आज का पंचाग आपका राशि फल, आज है निर्जला एकादशी, जेष्ठ मास में गंगावतरण दिवस के दूसरे दिन निर्जला एकादशी का महात्म्य समझें

एकादशी का व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है. इस बार ज्येष्ठ शुक्ल मास की निर्जला एकादशी 10 जून को पड़ रही है. इस दिन किन चीजों का दान करना शुभ माना जाता है आइए जानें.*
*निर्जला एकादशी के दिन प्यासे लोगों को शरबत पिलाना और पानी पिलाना बहुत ही अच्छा माना जाता है ऐसा करने से भगवान का आर्शीवाद प्राप्त होता है l*

*निर्जला एकादशी के दिन किसी  योग्य ब्राह्मण को भोजन कराएं जल से भरा कलश, कपड़े, जूते, छतरी, पंखा, फल और अनाज आदि का दान करें। क्योंकि कलयुग में ब्राह्मण धरती पर भगवान नारायण के प्रतिनिधि हैं इसलिए ब्राह्मणों और देव कार्य जैसे भगवान शिव या विष्णहे मंदिर निर्माण गोशाला धर्मशाला निर्माण हेतु दिया गया दान श्रेष्ठ दान होता है। उसके बाद दरिद्रनारायण की छुदा पूर्ति का दान मध्यम दान होता है। तत्पश्चात किसी को भी आवश्यकता के समय दिया गया निम्न कोटि का दान कहा गया है। 

*निर्जला एकादशी पर चने और गुड़ का दान करना बहुत ही अच्छा माना जाता है. इससे जीवन में मिठास आती है. इस दिन किसी ब्राह्मण को जूते दान करना बहुत ही अच्छा होता है. ऐसे करने से ग्रह दोष दूर होते हैं l*

*इस दिन पानी से भरपूर फल और सब्जियों का दान करना चाहिए. इसमें आम, खीरा, लीची, तरबूज और खरबूज आदि शामिल है. इन चीजों का दान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है l*

*निर्जला एकादशी तुलसी की पूजा करें l*
*निर्जला एकादशी के दिन तुलसी की पूजा करें. तुलसी के पौधे के पास घी का दीपक जलाएं. ऐसा करने से घर में सुख-समृद्धि आती है. करियर में सफलता प्राप्त होती है l

 

जेष्ठ मास में गंगावतरण दिवस के दूसरे दिन निर्जला एकादशी का महात्म्य समझें

*दशमी को जलागमन : एकादशी को जलाभाव

जेठ मास जल के महत्व को कई रूपों में समझने की प्रेरणा लिए आता है। यही महीना काल के सुकाल और दुष्काल रूप को दिखाता था। मैं तो इसे पूर्ति और अभाव के संधि के रूप में भी देखता हूं। प्याऊ या पौंसले लगा कर पेयजल उपलब्ध करवाने की परंपरा दान कही गई और इसका माहात्म्य हजारों श्लोकों में लिखा गया। 

इसी महीने में दो विशेष तिथियां पड़ती है :

1. गंगा अवतरण दिवस : गंगा दशहरा

2. निर्जला एकादशी

इनमें से पहला दिन जलागमन का परिचायक है तो दूसरा ही दिन जलाभाव का। ये दो पक्ष है : उजाले के बाद अंधेरे, आने के बाद जाने और पाने के बाद खोने के। हमें कभी प्रायश्चित न हो, इसलिये बचत की धारणा की नींव इन अवसरों के रूप में ही रखी गई हैं।

हम दोनों ही दिन बधाइयां व शुभैच्छायें देते-लेते रहे हैं मगर यह संकल्प भी तो लें कि जल की बचत और जलस्रोतों का संरक्षण करेंगे। इनका महत्व समझकर हम भविष्य को सौंपे। यह पर्यावरण दिवस की भी एक सुविचारित पहल होगी।

हमें यह अवश्य जान लेना चाहिये कि पानी के सौ पर्याय हैं किंतु विकल्प एक भी नहीं… तो ‘जेठ में जल’ यानी कल के लिए जल का हल सोचकर ही वरुणाराधना का रचना रूप जानिएगा। 

जय जय।

✍🏻डॉ. श्रीकृष्ण ‘जुगनू’

 

भारत की जल संस्कृति-7

 

वेदों के ‘इंद्र-वृत्र युद्ध’ मिथक का जल वैज्ञानिक तात्पर्य   

लेखक:- डॉ. मोहन चन्द तिवारी

भारतवर्ष प्राचीनकाल से ही एक कृषि प्रधान देश रहा है. कृषि की आवश्यकताओं को देखते हुए ही यहां समानांतर रूप से वृष्टिविज्ञान, मेघविज्ञान और मौसम विज्ञान की मान्यताओं का भी उत्तरोत्तर विकास हुआ. वैदिक काल में इन्हीं मानसूनी वर्षा के सन्दर्भ में अनेक देवताओं को सम्बोधित करते हुए मंत्रों की रचना की गईं. वैदिक देवतंत्र में इंद्र को सर्वाधिक पराक्रमी देव इसलिए माना गया है क्योंकि वह आर्य किसानों की कृषि व्यवस्था को सुचारु रूप से चलाने के लिए मेघों से जल बरसाता है और इस जल को रोकने वाले वृत्र नामक दैत्य का वज्र से संहार भी करता है-

“इन्द्रस्य नु वीर्याणि प्र वोचं

यानि चकार प्रथमानि वज्री.

अहन्नहिमन्वपस्ततर्द प्र

वक्षणा अभिनत्पर्वतानाम्॥”

                -ऋग्वेद,1.32.1

 

ऋग्वेद में बार-बार इन्द्र द्वारा वृत्र का संहार करके जल को मुक्त कराने का उल्लेख मिलता है-

“अपां बिलमपिहितं यदासीद् वृत्रं जघन्वाँ अप तद्ववार.”-ऋ.‚1-32-11

 

अर्थात् वृत्र ने पर्वतों के मध्य जल के जिन स्रोतों को अवरुद्ध कर रखा था, इन्द्र ने वृत्र का वध करके उन जल के स्रोतों को प्रवाहित कर दिया. वृत्र सोते हुए भी कभी जल प्रवाह को रोकने का प्रयास करता है तब भी इन्द्र वज्राघात से वृत्र का वध करके नदियों में जल प्रवाहित कर देता है-

 

“नदं न भिन्नममुया शयानं

मनोरुहाणा अति यन्त्यापः.

याश्चिद् वृत्रे महिना पर्यतिष्ठत्ता-

सामहिः पत्सुतः शार्बभूव…”

               -ऋ.‚1-32-8

 

ऋग्वेद के नदीसूक्त में भी ऐसा ही वर्णन आया है कि इन्द्रदेव ने ही सर्वप्रथम नदियों के मार्गों का निर्माण किया और वर्षा को अवरुद्ध करने वाले वृत्र नामक राक्षस का संहार करके नदियों में जल की धारा को प्रवाहित किया-

 

“इन्द्रो अस्माँ इरदवज्राहुरपाहन्वृत्रं

परिधिं नदीनाम्.” -ऋ.‚ 3.33.6

 

इंद्र वैदिक आर्य किसानों का सर्वाधिक लोकप्रिय देवता है.ऋग्वेद में इन्द्र की महिमा का गान 250 सूक्तों में हुआ है.इंद्र के पराक्रम का मुख्य कार्य है मेघों में छिपे हुए जल को बरसाना और इस जल को रोकने वाले वृत्र नामक दैत्य का वज्र से संहार करना-

 

“स धारयत्पृथिवीं पप्रथच्च

वज्रेण हत्वा निरपः ससर्ज.

अहन्नहिमभिनद्रौहिणं

व्यहन्व्यंसं मघवा शचीभिः॥”

               -ऋग्वेद,1.103.2

अर्थात् इंद्र ने असुर पीड़ित धरती को धारण करके विस्तृत किया है,वज्र से शत्रुओं को मारकर वर्षा का जल बहाया है,अंतरिक्ष में वर्त्तमान मेघ का वध किया है,रोहिण असुर को विदीर्ण किया है एवं अपने शौर्य से बाहुहीन वृत्र को मार गिराया है.

यहां सायणभाष्य में इंद्र-वृत्र वध के आलंकारिक मिथक के तात्पर्यार्थ को समझाने का ओ प्रयास किया गया है, वह वर्त्तमान मानसून वैज्ञानिक दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण है. सायण का कथन है कि पुराकाल में असुरों से पीड़ित धरती को सबसे पहले धारण योग्य इंद्र ने ही बनाया था, उसमें खेत आदि बनाकर धरती को बाधा रहित करते हुए उसका कृषि की दृष्टि से विस्तार किया-

 

“सः इन्द्रः “पृथिवीम् असुरैः पीडितां भूमि “धारयत् धृतवान्.

पीडाराहित्येन स्थिताम् अकरोदित्यर्थः.

तदनन्तरं “पप्रथच्च तां भूमिं विस्तीर्णामकरोत्.”  

             -सायणभाष्य,ऋग्वेद,1.103.2

 

वैदिक देवता इंद्र ने सबसे बड़ा पराक्रमपूर्ण कार्य यह किया कि उसने अपने शस्त्र से उस दुष्ट राक्षस वृत्र को मार डाला और मेघों में छिपे हुए जल को उस के चंगुल से मुक्त किया. इसी इन्द्रवृत्र युद्ध के प्रतीकात्मक अर्थ की जलवैज्ञानिक व्याख्या करते हुए सायण कहते हैं कि आकाश में ‘अहि’ नामक जो मेघ रहता है, इंद्र उसी ‘अहि’ मेघ को अपने वज्र से मार गिराता है. केवल ‘अहि’ राक्षस ही नहीं एक दूसरा राक्षस ‘रौहिण’ भी जल को रोकने में वृत्र की सहायता करता है,तो इंद्र उस राक्षस का भी विदारण कर देता है. इस प्रकार आर्य किसानों का राष्ट्रीय देवता इंद्र अपने पराक्रमपूर्ण युद्धकृत्यों के द्वारा उस ‘वृत्रासुर’ राक्षस के हाथ पांव तोड़ कर रख देता है और इस बंजर भूमि में नदियों को बहाकर उसमें धन-धान्य संपदा का विस्तार करता है-

 

“एतदेव स्पष्टीक्रियते.“अहिम्.अन्तरिक्षे वर्तमानं मेघम् अहन् वज्रेण वर्षणार्थमताडयत् . “रौहिणम्. रौहिणो नाम कश्चिदसुरः. तं च “वि “अभिनत् व्यदारयत्. अपि च “मघवा धनवानिन्द्रः“शचीभिः आत्मीयैर्युद्धकर्मभिः “व्यंसं विगतभुजं वृत्रासुरम् “अहन् अवधीत्॥ पप्रथत्.पृथुं करोति प्रथयति.” -सायणभाष्य, ऋ.1.103.2

 

ऋग्वेद का इंद्र-वृत्र कथानक कोई ऐतिहासिक घटनाक्रम नहीं बल्कि जलवैज्ञानिक धरातल पर सूर्यकिरणों की ऊष्मा से हिमालय के ग्लेशियरों के पिघलने वाली विशुद्ध पर्यावरण वैज्ञानिक प्रक्रिया है. ऋग्वेद के प्रथम मंडल में यह उल्लेख भी आता है कि समुद्र की विशाल जलराशि के स्वामी वरुण भी इंद्र के साथ मिलकर हिमालय पर जल को रोक लेने वाले वृत्र को पराजित कर उसे मैदानों में प्रवाहित करते हैं.

इंद्र अपने इसी शौर्यपूर्ण पराक्रम के कारण ‘वज्रिन्’, ‘वृत्रहन्’ कहलाता है.प्रधान सहायक के रूप में मरुद्गण भी उसके साथ रहते हैं. इसलिए इंद्र को ‘मरुतवान् इंद्र’ की भी संज्ञा दी गई है. इस भयंकर इंद्र-वृत्र युद्ध में वृत्र की माता दनु भी उसे बचाने के लिए वृत्र के ऊपर लेट जाती है किन्तु इंद्र उसके निम्नभाग पर आक्रमण कर उसे भी धराशायी कर देता है-

 

“नीचावया अभवद्वृत्रपुत्रेन्द्रो

अस्या अव वधर्जभार.

उत्तरा सूरधरः पुत्र आसीद्दानुः

शये सहवत्सा न धेनुः॥”

               -ऋ.‚1-32-9

 

अर्थात् वृत्र की माता वृत्र को बचाने के लिए तिरछी होकर उसके शरीर पर गिर पड़ी.इंद्र ने वृत्र की माता के नीचे के भाग पर वज्र मारा.उस समय माता ऊपर और पुत्र नीचे था.जिस प्रकार गाय अपने बछड़े के साथ सो जाती है उसी प्रकार वृत्र की माता दनु भी सदा के लिए सो गई.

 

वृत्र प्राचीन धार्मिक मिथकों में एक असुर था जो आकृति में सर्प या अझ़दहा (ड्रैगन) जैसा भी था. संस्कृत में वृत्र का अर्थ ‘ढकने वाला’ होता है. इसका एक अन्य नाम ‘अहि’ भी था जिसका अर्थ ‘साँप’ होता है और जो अवस्ताई भाषा में ‘अज़ि’ और ‘अझ़ि’ के रूपों में मिलता है. वेदों में वृत्र एक ऐसा ड्रैगन है जो नदियों का मार्ग रोककर सूखा पैदा कर देता है और जिसका वध इन्द्र करता है. मुख्य रूप से इंद्र वर्षा का देवता है जो कि अनावृष्टि अथवा अन्धकार रूपी दैत्य से युद्ध करता है तथा अवरुद्ध जल को अथवा प्रकाश को विनिर्मुक्त बना देता है.

इन्द्र और वृत्र के इस प्रतीकात्मक आलंकारिक कथानक की आधुनिक जलविज्ञान अथवा मानसून विज्ञान के धरातल पर यदि व्याख्या की जाए तो ‘वृत्र’ असुर मेघों में अवर्षण तथा ठोस हिम ग्लेशियरों का द्योतक है जो पानी को कैद किए रहता है तथा उन्हें पिघलने नहीं देता है. दूसरी ओर इन्द्र उन मेघों से जल बरसाने तथा हिम ग्लेशियरों से जलस्रोतों को पिघलाने की एक मौसमवैज्ञानिक प्रक्रिया है. जल का प्राकृतिक स्वभाव ही संचरणशील है.सूर्य की रश्मियों की ऊष्मा से तप्त होकर यह वाष्प बनकर मेघ बन जाता है और मानसूनी हवाओं के मौसम में हिमशिलाओं के शीतकालीन वातावरण में जम जाने के कारण स्वयं ठोस और अदृश्य भी हो जाता है. पर हिमालय के बर्फीले शिखरों पर सोए हुए की तरह नजर आने वाला यही जल इन्द्र के वज्राघात और सूर्य रश्मियों की ऊष्मा द्वारा हिमग्लेशियरों से पिघलते हुए नदियों के रूप में भूमि की सतह पर प्रवाहित होने लगता है जैसा कि ऋग्वेद के इस मंत्र से स्पष्ट होता है –

“अतिष्ठन्तीनामनिवेशनां

काष्ठानां मध्ये निहितं शरीरम्.

वृत्रस्य निण्यं विचरन्त्यापो

दीर्घं तम आशयदिन्द्रशत्रुः..”

           -ऋ.‚1-32-10

 

अर्थात् एक स्थान पर न रुकने वाले जल में डूबकर वृत्र का शरीर नाममात्र को भी नहीं दिखाई दे रहा है.इंद्र से बैर करने वाला वृत्र चिरनिद्रा में लीन है और जल उसके ऊपर से होकर बह रहा है.

 

गौरतलब है कि वरुण और वृत्र दोनों वृ धातु से बने हैं जिसका अर्थ होता है घेर कर रखना या बांध लेना. ग्लेशियरों के जल को वृत्र ने हिमालय पर बर्फ बनाकर बांध रखा है तो वरुण ने समुद्र के रूप में तरल जल को घेरा हुआ है. इस अवरुद्ध जल को संचरणशील बनाने में सूर्य की अहम भूमिका रहती है. वह ‘मित्र’ बन कर अपनी रश्मियों से समुद्र के जल को वाष्पित कर आकाश में मेघ बना देता है और वही जल जब हिमालय में वृत्र बन कर हिमशिलाओं का रूप धारण कर लेता है तो इंद्र अपने वज्राघात और सूर्य रश्मियों की ऊष्मा द्वारा हिमग्लेशियरों के रूप में छिपे हुए जल को पिघलाते हुए नदियों के रूप में भूमि की सतह पर प्रवाहित कर देता है.

 

इन्द्र-वृत्र युद्ध के सांकेतिक अर्थ को लेकर भाष्यकारों और आधुनिक विद्वानों के बीच काफी मतभेद रहे हैं. यास्ककृत निरुक्त में कहा गया है कि ‘वृत्र’ निरुक्तकारों के अनुसार ‘मेघ’ है किन्तु ऐतिहासिकों के अनुसार त्वष्टा का पुत्र असुर है. वृत्र के इसी ऐतिहासिकों के मत का विकसित रूप महाभारत, (शान्तिपर्व-अध्याय281-282) और भागवत महापुराण में वर्णित वृत्र-वध आख्यान है. ब्राह्मण ग्रन्थों के अनुसार वृत्र ‘अहि’ सर्प के समान है जिसने अपने शरीर-विस्तार से जल-प्रवाह को रोक लिया था और इन्द्र के द्वारा विदीर्ण किये जाने पर उसके द्वारा अवरुद्ध जल प्रवाहित हुआ. निरुक्त के मतानुसार वृत्र अन्धकारपूर्ण, आवरण करने वाला है.जल और प्रकाश (विद्युत) का संयोग होने से वर्षा होती है इसी प्राकृतिक घटना को इंद्र-वृत्र युद्ध का मिथकीय रूप दिया गया है.

पुराणों में “इंद्र” के साथ गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या के कथानकों और इंद्र लोक में अप्सराओं के जो आलंकारिक मिथक मिलते हैं उनसे वैदिक कालीन इंद्र की देवतापरक छवि को प्रायः विकृत करने का प्रयास किया गया है. ‘अहल्या’ का तात्पर्य है बिना हल जोती हुई बंजर भूमि को इंद्र द्वारा वर्षा के जल से अभिसिंचित कर उपजाऊ बना देना. किन्तु अहिल्या के पौराणिक कथानकों में इंद्र को एक व्यक्ति मानकर उसे चरित्रहीन देवता सिद्ध करने का प्रयास किया जाता है.

लोकमान्य तिलक के अनुसार इन्द्र सूर्य का प्रतीक है तथा वृत्र हिम का. यह उत्तरी ध्रुव में शीतकाल में हिम जमने और वसंतकालीन सूर्य द्वारा पिघलाने पर नदियों के प्रवाहित होने का प्रतीक है. हिलेब्राण्ट के मत से भी वृत्र ‘हिमानी’ यानी हिम ग्लेशियर का प्रतीक है.परन्तु अधिकांश पश्चिमी विद्वान् भी निरुक्त के पूर्वोक्त मत से सहमत हैं कि इन्द्र वृष्टि लाने वाला तूफान का देवता है. (आचार्य बलदेव उपाध्याय, वैदिक साहित्य और संस्कृति,पृ.498)

 

पुराणों में “इंद्र” के साथ गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या के कथानकों और इंद्र लोक में अप्सराओं के जो आलंकारिक मिथक मिलते हैं उनसे वैदिक कालीन इंद्र की देवतापरक छवि को प्रायः विकृत करने का प्रयास किया गया है. ‘अहल्या’ का तात्पर्य है बिना हल जोती हुई बंजर भूमि को इंद्र द्वारा वर्षा के जल से अभिसिंचित कर उपजाऊ बना देना. किन्तु अहिल्या के पौराणिक कथानकों में इंद्र को एक व्यक्ति मानकर उसे चरित्रहीन देवता सिद्ध करने का प्रयास किया जाता है. ऐसा केवल इसलिए किया जाता है कि हम आज इंद्र, वृत्र, वरुण आदि देवताओं के वेदकालीन जलवैज्ञानिक और जलवायु वैज्ञानिक मान्यताओं को भुला चुके हैं और पौराणिक कथाओं के आधार पर केवल यह याद रखे हुए हैं कि इंद्र एक घमंडी और लम्पट स्वभाव का देवता है जो वृत्रासुर समेत अनेक असुरों का वध करता है,अहिल्या आदि से जार कर्म करता है और हर समय अय्यासी के लिए अपने साथ इंद्रलोक की अप्सराएं भी साथ रखता है.

इंद्र के सम्बन्ध में प्रचलित ये सब पौराणिक मिथक आकाशीय और जलवैज्ञानिक घटनाओं के आलंकारिक वर्णन हैं और मेघनिर्माण सम्बंधी मानसून वैज्ञानिक और हिमालय के ग्लेशियरों के पिघलने की जलवैज्ञानिक गतिविधियों को सूचित करते हैं. वस्तुतः वेद के अनुसार अप्सरा का अर्थ है ‘किरणें’ अत: “इंद्र” की अप्सरा से तात्पर्य है कि ‘सूर्य’ और उसकी किरणें-

“सूर्ययो मरीचयोअप्सरस:”

(यजुर्वेद,18.39)

 

इससे स्पष्ट है की अप्सरा का अर्थ किरणें हैं. “इंद्र” का अर्थ भी ‘सूर्य,’ चन्द्रमा, वायु, अग्नि आदि हो सकता है जिन्हें ‘गंधर्व’ संज्ञा दी गई है-

 

“ऋताषाड गन्धर्व:” (यजुर्वेद 19.38)

 

“चन्द्रमा गंधर्व:” (यजुर्वेद 18.40)

“वातो गन्धर्व:” (यजुर्वेद 18.41)

 

इस आधार पर गन्धर्व का शाब्दिक अर्थ होता है प्रकाशवान. अत: अग्नि, सूर्य आदि नाम “इंद्र” के भी पर्यायवाची नाम हैं. क्योंकि ये सभी देव जल के वाष्पीकरण और उसको पिघलाने की शक्ति रखते हैं.

 

असल में, वैदिककालीन हिमालय पर्यावरण के संरक्षण के प्रति अति संवेदनशील मंत्रद्रष्टा ऋषियों की मान्यता रही है कि जल के प्राकृतिक स्वरूप को रोकना और विशालकाय बांधों की सहायता से जल की बहती धारा को अवरुद्ध करना पर्यावरण विरुद्ध कार्य है जिसे ‘इंद्र-वृत्र युद्ध’ के कथानक द्वारा वैदिक मंत्रों में अत्यंत वैज्ञानिक ढंग से समझाया गया है.

 

इस प्रकार जलों को रोकने वाले, उसे बांधों आदि की सहायता से कैद करने वाले प्रकृति विरोधी असुरों का वध करने वाले और जल और नदियों के संरक्षक इंद्र देव का वैदिक संहिताओं में वर्षाकारक देवता के रूप से स्तुतिगान किया गया है.

✍🏻मोहन चंद तिवारी, हिमान्तर में प्रकाशित आलेख

(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय के रामजस कॉलेज से एसोसिएट प्रोफेसर के पद से सेवानिवृत्त हैं. एवं विभिन्न पुरस्कार व सम्मानों से सम्मानित हैं. जिनमें 1994 में ‘संस्कृत शिक्षक पुरस्कार’, 1986 में ‘विद्या रत्न सम्मान’ और 1989 में उपराष्ट्रपति डा. शंकर दयाल शर्मा द्वारा ‘आचार्यरत्न देशभूषण सम्मान’ से अलंकृत. साथ ही विभिन्न सामाजिक संगठनों से जुड़े हुए हैं और देश के तमाम पत्र—पत्रिकाओं में दर्जनों लेख प्रकाशित।)

🕉श्री हरिहरो विजयतेतराम🕉
🌄सुप्रभातम🌄
🗓आज का पञ्चाङ्ग🗓
🌻शुक्रवार, १० जून २०२२🌻

सूर्योदय: 🌄 ०५:२९
सूर्यास्त: 🌅 ०७:०९
चन्द्रोदय: 🌝 १४:४८
चन्द्रास्त: 🌜२६:३३
अयन 🌕 उत्तरायने (उत्तरगोलीय
ऋतु: 🌞 ग्रीष्म
शक सम्वत: 👉 १९४४ (शुभकृत)
विक्रम सम्वत: 👉 २०७९ (राक्षस)
मास 👉 ज्येष्ठ
पक्ष 👉 शुक्ल
तिथि 👉 दशमी (०७:२५ से एकादशी)
नक्षत्र 👉 चित्रा (२७:३७ से स्वाती)
योग 👉 वरीयान् (२३:३६ से परिघ)
प्रथम करण 👉 गर (०७:२५ तक)
द्वितीय करण 👉 वणिज (१८:४१ तक)
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॥ गोचर ग्रहा: ॥
🌖🌗🌖🌗
सूर्य 🌟 वृष
चंद्र 🌟 तुला (१६:०६ से)
मंगल 🌟 मीन (उदित, पश्चिम, मार्गी)
बुध 🌟 वृष (अस्त, पश्चिम, मार्गी)
गुरु 🌟 मीन (उदित, पूर्व, मार्गी)
शुक्र 🌟 मेष (उदित, पूर्व, वक्री)
शनि 🌟 कुम्भ (उदित, पूर्व, वक्री)
राहु 🌟 मेष
केतु 🌟 तुला
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शुभाशुभ मुहूर्त विचार
⏳⏲⏳⏲⏳⏲⏳
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अभिजित मुहूर्त 👉 ११:४८ से १२:४४
अमृत काल 👉 २१:२६ से २२:५९
रवियोग 👉 ०५:१५ से २७:३७
विजय मुहूर्त 👉 १४:३७ से १५:३३
गोधूलि मुहूर्त 👉 १९:०४ से १९:२८
सायाह्न सन्ध्या 👉 १९:१८ से २०:१७
निशिता मुहूर्त 👉 २३:५६ से २४:३६
राहुकाल 👉 १०:३१ से १२:१६
राहुवास 👉 दक्षिण-पूर्व
यमगण्ड 👉 १५:४७ से १७:३२
होमाहुति 👉 शनि
दिशाशूल 👉 पश्चिम
अग्निवास 👉 आकाश
भद्रावास 👉 पाताल
चन्द्र वास 👉 दक्षिण (पश्चिम १६:०७ से)
शिववास 👉 सभा में (०७:२५ से क्रीड़ा में)
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☄चौघड़िया विचार☄
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॥ दिन का चौघड़िया ॥
१ – चर २ – लाभ
३ – अमृत ४ – काल
५ – शुभ ६ – रोग
७ – उद्वेग ८ – चर
॥रात्रि का चौघड़िया॥
१ – रोग २ – काल
३ – लाभ ४ – उद्वेग
५ – शुभ ६ – अमृत
७ – चर ८ – रोग
नोट– दिन और रात्रि के चौघड़िया का आरंभ क्रमशः सूर्योदय और सूर्यास्त से होता है। प्रत्येक चौघड़िए की अवधि डेढ़ घंटा होती है।
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शुभ यात्रा दिशा
🚌🚈🚗⛵🛫
पश्चिम-दक्षिण (दहीलस्सी अथवा राई का सेवन कर यात्रा करें)
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तिथि विशेष
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विवाहादी मुहूर्त कर्क ल. प्रातः ०८:०९ से प्रातः १०:२८ तुला- वृश्चिक ल. दोपहर
०३:०० से सायं ०६:४२ तक, निर्जला एकादशी व्रत (स्मार्त मत), श्री बटुक भैरव जयन्ती, रामेश्वर प्रतिष्ठा, श्रीराम शर्मा पुण्य तिथि, उपनयन संस्कार+नींवखुदाई एवं गृह आरम्भ+गृहप्रवेश+विद्या एवं अक्षर आरम्भ+विद्या एवं अक्षर आरम्भ+उद्योग (मशीनरी) आरम्भ+व्यवसाय आरम्भ+देव प्रतिष्ठा मुहूर्त प्रातः ०५:३६ से प्रातः १०:४३ तक, चूड़ाकर्म (मुंडन) संस्कार मुहूर्त+भूमि-भवन+वाहन क्रय-विक्रय मुहूर्त दोपहर १२:२६ से ०२:१० तक आदि।
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आज जन्मे शिशुओं का नामकरण
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आज २७:३७ तक जन्मे शिशुओ का नाम
चित्रा नक्षत्र के प्रथम, द्वितीय, तृतीय एवं चतुर्थ चरण अनुसार क्रमश (पे, पो, रा, री) नामाक्षर से तथा इसके बाद जन्मे शिशुओ का नाम स्वाति नक्षत्र के प्रथम चरण अनुसार क्रमशः (रू) नामाक्षर से रखना शास्त्रसम्मत है।
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उदय-लग्न मुहूर्त
वृषभ – २७:४५ से ०५:३९
मिथुन – ०५:३९ से ०७:५४
कर्क – ०७:५४ से १०:१६
सिंह – १०:१६ से १२:३५
कन्या – १२:३५ से १४:५३
तुला – १४:५३ से १७:१४
वृश्चिक – १७:१४ से १९:३३
धनु – १९:३३ से २१:३६
मकर – २१:३६ से २३:१८
कुम्भ – २३:१८ से २४:४३
मीन – २४:४३ से २६:०७
मेष – २६:०७ से २७:४१
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पञ्चक रहित मुहूर्त
शुभ मुहूर्त – ०५:१५ से ०५:३९
चोर पञ्चक – ०५:३९ से ०७:२५
शुभ मुहूर्त – ०७:२५ से ०७:५४
रोग पञ्चक – ०७:५४ से १०:१६
शुभ मुहूर्त – १०:१६ से १२:३५
मृत्यु पञ्चक – १२:३५ से १४:५३
अग्नि पञ्चक – १४:५३ से १७:१४
शुभ मुहूर्त – १७:१४ से १९:३३
रज पञ्चक – १९:३३ से २१:३६
शुभ मुहूर्त – २१:३६ से २३:१८
चोर पञ्चक – २३:१८ से २४:४३
शुभ मुहूर्त – २४:४३ से २६:०७
शुभ मुहूर्त – २६:०७ से २७:३७
चोर पञ्चक – २७:३७ से २७:४१
शुभ मुहूर्त – २७:४१ से २९:१५
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आज का राशिफल
🐐🐂💏💮🐅👩
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मेष🐐 (चू, चे, चो, ला, ली, लू, ले, लो, अ)
आज के दिन घरेलू एवं व्यावसायिक कार्य एक साथ आने से थोड़े परेशान होंगे लेकिन किसी का सहयोग मिलने से इससे निजात पा लेंगे कार्य क्षेत्र पर आपकी किसी कमी के कारण मान हानि हो सकती है। आज आप अधिकांश कार्य हानि-लाभ की परवाह किये बिना करेंगे। आर्थिक स्थिति सामान्य रहेगी फिर भी फिजूल खर्चो पर नियंत्रण ना रखा तो परेशानी में पड़ सकते है। परिवार के सदस्यों का जिद्दी व्यवहार परेशान करेगा लेकिन इसके पीछे आपका हिट ही छुपा हुआ रहेगा। महिलाये गृहस्थ को सम्भालने में दिन भर व्यस्त रहेंगी लंबी यात्रा की योजना आज साकार होगी इससे मानसिक शांति के साथ ही धन लाभ भी होगा।

वृष🐂 (ई, ऊ, ए, ओ, वा, वी, वू, वे, वो)
आज दिन के आरम्भ में आप कई योजनाएं बनाएंगे परन्तु आलस्य अथवा लापरवाही के कारण इनमे विलम्ब होगा फिर भी आज आप अपनी सोच-समझ से कार्य करते हुए लाभ के हकदार बनेंगे। कार्य क्षेत्र पर अधीनस्थों का सहयोग करेंगे बदले में आपको भी ऐसा ही व्यवहार मिलेगा। धन लाभ आज अकस्मात ही होगा। धन को लेकर आज कोई कार्य नही रुकेगा।महिलाये आज मनोकामना पूर्ति होने पर प्रसन्न रहेंगी लेकिन स्वभाव अन्य लोगो के कार्यो में नुक्स निकालने वाला रहेगा। घर मे शांति रहेगी। सेहत भी सामान्य बनी रहेगी।

मिथुन👫 (का, की, कू, घ, ङ, छ, के, को, हा)
आजके दिन का प्रथम भाग मौन रहकर अथवा पूजा पाठ में बिताने से व्यर्थ के वाद विवाद से बच सकते है। कार्य क्षेत्र पर आज आपकी चुगली होने की संभावना है कोई भी अनैतिक कार्य करने से बचें। परिजनों की बेतुकी बयानबाजी मानसिक अशान्ति के साथ ही क्रोध करने पर मजबूर करेगी फिर भी आज आप विवेकी व्यवहार अपनायेंगे दोपहर से स्थिति आपके पक्ष में होने लगेगी। धन लाभ आशानुकूल नही होगा फिर भी खर्च निकल जाएंगे। नौकरी पेशा जातक आज बुद्धि बल से किसी जटिल कार्य को पूर्ण करने पर सम्मानित होंगे। पारिवारिक वातावरण में छूट पुट नोकझोंक लगी रहेगी महिलाओ के मन मे उदासी छाई रहेगी।

कर्क🦀 (ही, हू, हे, हो, डा, डी, डू, डे, डो)
आज दिन के आरम्भ से ही आप धन कमाने के लिये मन ही मन योजना बनाएंगे परन्तु सहयोग कम मिलने से इसे फलीभूत होने में देरी होगी फिर भी आज आपको धन कमाने के कई अवसर मिलेंगे इनका लाभ उठायें संध्या के समय अचानक से आर्थिक लाभ होगा। कार्य व्यवसाय पहले से बेहतर चलेगा उधारी में व्यवहारों में कमी आयेगी। शेयर अथवा अन्य जोखिम वाले कार्यो में आज किया गया निवेश भविष्य में लाभदायक सिद्ध होगा। पारिवारिक वातावरण मध्यान के बाद प्रसन्न चित बनेगा। निकटस्थ संबंधियों एवं पड़ोसियों से आत्मीय संबंध रहेंगे। भाई-बंधुओ से मतभेद होने पर बोल-चाल में कमी आ सकती है।

सिंह🦁 (मा, मी, मू, मे, मो, टा, टी, टू, टे)
आज आप अपने द्वारा किए समस्त कार्यो से संतोषी रहेंगे। महिलाये इसके विपरीत जीवन मे कुछ ना कुछ कमी अनुभव करेंगी। आज आपकी समस्त दिनचार्य व्यवस्थित रहने पर भी लाभ के अवसर कम ही मिलेंगे। कार्य क्षेत्र पर आए अनुबंद हाथ लगेंगे परन्तु लापरवाही के कारण इनसे उचित लाभ नही उठा पाएंगे। मध्यान के समय किसी गलती के कारण आलोचना होगी फिर भी आज आपको कोई कुछ भी कहे जल्दी से बुरा नही मानेंगे। परिजन विशेष कर बुजुर्ग आपकी बेपरवाह प्रवृति से चिंतित रहेंगे। मन मे लंबी यात्रा की योजना बनेगी परन्तु अभी करना आर्थिक एवं शारीरिक स्थिति पर विपरीत प्रभाव डाल सकता है।

कन्या👩 (टो, पा, पी, पू, ष, ण, ठ, पे, पो)
आज के दिन आपका आत्मविश्वास बढ़ा हुआ रहेगा जिस भी कार्य को करने का मन बनाएंगे उसे देर-अबेर पूरा करके ही मानेंगे। आर्थिक स्थिति भी आज उत्तम रहने से निर्णय तुरंत लेंगे जोखिम लेने से पीछे नही नही हटेंगे धन लाभ आशानुकूल नही फिर भी आवश्यकता से अधिक हो जाएगा। व्यवसाय में उन्नति होने से आज आपसे जलने वालो की संख्या में बढ़ोतरी होगी फिर भी आज आपको कोई किसी भी प्रकार की क्षति नही पहुचा सकेगा। महिलाये आज अन्य लोगो से अपनी एवं परिवार की बढ़ चढ़ कर प्रशंसा करेंगी सार्वजनिक क्षेत्र पर हास्य के पात्र भी बन सकते है। शारीरिक तंदुरुस्ती बनी रहेगी।

तुला⚖️ (रा, री, रू, रे, रो, ता, ती, तू, ते)
आपको आज दिन के पूर्वार्द्ध में अधिक सतर्क रहने की आवश्यकता है बनते कार्यो में उलझन पड़ने से मन नकारात्मक भाव से ग्रस्त रहेगा। महिलाओ के हाथ कोई बड़ा नुकसान हो सकता है। मध्यान से परिस्थिति आपके अनुकूल होने लगेगी फिर भी आज चंचल मन लाभ से दूर ही रखेगा। व्यवसायी वर्ग दुविधा की स्थिति में रहने के कारण उचित निर्णय नही ले सकेंगे। जल्दबाजी में आज किसी से कोई वादा ना करें पूर्ण ना करने पर अपमानित हो सकते है। आज आपका ध्यान मनोरंजन की ओर ज्यादा रहेगा। अपने मजाकि व्यवहार से आस-पास का वातावरण हल्का बनाएंगे खर्च ना चाहते भी करना पड़ेगा। सेहत में सुधार अनुभव होगा।

वृश्चिक🦂 (तो, ना, नी, नू, ने, नो, या, यी, यू)
आज दिन का प्रथम भाग आपको सफलता एवं सम्मान दोनो दिलाएगा। पूर्व आयोजित कार्यो से धन लाभ होगा नए कार्यो में भी निवेश करेंगे। परन्तु मध्यान के बाद घरेलू अथवा कार्य क्षेत्र पर कलह क्लेश का सामना करना पडेगा। विरोधी प्रबल होने से स्वयं को बेबस अनुभव करेंगे। परिवार में आज आपके किसी गलत आचरण की पोल खुल सकती है किसी से बहस ना करें अन्यथा परिणाम गंभीर हो सकते है। आज आपके सरकारी उलझनों में भी फंसने की संभावना है। कार्य क्षेत्र पर प्रलोभन मिलेंगे इनसे भी दूरी बना कर रखें। महिलाये का स्वाभव आज अधिकांश समय उग्र रहेगा बात-बात पर बहस करेंगी। धन लाभ सामान्य से कम होगा। मौसमी बीमारी की आशंका है।

धनु🏹 (ये, यो, भा, भी, भू, ध, फा, ढा, भे)
आज दिन के आरम्भ में आपके लापरवाह स्वभाव के चलते किसी महत्त्वपूर्ण कार्य मे।विलम्ब अथवा हानि हो सकती है। कार्य क्षेत्र पर भी आज किसी कारण से देरी होगी । मध्यान तक अधिक परिश्रम करना पड़ेगा इसका फल संध्या के समय सफलता के रूप में अवश्य मिल जाएगा। व्यवसाय में प्रतिस्पर्धा आज कम ही रहेगी लेकिन फिर भी आर्थिक कारणों से किसी ना किसी का मुंह ताकना पड़ेगा। सरकारी कार्य पूर्ण होते होते अंत समय मे किसी कमी के कारण लटक सकते है प्रयत्न करते रहेने पर शीघ्र ही सफलता मिलेगी। महिला वर्ग आज सर अथवा अन्य शारीरिक अंग में दर्द से परेशान रहेंगी फिर भी दैनिक कार्य समय पर कर लेंगी।

मकर🐊 (भो, जा, जी, खी, खू, खा, खो, गा, गी)
आज के दिन आपके अंदर विलक्षण प्रतिभा देखने को मिलेगी। सामाजिक क्षेत्र पर आपके विचारों की प्रखरता भीड़ जोड़ने वाली रहेगी। अपनी बुद्धि चातुर्य से नए संबंध विकसित करेंगे निकट भविष्य में इनसे आर्थिक एवं अन्य व्यवहारिक लाभ अवश्य मिलेगा। समाज के उच्चप्रतिष्ठित लोगो से जान पहचान बनेगी। विरोधी भी आज आपकी प्रशंशा करेंगे। कार्य व्यवसाय मध्यान तक मंदा रहेगा इसके बाद अचानक गति आने से व्यस्तता बढ़ेगी। नौकरी अथवा व्यवसाय से जुड़ी महिलाये आज पुरुषों की अपेक्षा अधिक लाभ कमाएंगी परिजनों को भी उपहार एवं अन्य सुविधाएं प्रदान कर प्रसन्न रखेंगी। सेहत कुछ समय के लिए नरम रहेगी।

कुंभ🍯 (गू, गे, गो, सा, सी, सू, से, सो, दा)
आज भी दिन के आरम्भ में परिस्थिति पूर्ववत बनी रहेगी। सेहत भी साथ ना देने से कार्यो के प्रति उत्साह नही बनेगा। मध्यान तक स्थिति सामान्य होने लगेगी लेकिन आज व्यावसायिक कार्य मिलने पर भी स्थिति स्पष्ट ना होने से असमंजस में पड़े रहेंगे। आर्थिक लाभ के लिए किसी की सहायता अथवा खुशामद करनी पड़ेगी। महिलाये आज परिवार को आर्थिक एवं अन्य समस्याओं से उबारने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएंगी लेकिन बाद में इसका गुणगान भी करेंगी। मित्र रिश्तेदारी में जाना पड़ सकता है। संध्या का समय दिन की अपेक्षा शांति से बिताएंगे। धन सम्बन्धित लेन-देन आज ना करें।

मीन🐳 (दी, दू, थ, झ, ञ, दे, दो, चा, ची)
आज दिन के पूर्वार्ध को छोड़ शेष समय अशांति वाला रहेगा। दिन के आरम्भ में हास-परिहास के मूड में रहेंगे परिवार का वातावरण भी खुशहाल रहेगा लेकिन मध्यान के आस-पास किसी के द्वारा दुखद खबर मिलने की संभावना है। स्वयं अथवा परिजन की सेहत भी अचानक खराब होने से अतिरिक्त भाग-दौड़ करनी पड़ेगी। कार्य-व्यवसाय पर आज अधिक ध्यान नही दे पाएंगे जिससे लाभ भी सीमित मात्रा में ही होगा। महिला वर्ग भी आज किसी ना किसी कारण से मानसिक रूप से विचलित रहेंगी पल-पल में विचार बदलने के कारण ठोस निर्णय नही ले सकेंगे। धन के मामले में दिन आय की अपेक्षा खर्चीला अधिक रहेगा।
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