आस्ट्रेलिया के रॉयल कालेज आफ सर्जन के बाहर लगी दुनियां के पहले प्लास्टिक सर्जन महर्षि सुश्रुत की प्रतिमा

*भारत ने दुनिया को दिया सर्जरी का ज्ञान*
पूरी दुनिया में आज बड़े-बड़े सर्जिकल आपरेशन आम हो चुके हैं,लेकिन एक छोटी सी कहानी के माध्यम से मैं अपनी संस्कृति के महत्व को आपके सम्मुख उजागर करने का प्रयास कर रहा हूँIआयुर्वेद के ग्रन्थ सुश्रुत संहिता में प्लास्टिक सर्जरी का सन्दर्भ मिलता है, जिसमें गले से त्वचा लेकर कान की पाली को बनाने का विस्तृत वर्णन है I आचार्य सुश्रुत के बाद ‘राईनोप्लास्टी’ की यह तकनीक भारत के कुछ पारंपरिक वैद्यों द्वारा छुपकर बाद में प्रयोग की जाती रही Iकोवास्जी एक बैलगाड़ी चलानेवाले की गाथा इस बात का प्रमाण है I कोवास्जी अपनी बैलगाड़ी से दक्षिण भारत में रह रहे ब्रितानी सैनिकों को राशन की आपूर्ति करता था, जबकि तत्कालीन शासक के अनुसार ये गुनाह था क्योंकि वहां ब्रितानियों का विरोध हो रहा था I तब कोवास्जी को पकड़कर नाक काटने का फरमान तत्कालीन शासक द्वारा जारी हुआ और उसकी नाक काट दी गयी I बाद में कोवास्जी की नाक एक पारंपरिक चिकित्सक ने सुश्रुत की तकनीक से बनायी I इस सर्जरी के गवाह दो ब्रिटिश चिकित्सक बने, जिस बात का उल्लेख 1794 में ब्रिटेन से प्रकाशित ‘जेंटलमेंस मैगजीन’ में किया गया I 1837 के बाद पूरी ब्रिटेन में भारत की इस तकनीक का प्रयोग किया जाने लगा I ‘जेंटलमेंस मैगजीन’ में प्रकाशित इस लेख से उत्साहित होकर जोसेफ कॉर्प (1754-1840) नामक सर्जन ने सबसे पहले इस तकनीक से सर्जरी क़ी ,और वो पहला यूरोपीयन सर्जन बना जिसे भारत क़ी तकनीक से सर्जरी का गौरव प्राप्त हुआ I कार्ल फ्रीडलैंड वोनग्राफ ने अपनी पुस्तक ‘राईनोप्लास्टीक’ में जोसेफ कॉर्प द्वारा क़ी गयी इस सर्जरी का वर्णन किया है I ‘राईनोप्लास्टीक’ पुस्तक ने यूरोप के सर्जनो को इस तकनीक से प्रोत्साहित करने का काम किया I जोनाथन नेथोन वारेन ने 1837 में नोर्थ अमेरिका में इस भारतीय तकनीक से क़ी गयी सर्जरी क़ी रिपोर्टिंग क़ी थी I 1897 के बाद लगभग 152भारतीय राईनोप्लास्टीक सर्जरी होने का वर्णन है , यह खुद साबित करता है कि पूरी दुनिया को प्लास्टिक सर्जरी सिखाने वाले आचार्य सुश्रुत रहे।आस्ट्रेलिया के रॉयल कालेज आफ सर्जन के बाहर महर्षि सुश्रुत की प्रतिमा दुनिया भर के सर्जन्स को सर्जरी का ज्ञान देनेवाले सुश्रुत के प्रति सम्मान व्यक्त करने का अद्वितीय उदाहरण है। – (चित्र संलग्न) 
वैद्य नवीन चन्द्र जोशी
एमडी आयुर्वेद
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पौराणिक कथा के अनुसार एक बार शिवजी के गण नंदी ने देवी पार्वती की आज्ञा पालन में त्रुटि कर दी थी। इससे नाराज देवी ने अपने शरीर के उबटन से एक बालक का निर्माण कर उसमें प्राण डाल दिए और कहा कि तुम मेरे पुत्र हो। तुम मेरी ही आज्ञा का पालन करना किसी और की नहीं। देवी पार्वती ने यह भी कहा कि मैं स्नान के लिए जा रही हूं। ध्यान रखना कोई भी अंदर न आने पाए। थोड़ी देर बाद वहां भगवान शंकर आए और देवी पार्वती के भवन में जाने लगे।

यह देखकर उस बालक ने विनयपूर्वक उन्हें रोकने का प्रयास किया। बालक का हठ देखकर भगवान शंकर क्रोधित हो गए और उन्होंने अपने त्रिशूल से उस बालक का सिर काट दिया। देवी पार्वती ने जब यह देखा तो वे बहुत क्रोधित हो गई। उनकी क्रोध की अग्नि से सृष्टि में हाहाकार मच गया। तब सभी देवताओं ने मिलकर उनकी स्तुति की और बालक को पुनर्जीवित करने के लिए कहा। क्योंकि गणेश का सिर क्योंकि उस बालक का सिर इतना भी दिन और 3 दिन हो चुका था कि उसी को दोबारा रिपेयर नहीं किया जा सकता था इसलिए रास्ते में जो पहला जीव मिला हाथी उसी का सिर की सर्जरी के द्वारा उस बालक पर लगाया गया उसके बाद सभी देवताओं ने आकर उस बालक की स्तुति की उस बालक का नाम गणपति गणेश गजानन सुमुख एकदंत च गजकर्ण  लंबोदर विध्न विनायक आदि नामों देवताओं द्वारा स्तुति किए जाने के कारण वह बालक प्रथम पूजा का अधिकारी बना और गणेश नाम से विश्वविख्यात हुआ