिख जायेंगे। वैसे इतने वेदांगों को पढ़ने सीखने में 15-20 वर्ष लगेंगे, ये अनुमान लगाना कठिन नहीं ही होगा? जो इन सभी छः भागों को पढ़ चुके (और पढ़ते-पढ़ते अपने से छोटों को सिखाते भी रहे), उन्हें वाग्मी कहते हैं। वाग्मी का अर्थ ये भी होगा कि वो शास्त्रार्थ में निपुण है।

जैसे गुरुकुलों में इनकी शिक्षा मिलती है, वो रेजिडेंशियल स्कूल से थोड़े अलग होते हैं। मिलते-जुलते होते हैं क्योंकि बच्चे वहाँ परिवार से दूर गुरुओं के पास रहते हैं। अलग इसलिए क्योंकि रेजिडेंशियल स्कूल की तरह वहाँ से बच्चे गर्मी-जाड़ों की छुट्टियों में किसी घर नहीं लौट रहे होते। वर्षों गुरुकुल में ही भिक्षाटन करते, पढ़ते रह जाते हैं। सुबह ब्रह्म मुहूर्त में यानि साढ़े तीन – चार बजे के आस पास उनकी दिनचर्या आरंभ होती है। इतनी सुबह प्रतिदिन जागने के नाम पर ही कई लोग इनकार कर देंगे। हर दिन इसी समय ठन्डे पानी से नहाने कह दिया जाए, तो भी कई सूरमा वापस कुश्ती लड़ने को आसान काम मानकर पतली गली से निकल लेंगे। लेकिन इतने पर रुकने के बदले इसमें संन्यास और जोड़ लीजिये।

वाग्मी होने के अलावा सन्यासी भी हो, ये शंकराचार्य बनने की प्रमुख अहर्ताएं हैं। ऐसा भी नहीं कि जो जो वाग्मी हों और सन्यासी हों, सभी शंकराचार्य हो जायेंगे। पीठ बहुत कम हैं और ऐसे सन्यासी सैकड़ों होते हैं। कोई गारंटी नहीं कि सभी शंकराचार्य बन पाएंगे। कुछ क्यूट शुगर फ्री पीढ़ी के धूप में बाल पकाकर आ गए बुड्ढे पूछ सकते हैं कि शंकराचार्य बनने की क्वालिफिकेशन क्या है? हो सकता है कुछ युवाओं में सहज जिज्ञासा हो अपने धर्म के प्रति और वो भी पूछें कि शंकराचार्य बनने के लिए क्या पढ़ना होता है? अगली बार ऐसे प्रश्नों से सामना हो तो बताइयेगा कि वाग्मी हो, शास्त्रार्थ में निपुण हो, और सन्यासी हो। ये तीन मिनिमम क्वालिफिकेशन तो चाहिए। पूरा कर लें, फिर आगे की और प्रक्रिया भी देखते हैं!

कभी कभी “शौक चर्राता” है। शौक चर्राना क्या होता है? ये एक ऐसे शौक का अचानक जागना होता है, जिसके बारे में इंसान को जानकारी तो रत्ती भर भी नहीं होती, लेकिन अचानक वो काम करना होता है। ऐसे काम जो बरसों के अभ्यास से सीखे जाते हैं, उनको पलक झपकते बिलकुल पेशेवर स्तर पर करना होता है। ऐसा शौक अगर जागे तो उसे शौक चर्राना कहा जाता है। अब अगर स्टैम्प या सिक्के जमा करने का शौक हो, कई किताबें इकठ्ठा कर लेने का शौक हो तो शौक का चर्राना फिर भी चलता है। कई चीजें ऐसी होती हैं, जिनका शौक चर्राये तो उस विधा की थोड़ी बहुत जानकारी रखने वालों को भी बड़ा अजीब लगता है।

जैसे एक बड़ा अच्छा सा शौक हो सकता है कि पेड़ लगाने का हो! बहुत अच्छा शौक है। सभी को होना चाहिए। पर्यावरण का भला होता है, आप अगली पीढ़ियों के लिए कुछ छोड़कर जाते हैं। लेकिन, किन्तु, परन्तु, अगर बिना कुछ किये ही अचानक ये शौक चर्राये तो क्या होगा? जिन्हें अचानक ये शौक चर्राता है वो अजीब हरकतें करने लगते हैं। सबसे पहले तो उन्हें यही समझ में नहीं आता कि जैसे पालतू पशु होते हैं, वैसे ही पौधे भी पालतू होते हैं। जैसे हर पशु को पाला नहीं जा सकता, वैसे ही हर पौधा भी पालतू नहीं होता। सरसों, फूलगोभी, पत्तागोभी से लेकर मकई तक कई पौधे मनुष्यों ने सदियों के अभ्यास से पालतू बना लिए हैं।

अगर आपको पेड़ लगाने ही हैं तो आम, जामुन, कटहल जैसे कई फलदार पौधे हैं। छायादार या लकड़ी के लिए लगाए जाने वाले पौधे होते हैं। सजावटी पौधे भी लगाए जा सकते हैं। अंदाजा न हो तो सोचिये कि दो ही दशक पहले जब बेर-बेल जैसे फल उतने बिकते नहीं थे तब वो कैसे होते थे? सहजन का पौधा कैसा होता था? बेर में बिलकुल छोटे-छोटे फल होते थे। अभी जैसे बड़े बेर नहीं होते थे। बेल का फल टेढ़ा मेढ़ा भी हो सकता था, अभी जैसा गोल सुगढ़ बड़ा सा बेल नहीं होता था। सहजन बारहों महीने नहीं होती थी, उसके पेड़ पर एक कीड़ा भी रहता था, जिसे छूते ही खुजली होती। इन्हें तो मनुष्यों (भारतीय लोगों) ने अभी हाल में ही ढंग से पालतू बनाया है।

जिन्हें पेड़ लगाने का शौक चर्राता है वो अक्सर ऐसे पौधों को लगाने की कोशिश करते हैं जो अभी पूरी तरह पालतू नहीं हुए हैं। ऐसे पेड़ों में सबसे प्रमुख हैं चन्दन और रुद्राक्ष। ये पौधे वो बेचारे खरीदकर लाते हैं और लगाने की कोशिश करते हैं। चन्दन के साथ ये याद रखना होगा कि ये करीब करीब परजीवी पौधा होता है। अगर जंगल के बाहर इसे खुद लगाने की कोशिश कर रहे हैं तो ये अकेला जियेगा ही नहीं! ऊपर से पेड़ लगाने का बीस साल का अनुभव न हो तो आप बच्चे हैं। इसलिए भी ये पेड़ आपसे लगेगा, ये मुश्किल है। किसी अभ्यस्त व्यक्ति से पूछिए। फिर आपको पता चलेगा कि चन्दन के पास ही एक नीम का पेड़, और एक कढ़ी पत्ते का पेड़ लगा देने से आपका काम बन सकता है।

दो चार वर्ष होते होते नीम या कढ़ी पत्ते के पेड़ की जड़ें चन्दन की जड़ों से जा मिलेंगी। फिर चन्दन का पेड़ उनकी जड़ों से नाइट्रोजन ले सकेगा और संभव है कि वो बच जाये। करीब-करीब ऐसा ही रुद्राक्ष के पेड़ के साथ भी होगा। ये इसलिए याद आया क्योंकि मातृभाषा दिवस पर अचानक लोगों को याद आएगा कि आने वाली पीढ़ियों, यानी अपने बच्चों को लोग अपनी मातृभाषा नहीं सिखा रहे। ये भी काफी कुछ पेड़ लगाने का शौक चर्राने जैसा ही है। जैसे लोग अपने घर संतरे, सेब या कभी-कभी काजू का पौधा लगा लेने की कोशिश करते हैं। फिर काजू सड़ा हुआ सा फलता है और संतरा कुछ-कुछ नीम्बू जैसा।

अपने स्वाभाविक परिवेश के बिना जो दशा संतरे के पेड़ की होती है, परिवेश के बिना वही दशा मातृभाषा की भी होती है। जैसे संतरा पिद्दी सा फलता है, कुछ वैसा ही भाषा का भी होगा। भारत के बाहर जन्मे या बोलना सीखना शुरू करने वाले बच्चों की हिंदी में जैसे “डोगूना लगान डेना” पड़ता है, वैसा ही दूसरी भाषाओँ में भी होता ही होगा न? पेड़ सूख जाए, पनपे नहीं तो ये सोचा जाता है कि मिट्टी ख़राब होगी, पानी-खाद कम या ज्यादा हो गया होगा, या मौसम की गड़बड़ी होगी। बिलकुल वैसे ही भाषा के मामले में भी याद रखिये की दोषारोपण बीज पर नहीं करना। वो पीढ़ी बिलकुल बीज की तरह, उतनी ही संभावनाओं से लैस थी। आपने उचित परिवेश नहीं दिया, आपकी गलती है।
✍🏻आनन्द कुमार जी की पोस्टों से संग्रहित

रावण कृष्णयजुर्वेद के आद्य भाष्यकार तो थे ही साथ में वेदों के सस्वर पाठ के आद्य प्रवर्तन ऋषि भी थे ।
वेद को अपौरुषेय कहा गया है, अर्थात जिसकी रचना किसी पुरुष ने नहीं की । इसलिए इस ज्ञानराशि का एक-एक अक्षर अपरिवर्तनीय है। वेद (ऋक्, यजु, साम और अथर्व में विभक्त 4 वेद) के मूल पाठ यथावत् सुरक्षित रहें, उनमें कभी कोई मिलावट न हो सके और न ही कोई अंश लुप्त हो जाए, इसके इसके लिए बहुत प्रारम्भ से ही ऋषियों ने इसकी पाठ-विधि का निर्धारण किया। इनमें 3 प्रकृतिपाठ और 8 विकृतिपाठ हैं. 1. संहितापाठ, 2. पदपाठ तथा 3. क्रमपाठ— ये तीन प्रकृतिपाठ हैं और 1. जटा, 2. माला, 3. शिखा, 4. रेखा, 5. ध्वज, 6. दण्ड, 7. रथ और 8. घन— ये 8 विकृतिपाठ हैं। इन विविध पाठों के द्वारा वेदमंत्रों को नाना प्रकार से कंठस्थ करने के कारण ही वेद सृष्टि के प्रारम्भ से आजतक यथावत सुरक्षित हैं। उनमें एक अक्षर तो क्या, एक मात्रा का भी परिवर्तन नहीं हुआ है। सम्पूर्ण विश्व में ऐसी कोई उच्चारण-परम्परा ढूँढने से भी प्राप्त नहीं होती।

प्रकृतिपाठ संपादित करें
इस लेख में हम 3 प्रकार के प्रकृतिपाठ के बारे में जानेंगे। 1. संहितापाठ, 2. पदपाठ तथा 3. क्रमपाठ— ये तीन प्रकृतिपाठ हैं। ‘मधुशिक्षा’ नामक ग्रन्थ के अनुसार सर्वप्रथम श्रीभगवान् ही वेदसंहिता का दर्शन किया तथा उन्होंने इसका उपदेश किया। इसी प्रकार पदपाठ के आद्य द्रष्टा रावण और क्रमपाठ के बाभ्रव्य ऋषि हैं-

भगवान् संहितां प्राह पदपाठं तु रावणः।

बाभ्रव्यर्षि क्रमं प्राह जटां व्याडिरवोचत्॥

प्रत्येक शाखा के पृथक् पदपाठ के ऋषि भी उल्लिखित हैं, यथा : ऋग्वेद की शाकलशाखा के शाकल्य, यजुर्वेद की तैत्तिरीय शाखा के आत्रेय तथा सामवेद की कौथुमशाखा के गार्ग्य ऋषि पदपाठ के द्रष्टा हैं।

(ये रावण कश्मीरके गोनन्द वंशी नरेश हैं ,न कि लंका के रावण )
✍🏻वरुण शिवाय