गुरू पूर्णिमा : अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने और वंधन मुक्त करने की विद्या

आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा कहते हैं। इस दिन गुरु पूजा का विधान है।

गुरु पूर्णिमा के महत्व का पौराणिक कारण:

1. वेद और पुराणों के रचयिता महर्षि वेदव्यास का जन्मदिन है। किसी के लिए भी, वेद व्यास जी का स्थान सभी गुरुओं में सर्वप्रथम है इसलिए इसका विशेष महत्व है।

2. देवशयनी एकादशी के बाद चौमासा में साधु संतो का भ्रमण करना निषेध है इसलिए सभी साधु संत अपने अपने आश्रमों में रहते थे और गुरुओं कि उपलब्धता के कारण गुरुकुल में विद्याध्ययन के लिए चौमासा सबसे उचित समय होता था। इस पूर्णिमा से गुरुकुल में विद्याध्ययन की शुरुआत होती थी।शास्त्रों में गु का अर्थ बताया गया है- अंधकार या मूल अज्ञान और रु का का अर्थ किया गया है- उसका निरोधक। गुरु को गुरु इसलिए कहा जाता है कि वह अज्ञान तिमिर का ज्ञानांजन-शलाका से निवारण कर देता है। अर्थात दो अक्षरों से मिलकर बने ‘गुरु’ शब्द का अर्थ – प्रथम अक्षर ‘गु का अर्थ- ‘अंधकार’ होता है जबकि दूसरे अक्षर ‘रु’ का अर्थ- ‘उसको हटाने वाला’ होता है।

अर्थात् अंधकार को हटाकर प्रकाश की ओर ले जाने वाले को ‘गुरु’ कहा जाता है। गुरु वह है जो अज्ञान का निराकरण करता है अथवा गुरु वह है जो धर्म का मार्ग दिखाता है। श्री सद्गुरु आत्म-ज्योति पर पड़े हुए विधान को हटा देता है।गुरु का अर्थ है- ऐसी मुक्त हो गई चेतनाएं, जो ठीक बुद्ध और कृष्ण जैसी हैं, लेकिन तुम्हारी जगह खड़ी हैं, तुम्हारे पास हैं।

कुछ थोड़ा-सा ऋण उनका बाकी है- शरीर का, उसके चुकने की प्रतीक्षा है। बहुत थोड़ा समय है।

… गुरु एक पैराडॉक्स है, एक विरोधाभास है : वह तुम्हारे बीच और तुमसे बहुत दूर, वह तुम जैसा और तुम जैसा बिलकुल नहीं, वह कारागृह में और परम स्वतंत्र।

अगर तुम्हारे पास थोड़ी सी भी समझ हो तो इन थोड़े क्षणों का तुम उपयोग कर लेना, क्योंकि थोड़ी देर और है वह, फिर तुम लाख चिल्लाओगे सदियों-सदियों तक, तो भी तुम उसका उपयोग न कर सकोगे

चित्र:- ज्योतिषपीठ के शंकराचार्य माधवाश्रम जी महाराज // जय श्री बदरीविशाल\\

अज्ञानतिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जनशलाकया 

चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः।
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्बिष्णु: गुरुर्देवो महेश्वर: ।
गुरु:साक्षात परब्रह्म तस्मै श्रीगुरुवे नमः।

6 जुलाई 2020 दिन सोमवार से चन्द्र मास के अनुसार पवित्र सावन मास का प्रारंभ हो रहा है।
ज्यादातर भू भाग में चन्द्र मास से ही महीनों की गणना की जाती है जबकि उत्तराखंड, नेपाल आदि भू भाग में सौर मास के अनुसार।
चन्द्र मास के अनुसार सावन, 6 जुलाई 2020 को श्रावण कृष्ण पक्ष प्रतिपदा से प्रारंभ होगा। इस माह में 5 सोमवार प्राप्त होंगें और 3 अगस्त 2020 दिन सोमवार श्रावण पूर्णिमा रक्षा बन्धन के दिन सावन मास का विश्राम होगा।
*उत्तराखंड* की परम्परा अनुसार 16 जुलाई 2020 वृहपतिवार कर्क संक्रान्ति (हरेला) से प्रारंभ होकर 14 अगस्त शुक्रवार को सिंह संक्रान्ति (घी सक्रांति) के दिन सावन मास का विश्राम होगा।
सावन मास में भगवान शंकर जी की पूजा का विशेष महत्व होता है। भगवान शंकर की पूजा आप अपने घर में और शिवालय में करना श्रेष्ठ होता है। घर में, मिट्टी से बने पार्थिव शिवलिंग या नर्मदेश्वर शिवलिंग में पूजन कर सकते हैं।

भगवान शिव सबसे शीघ्र फल देने वाले माने जाते हैं और श्रद्धा से रुद्राभिषेक करने से परिवार के सारे कष्ट दूर होते है और सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। हर हर महादेव।। 

*आचार्य गोपाल दत्त सती*
(ज्योतिषाचार्य)
श्री बद्रीनाथ ज्योतिष केन्द्र
इंदिरा नगर,लखनऊ।