टापर के रिजल्ट पर इतराने वालों हमारे स्कूल देश के बेस्ट नागरिक नहीं, बेस्ट मजदूर बनाने में जुटे हैं

प्रस्तुति – डॉ हरीश मैखुरी 

बोर्ड की दसवीं/बारहवीं के रिजल्ट मे *टॉप* करने वाले और पास करने वालों को निकट भविष्य में जिलाधिकारी/पुलिस अधिक्षक/इंजीनियर/डॉक्टर/टीचर /वकील/जर्नलिस्ट इत्यादि बनने कि शुभकामनाएं। तथा इस परीक्षा में *फेल* हो गए छात्रों को भी जिला पंचायत सदस्य/ब्लाक प्रमुख/विधायक/सांसद/मंत्री/मुख्यमंत्री/शिक्षामंत्री, प्रधानमंत्री आदि बनने की अग्रिम बधाई।

हमने कभी नहीं  सुना है कि अमेरिका के किसी बोर्ड इग्जाम के रिजल्ट आ रहे हैं या यू०के० में लड़कियों  ने बाजी मारी, या आस्ट्रेलिया में किसी छात्र के 100% आऐ । तो फिर अंकों ये महामारी हमारे देश में क्यों ? 

मई जून के महीने में हिन्दुस्तान के हर घर में एक भय एक उत्तेजना एक जिज्ञासा ,एक मानसिक विकृति हर माँ बाप, हर बोर्ड इग्जाम में  बैठा बच्चा अपने गुजते पलों को डिप्रेशन और असुरक्षित भाव में काट रहा होता है कि न जाने क्या होगा ? जो हमारी भावी पीढ़ी को बर्बाद कर रहा है। 

जो माँ बाप फ़सल की तरह बच्चों को पाल रहे हैं कि कब फ़सल पके कब उनके अधूरी अाकाँक्षाऐं  पूरी हों और कब वे समृद्धि की फ़सल काटेंगे,  तो इसमें कहीं न कहीं वे खुद या उनके अधूरे सपने , बच्चों  की जीवन चर्या को नियमित नहीं  कर रहेे, हमारे बच्चे क्या बनें ये हम नहीं तय करते , बल्कि पूंजीपति,  कार्पोरेट जगत और  इनवेस्टर्स को क्या प्रोडक्ट चाहिये इस हिसाब से शिक्षा और उसके उद्देश्य तय हो रहे हैं।  हमारा परिवार दिन रात के सँघर्षो, घोर परिश्रम ,और कठिनाईयो में गुज़र जाता है, अपना अस्तित्व, सुख चैन और मानवीय भावनाऐं सिर्फ इसलिये भेंट चढ जाती हैैं क्यों कि टीसीएस को एक बेहतरीन सोफ्टवेयर डेवलेपर चाहिये..या मेकेन्से को बेस्ट ब्रेन चाहिये या किसी को बेहतरीन गेम डिजाइननर चाहिये। या एमएनसी को बेस्ट वर्कर चाहिए।  
हमें ये कभी नहीं लगता  कि देश को एक बेस्ट प्रधानमंत्री ,बेस्ट सांसद ,विधायक ,रायटर ,या थिंकटैंक भी चाहिए ।

व्यक्ति में सद्गुणों की प्रतिष्ठा करनाड् हमारी शिक्षा व्यवस्था व उसके आदर्श कहाँ रह गए हैं   

हमारे स्कूल देश के बेस्ट नागरिक नहीं  देश के बेस्ट मजदूर बनाने में दिन रात एक करके जुटे हुए हैं
और धिक्क्का है ऐसी सोच लिये अभिभावकों को जो बच्चों को बच्चा नहीं एक मेकेनिकल डिवाईस या प्रोडक्ट  बनाने के लिए दिन रात एक किये हुए हैं। 
हम नहीं कह रहे कि बच्चों को आवारा छोड़ो उनको पूरा संरक्षण दो पूरा खयाल रखो, पर उनकी दुनियां और खुशियां मत छीनो इससे उनका अपना व्यक्तित्व विकसित होगाा, उन्हें जीने दो दुनियां खत्म नहीं होने जा रही। आपके द्वारा अपने सांचे में बच्चों को डाले जाने के कारण अनुशासित प्यादे तो बन सकते हैं लेकिन एक विराट व्यक्तित्व और  सद्गुणी व्यक्ति बनने के लिए  महान बनने के लिए तो उनका अपना व्यक्तित्व ही विकसित होना चाहिए। इसलिए बच्चों को बेहतर एम्प्लोई नहीं बेहतर सीटिजन बनाने में  विश्वास रखिए। 

बचपन की भी खुद से कुछ अपेक्षाऐं होती हैं अपने निस्वार्थ स्वप्न होते हैं जो सिर्फ बचपन ही पूरा कर सकता है। उनका हमारे लिये कोई अर्थ नहीं  लेेकि नबच्चो के लिये वो जन्नत से कम नहीं, इसलिए अपने बच्चों  की दुनियां मत उजाड़ो उन्हें  मनोरोगी मत बनाओ, ये एक मानसिक रुग्णता ही तो है, टॉपर्स की खबरें उन्हें  मिठाई खिलाते माँ बाप की फोटो क्या ये एक आम सामान्य स्तर के बच्चों को मानसिक हीनता की अनुभूती नहीं  देंगे? टॉपर तो दो चार होंगे बाकी देश का बोझ तो 99 % इन्हीं सामान्य फूल से कोमल सामान्य बच्चों  ने ही उठाना है मानसिक रोगियों  उनकी मुस्कान मत छीनो देश से उसकी सृजनात्मक शक्ति मत छीनो। 

जैसे ठेकेदार लिये नेपाल के माँ बाप मजदूर तैयार कर रहे हैं, वैसे ही तुम टाटा,रिलायंस एल एंड टी,  मारुति ,मेकेन्से ,देन्सू , आदि  के लिये मजदूर तैयार कर रहे हो। 
वे कुछ भी बन जाऐं एमएनसी में सीईओ हो जाऐ, दस अंको में सैलरी मिल जाय , पर जो बचपन की रिक्तता तुमने इन पर आरोपित कर दी है वो उन्हें  जीवन भर खलेगी, काटेगी और मानवीय विकृतियों  के रुप में फलेंगी। आपको बेस्ट सीईओ मिलेंगे जिनकी प्राथमिकता उनकी कंपनी होगी न कि अपना देश, संस्कृति, संस्कार या परिवार ।  सामान्य तौर पर देखने में आया है कि सद्गुणों के विकास जिम्मेदार नागरिक बनाने और देश हित के मामले में ही नहीं आत्मनिर्भता के मामले में भी सरकारी विद्यालय और सरस्वती शिशु मंदिर कुछ हद तक और गुरूकुल बहुत हद तक सफल हो रहे हैं। जबकि अंग्रेज़ी माध्यम स्कूल बच्चों को सिर्फ एक प्रोडक्ट बनाने तक सीमित हैं।