धर्म और पंथ का अन्तर नहीं समझेंगे तो धर्मांतरण की दुकानें भारतीय संस्कृति के लिए खतरे की घंटी

हरीश मैखुरी

चार करोड़ साल से भी अधिक प्राचीन, सनातन पद्धति ही धर्म यानी विज्ञान सम्मत सत्य हैं, दूसरा कोई धर्म है ही नहीं जो प्रकृति के नियमों के अनुरूप हो और समूचे विश्व को एक ही कुटुम्ब मानता हो। गुरु गोविंद सिंह की सिक्ख (250 वर्ष पूर्व) और शंकराचार्य की नागा साधू (1400वर्ष पूर्व) तो हमारी सनातन सुरक्षा पद्धति के अभिन्न अंग हैं, ये पंथ नहीं अपितु सनातन धर्म ही हैं। अखंड भारत में सनातन पद्धति में शैव, वैष्णव, व शाक्त मत रहे हैं बाद में सनातन धर्म में ही महाबीर जैन (2700 वर्ष पूर्व)  बुद्ध (2500 वर्ष पूर्व) बौद्ध, पंथ का भी आविर्भाव हुआ। जो भी गुरू पीर फकीरों नबी के अनुचर या मार्गी या पंथी या पिछलग्गू, या रैडिक्लाईज्ड उन्हें  पंथ कहते हैं धर्म नहीं। विदेशों में तो सदियों तक कबीले और कुछ सभ्यताएं थी लेकिन सनातन धर्म जैसी कोई जीवन पद्धति नहीं मिलती है। हां हाल की सदियों में वैटिकन में कुंवारी मरियम से पैदा ईसा (2100 वर्ष पूर्व) और इनके पंथी इसाई, दुर्दांत अरबिया कबीलों में पैदा हुए मूसा (1450वर्ष पूर्व ) और उनके फाॅलोअर मुस्लिम, कहलाते हैं। यदि धर्म और पंथ का यही अन्तर नहीं समझेंगे तो धर्मांतरण की दुकानें भारतीय संस्कृति के लिए खतरे की घंंटी बनी रहेंगी, हमारे भोले सीधे लोग धर्मांतरण की चपेट में आते रहेंगे, जैसे आज हमारे देश में करोड़ों कन्वर्टेड मुस्लिम और इसाई रहते हैं जो पहले हिन्दइ थे। इसलिए खासकर गो भक्षक बहुरूपियों को पहचानने और इनसे सावधान रहने की शख्त आवश्यकता तो है ही, इनकी धर्मांतरण की दुकान पर भी कानूनी शिकंजा कसने की आवश्यकता है।