आज का पंचाग, आपका राशि फलादेश, विश्वविख्यात खगोलशास्त्री आर्यभट की जन्म तिथि पर विशेष आलेख

 ‼️ 🕉️ ‼️
🚩🌞 *सुप्रभातम्* 🌞
📜««« *आज का पञ्चांग* »»»📜
कलियुगाब्द…………………….5122
विक्रम संवत्……………………2077
शक संवत्………………………1942
मास……………………………फाल्गुन
पक्ष………………………………शुक्ल
तिथी……………………………सप्तमी
प्रातः 07.10 पर्यंत पश्चात अष्टमी
रवि…………………………..उत्तरायण
सूर्योदय………….प्रातः 06.30.43 पर
सूर्यास्त………….संध्या 06.38.18 पर
सूर्य राशि…………………………..मीन
चन्द्र राशि…………………………मिथुन
गुरु राशि…………………………..मकर
नक्षत्र……………………………मृगशीर्ष
संध्या 07.19 पर्यंत पश्चात आर्द्रा
योग…………………………..आयुष्मान
दोप 12.35 पर्यंत पश्चात सौभाग्य
करण……………………………..वणिज
प्रातः 07.10 पर्यंत पश्चात विष्टि
ऋतु………………………………शिशिर
*दिन…………………………..रविवार*

*🇮🇳 राष्ट्रीय सौर दिनांक ३०*
*चन्द्रमास माध, सौर फाल्गुन !*

*🇬🇧 आंग्ल मतानुसार दिनांक*
*२१ मार्च सन २०२१ ईस्वी !*

☸ शुभ अंक………………………3
🔯 शुभ रंग…………………….लाल

⚜️ *अभिजीत मुहूर्त :-*
दोप 12.09 से 12.58 तक ।

👁‍🗨 *राहुकाल :-*
संध्या 05.04 से 06.34 तक ।

🌞 *उदय लग्न मुहूर्त :-*
*मीन*
06:13:25 07:44:19
*मेष*
07:44:19 09:25:01
*वृषभ*
09:25:01 11:23:38
*मिथुन*
11:23:38 13:37:20
*कर्क*
13:37:20 15:53:30
*सिंह*
15:53:30 18:05:19
*कन्या*
18:05:19 20:15:58
*तुला*
20:15:58 22:30:36
*वृश्चिक*
22:30:36 24:46:46
*धनु*
24:46:46 26:52:24
*मकर*
26:52:24 28:39:32
*कुम्भ*
28:39:32 30:13:25

🚦 *दिशाशूल :-*
पश्चिमदिशा – यदि आवश्यक हो तो दलिया, घी या पान का सेवनकर यात्रा प्रारंभ करें ।

✡ *चौघडिया :-*
प्रात: 08.02 से 09.33 तक चंचल
प्रात: 09.33 से 11.03 तक लाभ
प्रात: 11.03 से 12.33 तक अमृत
दोप. 02.03 से 03.33 तक शुभ
सायं 06.33 से 08.03 तक शुभ
संध्या 08.03 से 09.33 तक अमृत
रात्रि 09.33 से 11.03 तक चंचल ।

📿 *आज का मंत्रः*
॥ ॐ आदित्याय नम:॥

 *संस्कृत सुभाषितानि :-*
मुखं पद्मदलाकारं वाणी चन्दनशीतला ।
ह्रदयं क्रोधसंयुक़्तं त्रिविधं धूर्तलक्षणम् ॥
अर्थात :-
मुख पद्मदल के आकार का, वाणी चंदन जैसी शीतल, और ह्रदय क्रोध से भरा हुआ – ये तीन धूर्त के लक्षण हैं ।

🍃 *आरोग्यं सलाह :-*
*आंख के नीचे सूजन को दूर करने के उपाय -*

*5. खीरा -*
खीरा आंखों में सूजन से छुटकारा पाने के लिए एक शानदार प्राकृतिक उपाय हैं। ताजा खीरे की 2 स्लाइस लें और इसे 25 मिनट तक अपनी आंखों पर रखें। यह आपके दिमाग के साथ-साथ आपकी आंखों को ताज़ा करने में मदद करेगा। ठंडे खीरे के एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण स्वाभाविक रूप से पफ्फी और सूजन के टिशू को कम करने में मदद करेंगे।

⚜ *आज का राशिफल* ⚜

🐐 *राशि फलादेश मेष :-*
*(चू, चे, चो, ला, ली, लू, ले, लो, आ)*
मित्रों का सहयोग कर पाएंगे। उत्साव व एकाग्रता में वृद्धि होगी। व्यापार-व्यवसाय मनोनुकूल रहेगा। थोड़े प्रयास से काम बनेंगे। कार्य की प्रशंसा होगी। नौकरी में अधिकारी प्रसन्न रहेंगे। धनलाभ के अवसर हाथ आएंगे। मान-सम्मान प्राप्त होगा। शुभ समय।

🐂 *राशि फलादेश वृष :-*
*(ई, ऊ, ए, ओ, वा, वी, वू, वे, वो)*
दु:खद समाचार प्राप्त हो सकता है। नकारात्मकता रहेगी। भागदौड़ अधिक होगी। दुविधा रहेगी। जोखिम बिलकुल नहीं लें। व्यापार-व्यवसाय ठीक चलेगा। पुराना रोग उभर सकता है। बेवजह विवाद की स्थिति निर्मित होगी। आय बनी रहेगी। समय नेष्ट है।

👫🏻 *राशि फलादेश मिथुन :-*
*(का, की, कू, घ, ङ, छ, के, को, ह)*
किसी आनंदोत्सव में भाग लेने का अवसर प्राप्त होगा। यात्रा मनोरंजक रहेगी। मित्रों के साथ समय अच्छा व्यतीत होगा। विद्यार्थी वर्ग अपने कार्य में सफलता प्राप्त करेगा। अध्ययन संबंधी बाधा दूर होगी। आय के साधनों में वृद्धि होगी। प्रसन्नता रहेगी।

🦀 *राशि फलादेश कर्क :-*
*(ही, हू, हे, हो, डा, डी, डू, डे, डो)*
कीमती वस्तुएं संभालकर रखें। चिंता तथा तनाव रहेंगे। भूमि व भवन संबंधी खरीद-फरोख्त की योजना बनेगी। कोई कारोबारी बड़ा सौदा हो सकता है। प्रेम-प्रसंग में जल्दबाजी न करें। अज्ञात भय रहेगा। शारीरिक कष्ट संभव है। बेरोजगारी दूर होगी।

🦁 *राशि फलादेश सिंह :-*
*(मा, मी, मू, मे, मो, टा, टी, टू, टे)*
थकान व कमजोरी रह सकती है। लेन-देन में सावधानी रखें। धन प्राप्ति सुगम होगी। निवेश शुभ फल देगा। कारोबार में वृद्धि होगी। शत्रु नतमस्तक होंगे। आराम का वक्त प्राप्त होगा। चैन की सांस ले पाएंगे। वैवाहिक प्रस्ताव मिल सकता है। प्रमाद न करें।

🙎🏻‍♀️ *राशि फलादेश कन्या :-*
*(ढो, पा, पी, पू, ष, ण, ठ, पे, पो)*
वाहन, मशीनरी व अग्नि आदि के प्रयोग में सावधानी रखें। किसी विशेष व्यक्ति से अकारण विवाद हो सकता है। पुराना रोग परेशानी का कारण बन सकता है। आशंका-कुशंका के चलते निर्णय लेने की क्षमता घटेगी। महत्वपूर्ण निर्णय लेने में जल्दबाजी न करें। धनार्जन होगा।

⚖ *राशि फलादेश तुला :-*
*(रा, री, रू, रे, रो, ता, ती, तू, ते)*
कोर्ट व कचहरी तथा सरकारी कार्यालयों में रुके कार्य मनोनुकूल रहेंगे। शेयर मार्केट व म्युचुअल फंड इत्यादि में लाभ होगा। दुष्टजनों से दूर बनाएं। धार्मिक कार्य, पूजा-पाठ-दान इत्यादि में खर्च होगा। शारीरिक कष्ट के योग हैं, सावधानी रखें।

🦂 *राशि फलादेश वृश्चिक :-*
*(तो, ना, नी, नू, ने, नो, या, यी, यू)*
सामाजिक कार्य करने का मन बनेगा। मान-सम्मान प्राप्त होगा। आय में वृद्धि होगी। नौकरी में प्रभाव बढ़ेगा। भाग्य का साथ मिलेगा। घर-परिवार की चिंता रहेगी। नई योजना बनेगी। कार्यप्रणाली में सुधार होगा। नए कार्य मिल सकते हैं। प्रतिद्वंद्वी शांत रहेंगे। जल्दबाजी न करें।

🏹 *राशि फलादेश धनु :-*
*(ये, यो, भा, भी, भू, धा, फा, ढा, भे)*
रोजगार में वृद्धि होगी। शत्रु सक्रिय रहेंगे। व्यापार-व्यवसाय मनोनुकूल चलेगा। धन प्राप्ति सुगम होगी। भाग्य का साथ रहेगा। निवेशादि शुभ फल देगा। यात्रा लाभदायक रहेगी। बकाया लेनदारी वसूल होगी। लाभ के अवसर हाथ आएंगे। लेन-देन में जल्दबाजी न करें।

🐊 *राशि फलादेश मकर :-*
*(भो, जा, जी, खी, खू, खे, खो, गा, गी)*
किसी व्यक्ति विशेष से विवाद हो सकता है। मान घटेगा। किसी भी अपरिचित की बातों में न आएं। जल्दबाजी न करें। लाभ के अवसर हाथ आएंगे। पुराना रोग उभर सकता है। वाहन, मशीनरी व अग्नि आदि के प्रयोग में सावधानी रखें। विवेक से कार्य करें। धनार्जन होगा।

🏺 *राशि फलादेश कुंभ :-*
*(गू, गे, गो, सा, सी, सू, से, सो, दा)*
अप्रत्याशित लाभ के योग हैं। सट्टे व लॉटरी से दूर रहें। व्यापार-व्यवसाय मनोनुकूल चलेगा। निवेश आदि शुभ फल देंगे। भाग्य का साथ रहेगा। परीक्षा, प्रतियोगिता व साक्षात्कार आदि में सफलता मिलेगी। व्यावसायिक यात्रा सफल रहेगी। स्वास्थ्य का ध्यान रखें। जल्दबाजी न करें।

🐋 *राशि फलादेश मीन :-*
*(दी, दू, थ, झ, ञ, दे, दो, चा, ची)*
आत्मविश्वास में वृद्धि होगी। जोखिम उठाने का साहस कर पाएंगे। आराम का वक्त मिलेगा। घर-परिवार में प्रसन्नता तथा संतुष्टि से जीवन निर्वाह होगा। शारीरिक कष्ट संभव है। अनहोनी की आशंका रहेगी। घर में अतिथियों का आगमन होगा। दूर से शुभ समाचार प्राप्त होंगे। आय में वृद्धि होगी।

*🚩🎪‼️ 🕉️ घृणि सूर्याय नमः ‼️🎪🚩*

*☯ आज का दिन सभी के लिए मंगलमय हो ☯*

*‼️ शुभम भवतु ‼️*

🚩 🇮🇳 ‼️ *भारत माता की जय* ‼️ 🇮🇳 🚩

21 मार्च/जन्म-दिवस

विश्वविख्यात खगोलशास्त्री आर्यभटृ

खगोलशास्त्र का अर्थ है ग्रह, नक्षत्रों की स्थिति एवं गति के आधार पर प॰चांग का निर्माण, जिससे शुभ कार्यों के लिए उचित मुहूर्त निकाला जा सके। इस क्षेत्र में भारत का लोहा दुनिया को मनवाने वाले वैज्ञानिक आर्यभट के समय में अंग्रेजी तिथियाँ प्रचलित नहीं थीं।

अपने एक ग्रन्थ में उन्होंने कलियुग के 3,600 वर्ष बाद की मध्यम मेष संक्रान्ति को अपनी आयु 23 वर्ष बतायी है। इस आधार पर विद्वान् उनकी जन्मतिथि 21 मार्च, 476 ई. मानते हैं। उनके जन्मस्थान के बारे में भी विद्वानों एवं इतिहासकारों में मतभेद हैं। उन्होंने स्वयं अपना जन्मस्थान कुसुमपुर बताया है। कुसुमपुर का अर्थ है फूलों का नगर। इसे विद्वान् लोग आजकल पाटलिपुत्र या पटना बताते हैं। 973 ई0 में भारत आये पर्शिया के विद्वान अलबेरूनी ने भी अपने यात्रा वर्णन में ‘कुसुमपुर के आर्यभट’ की चर्चा अनेक स्थानों पर की है।

कुछ विद्वानों का मत है कि उनके पंचांगों का प्रचलन उत्तर की अपेक्षा दक्षिण में अधिक है, इसलिए कुसुमपुर कोई दक्षिण भारतीय नगर होगा। कुछ लोग इसे विन्ध्य पर्वत के दक्षिण में बहने वाली नर्मदा और गोदावरी के बीच का कोई स्थान बताते हैं। कुछ विद्वान आर्यभट को केरल निवासी मानते हैं।

यद्यपि आर्यभट गणित, खगोल या ज्योतिष के क्षेत्र में पहले भारतीय वैज्ञानिक नहीं थे; पर उनके समय तक पुरानी अधिकांश गणनाएँ एवं मान्यताएँ विफल हो चुकी थीं। पैतामह सिद्धान्त, सौर सिद्धान्त, वसिष्ठ सिद्धान्त, रोमक सिद्धान्त और पौलिष सिद्धान्त, यह पाँचों सिद्धान्त पुराने पड़ चुके थे। इनके आधार पर बतायी गयी ग्रहों की स्थिति तथा ग्रहण के समय आदि की प्रत्यक्ष स्थिति में काफी अन्तर मिलता था। इस कारण भारतीय ज्योतिष पर से लोगों का विश्वास उठ गया। ऐसे में लोग इन्हें अवैज्ञानिक एवं अपूर्ण मानकर विदेशी एवं विधर्मी पंचांगों की ओर झुकने लगे थे।

आर्यभट ने इस स्थिति का समझकर इस शास्त्र का गहन अध्ययन किया और उसकी कमियों को दूरकर नये प्रकार से जनता के सम्मुख प्रस्तुत किया। उन्होंने पृथ्वी तथा अन्य ग्रहों की अपनी धुरी तथा सूर्य के आसपास घूमने की गति के आधार पर अपनी गणनाएँ कीं।

इससे लोगों का विश्वास फिर से भारतीय खगोलविद्या एवं ज्योतिष पर जम गया। इसी कारण लोग उन्हें भारतीय खगोलशास्त्र का प्रवर्तक भी मानते हैं। उन्होंने एक स्थान पर स्वयं को ‘कुलप आर्यभट’ कहा है। इसका अर्थ कुछ विद्वान् यह लगाते हैं कि वे नालन्दा विश्वविद्यालय के कुलपति भी थे।

उनके ग्रन्थ ‘आर्यभटीयम्’ से हमें उनकी महत्वपूर्ण खोज एवं शोध की जानकारी मिलती है। इसमें कुल 121 श्लोक हैं, जिन्हें गीतिकापाद, गणितपाद, कालक्रियापाद और गोलापाद नामक चार भागों में बाँटा है।

वृत्त की परिधि और उसके व्यास के संबंध को ‘पाई’ कहते हैं। आर्यभट द्वारा बताये गये इसके मान को ही आज भी गणित में प्रयोग किया जाता है। इसके अतिरिक्त पृथ्वी, चन्द्रमा आदि ग्रहों के प्रकाश का रहस्य, छाया का मापन, कालगणना, बीजगणित, त्रिकोणमिति, व्यस्तविधि, मूल-ब्याज, सूर्योदय व सूर्यास्त के बारे में भी उन्होंने निश्चित सिद्धान्त बताये।

आर्यभट की इन खोजों से गणित एवं खगोल का परिदृश्य बदल गया। उनके योगदान को सदा स्मरण रखने के लिए 19 अपै्रल, 1975 को अन्तरिक्ष में स्थापित कियेे गये भारत में ही निर्मित प्रथम कृत्रिम उपग्रह का नाम ‘आर्यभट’ रखा गया।
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21 मार्च/जन्म-दिवस

रूसी रामभक्त अकादमिक वरान्निकोव

रूसी नागरिकों को श्रीरामकथा का रसास्वादन कराने वाले श्री अलेक्जैंडर पेत्राविच का जन्म 21 मार्च, 1890 को उक्रोइन के जोलोतोनोशा कस्बे में एक गरीब बढ़ई प्योत्र इवानोविच के घर में हुआ था। वे नौ भाई-बहिन थे। उनकी मां घर में छलनियां बनाती थीं। बच्चे भी उनकी सहायता करते थे। अलेक्से को पढ़ने का बहुत शौक था। पांच वर्ष की अवस्था में वे बड़े भाई के साथ स्कूल जाने लगे; पर एक दिन अध्यापक ने छोटा कहकर उन्हें भगा दिया। इस पर उनके पिता ने उन्हें दूसरे स्कूल में भर्ती करा दिया। अलेक्से को किताबों से बहुत प्रेम था। वे पुस्तक पढ़ने या प्राप्त करने के लिए लोगों के कुछ काम कर देते थे। मेधावी होने से उन्हें छात्रवृत्ति भी मिलती थी। इस प्रकार वे पढ़ते रहे।

विश्वविद्यालय में श्री श्चेरवात्सकी और श्री ओल्देन बुर्ग के सान्निध्य में उन्होंने हिन्दी, संस्कृत, उर्दू आदि भारतीय भाषाओं का अध्ययन किया। इसके बाद उन्होंने अध्यापन को अपनी आजीविका बनाया। 1917 में वे पेत्रोशाद वि.वि. में भारतीय भाषा विभाग के अध्यक्ष बने। इसे अब लेनिनग्राद वि.वि. कहते हैं। उन्होंने भारत के प्रमुख गद्य एवं पद्यकारों के साहित्य का अनुवाद किया। इसी दौरान उनका परिचय श्रीरामकथा से हुआ। 1936 में उन्होंने ‘श्रीरामचरितमानस’ का गद्य में अनुवाद किया। इसी वर्ष उनकी साहित्यिक सेवाओं के लिए उन्हें सोवियत संघ के सर्वोच्च ‘लेनिन पदक’ से विभूषित किया गया।

इसके बाद दस साल के परिश्रम से उन्होंने मानस का काव्यानुवाद किया। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान हिटलर ने सोवियत संघ पर हमला कर दिया; पर उनके काम के महत्व को देखते हुए सरकार ने उन्हें कजाकिस्तान में एक सुरक्षित जगह भेज दिया। वहां बीमार पड़ने पर भी वे काम करते रहे। इसके प्रकाशित होते ही हजारों प्रतियां तुरंत बिक गयीं। इसके बाद उन्होंने हिन्दी, उर्दू और रूसी कोष का निर्माण किया। वे फारसी और जर्मन भाषा के भी विद्वान थे। फारसी के प्राचीन धर्मग्रन्थ ‘जेन्दावेस्ता’ का भी उन्होंने गहन अध्ययन किया था। 1939 में उन्हें प्रतिष्ठित ‘रूसी अकादमी’ का सदस्य बनाया गया। इससे वे ‘अकादमी वरान्निकोव’ के नाम से प्रसिद्ध हो गये। 1949 में उनकी कृति ‘प्रेमचंद’ को सोवियत संघ में बहुत प्रसिद्धि एवं सम्मान मिला। श्रीरामचरितमानस की एक प्रति उनकी मेज पर सदा रखी रहती थी। वे तुलसीदास की तरह अपने में मगन रहकर ‘स्वान्तः सुखाय’ काम करने में विश्वास रखते थे।

श्री वरान्निकोव का मानना था कि किसी देश को जानने का सबसे अच्छा साधन वहां की भाषा, साहित्य, संस्कृति और इतिहास को जानना है। भारत को इसी तरह जानने में उन्होंने अपना पूरा जीवन लगा दिया। उनकी पत्नी तथा सभी बच्चे भारत और भारतीयता के प्रेमी बने। उनके पुत्र पेत्रोविच वरान्निकोव अनुवाद कार्य में अपने पिता का सहयोग करते थे। वे कई बार भारत आये। भारत से कोई भी साहित्यकार रूस जाता था, तो वे उसका हृदय से स्वागत करते थे। यदि संभव हो, तो वे उन्हें अपने घर भी ले जाते थे। वहां उन्होंने भारत से संबंधित पुस्तक, चित्र एवं कलाकृतियों का एक संग्रहालय बना रखा था। उसे वे सबको बड़ी रुचि से दिखाते थे। उन्होंने अपने एक पुत्र का नाम ‘चंद्र’ रखा।

यद्यपि श्री वरान्निकोव भारतप्रेमी थे; पर दुर्भाग्यवश वे कभी भारतभूमि के दर्शन नहीं कर सके। 1946 में दिल्ली में गांधीजी ने ‘एशियायी सम्मेलन’ के उद्घाटन में कई विदेशी विद्वानों को बुलाया था। वे भी उसमें आना चाहते थे; पर बीमारी के कारण चिकित्सकों ने अनुमति नहीं दी। सात सितम्बर, 1952 को उनका निधन हुआ। उनकी समाधि पर देवनागरी लिपि में तुलसीदास के एक दोहे की अर्धाली ‘भलो भलाइंहि वै लहै’ अंकित है, जो उन्हें बहुत प्रिय थी। इसका अर्थ है कि भला आदमी किसी भी परिस्थिति में भलाई करने से पीछे नहीं हटता। रामभक्त श्री वरान्निकोव ऐसे ही भले आदमी थे।

 

(राष्ट्रधर्म, अपै्रल-मई 2020, शंभुनाथ टंडन)
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21 मार्च/जन्म-दिवस

विश्वनाथ के आराधक बिस्मिल्ला खां

भगवान विश्वनाथ के त्रिशूल पर बसी तीन लोक से न्यारी काशी में गंगा के घाट पर सुबह-सवेरे शहनाई के सुर बिखरने वाले उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ का जन्म 21 मार्च, 1916 को ग्राम डुमराँव, जिला भोजपुर, बिहार में हुआ था। बचपन में इनका नाम कमरुद्दीन था। इनके पिता पैगम्बर बख्श भी संगीत के साधक थे। वे डुमराँव के रजवाड़ों के खानदानी शहनाईवादक थे। इसलिए कमरुद्दीन का बचपन शहनाई की मधुर तान सुनते हुए ही बीता।

जब कमरुद्दीन केवल चार वर्ष के ही थे, तो इनकी माता मिट्ठन का देहान्त हो गया। इस पर वे अपने मामा अल्लाबख्श के साथ काशी आ गये और फिर सदा-सदा के लिए काशी के ही होकर रह गये। उनके मामा विश्वनाथ मन्दिर में शहनाई बजाते थे। धीरे-धीरे बिस्मिल्ला भी उनका साथ देने लगे। काशी के विशाल घाटों पर मन्द-मन्द बहती हुई गंगा की निर्मल धारा के सम्मुख शहनाई बजाने में युवा बिस्मिल्ला को अतीव सुख मिलता था। वे घण्टों वहां बैठकर संगीत की साधना करते थे।

बिस्मिल्ला खाँ यों तो शहनाई पर प्रायः सभी प्रसिद्ध राग बजा लेते थे; पर ठुमरी, चैती और कजरी पर उनकी विशेष पकड़ थी। इन रागों को बजाते समय वे ही नहीं, तो सामने उपस्थित सभी श्रोता एक अद्भुत तरंग में डूब जाते थे। जब बिस्मिल्ला खाँ अपना कार्यक्रम समाप्त करते, तो सब होश में आते थे। 15 अगस्त 1947 को जब लालकिले पर स्वतन्त्र भारत का तिरंगा झण्डा फहराया, तो उसका स्वागत बिस्मिल्ला खाँ ने शहनाई बजाकर किया।

धीरे-धीरे उनकी ख्याति बढ़ने लगी। केवल देश ही नहीं, तो विदेशों से भी उनको निमन्त्रण मिलने लगे। बिस्मिल्ला खाँ के मन में काशी, गंगा और भगवान विश्वनाथ के प्रति अत्यधिक अनुराग था। एक बार अमरीका में बसे धनी भारतीयों ने उन्हें अमरीका में ही सपरिवार बस जाने को कहा। वे उनके लिए सब व्यवस्था करने को तैयार थे; पर बिस्मिल्ला खाँ ने स्पष्ट कहा कि इसके लिए आपको माँ गंगा और भगवान् विश्वनाथ को भी काशी से अमरीका लाना पड़ेगा। वे धनी भारतीय चुप रह गये।

बिस्मिल्ला खाँ संगीत की उन ऊँचाइयों पर पहुँच गये थे, जहाँ हर सम्मान और पुरस्कार उनके लिए छोटा पड़ता था। भारत का शायद ही कोई मान-सम्मान हो, जो उन्हें न दिया गया हो। 11 अपै्रल, 1956 को राष्ट्रपति डा0 राजेन्द्र प्रसाद ने उन्हें हिन्दुस्तानी संगीत सम्मान प्रदान किया।

27 अपै्रल, 1961 को पद्मश्री, 16 अपै्रल, 1968 को पद्मभूषण, 22 मई, 1980 को पद्म विभूषण और फिर 4 मई, 2001 को राष्ट्रपति श्री के.आर. नारायणन ने उन्हें सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया।

इतनी ख्याति एवं प्रतिष्ठा पाकर भी उन्होंने सदा सादा जीवन जिया। काशी की सुहाग गली वाले घर के एक साधारण कमरे में वे सदा चारपाई पर बैठे मिलते थे। बीमार होने पर भी वे अस्पताल नहीं जाते थे। उनकी इच्छा थी कि वे दिल्ली में इण्डिया गेट पर शहनाई बजायें। शासन ने इसके लिए उन्हें आमन्त्रित भी किया; पर तब तक उनकी काया अत्यधिक जर्जर हो चुकी थी।

21 अगस्त, 2006 को भोर होने से पहले ही उनके प्राण पखेरु उड़ गये। देहान्त से कुछ घण्टे पहले उन्होंने अपने पुत्र एवं शिष्य नैयर हुसेन को राग अहीर भैरवी की बारीकियाँ समझायीं। इस प्रकार अन्तिम साँस तक वे संगीत की साधना में रत रहे।
……………………………इस प्रकार के भाव पूण्य संदेश के लेखक एवं भेजने वाले महावीर सिघंल मो 9897230196

हर समस्या का हल है ”रामचरितमानस”

रामचरितमानस की चौपाइयों में ऐसी क्षमता है कि इन चौपाइयों के जप से ही मनुष्य बड़े-से-बड़े संकट से मुक्ति पा सकता है। इन मंत्रो का जीवन में प्रयोग अवश्य करे प्रभु श्रीराम आप के जीवन को सुखमय बना देगे।
1. रक्षा के लिए
मामभिरक्षक रघुकुल नायक |
घृत वर चाप रुचिर कर सायक ||
2. विपत्ति दूर करने के लिए
राजिव नयन धरे धनु सायक |
भक्त विपत्ति भंजन सुखदायक ||
3. सहायता के लिए
मोरे हित हरि सम नहि कोऊ |
एहि अवसर सहाय सोई होऊ ||
4. सब काम बनाने के लिए
वंदौ बाल रुप सोई रामू |
सब सिधि सुलभ जपत जोहि नामू ||
5. वश मे करने के लिए
सुमिर पवन सुत पावन नामू |
अपने वश कर राखे राम ||
6. संकट से बचने के लिए
दीन दयालु विरद संभारी |
हरहु नाथ मम संकट भारी ||
7. विघ्न विनाश के लिए
सकल विघ्न व्यापहि नहि तेही |
राम सुकृपा बिलोकहि जेहि ||
8. रोग विनाश के लिए
राम कृपा नाशहि सव रोगा |
जो यहि भाँति बनहि संयोगा ||
9. ज्वार ताप दूर करने के लिए
दैहिक दैविक भोतिक तापा |
राम राज्य नहि काहुहि व्यापा ||
10. दुःख नाश के लिए
राम भक्ति मणि उस बस जाके |
दुःख लवलेस न सपनेहु ताके ||
11. खोई चीज पाने के लिए
गई बहोरि गरीब नेवाजू |
सरल सबल साहिब रघुराजू ||
12. अनुराग बढाने के लिए
सीता राम चरण रत मोरे |
अनुदिन बढे अनुग्रह तोरे ||
13. घर मे सुख लाने के लिए
जै सकाम नर सुनहि जे गावहि |
सुख सम्पत्ति नाना विधि पावहिं ||
14. सुधार करने के लिए
मोहि सुधारहि सोई सब भाँती |
जासु कृपा नहि कृपा अघाती ||
15. विद्या पाने के लिए
गुरू गृह पढन गए रघुराई |
अल्प काल विधा सब आई ||
16. सरस्वती निवास के लिए
जेहि पर कृपा करहि जन जानी |
कवि उर अजिर नचावहि बानी ||
17. निर्मल बुद्धि के लिए
ताके युग पदं कमल मनाऊँ |
जासु कृपा निर्मल मति पाऊँ ||
18. मोह नाश के लिए
होय विवेक मोह भ्रम भागा |
तब रघुनाथ चरण अनुरागा ||
19. प्रेम बढाने के लिए
सब नर करहिं परस्पर प्रीती |
चलत स्वधर्म कीरत श्रुति रीती ||
20. प्रीति बढाने के लिए
बैर न कर काह सन कोई |
जासन बैर प्रीति कर सोई ||
21. सुख प्राप्ति के लिए
अनुजन संयुत भोजन करही |
देखि सकल जननी सुख भरहीं ||
22. भाई का प्रेम पाने के लिए
सेवाहि सानुकूल सब भाई |
राम चरण रति अति अधिकाई ||
23. बैर दूर करने के लिए
बैर न कर काहू सन कोई |
राम प्रताप विषमता खोई ||
24. मेल कराने के लिए
गरल सुधा रिपु करही मिलाई |
गोपद सिंधु अनल सितलाई ||
25. शत्रु नाश के लिए
जाके सुमिरन ते रिपु नासा |
नाम शत्रुघ्न वेद प्रकाशा ||
26. रोजगार पाने के लिए
विश्व भरण पोषण करि जोई |
ताकर नाम भरत अस होई ||
27. इच्छा पूरी करने के लिए
राम सदा सेवक रूचि राखी |
वेद पुराण साधु सुर साखी ||
28. पाप विनाश के लिए
पापी जाकर नाम सुमिरहीं |
अति अपार भव भवसागर तरहीं ||
29. अल्प मृत्यु न होने के लिए
अल्प मृत्यु नहि कबजिहूँ पीरा |
सब सुन्दर सब निरूज शरीरा ||
30. दरिद्रता दूर के लिए
नहि दरिद्र कोऊ दुःखी न दीना |
नहि कोऊ अबुध न लक्षण हीना |
31. प्रभु दर्शन पाने के लिए
अतिशय प्रीति देख रघुवीरा |
प्रकटे ह्रदय हरण भव पीरा ||
32. शोक दूर करने के लिए
नयन बन्त रघुपतहिं बिलोकी |
आए जन्म फल होहिं विशोकी ||
33. क्षमा माँगने के लिए
अनुचित बहुत कहहूँ अज्ञाता |
क्षमहुँ क्षमा मन्दिर दोऊ भ्राता ||
हरि_बोल🌸