नेपाल में हिन्दू संस्कृति समाप्त करने के लिए अमेरिका और डीप स्टेट का सनसनीखेज षड्यंत्र अमेरिकी संसद में पांच लाख डालर अनास्था फैलाने के लिए खर्च करने का खुलासा

नेपाल में बामपंथी शासन समाप्त कर सनातन धर्म संस्कृति की राजशाही स्थापित करने के लिए जो आन्दोलन चरम पर था वो आजकल कुंद पड़ता दिखाई दे रहा है। कारण जान कर आप दंग रह जायेंगे।अमेरिकी संसद में नेपाल (Nepal in US Parliament) में हिन्दू धर्म के प्रति अनास्था फैलाने के लिए 05 लाख अमेरिकी डॉलर खर्च किए जाने का खुलासा हुआ है। यह खुलासा एक अमेरिकी सांसद (US parliamentarian) ने ही किया है।
अमेरिका के सांसद ब्रिआन मास्ट ने संसद में एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए बाइडेन प्रशासन से सवाल किया कि आखिर अमेरिकी सरकार नेपाल में धार्मिक अनास्था फैलाने के लिए करोड़ों रुपये क्यों खर्च कर रही है? सांसद मास्ट ने सरकार पर अमेरिकी जनता के टैक्स के पैसे का दुरुपयोग करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि नेपाल में सनातन धर्म को कमजोर करने और उसके खिलाफ अभियान चलाने के लिए सरकार ने 05 लाख डॉलर किसलिए खर्च किया? सांसद ने सरकार से सवाल किया कि किसी देश में उसके मौलिक धर्म संस्कृति को नष्ट करने के लिए 05 लाख डॉलर खर्च करना कितना सही है? 
काठमांडू (kathmandu)। अमेरिकी संसद में नेपाल (Nepal in US Parliament) में हिन्दू धर्म के प्रति अनास्था फैलाने के लिए 05 लाख अमेरिकी डॉलर खर्च किए जाने का खुलासा हुआ है। यह खुलासा एक अमेरिकी सांसद (US parliamentarian) ने ही किया है।
अमेरिका के सांसद ब्रिआन मास्ट ने संसद में एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए बाइडेन प्रशासन से सवाल किया कि आखिर अमेरिकी सरकार नेपाल में धार्मिक अनास्था फैलाने के लिए करोड़ों रुपये क्यों खर्च कर रही है? सांसद मास्ट ने सरकार पर अमेरिकी जनता के टैक्स के पैसे का दुरुपयोग करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि नेपाल में सनातन धर्म को कमजोर करने और उसके खिलाफ अभियान चलाने के लिए सरकार ने 05 लाख डॉलर किसलिए खर्च किया? सांसद ने सरकार से सवाल किया कि किसी देश में उसके मौलिक धर्म संस्कृति को नष्ट करने के लिए 05 लाख से अधिक डालर दिए। 
मास्ट के सवाल के जवाब में सहायक विदेश मंत्री रिचर्ड राहुल वर्मा ने कहा कि इस रिपोर्ट में कोई सच्चाई नहीं है। मंत्री ने सरकार का बचाव करते हुए कहा कि जिस धार्मिक अनास्था की बात रिपोर्ट में की गई है यह उस तरह का विषय नहीं है। मंत्री के जवाब से असंतुष्ट सांसद मास्ट ने नेपाल में किन संस्थाओं के जरिए पैसे खर्च किया गया और कितनी बार इस काम के लिए सरकारी यात्रा की गई उन सबका विवरण सार्वजनिक किया। मास्ट ने बताया कि बाइडेन प्रशासन ने ह्यूमनिस्ट इंटरनेशनल नामक गैर सरकारी संगठन के जरिए यह रकम खर्च किए जाने का खुलासा किया है। उन्होंने कहा कि इस संस्था की वेबसाइट में इस बात का विस्तृत विवरण है कि किस तरह से नेपाल में धार्मिक अनास्था फैलाने के लिए रकम खर्च किए गए।
इसकी पुष्टि शोशल मीडिया पर चल रही सनसनीखेज जानकारी पर भी वायरल है इसके अनुसार “नेपाल पर हाफ मिलियन डॉलर अमेरिका की बाइडन सरकार ने खर्च किये हैं वहां हिंदुओं से हिन्दू धर्म छुड़वाने को इसका रहस्योद्घाटन अमेरिकी कांग्रेस (संसद) में हुआ है।
अमेरिका की असली असलियत यही है इस वजह से उसपर कोई भरोसा नही करता है। और बाइडन तो बस मुखौटा है। असल काम डीप स्टेट का किया है ये। न सिर्फ डीप स्टेट बल्कि उन्ही का दूसरा मुखौटा चीन भी इसमें एक्टिव है कई साल से।
भूलें नहीं कि जिस दिन नेपाल से राजशाही का अंत हुआ था और वामपन्थ की सत्ता स्थापित हुई तो उन्होंने भारत से अपने शपथग्रहण समारोह में किसे बुलाया? सीताराम येचुरी जैसे चीनी पिल्ले को।
और इसने वहां क्या कहा था? कि हमे खुशी है कि दुनिया का एकमात्र हिन्दू राष्ट्र भी खत्म हो गया है।
और इससे पहले नेपाल से राजशाही खत्म करने का काम कौन कर रहा था?
भारत की रॉ
लेकिन किसके कहने पर? राजीव गांधी के कहने पर।
बहाना क्या बनाया गया? कि सोनिया को पशुपति नाथ नहीं घुसने दिया गया क्योंकि वो हिन्दू नहीं है।
लेकिन हकीकत क्या थी? कि राजीव द्वारा ये सब सोनिया नही बल्कि सीआईए (चीन भी) सब करवा रहा था और राजीव ने इसके लिए हमारी रॉ तक को विलन बना दिया जिस वजह से नेपाल की जनता भारत विरोधी और चीन समर्थक हो गयी और आज वहां सरकार से लेकर विपक्ष सब वामपन्थी है जिसमें से हमे ये देखना पड़ता है कि कौन कम वामपन्थी अर्थात कट्टर नही है और फिर उसकी सरकार वहां बनवानी पड़ती है चीन को नेपाल से दूर रखने को।
इसलिए मैं कहता हूँ कि डीप स्टेट का एक अकेला अमेरिका नही पाला हुआ बल्कि अमेरिका का दुश्मन दिखने वाला चीन सहित, भारत की कांग्रेस और दुनिया भर में ऐसे लोग सब डीप स्टेट के पाले हुए हैं।
पूरा कोल्ड वॉर डीप स्टेट ने चलवाया और दोनों अमेरिका और रूस उसके प्यादे थे या यूं कहें कि अमेरिका और रूस की सत्ता में बैठे उनके प्यादे थे।
वो तो अमेरिका में रिपब्लिकन इनके दुश्मन हैं या यूं कहें कि इनके गुलाम नही है इसलिए ये रिपब्लिकन से उसी तरह चिढ़ते हैं जैसे भारत में मोदी (भाजपा) से… और उधर ट्रम्प को ठिकाने लगाने की कोशिश हो या इधर मोदी को, ये पूरी कोशिश करते हैं।
वैसे भी भारत हो या अमेरिका या कोई और देश इन्होंने हर उसको ठिकाने लगाया है जो इनके खिलाफ रहता था फिर वो उन उन देशों का राष्ट्राध्यक्ष क्यों न हो।
इसी तरह रूस में वामपन्थ उखड़ने के बाद जब से पुतिन आया है वो इनका दुश्मन है इसलिए उसके खिलाफ भी मोर्चा खोले रहते हैं। नेतन्याहू भी इसी तरह है और थोड़ा बहुत जिनपिंग भी जबसे उसने अपने पंख फैलाने और दूसरा माओ बनने की कोशिश की है।
हालांकि आपने गौर किया हो तो जो ट्रम्प ने चीन के साथ इकोनॉमिक वॉर शुरू की थी, बाइडन के आते ही वो बन्द हो गयी और दोनों तरफ से बस बोलबचन चलते हैं जबकि कोरोना जैसा कांड भारत जैसा देश कर देता तो अब तक ये सारे मिलकर उस पर युद्ध छेड़ दिए होते।
और इसका कारण भी ये है कि डीप स्टेट के कहने पर ही कोरोना फैलाया गया था क्योंकि डीप स्टेट को एक तो पॉपुलेशन कंट्रोल करना है जो उनके एजेंडे में है और दूसरा कि सिर्फ हथियार और तेल से ही क्यों पैसा बनाया जाए जब फार्मा से भी पैसा बन सकता है।
और इस वजह से भारत जैसे देश मे फाइजर लॉबी इतनी एक्टिव थी लेकिन मोदी ने फाइजर को घुसने नही दिया जबकि कांग्रेस सहित सबने मोदी के खिलाफ इस बात पर मोर्चा खोल था, जिसकी खुन्नस में डीप स्टेट ने महीनों तक भारत की वैक्सिनों को WHO से मान्यता नही दिलवाई थी। उसी WHO (डीप स्टेट का अंग क्योंकि पूरा UN उनका है) जिसका चीफ चीनी पालतू भी था और इसने कोरोना को चीनी वायरस कहने पर अघोषित प्रतिबंध लगवा दिया था।
बाकी, आजकल तो खैर ये वापिस हथियार और आयल वॉर खेल रहे हैं। मिडल ईस्ट वॉर में भी और रूस यूक्रेन वॉर में भी और अब तो इन्होंने रूस में 26/11 करवा दिया है जिसका मतलब ये वॉर अब और बड़ी बनेगी और ये और पैसा छापेंगे।
अंत मे याद दिला दूं कि फाइजर को यहां घुसवाने की कोशिश की तरह ही इन्होंने रूस से तेल खरीदने से भी भारत को रोकना चाहा था लेकिन भारत ने इन्हें ठेंगा दिखाते हुए रूस से न सिर्फ तेल खरीदना जारी रखा बल्कि इतनी बड़ी मात्रा में खरीद लिया कि यहां से रिफाइन कर भारत तेल को यूरोप में भी एक्सपोर्ट कर रहा है और डॉलर छाप रहा है। इसपर जब अमेरिका (डीप स्टेट) ने यूरोपियन यूनियन के माध्यम से आपत्ति जतवाई तो जयशंकर ने कहा था कि वो तेल अब रूस का कहाँ से हो गया, वो तो भारत का है जैसे अगर कोई कच्चा माल कहीं से खरीदे और अपने यहां फाइनल प्रोडक्ट बना दे तो वो उस देश का प्रोडक्ट होता है, जिसका जवाब फिर EU दे नही पाया था।”