आज का पंचाग, आपका राशि फल, हमारी नित्य सनातन परम्पराओं में ही छिपे हैं स्वास्थ्य रक्षा के वैज्ञानिक सूत्र

*🚩जय सत्य सनातन🚩*

*🚩आज की हिंदी तिथि*

🌥️ *🚩युगाब्द-५१२२*
🌥️ *🚩विक्रम संवत-२०७७*
⛅ *🚩तिथि – अष्टमी सुबह 09:00 तक तत्पश्चात नवमी 

⛅ *दिनांक 22 मार्च 2021*

⛅ *दिन – सोमवार*
⛅ *विक्रम संवत – 2077*
⛅ *शक संवत – 1942*
⛅ *अयन – उत्तरायण*
⛅ *ऋतु – वसंत*
⛅ *मास – फाल्गुन*
⛅ *पक्ष – शुक्ल*
⛅ *नक्षत्र – आर्द्रा रात्रि 09:28 तक तत्पश्चात पुनर्वसु*
⛅ *योग – सौभाग्य दोपहर 12:56 तक तत्पश्चात शोभन*
⛅ *राहुकाल – सुबह 08:12 से सुबह 09:43 तक*
⛅ *सूर्योदय – 06:42*
⛅ *सूर्यास्त – 18:49*
⛅ *दिशाशूल – पूर्व दिशा में*
⛅ *व्रत पर्व विवरण -*
💥 *विशेष – अष्टमी को नारियल का फल खाने से बुद्धि का नाश होता है।(ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)*
💥 *अष्टमी तिथि, रविवार, श्राद्ध और व्रत के दिन स्त्री-सहवास तथा तिल का तेल खाना और लगाना निषिद्ध है।(ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-38)*

[ पंडित चक्रधर प्रसाद मैदुली🕉️ फलित ज्योतिष शास्त्री ✡️
दधिशंख तुषाराभं,क्षीरोदार्णवसम्भवम्।
नमामि शशिनं सोमम्,शम्भो मुकुट भूषणम्।। हिन्दी ब्याख्या :–दही शंख अथवा हिम के समान जिनकी दीप्ति है जिनकी उत्पत्ति क्षीर समुद्र से है जो शिव जी के मुकुट पर अलंकार की तरह विराजमान रहते हैं मैं उन चंद्र देव को प्रणाम करता हूं 
✡️उत्तराखंड का दैनिक पंचांग✡️
✡️चैत्र मासे ✡️
✡️09 प्रविष्टे गते ✡️
✡️दिनांक :22 – 03 – 2021✡️✡️(सोमवार)✡️
सूर्योदय :06.32 am
सूर्यास्त :06.35 pm
सूर्य राशि :मीन
चन्द्रोदय :11.22 pm
चंद्रास्त :02.24 am
चन्द्र राशि :मिथुन
विक्रम सम्वत :विक्रम संवत 2077
अमांत महीना :फाल्गुन 9
पूर्णिमांत महीना :फाल्गुन 23
पक्ष :शुक्ल 8
तिथि :अष्टमी 9.00 am तक, बाद में नवमी
नक्षत्र :आद्रा 9.28 pm तक, बाद में पुनर्वसु
योग :सौभाग्य 12.55 pm तक, बाद में शोभन
करण :बव 9:00 am तक, बाद में बालव 9:40 pm तक, बाद में कौलव
राहु काल :7.30 am – 9.10 am
कुलिक काल :2.11 pm – 3.52 pm
यमगण्ड :10.51 am – 12.31 pm
अभिजीत मुहूर्त :12.09 PM – 12.57 PM
दुर्मुहूर्त :12:57 pm – 01:46 pm

✡️आज के लिए राशिफल 22-03-2021) ✡️

✡️मेष✡️22-03-2021

आज आपका आर्थिक पक्ष मजबूत रहेगा। किसी दोस्त की पार्टी का इनविटेशन आ सकता है। वहां आप काफी इंज्वाय करेंगे। ऑफिस में आपके काम को लेकर बॉस आपकी तारीफ कर सकते हैं। इस राशि के स्टूडेंट्स के लिए आज का दिन अच्छा रहेगा। आपको एग्जाम से रिलेटेड कोई शुभ समाचार मिलने के योग हैं। घर में खुशियों का माहौल बना रहेगा। सोसाइटी के लोग आपसे घर पर मिलने आ सकते हैं। इस राशि के विवाहितों के लिए आज का दिन अच्छा रहेगा।

भाग्यशाली दिशा : दक्षिण

भाग्यशाली संख्या : 8

भाग्यशाली रंग : नीला रंग

—————————————

✡️वृष ✡️22-03-2021

वित्तीय क्षेत्र में उठाए गए कदम सफल होंगे। आय का एक अतिरिक्त स्रोत भी स्थापित हो सकता है। भूमि क्रय –विक्रय के संदर्भ में कमीशन के माध्यम से आर्थिक लाभ संभव हैं। यदि आप अपना खुद का व्यवसाय कर रहे हैं, तो इस समय का सदुपयोग अच्छी विस्तार योजनाएं बना कर करें। यदि आपका व्यवसाय रचनात्मक क्षेत्र से जुड़ा हुआ है, तो आपको अपनी प्रतिभा दिखाने और खुद का नाम बनाने के अवसर मिलेंगे। पारिवारिक जीवन सामंजस्यपूर्ण रहेगा और परिवार में शादी या संतान के जन्म सम्बंधित शुभ घटनाएं घटित हो सकती हैं।

भाग्यशाली दिशा : पूर्व

भाग्यशाली संख्या : 9

भाग्यशाली रंग : गहरा लाल

————————————–

✡️मिथुन ✡️22-03-2021

अपनी जिम्मेदारियों से ज्यादा काम खुद पर न डालें। आपके लिए खुद पर नियंत्रण और अनुशासन रखना जरूरी है। हर भावनात्मक स्थिति में खुद को संयम में रखें। पैसों के मामले में धीरे-धीरे आगे बढ़ें। बड़े और अनुभवी लोगों से अच्छी सलाह भी आपको मिल सकती है। कला, संगीत, भाषा, लेखन के क्षेत्र से जुड़े लोगों को करियर संबंधित अच्छे मौके भी मिल सकते हैं। बिजनेस में कर्मचारियों पर ज्यादा ध्यान दें।

भाग्यशाली दिशा : उत्तर

भाग्यशाली संख्या : 6

भाग्यशाली रंग : सफ़ेद रंग

————————————–

✡️कर्क ✡️22-03-2021

अधूरे कार्यों की पूर्णता को आज का दिन शुभ हैं। आपके जीवन-साथी की लापरवाही संबंधों में दूरी बढ़ा सकती है। हर नयें सम्बन्ध के प्रति गहरी व पैनी नजर रखने की आवश्यकता है। परमात्मा में आस्था बढ़ेगी। आपके निरंकुश व्यवहार के चलते पारिवारिक सदस्य खफ़ा हो सकते हैं। गलतफहमी के चलते आपके और आपके प्रिय के बीच थोड़ी दरार पड़ सकती है। आप अपने कार्य में आगे बढ पाएंगे और योजना के अनुसार कार्य भी कर पाएंगे।

भाग्यशाली दिशा : पश्चिम

भाग्यशाली संख्या : 5

भाग्यशाली रंग : हरा रंग

————————————–

✡️सिंह ✡️22-03-2021

आज आपका दिन परिवार वालों के साथ बीतेगा। आप साथियों के साथ बाहर घूमने का प्लान बना सकते हैं। गुस्से में किसी से बात करने से आपको बचना चाहिए। आपके व्यवहार से कुछ लोग प्रभावित भी होंगे। ऑफिस का माहौल ठीक-ठाक रहेगा। परिवार वालों के साथ किसी रेस्टोरेंट में डिनर करने जा सकते हैं। आपका कॉन्फिडेंस बढ़ा हुआ रहेगा। सीनियर्स आपके काम से खुश होंगे। आपकी सेहत में उतार-चढ़ाव रहेगा। हनुमान चालीसा का पाठ करें, आपकी सभी समस्या दूर होगी।

भाग्यशाली दिशा : दक्षिण

भाग्यशाली संख्या : 9

भाग्यशाली रंग : काल रंग

————————————–

✡️कन्या✡️22-03-2021

आज आप में से कुछ लोगों को आपके व्यवसाय-साथी या किसी करीबी सहयोगी से समस्या हो सकती है। व्यवसाय से संबंधित यात्राएँ वांछित परिणाम नहीं दे सकती हैं। नए कार्यस्थल से जुड़ने या नई परियोजनाओं और उपक्रमों को शुरू करने के लिए दिन ज्यादा अनुकूल नहीं है। कार्यस्थल पर टकराव से बचने की कोशिश करनी चाहिए। प्रेमपूर्ण संपर्क यदि कोई हो, तो यह एक बुरा मोड़ ले सकता है और आप में से कुछ लोग बदनामी और अपमान का शिकार हो सकते हैं। यह कुछ भावनात्मक रूप से परेशान कर सकता है।

भाग्यशाली दिशा : पूर्व

भाग्यशाली संख्या : 4

भाग्यशाली रंग : हरा रंग

————————————–

✡️तुला ✡️22-03-2021

मीठा बोलकर आप अपने काम करवा लेंगे। करियर और निजी जीवन आपके लिए बड़ा मुद्दा बन सकता है। नई नौकरी के लिए कोशिश करनी होगी। करियर को लेकर आपके दिमाग में कोई ऐसा आइडिया आ सकता है जो आपके लिए कारगर रहेगा। आप कुछ खास फैसले भीले सकते हैं। इस सिलसिले में काफी मंथन और बातचीत होगी। बुजुर्गों का आशीर्वाद मिल सकता है। परिवार में खुशी का मौका मिल सकता है।

 

भाग्यशाली दिशा : उत्तर

भाग्यशाली संख्या : 2

भाग्यशाली रंग : सफ़ेद रंग

————————————–

✡️वृश्चिक ✡️22-03-2021

आपके उत्साह से लोग खुश रहेंगे। आज अगर आप दूसरों की बात मानकर निवेश करेंगे, तो आर्थिक नुकसान तकरीबन पक्का है। हठीले व्यवहार के कारण अन्य लोगों के साथ संघर्ष होने की संभावना है। संभव हो तो नया कार्य मध्याह्न से पूर्व ही संपन्न कर दीजिएगा। पैसों को लेकर किसी के साथ विवाद न करें। आराम करने के लिए समय मिल सकेगा। धार्मिक कार्यों में रुचि बढ़ेगी। जीवनसाथी या संतान के कुछ स्वास्थ्य के लिए चिंता हो सकती है।

भाग्यशाली दिशा : पश्चिम

भाग्यशाली संख्या : 5

भाग्यशाली रंग : हल्का हरा

————————————–

✡️धनु ✡️22-03-2021

आज व्यापार में आपको अचानक धन लाभ का अवसर प्राप्त होगा। ऑफिस के कुछ सहकर्मी आपके काम में सहायता करेंगे, जिससे आपका काम जल्दी पूरा हो जायेगा। आज आपकी किसी ऐसे व्यक्ति से मुलाकात होगी, जो आगे आने वाले दिनों में आपकी मदद करेगा। आपके सोचे हुए काम आसानी से पूरे होंगे। बिजनेस में आप जो भी काम हाथ में लेंगे, उसमें आपको सफलता मिलेगी। आज आप किसी दोस्त की बर्थडे पार्टी में जा सकते हैं। मंदिर में घी का दीपक जलाएं, लाभ के अवसर प्राप्त होंगे।

 

भाग्यशाली दिशा : दक्षिण

भाग्यशाली संख्या : 9

भाग्यशाली रंग : हल्का लाल

————————————–

✡️मकर ✡️22-03-2021

व्यावसायिक सन्दर्भ में, आप बड़ी सफलता प्राप्त करेंगे और एक उच्च सामाजिक स्थिति हासिल करेंगे। आप एक नया उद्यम शुरू कर सकते हैं और एक बड़ी डील को अंतिम रूप दे सकते हैं। आपका नाम और प्रसिद्धि व्यापक होगी। आपका पारिवारिक-जीवन शांतिपूर्ण और खुशहाल रहेगा। आपके पास नए अधिग्रहण हो सकते हैं जो आपके जीवन को अधिक आरामदायक और संतोषजनक बनाएंगे। परिवार में कुछ हर्षोल्लास समारोह हो सकते हैं।

 

भाग्यशाली दिशा : पूर्व

भाग्यशाली संख्या : 3

भाग्यशाली रंग : हल्का पीला

 

—————————————

✡️कुंभ 🕉️
22-03-2021

धन लाभ के मौके मिल सकते हैं। एकाग्र होने की कोशिश करें। साथ काम करने वाले कुछ लोग आपसे अपनी खास बातें भी शेयर कर सकते हैं। प्रेम संबंधों में गहराई बढ़ सकती है। सितारे आपके काम पूरे करवा सकते हैं। बिजनेस में परेशानियां खत्म होने के योग हैं। नए लोगों से मुलाकात हो सकती है। आपकी पहचान का दायरा बढ़ सकता है और आप हिम्मत से काम कर सकेंगे।

 

भाग्यशाली दिशा : उत्तर

भाग्यशाली संख्या : 2

भाग्यशाली रंग : सफ़ेद रंग

—————————————

✡️मीन 🕉️22-03-2021

आज मन में प्रसन्नता बनी रहेगी। बिजनेस और नौकरी में भी सफलता मिल सकती है। यह काम के मोर्चे पर एक सुचारू दिन होगा क्योंकि आप स्थिति को संभालने में सक्षम होंगे। कार्य में संतुष्टि का अनुभव होगा। आपको पैसों के क्षेत्र में कुछ नए मौके मिलने के योग हैं। आप जो भी करेंगे, कुछ लोग उसकी देखा-देखी कर सकते हैं। प्रभावशाली और महत्वपूर्ण लोगों से परिचय बढ़ाने के लिए सामाजिक गतिविधियाँ अच्छा मौक़ा साबित होंगी।

 

भाग्यशाली दिशा : पश्चिम

भाग्यशाली संख्या : 7

भाग्यशाली रंग : भूरा रंग

✍️पंडित चक्रधर प्रसाद मैदुली फलित ज्योतिष शास्त्री जगदंबा ज्योतिष कार्यालय सोडा सरोली रायपुर देहरादून मूल निवासी ग्राम वादुक पत्रालय गुलाडी पट्टी नन्दाक जिला चमोली गढ़वाल उत्तराखंड फोन नंबर ✡️ 8449046631✡️✡️✡️

🌷 *कालसर्प योग से मुक्ति पाने* 🌷

🐍 *कालसर्प दोष बहुत भयंकर माना जाता है | और ये करो… ये करो… इतना खर्चा करो…..इतना जप करो…. कई लोग इनको ठग लेते हैं | फिर भी कालसर्प योग से उनका पीछा नहीं छूटता | लेकिन ज्योतिष के अनुसार उनका कालसर्प योग नहीं रहता जिनके ऊपर केसुड़े (पलाश ) के रंग – होली के रंग का फुवारा लग जाता है | फिर कालसर्प योग से मुक्ति हो गई | कालसर्प योग के भय से पैसा खर्चना नहीं है और अपने को ग्रह दोष है, कालसर्प है ऐसा मानकर डरना नहीं अपने को दुखी करना नहीं है |*

📌 मुझे अवैज्ञानिक, अज्ञानी और मूर्ख कहने वाले यह अवश्य पढ़ें , भुने जाते अन्न का धुंआ कीटाणुनाशक होता है और वातावरण को शुद्ध करता है..!!

📌 पीसे हुए अन्न के चूर्ण, जैसे बाजरे के आटे से हाथ धोने पर वे अत्यंत शुद्ध और निरापद हो जाते हैं , पक्वान्न, जैसे भात, चूरमा, करबा आदि को हाथ से खाकर, (चम्मच नहीं) उंगलियां चाटने के बाद हल्का धोकर परस्पर रगड़ने से वे दिन भर साफ और रोगाणुरोधी बने रहते हैं..!!

📌 #मूंछों के घी या सरसों तेल लगाने से नाक के रास्ते वायरस नहीं घुसते..!!
📌 फॉर्मेट भोज्य पदार्थों की महक, जैसे खमीर,दही, छाछ, सिरका, ताड़ी, अचार, मुरब्बा, अवलेह, आसव नित्य वायरस रोधी होते हैं..!!

📌 एक वर्ष में पककर नष्ट हो जाने वाली सभी वनस्पतियों का धुंआ रोगाणुनाशक होता है..!!

📌 कपूर, उपले, घी, यज्ञ सामग्री, उड़ती गोधूलि, इत्यादि स्वाभाविक ही रोगनाशक होती है..!!

📌 सूर्य किरण, चन्द्रज्योत्सना, दीपक का प्रकाश, घण्टा और शंख की ध्वनि, चर्म जड़ित वाद्यों का शोर, मंदिर की पताका के दर्शन मंत्रोच्चार, संस्कृत भाषा का श्रवण, निःसंदेह रोगनाशक होता है और बल में वृद्धि करता है..!!

📌 राजा, योगी और वृद्धों का संग, ॐ का जप, ऋषियों की वाणी आंख बंद कर सुनना, सती स्त्री का ध्यान, सुहागिन के दर्शन, अलंकारों की ध्वनियां, पक्षियों का कलरव, बच्चों की किलकारियां, सामूहिक गायन, गाय और बछड़े की परस्पर रम्भाने की आवाज, चिड़िया के पंखों की फ़र्फ़राहट, स्वर्ण, रजत, मणि और रत्नों का स्पर्श भी रोगनाशक होता है।

📌 गोबर, गौमूत्र, कुंकुम, चंदन, हल्दी, सिंदूर, भस्म, ताजे पत्ते, वृक्षों की छाल, गहरे कुँए का जल, गंगाजल, देवप्रतिमा का चरणामृत, पुष्पराग, ये सब स्वभाव से ही आरोग्यकारी हैं..!!

📌 जिन फलों पर मक्खी नहीं बैठती, जैसे संतरा, इनके छिलके रोगनाशक होते है , अपने ही सिर का पसीना रोगनाशक होता है। उससे तर गमछा या पगड़ी से चेहरा पोंछने पर या उससे छान कर जल पीने से अनेक रोग नष्ट हो जाते हैं..!!

📌 कृत्रिम, आधुनिक और प्लास्टिक के स्वच्छ से दिखने वाले पदार्थ, यथा पेन, मोबाइल, कीबोर्ड, चश्मा इत्यादि महान अनर्थकारी और रोगाणुओं के आश्रय हैं..!

🌷 *ब्रम्हवृक्ष पलाश* 🌷

🍂 *पलाश को हिंदी में ढ़ाक, टेसू, बंगाली में पलाश, मराठी में पळस, गुजराती में केसुडा कहते है | इसके पत्त्तों से बनी पत्तलों पर भोजन करने से चाँदी – पात्र में किये भोजन तुल्य लाभ मिलते हैं *
🙏🏻 *‘लिंग पुराण’ में आता है कि पलाश की समिधा से ‘ॐ नम: शिवाय’ मंत्र द्वारा १० हजार आहुतियाँ दें तो सभी रोगों का शमन होता है *
🥀 *पलाश के फूल : प्रेमह (मुत्रसंबंधी विकारों) में: पलाश-पुष्प का काढ़ा (५० मि.ली.) मिश्री मिलाकर पिलायें |*
➡ *रतौंधी की प्रारम्भिक अवस्था में : फूलों का रस आँखों में डालने से लाभ होता है आँखे आने पर (Conjunctivitis) फूलों के रस में शुद्ध शहद मिलाकर आँखों में आँजे *
🙍🏻‍♂ *वीर्यवान बालक की प्राप्ति : एक पलाश-पुष्प पीसकर, उसे दूध में मिला के गर्भवती माता को रोज पिलाने से बल-वीर्यवान संतान की प्राप्ति होती है *
🍂 *पलाश के बीज : ३ से ६ ग्राम बीज-चूर्ण सुबह दूध के साथ तीन दिन तक दें चौथे दिन सुबह १० से १५ मि.ली. अरंडी का तेल गर्म दूध में मिलाकर पिलाने से कृमि निकल जायेंगे *
🍂 *पत्ते : पलाश व बेल के सूखे पत्ते, गाय का घी व मिश्री समभाग मिला के धूप करने से बुद्धि की शुद्धि व वृद्धि होती है *
➡ *बवासीर में : पलाश के पत्तों की सब्जी घी व तेल में बनाकर दही के साथ खायें *
🥀 *छाल : नाक, मल-मूत्र मार्ग या योनि द्वारा रक्तस्त्राव होता हो तो छाल का काढ़ा (५० मि.ली.) बनाकर ठंडा होने पर मिश्री मिला के पिलायें *
🍂 *पलाश का गोंद : पलाश का १ से ३ ग्राम गोंद मिश्रीयुक्त दूध या आँवला रस के साथ लेने से बल-वीर्य की वृद्धि होती है तथा अस्थियाँ मजबूत बनती हैं यह गोंद गर्म पानी में घोलकर पीने से दस्त व संग्रहणी में आराम मिलता है *

📌 #आप_कहोगे, साइंटिफिक नहीं है, अरे साइंटिफिक की करो भूंगली..!!

📌 तुमको बचना है तो इनमें से एक भी उपाय बचा लेगा, बाद में करते रहना साइंटिफिक..!!
📌 जिन्होंने कुछ ज्यादा ही साइंटिफिक की पूंछ पकड़ी, उनके हाल देख ही रहे हो..!!( सौजन्य डाॅ भगवती प्रसाद पुरोहित)

फोटो कनक विहारिणी ब्रिन्दावन 

मैं आज प्रेम झा जी की वॉल पर ‘भामती की कथा’ पढ़ रहा था… इससे पहले मैं ‘ओशो की भामती’ कथा पढ़ा था… उसी पोस्ट को खोजने पर यह पोस्ट मिला… मन करे तो पढ़ने में कोई हर्ज नहीं… पर पहले प्रेम झा जी की ‘भामती की कथा’ पढ़िए…..

आज की कथित ‘बड़ी बिंदी वाली’, ‘अन्तःवस्त्र त्यागने वाली’, ‘कमोड पर स्थापित होने वाली’ नाली-याँ क्या शास्वत प्रेम समर्पण का अर्थ जान पाती हैं।
जिनके पास प्रेम सम्बंध के अर्थ “A Small Piece of Tissue” तक ही सीमित हैं उनके लिए प्रेम समर्पण के लिए कोई महत्व नहीं है।
प्रेम और समर्पण की एक अद्भुत कथा देखें….
🌺
एक बहुत अदभुत घटना मैं आपसे कहता हूँ।
वाचस्पति मिश्र का विवाह हुआ। पिता ने आग्रह किया, वाचस्पति की कुछ समझ में न आया; इसलिए उन्होंने हाँ भर दी।
सोचा, पिता जो कहते होंगे, ठीक ही कहते होंगे। वाचस्पति तो लगा था, परमात्मा की खोज में उसे कुछ और समझ में ही न आता था। कोई कुछ भी बोले, वह परमात्मा की ही बात समझता था।
पिता ने वाचस्पति को पूछा, विवाह करोगे?
उसने कहा, हाँ। उसने कदाचित सुना होगा, परमात्मा से मिलोगे? जैसा कि हम सब के साथ होता है। जो धन की खोज में लगा है, उससे कहो, धर्म खोजोगे? वह समझता है, शायद कह रहे हैं, धन खोजोगे?
उसने कहा, हाँ।
हमारी जो भीतर खोज होती है, वही हम सुन पाते हैं।
वाचस्पति ने कदाचित सुना; हाँ, भर दी।

फिर जब घोड़े पर बैठ कर ले जाया जाने लगा, तब उसने पूछा, कहाँ ले जा रहे हैं?
उसके पिता ने कहा, पागल ! तूने हाँ भरा था। विवाह करने चल रहे हैं। तो फिर उसने ना करना उचित न समझा; क्योंकि जब हाँ भर दी थी और बिना जाने भर दी थी, तो परमात्मा की मर्जी होगी।
वह विवाह करके लौट आया। लेकिन पत्नी घर में आ गई, और वाचस्पति को खयाल ही न रहा।
रहता भी क्या!
न उसने विवाह किया था, न हाँ भरी थी।
वह अपने काम में ही लगा रहा। वह ब्रह्मसूत्र पर एक टीका लिखता था। बारह वर्ष में टीका पूरी हुई। बारह वर्ष तक उसकी पत्नी रोज सांझ दीया जला जाती। रोज सुबह उसके पैरों के पास फूल रख जाती। दोपहर उसकी थाली सरका देती। जब वह भोजन कर लेता, तो चुपचाप पीछे से थाली हटा ले जाती। बारह वर्ष तक उसकी पत्नी का वाचस्पति को पता नहीं चला कि वह है। पत्नी ने कोई उपाय नहीं किया कि पता चल जाए;
बल्कि सब उपाय किए कि कहीं भूल-चूक से पता न चल जाए, क्योंकि उनके काम में बाधा न पड़े।
बारह वर्ष जिस पूर्णिमा की रात वाचस्पति का काम आधी रात पूरा हुआ और वाचस्पति उठने लगे, तो उनकी पत्नी ने दीया उठाया–उनको राह दिखाने के लिए उनके बिस्तर तक।
पहली बार बारह वर्ष में, कथा कहती है, वाचस्पति ने अपनी पत्नी का हाथ देखा।
क्योंकि बारह वर्ष में पहली बार काम समाप्त हुआ था।
अब मन बंधा नहीं था किसी काम से।
हाथ देखा, चूड़ियाँ देखीं,
चूड़ियों की आवाज सुनी।
लौट कर पीछे देखा और कहा,
स्त्री, इस आधी रात अकेले में तू कौन है? कहाँ से आई?
द्वार भवन के बंद हैं,
कहाँ पहुँचना है तुझे, मैं पहुँचा दूँ!

उसकी पत्नी ने कहा, आप शायद भूल गए होंगे, बहुत काम था। बारह वर्ष आप काम में थे। याद आपको रहे, संभव भी नहीं है।
बारह वर्ष पहले, स्मृति में अगर आपको आता हो, तो आप मुझे पत्नी की तरह घर ले आए थे। तब से मैं यहीं हूँ।

वाचस्पति रोने लगा।
उसने कहा, यह तो बहुत देर हो गई।
क्योंकि मैंने तो प्रतिज्ञा कर रखी है कि जिस दिन यह ग्रंथ पूरा हो जाएगा, उसी दिन घर का त्याग कर दूँगा।
तो यह तो मेरे जाने का वक्त हो गया।
भोर होने के करीब है; तो मैं जा रहा हूँ।
पागल, तूने पहले क्यों न कहा?
थोड़ा भी तू इशारा कर सकती थी। लेकिन अब बहुत देर हो गई।
वाचस्पति की आँखों में आँसू देख कर पत्नी ने उसके चरणों में सिर रखा और उसने कहा, जो भी मुझे मिल सकता था, वह इन आँसुओं में मिल गया।
अब मुझे कुछ और चाहिए भी नहीं है। आप निश्चिंत जाएँ।
और मैं क्या पा सकती थी इससे ज्यादा कि वाचस्पति की आँख में मेरे लिए आँसू हैं!
बस, बहुत मुझे मिल गया है। वाचस्पति ने अपने ब्रह्मसूत्र की टीका का नाम “भामति” रखा है।
“भामति” का कोई संबंध टीका से नहीं है। ब्रह्मसूत्र से कोई लेना-देना नहीं है।
यह उसकी पत्नी का नाम है। यह कह कर कि अब मैं कुछ और तेरे लिए नहीं कर सकता, लेकिन मुझे चाहे लोग भूल जाएँ, तुझे न भूलें, इसलिए “भामति” नाम देता हूँ अपने ग्रंथ को।
वाचस्पति को बहुत लोग भूल गए हैं; “भामति” को भूलना असम्भव है। “भामति” लोग पढ़ते हैं।
अदभुत टीका है ब्रह्मसूत्र की।
वैसी दूसरी टीका नहीं है।
उस पर नाम “भामति” है।

फेमिनिन मिस्ट्री इस स्त्री के पास होगी। और मैं मानता हूँ कि उस क्षण
में इसने वाचस्पति को जितना पा लिया होगा, उतना हजार वर्ष भी चेष्टा करके कोई स्त्री किसी पुरुष को नहीं पा सकती। उस क्षण में, उस क्षण में वाचस्पति जिस भाँति एक हो गया होगा इस स्त्री के हृदय से, वैसा कोई पुरुष को कोई स्त्री कभी नहीं पा सकती। क्योंकि फेमिनिन मिस्ट्री, वह जो रहस्य है, वह अनुपस्थित होने का है।
छुआ क्या प्राण को वाचस्पति के? कि बारह वर्ष! और उस स्त्री ने पता भी न चलने दिया कि मैं यहीँ हूँ। और वह रोज दीया उठाती रही और भोजन कराती रही। और वाचस्पति ने कहा, तो रोज जो थाली खींच
लेता था, वह तू ही है?
और रोज सुबह जो फूल रख जाता था, वह कौन है? और जिसने रोज दीया जलाया, वह तू ही थी? पर तेरा हाथ मुझे दिखाई नहीं पड़ा!

भामति ने कहा, मेरा हाथ दिखाई पड़ जाता, तो मेरे प्रेम में कमी साबित होती।
मैं प्रतीक्षा कर सकती हूँ।
तो जरूरी नहीं कि कोई स्त्री स्त्रैण रहस्य को उपलब्ध ही हो। यह तो लाओत्से ने नाम दिया, क्योंकि यह नाम सूचक है और समझा सकता है। पुरुष भी हो सकता है। असल में, अस्तित्व के साथ तादात्म्य उन्हीं का होता है, जो इस भाँति प्रार्थनापूर्ण प्रतीक्षा को उपलब्ध होते हैं।
“इस स्त्रैण रहस्यमयी का द्वार स्वर्ग और पृथ्वी का मूल स्रोत है।” चाहे पदार्थ का हो जन्म और चाहे चेतना का, और चाहे पृथ्वी जन्मे और चाहे स्वर्ग, इस अस्तित्व की-गहराई में जो रहस्य छिपा हुआ है, उससे ही सबका जन्म होता है।
इसलिए मैंने कहा, जिन्होंने परमात्मा को माँ की तरह देखा, दुर्गा या अंबा की तरह देखा, उनकी समझ परमात्मा को पिता की तरह देखने से ज्यादा गहरी है। अगर परमात्मा कहीं भी हैं, तो वह स्त्रैण होंगे। क्योंकि इतने बड़े जगत को जन्म देने की क्षमता पुरुष में नहीं है। इतने विराट चांद तारे जिससे पैदा होते हों, उसके पास गर्भ चाहिए। बिना गर्भ के यह संभव नहीं है।
इसीलिए परमपिता शिव अर्धनारीश्वर हैं। जो सृजन करे वो प्रकृति नारी रूप और जो पोषण करे वो पुरूष रूप। एकाकार हो जाने के लिए स्व का त्याग कर दिया जाता है। तभी शास्वत प्रेम घटित होता है।
जय महाकाल🔱🚩🔱
◆◆◆◆◆
Pushya Mitra जी की पोस्ट:
भामती प्रसंग
——————-
हिंदी-मैथिली की जानीमानी लेखिका उषाकिरण खान की यह पुस्तक कल रात ही पढ़ कर खत्म की है। वैसे तो यह पुस्तक मूलतः मैथिली में “भामती-एक अविस्मरणीय प्रेमकथा” के नाम से प्रकाशित हुई थी, जिसके लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार भी मिला। फिर बाद में उन्होंने इसे खुद हिंदी में अनुवाद किया और सामयिक प्रकाशन ने छापा है। कहने का अर्थ यह है कि यह पुस्तक दोनों भाषाओं में उपलब्ध है।

इस पुस्तक के बारे में जानने से पहले इसकी पृष्ठभूमि को भी समझ लेना आवश्यक होगा। दरअसल यह पुस्तक दसवीं शताब्दी में रचित पुस्तक “भामती टीका” की रचना प्रक्रिया को केंद्र में लेकर चलती है। भामती टीका की रचना अपने समय के प्रसिद्ध टीकाकार वाचस्पति मिश्र ने की थी। भामती टीका नामक पुस्तक वस्तुतः आदि शंकराचार्य रचित पुस्तक शांकर भाष्य पर लिखी टीका है। और खुद जैसा नाम से स्पष्ट है कि शांकर भाष्य भी एक अन्य पुस्तक पर रचित भाष्य है। उस पुस्तक का नाम ब्रह्मसूत्र है। शांकर भाष्य में शंकराचार्य के समय के प्रसिद्ध दार्शनिक मंडन मिश्र की अपने समय की मशहूर पुस्तक ब्रह्मसिद्धि को लेकर टिप्पणियां हैं। मतलब यह कि उषाकिरण खान रचित पुस्तक भामती-एक अविस्मरणीय प्रेम कथा की पृष्ठभूमि में खुद तीन महान दार्शनिक रचनाएं हैं। इनमें से दो मिथिला के मशहूर दार्शनिक विद्वानों क्रमशः मंडन मिश्र और वाचस्पति मिश्र की रचनाएं हैं। मगर उषा जी की पुस्तक न आदि शंकराचार्य, न मंडन मिश्र और न ही वाचस्पति मिश्र पर केंद्रित है, उनकी रचना का केंद्र भामती हैं, जो वाचस्पति मिश्र की धर्मपत्नी हैं। इसका जिक्र आगे।

जिस भामती टीका पुस्तक की रचना प्रक्रिया पर यह ऐतिहासिक प्रेमकथा लिखी गयी है, उस पुस्तक का महत्व आप घुमक्कड़ अध्येता राहुल सांकृत्यायन की इस उक्ति से समझ सकते हैं कि भामती टीका ने ही उत्तर भारत में आदि शंकराचार्य को प्रतिष्ठापित किया। उससे पहले वे इस क्षेत्र में अल्पज्ञात थे। वैदिक ग्रंथों के कई विलक्षण भाष्य लिखने के बावजूद उत्तर भारत की विद्वान मंडली भी उन्हें दर्शन संबंधी अपनी रचनाओं में कोट नहीं करती थी। भामती टीका के बाद वे विद्वत जनों की निगाह में आये।

इसी पुस्तक में जिक्र है कि शांकर भाष्य की टीका वाचस्पति मिश्र से करवाने खुद शंकर मठ के सातवें शंकराचार्य चल कर मिथिला में वाचस्पति मिश्र के द्वार पर पहुंचे थे।

भामती टीका 18 वर्षों के श्रमसाध्य परिश्रम के बाद वाचस्पति मिश्र ने लिखी है। इसमें शांकर भाष्य और आदि शंकराचार्य के अद्वैत वेदांत पर टीकाएँ तो हैं ही साथ ही उन्होंने मिथिला की अद्वैत वेदांत परंपरा को भी विशिष्ट पहचान दी है जो उस पुस्तक के रचे जाने से लगभग डेढ़ से पौने दो शहस्त्राब्दि पूर्व याज्ञवल्क्य के समय से चली आ रही थी। उन्होंने आदि शंकराचार्य के उस मत का भी खंडन किया, जिसमें उन्होंने कहा था कि मंडन मिश्र के विचार द्वैत वादी हैं।

वाचस्पति मिश्र ने लिखा कि दरअसल मिथिला की अद्वैत वेदांत की धारा बिल्कुल अलग है। यहां का वेदांत गृहस्थ परंपरा को ज्ञान प्राप्ति में बाधक नहीं मानता। इस वेदांत में नैराश्य नहीं है।

इस विषय पर हमारे समय के मशहूर रचनाकार तारानंद वियोगी ने एक जरूरी पुस्तक “मंडन मिश्र- मिथक और यथार्थ” की रचना की है। यह पुस्तक मैथिली भाषा में रचित है। इस पुस्तक में वे मंडन मिश्र को एक मौलिक दार्शनिक बताते हैं और इस मिथक का खंडन करते हैं कि मंडन मिश्र शास्त्रार्थ में आदि शंकराचार्य से पराजित होकर उनके शिष्य बन गए थे और गृहस्थ का बाना छोड़ कर सन्यासी हो गए, उन्होंने अपना नाम सुरेश्वराचार्य रख लिया था। खैर यह अलग प्रसंग है। फिलहाल तो भामती पर बात करें।

उषाकिरण खान की पुस्तक भामती की रचना इसी महत्वपूर्ण पुस्तक भामती टीका पर केंद्रित है। मगर जैसा कि पहले लिख चुका हूँ इसमें इन ऐतिहासिक प्रसंग का विवरण केवल नमक मसाले की तरह है। पुस्तक में उस नारी भामती की कथा है जो वाचस्पति मिश्र की जीवन संगिनी थी। जिनके नाम पर वाचस्पति मिश्र ने अपनी सबसे महत्त्वपूर्ण पुस्तक का नाम रखा और उसे अनादि काल तक अमर कर दिया। प्रेयसी के नाम पर विद्वानों और लेखकों ने खूब लिखा है, मगर जीवन संघर्ष में 18 साल तक साथ देने वाली पत्नी के नाम पर पुस्तक का शीर्षक देना, यह उदाहरण बहुत दुर्लभ है। अमूमन पुरुष जाति इतनी उदार नहीं होती। सम्भवतः इसी वजह से उषा जी ने इसे अविस्मरणीय प्रेम कथा कहा है।

मगर यह मामला उतना सरल नहीं है। मुझे यह पूरा प्रसंग प्रेम कम, अपराधबोध का पश्चाताप अधिक लगता है, जैसा कि इस उपन्यास की कथा में वर्णित है और यह मिथिला के लोक मानस में दर्ज भी है कि वाचस्पति इतने जुनूनी लेखक थे कि लिखते वक्त वे खुद को आसपास की दुनिया से पूरी तरह काट लेते थे। वे अपनी गुरुपुत्री भामती से विवाह करके लौटे ही थे कि उनके पास शांकर भाष्य पर टीका लिखने का प्रस्ताव आ गया। उस पुस्तक की रचना में वे कुछ इस तरह डूबे कि उन्हें भान ही नहीं रहा कि उनकी कोई पत्नी भी है। 18 वर्ष तक वे लगातार उसी रचना में डूबे रहे। इस बीच भामती ने भी खुद को उन कार्यों में झोंक दिया जिससे इस रचना प्रक्रिया में वाचस्पति मिश्र को कभी असुविधा न हो। उनके लिये कलम और स्याही की व्यवस्था करना, दिए में तेल डालना और उसकी बाती को व्यवस्थित करना। उनके लिए समय से सुरुचिपूर्ण भोजन की व्यवस्था करना। इस बीच में वे अकेले उस गृहस्थी को संभालती रही जिसमें प्रेम की बूंद भी नहीं पड़ी थी। 18 साल बाद जब वाचस्पति ने अपनी पुस्तक को खत्म कर कलम को नीचे रखा तो देखा एक प्रौढ़ स्त्री उनके दिए कि बाती को व्यवस्थित कर रही है ताकि उन्हें प्रकाश का अभाव न हो।

वे अपनी ही पत्नी से पूछ बैठे कि आप कौन हैं? जब उधर से जवाब आया कि मैं आपकी ही ब्याहता हूँ तो वे सन्न रह गए। फिर उन्होंने तय किया कि उनकी इस सबसे महत्वपूर्ण पुस्तक का नाम इस नारी के नाम पर ही होगा जो उनकी ब्याहता होने के बावजूद और उनकी ब्याहता होने की वजह से भी, प्रेम रहित जीवन जी रही है और अपने जीवन को उनकी इस रचना के लिये होम कर दिया है।

उन्होंने ऐसा इसलिये भी किया, क्योंकि उनकी इस पुस्तक की वजह से भामती की मातृत्व सुख भोगने और वाचस्पति मिश्र की वंश परंपरा को आगे बढ़ाने की आकांक्षा अधूरी रह गयी। इस पुस्तक में उषाजी ने वाचस्पति मिश्र से यह कहलवाया है कि कोई व्यक्ति वंश परंपरा से अमर नहीं होता, मगर वह अपनी कृति की वजह से अनंत काल तक अमर हो सकता है। वाचस्पति मिश्र ने अपनी उस पुस्तक को भामती की संतान कहा और कहा कि मुमकिन है इस संतति की वजह से भामती का नाम हजारों साल भी याद रखा जाए। और उनकी बात सच साबित हुई।

हालांकि यह बात बहुत विश्वसनीय नहीं लगती कि कोई विद्वान अपनी रचना में इस तरह डूब जाए कि वह अपनी पत्नी को ही भूल जाये। लेखक लगातार बैठकर लिखता रहे यह मुमकिन नहीं है। वह दिन में अगर चार घण्टे लिखता है तो आठ घण्टे फालतू गुजारता है ताकि उसका मस्तिष्क लिखने के लिये मानसिक रूप से तैयार हो सके। वह ध्यानमग्न तपस्वी नहीं होता। इस पुस्तक में खुद यह विवरण है कि अक्सर उनके गांव के लोग वाचस्पति से मिलने आते और समसामयिक घटनाओं की उन्हें जानकारी देते। वाचस्पति उन मसलों में डूबते नहीं, मगर बातचीत जरूर करते।

हम अपने समय को देखकर यह समझ सकते हैं कि अपनी महत्वकांक्षाओं में डूबा पुरुष इतना स्वार्थी हो जाता है कि वह अक्सर अपनी पत्नी और गृहस्थी की उपेक्षा कर बैठता है। मुमकिन है वाचस्पति ने इसी वजह से भामती की उपेक्षा की हो और बाद में क्षतिपूर्ति के रूप में पुस्तक को भामती का नाम दिया हो। हालांकि आज भी इतना कोई पुरुष कहाँ करता है।

सवाल यह भी है कि क्या सभ्यता के हजारों साल बाद भी किसी स्त्री को यह अधिकार है कि वह किसी की पत्नी रहते हुए खुद को किसी रचना में इस तरह डुबा दे कि गृहस्थी के कर्तव्यों को पूरी तरह भूल जाये। यह अधिकार सिर्फ पुरुषों को है। मुमकिन है कि इस कथा की वास्तविकता यही हो और लोक ने उसे अलौकिक स्वरूप देने, वाचस्पति के अपराध को छिपाने के लिये यह कह दिया हो कि वे अपनी रचना में इस तरह डूब गए कि उन्हें भामती की याद ही नहीं रही। हमारे समाज के लिये यह सब बहुत आम है।

खैर, उषा जी ने लोक प्रचलित कथा को ही अपने उपन्यास का आधार बनाया है। यह जरूर है कि उन्होंने इस कथा को अविस्मरणीय प्रेम के ग्लैमर तक ही सीमित नहीं रखा। उसे महिलाओं के सवालों से भी गूंथा है।

सच तो यह है कि खुद वाचस्पति भी इस पुस्तक में नायक नहीं हैं। कई अर्थों में मुख्य पात्र भी नहीं है। यह पुस्तक उस वक़्त की तीन विदुषी नारियों भामती, वाचस्पति की बहन सुलक्षणा और एक अन्य स्त्री सौदामिनी के जीवन और विचारों पर केंद्रित है।

पुस्तक के अनुसार भामती जहां वाचस्पति के गुरु की पुत्री है, वहीं उनकी बहन सुलक्षणा ने उनके साथ ही गुरुगृह में शिक्षा ग्रहण की। सौदामिनी एक अद्भुत पात्र है जो उस वक़्त एक दूसरे के विरोधी मत सनातन और बौद्ध संप्रदायों के बीच भटकती रहती है। वह बचपन में वज्रयानी सन्यासियों की तंत्र साधना का उपकरण बनते बनते बची है। बाद में वे विवाह करने के बदले वैद्यक सीखती है। फिर वह बौद्ध संस्थाओं में उपचार और आयुर्वेद पर शोध करती हैं। फिर लौटकर गांव भी आती हैं।

सुलक्षणा जो वाचस्पति की छोटी बहन है वह विवाह से पहले वाचस्पति के लिये वह सब किया करती है जो भामती विवाह के बाद करती है। उनके लेखन के लिये माहौल को व्यवस्थित करना, उन्हें सुविधाएं उपलब्ध कराना। तीनों विदुषी नारियां हैं। इनमें सिर्फ विद्रोहिणी सौदामिनी ही ज्ञान की वजह से प्रतिष्ठित हो पाती हैं।

उषा जी ने इस उपन्यास में एक महत्वपूर्ण प्रश्न यह उठाया है कि भामती से महज 300 साल पूर्व तक जहां मिथिला में भारती जैसी विद्वान नारियां हुआ करती थीं जो आदि शंकराचार्य और मंडन मिश्र जैसे विद्वानों के शास्त्रारार्थ की निर्णायक बनी थी और बाद में शंकराचार्य को पराजित भी किया। मगर महज 300 साल बाद मिथिला की स्त्रियां ऐसी हो गईं कि उन्हें ज्ञान चर्चा के बदले गृहस्थी में झोंका जाने लगा। हालांकि महत्वपूर्ण प्रश्न यह भी है कि गार्गी से लेकर भारती की परंपरा तक में मिथिला की किसी स्त्री ने कोई पुस्तक नहीं लिखी। यह सुलभता सिर्फ पुरुषों को थी। नारियां सिर्फ बहस में हस्तक्षेप करती रहीं।

उषा जी ने इस पुस्तक में बताया है कि उस वक़्त बौद्ध धर्म की वज्रयानी धारा में कौलाचार के लिये बालिकाओं का अपहरण किया जाने लगा, इस वजह से समाज ने स्त्रियों के घर से बाहर निकलने पर रोक लगानी शुरू कर दी। इस पुस्तक में इस विषय पर खूब चर्चा है। बार बार चिंता व्यक्त की गई है कि कहीं नारियों का अध्ययन छूट न जाये, वे गृहकार्य तक सीमित न रह जाये।

उषाजी खुद इतिहास की छात्रा और अध्यापिका रही हैं, इसलिये इस पुस्तक में दसवीं सदी के समाज का जीवंत स्वरूप नजर आता है। बौद्ध धर्म का पतन की तरफ बढ़ना और मिथिला का सनातन धर्म के रक्षक के रूप में सक्रिय होना। यहां की ज्ञान और लेखन परपंरा। ज्ञान के संरक्षण की परंपरा। बंगाल की सत्ता का परिवर्तन, बौद्ध पालों की जगह सनातनी सेन राजाओं का सत्ता में आना। इसके बावजूद मिथिला के विद्वानों का भयभीत रहना कि सेन कहीं यहां की दुर्लभ पुस्तकें लूटकर न ले जाएं। यह सब दिखता है। सरल सहज भाषा में दर्शन जैसे दुरूह विषय का उल्लेख भी है।

इस पुस्तक की नायिका भामती भी सीता की परंपरा को आगे बढ़ाती दिखती है। पति के लिये जीवन को होम करती। इस वजह से समाज भी भामती को सम्मान के साथ याद रखता है, वह गार्गी और घोषा जैसी नारियों को उस सम्मान के साथ कहाँ याद करता है। बहुत आसानी से नारी के इस रूप को इस पुस्तक में बलिदान की तरह प्रतिष्ठित किया जा सकता था। मगर उषाजी ने बार बार स्त्रियों की स्वतंत्रता और उनकी ज्ञान की आकांक्षा को रेखांकित किया है। हालांकि मेरी अपेक्षा थी कि इस कड़े सवाल की तरह पेश किया जाना चाहिए था। मगर तब शायद यह समाज इस रचना को उतनी सहजता से स्वीकार नहीं करता।