आज का पंचाग आपका राशि फल, महा गौरी पूजा, ब्रह्मांड की उत्पत्ति और भारतीय संस्कृति की सटीक कालगणना, देवी भगवती के 51 शक्ति पीठों के विषय में जानने से भी दुस्वप्न नष्ट होते हैं और सुख-समृद्धि आती है

शारदीय नवरात्र का आज आठवां दिन और इस दिन मां दुर्गा के आठवें स्वरूप महागौरी की पूजा का विधान है। मां दुर्गा की आठवीं शक्ति मूल भाव को दर्शाती है और इनकी पूजा करने से सोम चक्र जाग्रत होता है। देवीभगवत् पुराण में के अनुसार, 9 रूप और 10 महाविघाएं सभी आदिशक्ति के अंश और स्वरूप हैं लेकिन महादेव के साथ अर्धांगिनी स्वरूप में महागौरी सदैव विराजमान रहती हैं। इनकी शक्ति अमोघ और सद्यः फलदायिनी है। महागौरी की कृपा मात्र से सभी संकट दूर हो जाते हैं और हर असंभव कार्य पूर्ण हो जाता है। कुछ घरों में महाअष्टमी तिथि पर ही कन्या पूजन हो जाता है लेकिन नवरात्रि का पूर्ण महात्म्य जानने वाले घरों में महानवमी तिथि को कन्य पूजन करते हैं।​ 𝕝𝕝 🕉 𝕝𝕝

                    श्री हरिहरो 

                   विजयतेतराम

        *🌹।।सुप्रभातम्।।🌹*

        🗓 आज का पञ्चाङ्ग 🗓

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*सोमवार, ०३ अक्टूबर २०२२*

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सूर्योदय: 🌄 ०६:१९

सूर्यास्त: 🌅 ०६:०१

चन्द्रोदय: 🌝 १३:४३ 

चन्द्रास्त: 🌜२३:५२

अयन 🌖 दक्षिणायने 

(दक्षिणगोलीय)

ऋतु: ❄️ शरद

शक सम्वत:👉१९४४ (शुभकृत)

विक्रम सम्वत:👉२०७९ (नल)

मास 👉 आश्विन

पक्ष 👉 शुक्ल

तिथि👉अष्टमी(१६:३७से नवमी

नक्षत्र 👉 पूर्वाषाढ (२४:२५ 

से उत्तराषाढ)

योग👉शोभन(१४:२२से अतिगण्ड

प्रथम करण👉बव(१६:३७तक

द्वितीय करण 👉 बालव

(२७:२९ तक)

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॥ गोचर ग्रहा: ॥

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सूर्य 🌟 कन्या

चंद्र 🌟 मकर (३०:०१ से)

मंगल🌟वृष(उदित,पश्चिम,मार्गी)

बुध🌟कन्या(उदित,पूर्व,मार्गी)

गुरु🌟मीन(उदित,पूर्व,वक्री)

शुक्र 🌟 कन्या (अस्त, पूर्व)

शनि🌟मकर(उदित,पूर्व,वक्री)

राहु 🌟 मेष

केतु 🌟 तुला

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    शुभाशुभ मुहूर्त विचार

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अभिजित मुहूर्त 👉 ११:४२ से १२:२९

अमृत काल 👉 १९:५४ से २१:२५

रवियोग 👉 २४:२५ से ३०:१२

विजय मुहूर्त 👉 १४:०४ से १४:५१

गोधूलि मुहूर्त 👉 १७:४८ से १८:१२

सायाह्न सन्ध्या 👉 १८:०० से १९:१३

निशिता मुहूर्त 👉 २३:४२ से २४:३०

राहुकाल 👉 ०७:४० से ०९:०८

राहुवास 👉 उत्तर-पश्चिम

यमगण्ड 👉 १०:३७ से १२:०६

होमाहुति 👉 शुक्र

दिशाशूल 👉 पूर्व

अग्निवास 👉 पृथ्वी

चन्द्र वास 👉 पूर्व (दक्षिण ३०:०२ से)

शिववास 👉 श्मशान में (१६:३७ से गौरी के साथ)

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☄चौघड़िया विचार☄

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॥ दिन का चौघड़िया ॥ 

१ – अमृत २ – काल

३ – शुभ ४ – रोग

५ – उद्वेग ६ – चर

७ – लाभ ८ – अमृत

॥रात्रि का चौघड़िया॥ 

१ – चर २ – रोग

३ – काल ४ – लाभ

५ – उद्वेग ६ – शुभ

७ – अमृत ८ – चर

नोट– दिन और रात्रि के चौघड़िया का आरंभ क्रमशः सूर्योदय और सूर्यास्त से होता है। प्रत्येक चौघड़िए की अवधि डेढ़ घंटा होती है।

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शुभ यात्रा दिशा

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दक्षिण-पूर्व (दर्पण देखकर अथवा खीर का सेवन कर यात्रा करें)

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तिथि विशेष

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नवरात्रि के अष्टम दिवस आदिशक्ति माँ दुर्गा के महागौरी स्वरूप की उपासना व्रत, सरस्वती पूजन, श्री दुर्गाष्टमी आदि।

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आज जन्मे शिशुओं का नामकरण

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आज २४:२५ तक जन्मे शिशुओ का नाम 

पूर्वाषाढ नक्षत्र के प्रथम, द्वितीय, तृतीय एवं चतुर्थ चरण अनुसार क्रमश (भू, धा, फा, ढा) नामाक्षर से तथा इसके बाद जन्मे शिशुओ का नाम उत्तराषाढ नक्षत्र के प्रथम चरण अनुसार क्रमशः (भे) नामाक्षर से रखना शास्त्रसम्मत है।

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उदय-लग्न मुहूर्त

कन्या – २९:०३ से ०७:२०

तुला – ०७:२० से ०९:४१

वृश्चिक – ०९:४१ से १२:०१

धनु – १२:०१ से १४:०४

मकर – १४:०४ से १५:४५

कुम्भ – १५:४५ से १७:११

मीन – १७:११ से १८:३५

मेष – १८:३५ से २०:०८

वृषभ – २०:०८ से २२:०३

मिथुन – २२:०३ से २४:१८

कर्क – २४:१८ से २६:४०

सिंह – २६:४० से २८:५९

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पञ्चक रहित मुहूर्त

शुभ मुहूर्त – ०६:११ से ०७:२०

मृत्यु पञ्चक – ०७:२० से ०९:४१

अग्नि पञ्चक – ०९:४१ से १२:०१

शुभ मुहूर्त – १२:०१ से १४:०४

रज पञ्चक – १४:०४ से १५:४५

शुभ मुहूर्त – १५:४५ से १६:३७

चोर पञ्चक – १६:३७ से १७:११

शुभ मुहूर्त – १७:११ से १८:३५

शुभ मुहूर्त – १८:३५ से २०:०८

चोर पञ्चक – २०:०८ से २२:०३

शुभ मुहूर्त – २२:०३ से २४:१८

रोग पञ्चक – २४:१८ से २४:२५

शुभ मुहूर्त – २४:२५ से २६:४०

मृत्यु पञ्चक – २६:४० से २८:५९

अग्नि पञ्चक – २८:५९ से ३०:१२

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आज का राशिफल

🐐🐂💏💮🐅👩

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मेष🐐 (चू, चे, चो, ला, ली, लू, ले, लो, अ)

आज का दिन लगभग सामान्य ही रहेगा आध्यात्मिक कार्यो में रुचि रहने से मानसिक रूप से सुदृढ़ रहेंगे किसी से धर्म को लेकर वाद विवाद हो सकता है यहाँ विवेक का परिचय दें आप के लिये ही हितकर रहेगा। आज आप घुमा फिराकर बोलने की जगह स्पष्ट बात करना पसंद करेंगे जिस कारण किसी प्रेमीजन से संबंधों में खटास आ सकती है। कार्य क्षेत्र पर आर्थिक लाभ पाने के लिये मेहनत में कमी नही लाएंगे भागीदारी के कार्यो की धीमी गति रहेगी नौकरी व्यवसाय

में चाहकर भी किसी अन्य के लचर व्यवहार के कारण फुर्ती से काम नही कर पाएंगे। जिस कारण धन लाभ के लिये प्रतीक्षा करनी पड़ेगी धन लाभ होगा अवश्य लेकिन व्यर्थ के कार्यो में खर्च होने पर संतुष्टि नही देगा। घरेलू मामलों में कम दिलचस्पी लेंगे लेकिन बाहरी लोगो को देख मन मे ईर्ष्या का भाव आएगा। दाम्पत्य में एक दूसरे की कमियां निकालेंगे। 

 

वृष🐂 (ई, ऊ, ए, ओ, वा, वी, वू, वे, वो)

आज का दिन आपके लिये विषम परिस्थितियों वाला रहेगा। सेहत में विकार रहने से दिन के आरम्भ से ही आपका स्वभाव उखड़ा हुआ सा रहेगा। मन मे विविध उलझने रहने से चिड़चिड़ापन आएगा परिजनों से छोटी छोटी बातों पर क्रोध करेंगे लेकिन आज परिजन आपकी मानसिकता को भली भाती जानकर विरोध नही करेंगे। कार्य क्षेत्र पर आर्थिक मामले अधिक उलझने के कारण उदासीनता आएगी धन को लेकर किसी से जिद बहस करने से बचे अन्यथा डूब भी सकता है। धन की आमद नए व पुराने कार्यो से थोड़ी मात्रा में अवश्य होगी। घर मे सन्तानो का अनापेक्षित व्यवहार मतभेद रखेगा जानकर भी गलतियों को सहन करेंगे। सरकारी कार्य मे आज समय खराब होने की संभावना है इसका नतीजा आज मुश्किल ही मिलेगा। संध्या बाद का समय कुछ शांति प्रदान करेगा लेकिन थकान भी रहेगी।

 

मिथुन👫 (का, की, कू, घ, ङ, छ, के, को, हा)

आज का दिन आपके लिये कम समय और परिश्रम में अधिक लाभ दिला सकता है लेकिन किसी भी कार्य एवं व्यवसाय में आपकी कार्य शैली अत्यंत धीमी रहने के कारण इसका पूरा लाभ उठा पाना संदिग्ध हो सकता है। आर्थिक लाभ के नए मार्ग स्वतः ही खुलेंगे फिर भी आज असंतोषी प्रवृति अनैतिक कार्यो की और आकर्षित करेगी इससे बचकर रहे अन्यथा निकट भविष्य में मान हानि हो सकती है आज भी व्यवसाय में प्रतिस्पर्धा अधिक रहेगी। घर का माहौल स्वार्थ पूर्ण रहेगा बच्चे और बड़े भी कामना पूर्ति के लिये जिद पर अड़ परेशानी में डालेंगे। कुटुम्बिक सुख आज कम ही मिलेगा जरासी बात पर किसी से तनातनी हो सकती है। आस पड़ोसी ईर्ष्या में हानि पहुचा सकते है सतर्क रहें। संध्या के समय वाहन सावधानी से चलाए किसी अन्य की गलती आपको भारी पड़ सकती है। गले, छाती अथवा जननेन्द्रिय में संक्रमण होने की संभावना है। 

 

कर्क🦀 (ही, हू, हे, हो, डा, डी, डू, डे, डो)

आज का दिन लाभदायक रहने वाला है लेकिन अपने स्वभाव में परिवर्तन लाना भी आवश्यक है आज आप सुखोपभोग के लिए आवश्यक कार्यो की अनदेखी करेंगे। जिससे घर और कार्य क्षेत्र पर अव्यस्था फैल सकती है। नौकरी पेशा भी आज अपने कार्यो को कम समय देंगे जदबाजी में कार्य करने पर कोई गलती होने की संभावना है जिसका भुगतान आगे करना पड़ेगा। व्यवसायी वर्ग लाल रंग की दैनिक उपभोग की वस्तुओ में बेजीझक होकर निवेश करें लाभ मिलेगा। धन लाभ आज ठीक ठाक होने से मानसिक रूप से संतुष्ट रहेंगे आज मनोरंजन अथवा मौज शौक पर खर्च की योजना भी बनेगी साथ ही घर अथवा कार्य क्षेत्र पर तोड़ फोड़ पर भी खर्च करने की रूप रेखा बनाएंगे। दाम्पत्य एवं घर में थोड़ी बहुत जिद बहस लगी रहेगी। सेहत ठीक रहेगी फिर भी अकस्मात शारीरिक चोटादि का भय है।

 

सिंह🦁 (मा, मी, मू, मे, मो, टा, टी, टू, टे)

आज के दिन आपके व्यवहार एवं परोस्थितियो में काफी बदलाव आएगा। आपके व्यक्तित्त्व में विकास होगा सार्वजिनक क्षेत्र पर आपकी छवि सुधरेगी लेकिन अपनी बातों का अन्य लोगो पर प्रभाव डालने में असफल रहेंगे कुछ लोगो की नजर मे आप क्रोधी झगड़ालू जैसे भी दिखेंगे। काम काज को लेकर आज असमंजस की स्थिति रहेगी बाजार में व्यवसाय ठीक ठाक होने पर भी आपको धन लाभ में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा संध्या के आस पास आवश्यकता अनुसार हो भी जाएगा लेकिन आज दिन भर व्यर्थ के व्यवहारों पर खर्च अधिक रहने के कारण संतोष नही होगा। जोखिम वाले कार्यो में निवेश ना करें हानि ही होगी। घर का वातावरण शांत रहेगा लेकिन आपका असंतोषी व्यवहार किसी न किसी से व्यर्थ में उलझायेगा। नेत्र रोग, चोट घाव लगने की संभावना है सतर्क रहें।

 

कन्या👩 (टो, पा, पी, पू, ष, ण, ठ, पे, पो)

आज के दिन आपका व्यवहार बीते कल की तुलना में विपरीत रहेगा अपने मतलब की बातों पर ही ध्यान देंगे जहां खर्च अथवा निजी स्वार्थ नही होगा उन कामो की अनदेखी करेंगे। आज आप कई नए रहस्य की बातों को जानने के लिये उत्सुक भी रहेंगे इसके लिये अपना व्यस्त समय भी खराब करने में हिचकिचाएंगे नही। आध्यात्म में निष्ठा कम रहेगी लेकिन तंत्र मंत्र टाने टोटको में अधिक रुचि लेंगे। काम धंधे में अनिश्चितता रहेगी धन लाभ की जब भी संभावना बनेगी तभी कुछ न कुछ विघ्न आयेगा प्रतिस्पर्धी आपकी योजना को असफल बनाने का हर सम्भव प्रयास करेंगे फिर भी खर्च चलाने लायक आय सहज हो जाएगी। पिता अथवा अधिकारी वर्ग से मिलनसार व्यवहार रखें इसने अकस्मात लाभ होने अथवा भविष्य के लिये कोई शुभ समाचार मिल सकता है। जोड़ो अथवा कमर में दर्द की शिकायत एवं अकस्मात गिरने से चोटादि का भय है।

 

तुला⚖️ (रा, री, रू, रे, रो, ता, ती, तू, ते)

आज का दिन आपके लिये आर्थिक एवं व्यावसायिक रूप से शुभ फलदायी रहेगा। स्वभाव से लापरवाह रहेंगे लेकिन आज इसका भी नुकसान की जगह फायदा ही मिलेगा। कार्य व्यवसाय में मध्यान तक परिश्रम की अधिकता के बाद भी संतोषजनक फल ना मिलने पर मन मे नकारत्मक भाव आएंगे लेकिन धैर्य ना छोड़े देर से ही सही अपनी योजनाओं में अवश्य सफल होंगे। नौकरी पेशा अपने बुद्धि बल से अधिकारी वर्ग को प्रसन्न करने में कामयाब होंगे लेकिन मन मे अहम आने से सहकर्मियो से कम पटेगी। धन की आमद असमय अचानक होने से आश्चर्य में पड़ेंगे। घरेलू वातावण में छोटी मोटी कहासुनी के बाद भी आंनद बना रहेगा। सन्तानो के ऊपर नजर रखें कुछ उल्टा कर सकते है।

वृश्चिक🦂 (तो, ना, नी, नू, ने, नो, या, यी, यू)

आज के दिन आपको मनचाहा सुख मिलने से मानसिक संतोष होगा लेकिन इसके लिये इंतजार करना ही आज भारी पड़ेगा। पराक्रम बढ़ा रहेगा अपने आगे जल्दी से किसी की चलने नही देंगे जिससे घर एवं कार्य क्षेत्र पर भी कुछ समय के लिये बहसबाजी हो सकती है। सेहत में थोडी बहुत नरमी रहेगी फिर भी कार्य मे बाधक नही बनने देंगे। नौकरी पेशाओ को कार्य क्षेत्र से अतिरिक्त आय बनाने का अवसर मिलेगा लेकिन गलत मार्ग होने के कारण मन मे भय भी बना रहेगा। व्यवसायी वर्ग पैतृक कार्यो में निवेश कर सकते है शीघ्र ही लाभ मिलेगा आज आप गृहस्थ के साथ ही बाहरी संबंधों को अच्छी तरह से निभाने का प्रयास करेंगे लेकिन फिर भी किसी ना किसी की नाराजगी देखनी ही पड़ेगी। यात्रा में सामान की सुरक्षा निश्चित करें चोरी होने का भय है।

 

धनु🏹 (ये, यो, भा, भी, भू, ध, फा, ढा, भे)

आज के दिन आपका व्यवहार अत्यंत मधुर रहेगा लेकिन आज आप जैसा व्यवहार करेंगे अंदर से उसके एकदम विपरीत रहेंगे। अपना काम बनाने के लिये अत्यंत मीठे बन जाएंगे लेकिन अंदर ही अंदर सामने वाले को कोसेंगे जरूर आज मेहनत करने की जगह बैठकर काम करना अधिक पसंद करेंगे। कार्य क्षेत्र पर आज प्रतिस्पर्धा अधिक रहेगी गुप्त शत्रु भी सर उठाएंगे लेकिन अपने काम पर ध्यान दे धन लाभ किसी ना किसी रूप में अवश्य होगा। नौकरी पेशाओ की समाज मे अच्छी पहचान रहने से सम्मान मिलेगा। पारिवारिक सुख में कमी रहेगी माता पिता कलसे किसी बात को लेकर मतभेद उभरेंगे दामपत्य में भी नीरसता ही रहेगी। कामवासना अधिक रहेगी लेकिन संबंधित सुख में भी कमी देखने को मिलेगी। चलते फिरते चोटादि का भय है सावधान रहें।

 

मकर🐊 (भो, जा, जी, खी, खू, खा, खो, गा, गी)

आज दिन के पहले भाग को छोड़ शेष समय उठापटक में बीतेगा। सुख प्राप्ति की इच्छा प्रबल रहेगी लेकिन आपके पूर्व में किये व्यवहार से शत्रु वृद्धि होने एवं दिन भर आर्थिक कारणों से तनावग्रस्त रह सकते हैं। कार्य व्यवसाय में बनते कार्यो में रुकावट आएगी अथवा मेहनत का उचित फल नही मिलने से मन मे दुख होगा। धन की आमद के लिये किसी के सहयोग की आवश्यकता पड़ेगी लेकिन आज किसी की सहायता लेना अहम को ठेस पहुचाने जैसा लगेगा परिणाम स्वरूप अल्प आय से संतोष करना पड़ेगा। धन के कारण संतान संबंधित उत्तरदायित्व की पूर्ति ना होने से मतभेद भी हो सकते हैं। घर का वातावरण भी प्रतिकूल रहेगा जीवन साथी को खुश नही कर पाएंगे। ननिहाल पक्ष से संबंधों में कड़वाहट आ सकती है। व्यावसायिक कारणों से यात्रा हो सकती है इसमे लाभ और खर्च बराबर ही रहेंगे। आंखों में जलन मूत्र संबंधित समस्या हो सकती है। आवश्यक कार्य दिन रहते कर ले कल से लाभ की सम्भवना न्यून रहेगी।

 

कुंभ🍯 (गू, गे, गो, सा, सी, सू, से, सो, दा)

आज का दिन भी सामान्य से उत्तम रहेगा आज आपका मिलनसार व्यवहार अवश्य ही कुछ ना कुछ लाभ दिलाएगा। कार्य व्यवसाय से लाभ की उम्मीद दिन भर लगी रहेगी लेकिन मन मे अनजाना भय भी बना रहेगा जिस वजह से आर्थिक मामलों में जल्दी से निर्णय नही ले पाएंगे धन की आमद आज किसी न किसी मार्ग से अकस्मात होगी। मध्यान के समय सार्वजनिक क्षेत्र पर किसी उच्च प्रतिष्ठित व्यक्ति से अहम को लेकर तकरार हो सकती है। आज पैतृक व्यवसाय में किसी के दखल देने से कुछ समय के लिये मानसिक रूप से चिड़चिड़ा पन आएगा इस समय मौन रहने का प्रयास करें अन्यथा स्वयं की हानि कर लेंगे। घर का वातावरण भी जिद बहस और कार्य कलापो में नुक्स निकालने पर थोड़ी देर के लिये अशांत होगा स्वतः ठीक भी हो जाएगा। व्यावसायिक अथवा अन्य पर्यटक यात्रा की योजना बनेगी व्यावसायिक यात्रा में धन लाभ हो सकता है।परिजन की पुरानी बीमारी परेशानी बढ़ाएगी।

 

मीन🐳 (दी, दू, थ, झ, ञ, दे, दो, चा, ची)

आज का दिन सेहत के दृष्टिकोण से लगभग ठीक ही रहेगा प्रातः काल के समय आलस्य अवश्य रह सकता है लेकिन आपके विचार और प्रवृति आज परोपकारी लेकिन अपने स्वार्थ के लिये धूर्त जैसी रहेगी। किसी भी कार्य मे मेहनत करने में आज कोई कसर नही रखेंगे कार्य क्षेत्र पर कुशलता का परिचय देंगे फिर भी आज जाने अनजाने में किसी न किसी से बेवजह उलझने पर स्वभाव में कुछ समय के लिये चिड़चिड़ापन आएगा । अपनी तरफ से विवाद को बढ़ावा ना दें अन्यथा बाद में दुख होगा। पिता अथवा पैतृक कार्यो में विरोधाभास होगा ना चाहते हुए भी परिस्थितिवश किसी का विरोध करना आज भारी पड़ सकता है। दाम्पत्य में छोटी मोटी बात का बतंगड़ बनने से अशांति फैलेगी। आज सामर्थ्य से अधिक की बाते ना करें अपमानित होना पड़ेगा। वात कफ का प्रकोप परेशान कर सकता है अनिच्छित यात्रा के योग भी है।

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वर्ष 1912 में, #ओकलाहामा में एक कोयले की खदान में एक बड़ा सा #कोयले का टुकड़ा मिला। उस कोयले के टुकड़े को तोड़ने पर उसमें से एक #लोहे का दो मुखी #दीपक निकला, जिसे देख कर अभी तक #पुरातत्व वैज्ञानिक आश्चर्य में हैं कि यह कैसे संभव है।

#कोयला बनने की प्रक्रिया में #लाखों, करोड़ों वर्ष लगते हैं जबकि #पाश्चात्य वैज्ञानिकों का मानना है कि मानव सभ्यताओं का उदय लगभग #पाँच से छह हजार वर्ष पहले ही हुआ था। फिर इतने समय पहले ऐसा लोहे का दीपक किसने बनाया जो कोयले के भीतर से निकला।

 

मित्रो, #भारतीय संस्कृति के #चतुर्युगी सिद्धांत को स्वीकार करने पर ही यह #गुत्थी सुलझ सकती है।

 

अब समझते हैं सनातन दर्शन के अनुसार सृष्टि की काल गणना :

 

सृष्टि की वर्तमान आयु पर विचार करते हैं। वर्तमान में सृष्टि का वर्णन Friedmann Model के अनुसार किया जाता है। इसमें Big Bang के साथ ही आकाश-समय निरन्तरता का जन्म हो जाता है, अर्थात् समय की गणना Big Bang के प्रारंभ होने के साथ ही शुरू हो जाती है। 

एक अमेरिकन वैज्ञानिक Edwin Hubble ने 9 विभिन्न आकाश गंगाओं (Galaxies) की दूरी जानने का प्रयत्न किया। उसने बताया कि हमारी आकाश गंगा तो अत्यन्त छोटी है, ऐसी तो करोड़ों आकाश गंगाएँ हैं। 

साथ ही उसने यह भी बताया कि जो (Galaxy) हमसे जितना अधिक दूर है, उतनी ही अधिक तेजी से वह हम से दूर भागती जा रही है। उसने उनकी हमसे दूर होने की चाल की गति भी ज्ञात कर ली। फिर इस सिद्धान्त पर भी Big Bang के समय तो सब एक ही स्थान पर थे। उन्हें इतना दूर जाने में कितना समय लगा, उसका एक नियम भी खोज लिया।

 

नियम है : V=HR. यहाँ V आकाश गंगा की हमसे दूर भागने की गति है,  

R आकाश गंगा की हमसे दूरी है और H Constant है। 

 

Edwin Hubble ने यह भी ज्ञात किया कि कोई भी आकाश गंगा जो हमसे d दश लाख प्रकाश वर्ष की दूरी पर है, उसकी दूर हटने की गति 19d मील प्रति सैकण्ड है। अतः अब समय R=106 d प्रकाश वर्ष, T =106×365×24×3600×186000d वर्ष

 

19d×3600×24×365

 

=186×109=9.7×109वर्ष

 

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Saint Augustine ने अपनी पुस्तक The City of God में बताया कि उत्पत्ति की पुस्तक के अनुसार सृष्टि की उत्पत्ति ईसा से 500 वर्ष पूर्व हुई है।

 

बिशप उशर का मानना है कि सृष्टि की उत्पत्ति ईसा से 4004 वर्ष पूर्व हुई है और केब्रीज विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. लाइटफुट ने सृष्टि उत्पत्ति का समय 23 अक्टूबर 4004 ईसा पूर्व प्रातः 9 बजे बताया है जो हास्यास्पद है। 

 

अब हम वैदिक वाङ्मय के आधार पर सृष्टि की आयु पर विचार करते हैं…. 

स्वामी दयानन्द सरस्वती ने ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका के दूसरे अध्याय अथ वेदोत्पत्ति विषय में इस पर विचार किया है कि वेद की उत्पत्ति कब हुई? इससे यह मानना चाहिए कि सृष्टि में मानव की उत्पत्ति कब हुई, क्योंकि मानव के उत्पन्न होने पर ही तो वेद का ज्ञान उसे प्राप्त हुआ है। इससे पूर्व की स्थिति अर्थात् सृष्टि उत्पन्न होने के प्रारम्भ से मानव के उत्पन्न होने के समय पर उन्होंने अपने विचार देना उचित नहीं समझा। वास्तव में मनुष्य ने तो अपने उत्पन्न होने के बाद ही समय की गणना प्रारमभ की है। सृष्टि के उस समय की गणना वह कैसे करता, जब बन ही रही थी? वह कैसे जानता कि सृष्टि उत्पन्न होने की क्रिया के प्रारम्भ होने से उसके पूर्ण होने तक सृष्टि निर्माण में कितना समय व्यतीत हुआ है? इस में मनुस्मृति के श्लोकों को ही मुख्य रूप से काम में लिया है – 

 

अत्वार्याहुः सहस्त्राणि वर्षाणां तत्कृतं युगम्।

 

तस्य यावच्छतो सन्ध्या सन्ध्यांशश्च तथा विधः।।

(मनु. 1.69)

 

उन दैवीयुग में (जिनमें दिन-रात का वर्णन है) चार हजार दिव्य वर्ष का एक सतयुग कहा है। 

इस सतयुग की जितने दिव्य वर्ष की अर्थात् 400 वर्ष की सन्ध्या होती है और उतने ही वर्षों की अर्थात् 400 वर्षों का सन्ध्यांश का समय होता है।

 

इतंरेषु ससन्ध्येषु ससध्यांशेषु च त्रिषु।

 

एकापायेन वर्त्तन्ते सहस्त्राणि शतानि च।।

(मनु. 1.70)

 

और अन्य तीन – त्रेता, द्वापर और कलियुग में सन्ध्या नामक कालों में तथा सन्ध्यांश नामक कालों में क्रमशः एक-एक हजार और एक-एक सौ कम कर ले तो उनका अपना-अपना काल परिणाम आ जाता है।

 

इस गणना के आधार पर सतयुग 4800 देव वर्ष, त्रेतायुग 3600 देव वर्ष, द्वापर 2400 वर्ष तथा कलियुग 1200 देव वर्ष के होते हैं। इस चारों का योग अर्थात् एक चतुर्युगी 12000 देव वर्ष का होता है।

 

दैविकानाम युगानां तु सहस्त्रं परि संखयया।

 

ब्राह्ममेकमहर्ज्ञेयं तावतीं रात्रिमेव च।। (मनु. 1.72)

 

देव युगों को 1000 से गुण करने पर जो काल परिणाम निकलता है, वह ब्रह्म का एक दिन और उतने ही वर्षों की एक रात समझना चाहिए। यह ध्यान रहे कि एक देव वर्ष 360 मानव वर्षों के बराबर होता है।

 

तद्वै युग सहस्रान्तं ब्राह्मं पुण्यमहर्विदुः।

 

रात्रिं च तावतीमेव तेऽहोरात्रविदोजनाः।।

(मनु. 1.73)

 

जो लोग उस एक हजार दिव्य युगों के परमात्मा के पवित्र दिन को और उतने की युगों की परमात्मा की रात्रि समझते हैं, वे ही वास्तव में दिन-रात = सृष्टि उत्पत्ति और प्रलय काल के विज्ञान के वेत्ता लोग हैं।

 

इस आधार की सृष्टि की आयु = 12000×1000 देव वर्ष = 12000000 देव वर्ष

 

12000000×360 = 4320000000 देव वर्ष

 

12000000 देव वर्ष = 4320000000 मानव वर्ष

 

यत् प्राग्द्वादशसाहस्त्रमुदितं दैविक युगम्।

 

तदेक सप्ततिगुणं मन्वन्तरमिहोच्यते।।   

(मनु. 1.79)

 

पहले श्लोकों में जो बारह हजार दिव्य वर्षों का एक दैव युग कहा है, इससे 71 (इकहत्तर) गुना समय अर्थात् 12000×71 = 852000 दिव्य वर्षों का अथवा 852000×360= 306720000 वर्षों का एक मन्वन्तर का काल परिणाम गिना गया है।

 

फिर अगले श्लोक में कहा गया है कि वह महान् परमात्मा असंखय मन्वन्तरों को, सृष्टि उत्पत्ति और प्रलय को बार-बार करता रहता है, अर्थात् सृष्टि प्रवाह से अनादि है।

 

संकल्प मन्त्र के आधार पर वेद का उत्पत्ति काल :

 

ओ3म् तत्सत् श्री ब्रह्मणः द्वितीये प्रहरोत्तरार्द्धे वैवस्वते मन्वन्तरेऽअष्टाविंशतितमे कलियुगे कलियुग प्रथम चरणेऽमुकसंवत्सरायमनर्तु मास पक्ष दिन नक्षत्र लग्न मुहूर्तेऽवेदं कृतं क्रियते च।

 

यह जो वर्तमान सृष्टि है, इसमें सातवें वैवस्वत मनु का वर्तमान है। इससे पूर्व छः मन्वन्तर हो चुके हैं और सात मन्वन्तर आगे होवेंगे। ये सब मिलकर चौदह मन्वन्तर होते हैं।

 

इस आधार पर वेदोत्पत्ति की काल गणना इस प्रकार होगी – 

 

छः मन्वन्तरों का समय = 4320000×71×6= 1840320000 वर्ष

 

वर्तमान मन्वन्तर की 27 चतुर्युगी का काल= 4320000×27= 116640000 वर्ष

 

अट्ठाइसवीं चतुर्युगी के गत तीन युगों का काल= 3888000 वर्ष

 

कलियुग के प्रारभ से विक्रम सं. 2077 तक का काल= 3043 + 2077 वर्ष

 

= 5120 वर्ष

 

कुल योग = 1840320000 +116640000 + 3888000 +5120 वर्ष

 

= 1960853120 वर्ष। चूंकि विक्रम संवत् के प्रारम्भ तक कलियुग के 3043 वर्ष व्यतीत हो चुके थे और 3044 वाँ वर्ष चल रहा था, इसलिए वर्तमान में 1960853121वाँ वर्ष चल रहा है।

 

अब कुछ विद्वान् कहते हैं कि सृष्टि की आयु जब मनु 1000 चतुर्युगी मानते हैं और दूसरी तरफ इसी आयु को 14 मन्वन्तर अर्थात् 994 चतुर्युगी कहा जाता है, तो दोनों के अन्तर 6 चतुर्युगों का समन्वय कैसे होगा? इसका उत्तर यह है कि 994 चतुर्युग तो मानव भोग काल है और 6 चतुर्युगों का समय सृष्टि उत्पत्ति के प्रारमभ से लेकर मानव अथवा वेदों की उत्पत्ति तक का है। सृष्टि उत्पत्ति में जो समय लगा है, वह सृष्टि की आयु में माना जावेगा। इसी प्रकार भोग काल 994 चतुर्युगों के अन्त में प्रलय काल प्रारमभ होगा और वह प्रलय की आयु में जोड़ा जायेगा।

 

ऋग्वेद में स्पष्ट कहा गया है कि काल लगे बिना कोई कार्य नहीं होता – 

 

त्वेषं रूपं कृणुत उत्तरं यत्संपृञ्चानः सदने गोभिरद्भि।

 

कविबुध्नं परि मर्मृज्यते धीः सा देवताता समिति र्बभूवः।। (ऋ. 1.95.8)

 

अर्थ – मनुष्य को चाहिए कि (यत्) जो (संपृञ्चानः) अच्छा परिचय करता कराता हुआ (कविः) जिसका क्रम से दर्शन होता है, वह समय (सादने) सदन में (गोभिः) सूर्य की किरणों वा (अद्भिः) प्राण आदि पवनों से (उत्तरम्) उत्पन्न होने वाले (त्वेषम्) मनोहर (बुध्नम्) प्राण और बल सबन्धी विज्ञान और (रूपम्) स्वरूप को (कृणुते) करता है तथा जो (धीः) उत्पन्न बुद्धि वा क्रिया (परि) (मर्मृज्यते) सब प्रकार से शुद्ध होती है (सा) वह (देवताता) ईश्वर और विद्वानों के साथ (समितिः) विशेष ज्ञान की मर्यादा (बभूव) होती है, इस समस्त उक्त व्यवहार को जानकर बुद्धि को उत्पन्न करें।

 

भावार्थ – मनुष्यों को जानना चाहिये कि काल के बिना कार्य स्वरूप उत्पन्न होकर और नष्ट हो जाये – यह होता ही नहीं है और न ब्रह्मचर्य आदि उत्तम समय के सेवन के बिना शास्त्र बोध कराने वाली बुद्धि होती है, इस कारण काल के परम सूक्ष्म स्वरूप को जानकर थोड़ा-सा भी समय व्यर्थ न खोवें, किन्तु आलस्य छोड़कर समय के अनुसार व्यवहार और परमार्थ के कामों का सदा अनुष्ठान करें।

 

यह भी ध्यान रखें कि जिस क्रिया में जो समय लगे, वह उसी का होगा। स्वामी जी ने इस प्रकरण में वेद का उत्पत्ति काल बताया है, सृष्टि की आयु नहीं बताई है। यदि सृष्टि की आयु जानना चाहें तो इसमें सृष्टि का उत्पत्ति काल जोड़ दें, तब सृष्टि की आयु होगी-

 

= 1960853116+25920000= 1986773116 वर्ष

 

साथ ही सृष्टि की शेष आयु होगी = 4320000000-1986773121= 2333226889 वर्ष सन्धि और सन्ध्यांश काल तो युगों की आयु में पहिले ही जोड़ लिए हैं, फिर मन्वन्तर के प्रारमभ और अन्त में एक सतयुग का जोड़ना व्यर्थ है। ज्ञान के अभाव में सृष्टि उत्पत्ति काल को न समझ कर 25920000 वर्षों को 15 भागों में व्यर्थ विभाजित कर क्षति पूर्ति करने का प्रयत्न किया गया है। इससे तो यहूदी ही अच्छे हैं, जो सृष्टि की उत्पत्ति 6 दिनों में स्वीकार करते हैं। यदि उनके दिन का मान एक चतुर्युगी मान लें तो उनकी सृष्टि उत्पत्ति की गणना ठीक वेदों के अनुरूप हो जाती है।

पुरातात्विक, खगोलीय और अन्य वैज्ञानिक प्रमाण 

सनातन के काल गणना को सही सिद्ध करते हैं।

मानव का इतिहास लाखों नहीं बल्कि करोड़ों वर्ष प्राचीन है….तन्मय तिवारी का लेख यह समझाने के लिए लिया है कि हमारी सृष्टि भारतीय सभ्यता और संस्कृति का इतिहास लाखों नहीं करोड़ों वर्ष पुराना है। बाकि तो हम अपना इतिहास कलिकाल त्रिसंध्या जपते हैं पंचाग पातड़ा तो नील वर्षों का इतिहास एक एक पल का वर्णन करने में समर्थ है। 

(जूम करके भगवती महाशक्ति की आंखें देखें जीवंत लगेंगी)

माता सती से जुड़े 51 शक्तिपीठ,,,,,,

जो आज वर्तमान के पूरे भारतीय उपमहाद्वीप
यथा भारत, नेपाल, पाकिस्तान, श्री लंका और बांग्लादेश में स्थित हैं,,,

1.-हिंगलाज,,,,
🚩कराची से 125 किमी दूर है। यहां माता का ब्रह्मरंध (सिर) का ऊपरी भाग गिरा था.
इसकी शक्ति-कोटरी (भैरवी-कोट्टवीशा) है व भैरव को भीम लोचन कहते हैं।

2.-शर्कररे,,,,
🚩पाक के कराची के पास यह शक्तिपीठ स्थित है.
यहां माता की आंख गिरी थी.
इसकी शक्ति- महिषासुरमर्दिनी व भैरव को क्रोधिश कहते हैं।

3.-सुगंधा…
🚩बांग्लादेश के शिकारपुर के पास दूर सोंध नदी के किनारे स्थित है.

माता की नासिका गिरी थी यहां.
इसकी शक्ति सुनंदा है व भैरव को त्र्यंबक कहते हैं.

4.-महामाया…
🚩भारत के कश्मीर में पहलगांव के निकट माता का कंठ गिरा था.
इसकी शक्ति है महामाया और भैरव को त्रिसंध्येश्वर कहते हैं.

5:-ज्वालाजी…
🚩हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा में माता की जीभ गिरी थी.

इसे ज्वालाजी स्थान कहते हैं.
इसकी शक्ति है सिद्धिदा (अंबिका) व भैरव को उन्मत्त कहते हैं।

6.-त्रिपुरमालिनी…
🚩पंजाब के जालंधर में देवी तालाब, जहां माता का बायां वक्ष (स्तन) गिरा था.
इसकी शक्ति है त्रिपुरमालिनी व भैरव को भीषण कहते हैं.

7.-वैद्यनाथ..
🚩झारखंड के देवघर में स्थित वैद्यनाथधाम जहां माता का हृदय गिरा था.
इसकी शक्ति है जय दुर्गा और भैरव को वैद्यनाथ कहते हैं.

8.-महामाया…
🚩नेपाल में गुजरेश्वरी मंदिर, जहां माता के दोनों घुटने (जानु) गिरे थे.

इसकी शक्ति है महशिरा (महामाया) और भैरव को कपाली कहते हैं.

9.-दाक्षायणी…
🚩तिब्बत स्थित कैलाश मानसरोवर के मानसा के पास पाषाण शिला पर माता का दायां हाथ गिरा था.

इसकी शक्ति है दाक्षायणी और भैरव अमर.

10.-विरजा…
🚩ओडिशा के विराज में उत्कल में यह शक्तिपीठ स्थित है.
यहां माता की नाभि गिरी थी.
इसकी शक्ति विमला है व भैरव को जगन्नाथ कहते हैं.

11.-गंडकी..
🚩नेपाल में मुक्ति नाथ मंदिर, जहां माता का मस्तक या गंडस्थल अर्थात कनपटी गिरी थी.
इसकी शक्ति है गंडकी चंडी व भैरव चक्रपाणि हैं.

12.-बहुला..
🚩प. बंगाल के अजेय नदी तट पर स्थित बाहुल स्थान पर माता का बायां हाथ गिरा था.
इसकी शक्ति है देवी बाहुला व भैरव को भीरुक कहते हैं.

13.-उज्जयिनी…
🚩प. बंगाल के उज्जयिनी नामक स्थान पर माता की दाईं कलाई गिरी थी.
इसकी शक्ति है मंगल चंद्रिका और भैरव को कपिलांबर कहते हैं.

14.-त्रिपुर सुंदरी..
🚩त्रिपुरा के राधाकिशोरपुर गांव के माता बाढ़ी पर्वत शिखर पर माता का दायां पैर गिरा था.
इसकी शक्ति है त्रिपुर सुंदरी व भैरव को त्रिपुरेश कहते हैं.

15.-भवानी..
🚩बांग्लादेश चंद्रनाथ पर्वत पर छत्राल (चट्टल या चहल) में माता की दाईं भुजा गिरी थी.
भवानी इसकी शक्ति हैं व भैरव को चंद्रशेखर कहते हैं.

16.-भ्रामरी..
🚩प. बंगाल के जलपाइगुड़ी के त्रिस्रोत स्थान पर माता का बायां पैर गिरा था.
इसकी शक्ति है भ्रामरी और भैरव को अंबर और भैरवेश्वर कहते हैं.

17.-कामाख्या…
🚩असम के कामगिरि में स्थित नीलांचल पर्वत के कामाख्या स्थान पर माता का योनि भाग गिरा था.
कामाख्या इसकी शक्ति है व भैरव को उमानंद कहते हैं.

18.-प्रयाग..
🚩उत्तर प्रदेश के प्रयागराज (प्रयाग) के संगम तट पर माता के हाथ की अंगुली गिरी थी.
इसकी शक्ति है ललिता और भैरव को भव कहते हैं.

19.-जयंती…
🚩बांग्लादेश के खासी पर्वत पर जयंती मंदिर, जहां माता की बाईं जंघा गिरी थी.
इसकी शक्ति है जयंती और भैरव को क्रमदीश्वर कहते हैं.

20.-युगाद्या…
🚩प. बंगाल के युगाद्या स्थान पर माता के दाएं पैर का अंगूठा गिरा था.

इसकी शक्ति है भूतधात्री और भैरव को क्षीर खंडक कहते हैं.

21.-कालीपीठ…
🚩कोलकाता के कालीघाट में माता के बाएं पैर का अंगूठा गिरा था.

इसकी शक्ति है कालिका और भैरव को नकुशील कहते हैं.

22.-किरीट…
🚩प. बंगाल के मुर्शीदाबाद जिला के किरीटकोण ग्राम के पास माता का मुकुट गिरा था.

इसकी शक्ति है विमला व भैरव को संवत्र्त कहते हैं.

23.-विशालाक्षी..
🚩यूपी के काशी में मणिकर्णिका घाट पर माता के कान के मणिजडि़त कुंडल गिरे थे.

शक्ति है विशालाक्षी मणिकर्णी व भैरव को काल भैरव कहते हैं.

24.-कन्याश्रम…
🚩कन्याश्रम में माता का पृष्ठ भाग गिरा था.

इसकी शक्ति है सर्वाणी और भैरव को निमिष कहते हैं.

25.-सावित्री..
🚩हरियाणा के कुरुक्षेत्र में माता की एड़ी (गुल्फ) गिरी थी.

इसकी शक्ति है सावित्री और भैरव को स्थाणु कहते हैं।

26.-गायत्री…
🚩अजमेर के निकट पुष्कर के मणिबंध स्थान के गायत्री पर्वत पर दो मणिबंध गिरे थे.

इसकी शक्ति है गायत्री और भैरव को सर्वानंद कहते हैं.

27.-श्रीशैल..
🚩बांग्लादेश केशैल नामक स्थान पर माता का गला (ग्रीवा) गिरा था.

इसकी शक्ति है महालक्ष्मी और भैरव को शम्बरानंद कहते हैं.

28.-देवगर्भा…
🚩प. बंगाल के कोपई नदी तट पर कांची नामक स्थान पर माता की अस्थि गिरी थी.

इसकी शक्ति है देवगर्भा और भैरव को रुरु कहते हैं.

29.-कालमाधव…
🚩मध्यप्रदेश के शोन नदी तट के पास माता का बायां नितंब गिरा था जहां एक गुफा है.

इसकी शक्ति है काली और भैरव को असितांग कहते हैं।

30.-शोणदेश…
🚩मध्यप्रदेश के शोणदेश स्थान पर माता का दायां नितंब गिरा था.

इसकी शक्ति है नर्मदा और भैरव को भद्रसेन कहते हैं.

31.-शिवानी…
🚩यूपी के चित्रकूट के पास रामगिरि स्थान पर माता का दायां वक्ष गिरा था.
इसकी शक्ति है शिवानी और भैरव को चंड कहते हैं.

32.-वृंदावन…
🚩मथुरा के निकट वृंदावन के भूतेश्वर स्थान पर माता के गुच्छ और चूड़ामणि गिरे थे.

इसकी शक्ति है उमा और भैरव को भूतेश कहते हैं।

33 नारायणी…
🚩कन्याकुमारी-तिरुवनंतपुरम मार्ग पर शुचितीर्थम शिव मंदिर है, जहां पर माता के दंत (ऊर्ध्वदंत) गिरे थे.

शक्तिनारायणी और भैरव संहार हैं.

34 वाराही…
🚩पंचसागर (अज्ञात स्थान) में माता की निचले दंत (अधोदंत) गिरे थे.

इसकी शक्ति है वराही और भैरव को महारुद्र कहते हैं.

35.-अपर्णा…
🚩बांग्लादेश के भवानीपुर गांव के पास करतोया तट स्थान पर माता की पायल (तल्प) गिरी थी.

इसकी शक्ति अर्पणा और भैरव को वामन कहते हैं.

36.-श्रीसुंदरी…
🚩लद्दाख के पर्वत पर माता के दाएं पैर की पायल गिरी थी.

इसकी शक्ति है श्रीसुंदरी और भैरव को सुंदरानंद कहते हैं.

37.-कपालिनी…
🚩पश्चिम बंगाल के जिला पूर्वी मेदिनीपुर के पास तामलुक स्थित विभाष स्थान पर माता की बायीं एड़ी गिरी थी.

इसकी शक्ति है कपालिनी (भीमरूप) और भैरव को शर्वानंद कहते हैं।

38.-चंद्रभागा…
🚩गुजरात के जूनागढ़ प्रभास क्षेत्र में माता का उदर गिरा था.

इसकी शक्ति है चंद्रभागा और भैरव को वक्रतुंड कहते हैं.

39.-अवंती…
🚩उज्जैन नगर में शिप्रा नदी के तट के पास भैरव पर्वत पर माता के ओष्ठ गिरे थे.

इसकी शक्ति है अवंति और भैरव को लम्बकर्ण कहते हैं.

40.-भ्रामरी…
🚩महाराष्ट्र के नासिक नगर स्थित गोदावरी नदी घाटी स्थित जनस्थान पर माता की ठोड़ी गिरी थी.

शक्ति है भ्रामरी और भैरव है विकृताक्ष.

41.-सर्वशैल स्थान
🚩आंध्रप्रदेश के कोटिलिंगेश्वर मंदिर के पास माता के वाम गंड (गाल) गिरे थे.

इसकी शक्ति है राकिनी और भैरव को वत्सनाभम कहते हैंं.

42.-गोदावरीतीर…
🚩यहां माता के दक्षिण गंड गिरे थे.

इसकी शक्ति है विश्वेश्वरी और भैरव को दंडपाणि कहते हैं.

43.-कुमारी..
🚩बंगाल के हुगली जिले के रत्नाकर नदी के तट पर माता का दायां स्कंध गिरा था.

इसकी शक्ति है कुमारी और भैरव को शिव कहते हैं.

44.-उमा महादेवी..
🚩भारत-नेपाल सीमा पर जनकपुर रेलवे स्टेशन के निकट मिथिला में माता का बायां स्कंध गिरा था.

इसकी शक्ति है उमा और भैरव को महोदर कहते हैं।

45.-कालिका…
🚩पश्चिम बंगाल के वीरभूम जिले के नलहाटि स्टेशन के निकट नलहाटी में माता के पैर की हड्डी गिरी थी.

इसकी शक्ति है कालिका देवी और भैरव को योगेश कहते हैं.

46.-जयदुर्गा..
🚩कर्नाट (अज्ञात स्थान) में माता के दोनों कान गिरे थे.

इसकी शक्ति है जयदुर्गा और भैरव को अभिरु कहते हैं.

47.-महिषमर्दिनी..
🚩पश्चिम बंगाल के वीरभूम जिले में पापहर नदी के तट पर माता का भ्रुमध्य (मन:) गिरा था.

शक्ति है महिषमर्दिनी व भैरव वक्रनाथ हैं.

48.-यशोरेश्वरी…
🚩बांग्लादेश के खुलना जिला में माता के हाथ और पैर गिरे (पाणिपद्म) थे.

इसकी शक्ति है यशोरेश्वरी और भैरव को चण्ड कहते हैं.

49.-फुल्लरा…
🚩पश्चिम बंगला के लाभपुर स्टेशन से दो किमी दूर अट्टहास स्थान पर माता के ओष्ठ गिरे थे.

इसकी शक्ति है फुल्लरा और भैरव को विश्वेश कहते हैं.

50.-नंदिनी…
🚩पश्चिम बंगाल के वीरभूम जिले के नंदीपुर स्थित बरगद के वृक्ष के समीप माता का गले का हार गिरा था.
शक्ति नंदिनी व भैरव नंदीकेश्वर हैं.

51.-इंद्राक्षी…
🚩श्रीलंका में संभवत: त्रिंकोमाली में माता की पायल गिरी थी.
इसकी शक्ति है इंद्राक्षी और भैरव को राक्षसेश्वर कहते हैं.

जय माँ…!!🚩🚩

*इक्यावन शक्तिपीठों में प्रमुख विन्ध्यवासिनी जी की कथा*

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‘भगवती विंध्यवासिनी आद्या महाशक्ति हैं। विन्ध्याचल सदा से उनका निवास-स्थान रहा है। जगदम्बा की नित्य उपस्थिति ने विंध्यगिरिको जाग्रत शक्तिपीठ बना दिया है। 

महाभारत के विराट पर्व में धर्मराज युधिष्ठिर देवी की स्तुति करते हुए कहते हैं- विन्ध्येचैवनग-श्रेष्ठे तवस्थानंहि शाश्वतम्। 

हे माता! पर्वतों में श्रेष्ठ विंध्याचलपर आप सदैव विराजमान रहती हैं। पद्मपुराण में विंध्याचल-निवासिनी इन महाशक्ति को विंध्यवासिनी के नाम से संबंधित किया गया है- विन्ध्येविन्ध्याधिवासिनी।

श्रीमद्देवीभागवत के दशम स्कन्ध में कथा आती है, सृष्टिकर्ता ब्रह्माजीने जब सबसे पहले अपने मन से स्वायम्भुवमनु और शतरूपा को उत्पन्न किया। तब विवाह करने के उपरान्त स्वायम्भुव मनु ने अपने हाथों से देवी की मूर्ति बनाकर सौ वर्षो तक कठोर तप किया। 

उनकी तपस्या से संतुष्ट होकर भगवती ने उन्हें निष्कण्टक राज्य, वंश-वृद्धि एवं परम पद पाने का आशीर्वाद दिया। वर देने के बाद महादेवी विंध्याचलपर्वत पर चली गई।

 इससे यह स्पष्ट होता है कि सृष्टि के प्रारंभ से ही विंध्यवासिनी की पूजा होती रही है। सृष्टि का विस्तार उनके ही शुभाशीषसे हुआ।

त्रेता युग में भगवान श्रीरामचन्द्र सीताजीके साथ विंध्याचल आए थे। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम द्वारा स्थापित रामेश्वर महादेव से इस शक्तिपीठ की माहात्म्य और बढ गया है।

 द्वापरयुग में मथुरा के राजा कंस ने जब अपने बहन-बहनोई देवकी-वसुदेव को कारागार में डाल दिया और वह उनकी सन्तानों का वध करने लगा।

 तब वसुदेवजीके कुल-पुरोहित गर्ग ऋषि ने कंस के वध एवं श्रीकृष्णावतार हेतु विंध्याचल में लक्षचण्डी का अनुष्ठान करके देवी को प्रसन्न किया। जिसके फलस्वरूप वे नन्दरायजीके यहाँ अवतरित हुई।

मार्कण्डेयपुराण के अन्तर्गत वर्णित दुर्गासप्तशती (देवी-माहात्म्य) के ग्यारहवें अध्याय में देवताओं के अनुरोध पर भगवती उन्हें आश्वस्त करते हुए कहती हैं, देवताओं वैवस्वतमन्वन्तर के अट्ठाइसवें युग में शुम्भऔर निशुम्भनाम के दो महादैत्य उत्पन्न होंगे। तब मैं नन्दगोप के घर में उनकी पत्नी यशोदा के गर्भ से अवतीर्ण हो विन्ध्याचल में जाकर रहूँगी और उक्त दोनों असुरों का नाश करूँगी।

लक्ष्मीतन्त्र नामक ग्रन्थ में भी देवी का यह उपर्युक्त वचन शब्दश: मिलता है। ब्रज में नन्द गोप के यहाँ उत्पन्न महालक्ष्मीकी अंश-भूता कन्या को नन्दा नाम दिया गया। मूर्तिरहस्य में ऋषि कहते हैं- नन्दा नाम की नन्द के यहाँ उत्पन्न होने वाली देवी की यदि भक्तिपूर्वक स्तुति और पूजा की जाए तो वे तीनों लोकों को उपासक के आधीन कर देती हैं।

श्रीमद्भागवत महापुराण के श्रीकृष्ण-जन्माख्यान में यह वर्णित है कि देवकी के आठवें गर्भ से आविर्भूत श्रीकृष्ण को वसुदेवजीने कंस के भय से रातोंरात यमुनाजीके पार गोकुल में नन्दजीके घर पहुँचा दिया तथा वहाँ यशोदा के गर्भ से पुत्री के रूप में जन्मीं भगवान की शक्ति योगमाया को चुपचाप वे मथुरा ले आए।

 आठवीं संतान के जन्म का समाचार सुन कर कंस कारागार में पहुँचा। उसने उस नवजात कन्या को पत्थर पर जैसे ही पटक कर मारना चाहा, वैसे ही वह कन्या कंस के हाथों से छूटकर आकाश में पहुँच गई और उसने अपना दिव्य स्वरूप प्रदर्शित किया। कंस के वध की भविष्यवाणी करके भगवती विन्ध्याचल वापस लौट गई।

मन्त्रशास्त्र के सुप्रसिद्ध ग्रंथ शारदातिलक में विंध्यवासिनी का वनदुर्गा के नाम से यह ध्यान बताया गया है-

सौवर्णाम्बुजमध्यगांत्रिनयनांसौदामिनीसन्निभां

चक्रंशंखवराभयानिदधतीमिन्दो:कलां बिभ्रतीम्।

ग्रैवेयाङ्गदहार-कुण्डल-धरामारवण्ड-लाद्यै:स्तुतां

ध्यायेद्विन्ध्यनिवासिनींशशिमुखीं पा‌र्श्वस्थपञ्चाननाम्॥

अर्थ-जो देवी स्वर्ण-कमल के आसन पर विराजमान हैं, तीन नेत्रों वाली हैं, विद्युत के सदृश कान्ति वाली हैं, चार भुजाओं में शंख, चक्र, वर और अभय मुद्रा धारण किए हुए हैं, मस्तक पर सोलह कलाओं से परिपूर्ण चन्द्र सुशोभित है, गले में सुन्दर हार, बांहों में बाजूबन्द, कानों में कुण्डल धारण किए इन देवी की इन्द्रादि सभी देवता स्तुति करते हैं।

 विंध्याचलपर निवास करने वाली, चंद्रमा के समान सुन्दर मुखवाली इन विंध्यवासिनी के समीप सदा शिव विराजित हैं।

सम्भवत:पूर्वकाल में विंध्य-क्षेत्रमें घना जंगल होने के कारण ही भगवती विन्ध्यवासिनीका वनदुर्गा नाम पडा। वन को संस्कृत में अरण्य कहा जाता है। इसी कारण ज्येष्ठ मास के शुक्लपक्ष की षष्ठी विंध्यवासिनी-महापूजा की पावन तिथि होने से अरण्यषष्ठी के नाम से विख्यात हो गई है।

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