पहाड़ों पर ही जाना था तो शिमला नैनीताल जाते, लद्दाख के निम्मू बेस कैसे पहुंच गए?

विवाद सीमा पर, युद्ध घर के अन्दर और बार्डर से मोदी का ‘सुदर्शन चक्र’ संदेश

 “पहाड़ों पर ही जाना था तो शिमला नैनीताल जाते, लद्दाख के निम्मू बेस कैसे पहुंच गए ?” 

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अकेला कान्त लिखते हैं :- सोशल मीडिया में देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लेह लद्दाख से कल आयी इन तस्वीरों को कुछ मन्दबुद्धि लोग झूठी बता रहे हैं और प्रधानमंत्री के इस दौरे को भी प्रायोजित बता रहे हैं ….देखिये इस देश में जन्मे कुछ नकारात्मक भावना से लबालब लोग जब अपनी आँखों पर डर ,अविस्वास ,भ्रम और अपने राजनीतिक भविश्य के अंधकार का चौला ओढ़ लेते है तो फलस्वरूप ऐसे ही कुत्सित विचारों का उदभव होता है .यानि सत्ता से वंचित लोगों और उनके समर्थकों ने अगले पांच साल भी अपनी हार स्वीकार कर ली है ,अपने प्रधानमंत्री के प्रति इतनी द्वेष जातीय भावना और अपने देश की सेना के प्रति ऐसी घटिया सोच और अविस्वास का दुष्प्रचार करना इनका दैनिक कर्म बन गया है ,जब इनसे किसी अच्छे कार्य की तारीफ ही नहीं होती है तो ये फिर देश की जनता के बीच में अपनी ऐसी ही नकारात्मक फसल उगाकर काटना चाहते हैं ,कुछ लोग इस संकटकाल में भी चीन और पाकिस्तान का समर्थन करते नजर आ रहे हैं .रोटी भारत में खाना और दुश्मनों के गुण गाना ,ऐसी भी कौन सी मजबूरी हो गई है इन लोगों की ..जब भारत कोरोना से जंग लड़ रहा है और अपनी सेना सीमाओं की रक्षा में लगी है तो ये नकारात्मक लोग देश में अपनी घटिया सोच का ज़हर बो रहे है .जब सेना के आला अधिकारी ,रक्षा प्रमुख अपने प्रधानमंत्री के साथ देश के जवानों का हौसला बढा रहे है तो ये कर्मजले ,सत्तासुख के लिए बेचेंन लोग बजाय राष्ट्रभावना के साथ जाने के उल्टा चल रहे है ,तो ऐसी दशा में ये राष्ट्रहित को तिलांजलि देकर राष्ट्रद्रोह ही कर रहे है ,क्या सेना के शौर्य पर सवाल उठाकर ये दिल्ली में सरकार बना पायेंगे ? शायद कदापि नहीं..अगर इनका आचरण ऐसा ही रहा तो क्या भारत की जनता इन्हें माफ कर पायेगी शायद नहीं…प्रधानमंत्री बॉर्डर पर खड़े है ये कह रहे है चीन का नाम नहीं लिया ,फौजी देश की सुरक्षा में तल्लींन हैं ये कह रहे हैं सबूत लाओ ,..इनको हर जगह सबूत चाहिये लेकिन संयम नहीं ,मोदी की सत्ता तो इनके लिए ज़हर हो गई और मोदी का भय इतना हो गया है कि इन्हें अपने राजनितिक भविष्य की चिंता सताने लगी है , देश के विपक्ष का कर्तव्य सरकार के अच्छे कार्यों की सराहना करना भी है लेकिन ये तो मात्र अपनी जातीय दुश्मनी निकालने पर आमादा हैं ,ऊपर से भारत की फौज का भी मनोबल तोड़ रहे है ऐसी स्थिति में सत्ता में आना इनके लिए मुंगेरीलाल के हसीं न सपनों के जैसा ही प्रतीत होता है,ऐसा नहीं है कि विपक्ष के पास अच्छे लोग नहीं हैं ,बहुत सारे लोग हैं लेकिन किसी कारण वश खामोश हैं ,चुप हैं लेकिन इनकी चुप्पी इनके अपने राजनीतिकभविष्य के साथ साथ उनकी अपनी पार्टी के लिए भी एक घोर संकट का इशारा है ,इसलिये सभी विपक्ष की पार्टियों के समझदार लोग इस संकटकाल में उनके लोगों की भ्रामक ,दिशाहीन और नकारात्मक बयानबाजी पर अविलम्ब रोक लगाये ,ये उनके ही हित में है।

डॉ वेद प्रताप वैदिक लिखते हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अचानक लद्दाख का दौरा कर डाला। अचानक इसलिए कि यह दौरा रक्षामंत्री राजनाथसिंह को करना था। इस दौरे को रद्द करके मोदी स्वयं लद्दाख पहुंच गए। विपक्षी दल इस दौरे पर विचित्र सवाल खड़े कर रहे हैं। कांग्रेसी नेता कह रहे हैं कि 1971 में इंदिरा गांधी ने भी लद्दाख का दौरा किया था लेकिन उसके बाद उन्होंने पाकिस्तान के दो टुकड़े कर दिए। अब मोदी क्या करेंगे ? कांग्रेसी नेता आखिर चाहते क्या हैं ? क्या भारत चीन पर हमला कर दे ? तिब्बत को आजाद कर दे ? अक्साई चिन को चीन से छीन ले ? सिंक्यांग के मुसलमानों को चीन के चंगुल से बाहर निकाल ले ? सबसे दुखद बात यह है कि भारत और चीन के बीच तो समझौता-वार्ता चल रही है लेकिन भाजपा और कांग्रेस के बीच वाग्युद्ध चल रहा है। कांग्रेस के नेता यह क्यों नहीं मानते कि मोदी के इस लद्दाख-दौरे से हमारे सैनिकों का मनोबल बढ़ेगा ? मुझे नहीं लगता कि मोदी लद्दाख इसलिए गए है कि वे चीन को युद्ध का संदेश देना चाहते हैं। उनका उद्देश्य हमारी सेना और देश को यह बताना है कि हमारे सैनिकों की जो कुर्बानियां हुई हैं, उस पर उन्हें गहरा दुख है। उन्होंने अपने भाषण में चाहे चीन का नाम नहीं लिया लेकिन अपने फौजियों को इतना प्रेरणादायक और मार्मिक भाषण दिया कि वैसा भाषण आज तक शायद किसी भी अन्य प्रधानमंत्री ने नहीं दिया। मोदी पर यह आरोप लगाया जा सकता है कि वे अत्यंत प्रचारप्रिय प्रधानमंत्री हैं। इस लद्दाख दौरे को वे अपनी छवि बनाने के लिए भुना रहे हैं लेकिन भारत में कौन प्रधानमंत्री ऐसा रहा है (एक-दो अपवादों को छोड़कर), जो अपने मंत्रियों और पार्टी-नेताओं को अपने से ज्यादा चमकने देता है ? यह दौरा रक्षामंत्री राजनाथसिंह और गृहमंत्री अमित शाह भी कर सकते थे लेकिन मोदी के करने से चीन को भी एक नरम-सा संदेश जा सकता है। वह यह कि रुसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को बधाई देने और अरबों रु. के रुसी हथियारों के सौदे के बाद मोदी का लद्दाख पहुंचना चीनी नेतृत्व को यह संदेश देता है कि सीमा-विवाद को तूल देना ठीक नहीं होगा। मोदी के इस लद्दाख-दौरे को भारत-चीन युद्ध का पूर्वाभ्यास कहना अनुचित होगा। अगर आज युद्ध की ज़रा-भी संभावना होती तो क्या चीन चुप बैठता ? चीन के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री ने मुंह पर मास्क क्यों लगा रखा है ? वे भारत के विरुद्ध एक शब्द भी क्यों नहीं बोल रहे हैं ? क्योंकि भारत और चीन, दोनों परमाणुशक्ति राष्ट्र आज इस स्थिति में नहीं हैं कि कामचलाऊ सीमा-रेखा के आर-पार की थोड़ी-सी जमीन के लिए लड़ मरें।

कौशल की एक कविता है
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इस आदमी को क्या हो गया है ?
भला मातृभूमि के प्रति ऐसी दीवानगी भी कोई दिखाता है ?
पहले अपनी जान जोखिम में डालकर अफगानिस्तान से स्वदेश लौटते बीच रास्ते अपना विमान लाहौर मुड़वा दिया !
सीधे जा पहुंचे कट्टर दुश्मन देश के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के घर !
और अब चुपचाप युद्ध के हालात में सीधे भारत चीन के बार्डर पर ?
ऐसा भी कभी होता है ?
कभी होली मनाने बॉर्डर पर !
कभी दिवाली मनाने सीमाओं पर ?
भला राष्ट्राध्यक्षों के साथ कोई बनारस में गंगा के घाटों पर , गुजरात में साबरमती के किनारे और तमिलनाडु में महाबलीपुरम जाता है ?
यह भी कोई बात हुई कि कभी हायडी मोदी और कभी नमस्ते भारत ?
कभी इस देश में भारतवंशियों से मुलाकात तो कभी उस देश में बातचीत ?
अरे सीधे सीधे दिल्ली में बैठो , बातें करो और वापस भेजो ?
यह क्या बात हुई कि झूला झुलाओ आरती दिखाओ और आम के बागों में बिठाकर चाय पिलाओ ?
यह कौनसी बात है कि चीन का नाम भी नहीं लिया और उसे विस्तारवादी बताकर नंगा कर दिया ,,,
अच्छी बात नहीं कि घायल जवानों का हालचाल पूछने लेह के अस्पताल पहुंच गए ?
पीएम दिल्ली के दरबारों में बैठते हैं , रेगिस्तानों और चट्टानों में वक्त नहीं बिताते ,,,
अरे पहाड़ों पर ही जाना था तो शिमला नैनीताल जाते? लद्दाख के निम्मू बेस कैसे पहुंच गए ?
भारत में उनको परेशानी है कि चीन का नाम क्यौं नहीं लिया । अरे भाई नाम लिया नहीं जाता , बिना लिए उन तक पहुंच जाता है । देखा न ! जिनपिंग , चीन के विदेश मंत्रालय और भारत में चीनी दूतावास तक बात पहुंच गई । दोनों जगह से मोदी के भाषण पर प्रेस बयान जारी किए गए । मतलब मोदी का लद्दाख जाना और चीन का नाम न लेना भी वहीं पहुंचा जहां ठिकाना था । चीनी विदेश मंत्रालय को बड़ी सधी हुई प्रतिक्रिया देने पर मजबूर होना पड़ा । 
भारत ने कूटनैतिक मोर्चे और विश्व राजनयन में चीन को मात दे दी है । गलवान घाटी में भी चीन को करारा सबक सिखाया गया है । अब मोदी के जाने से फौज मोदी की जबरदस्त फैन हो गई है । युद्धों में सेनापति और सेनानायक का बड़ा महत्व होता है । सच कहें तो संकट के ऐसे अवसरों पर सेनापति के कपड़े भी मायने रखते हैं । अंदाजेबयां और वाणी की गरज मायने रखते हैं । मोदी के इस अचानक फैसले ने चीन को बुरी तरह उलझा दिया है । उससे न तो निगलते बने और न उगलते ।
देश के तमाम विपक्ष ने संकट की इस घड़ी में मोदी सरकार को पूर्ण समर्थन दिया है । मुलायम , मायावती , चंद्रबाबू , ममता , स्टालिन , देवेगौड़ा , उद्धव , शरद पंवार आदि सभी प्रधानमंत्री के साथ खड़े हैं । बुरी तरह आग केवल उन्हें लगी है जिनसे दरबार छिना है और जिनकी किस्मत ही  मरणधर्मा हो चली है । उन्हें उनके हाल पर छोड़ते हैं । आइए , देश के लिए सरकार के साथ खड़े हो जाएं । (संकलन :-हरीश मैखुरी)