युवा पीढ़ी की आदर्श : अपनी सादगी और संस्कृति संरक्षण के कारण चर्चा में है वरुण और नीलम की शादी

इस शादी समारोह जिसमें पटाखों के धमाकों की गूंज नहीं थी। बैंड बाजे का कान -फोड़ू म्यूजिक भी नहीं था । न डीजे की धमक थी न शराब थी और न कोई हो हल्ला । बेहद सरल सहज और शालीनता के साथ एक दम वैदिक विधि – विधान से यह कार्यक्रम संपन्न हुआ।
पिंडर घाटी के समाजसेवी नारायणबगड़ निवासी डॉ हरपाल सिंह नेगी के पुत्र वरुण का विवाह शुक्रीसैंण के शिक्षक श्री भरतसिंह रावत की पुत्री नीलम के साथ हुआ । मैं भी यहाँ घराती- बाराती के रुप में आमंत्रित था।
यह बारात गढवाली लोक वाद्ययंत्र ढोल – दमाऊ व मसक बाजा के साथ जब दुल्हन के घर पहुँची तो दशकों पुरानी गढवाली शादी का सुखद दृश्य लोगों के सामने अवतरित होने लगा । वर नारायण धोती – कुर्ता तथा बाराती गढवाली टोपी में थे। एक ज़माने में बजगीर ( दोल वादक) अपनी कौशलता का प्रदर्शन करते थे। वहाँ यही हुआ । दोनों पक्षों के बजगीरो के बीच कई देर तक ढोल सागर की तालों का प्रदर्शन हुआ। सामूहिक स्वतिवाचन के साथ बाध्यरातियों का आदर हुआ। इसके उपरांत दोनों पक्षों के पंडितों द्वारा गोत्रोच्चार किया गया जिसे लोग बड़ी तन्मयता से सुन रहे थे। मंगलगीतों की स्वरलहरियां गूंजने लगीं। कोल्डड्रिंक के स्थान पर लोकल पेय सर्व किया गया। सैरुला ब्राह्मणों द्वारा स्वादिष्ट दाल भात का वितरण बारातियों को किया गया।
धूलिअग्र, महासंकल्प, छोलिया, वेदी पूजन, विवाह संस्कार एवम् गायदान बड़े विधि विधान से हुए। तदपुरांत वर और वधू द्वारा एक फलदार वृक्ष भी लगाया गया। आज जहाँ भौतिकता की अंधी दौड़ में हम पाश्चात्य संस्कृति का अनुसरण कर रहे हैं और अपनी मौलिकता और गौरवमयी परंपरा की उपेक्षा कर रहे हैं । ऐसे में यह विवाह समारोह एक अनुकरणीय उदाहरण पेश करते है! एक अनुकरणीय उदाहरण पेश करने के लिए दोनों पक्ष बढ़ाई के पात्र हैं। ज़िन्दगी अपने सांस्कृतिक मान्यताओं और श्रेष्ठ परम्परागत संस्कृति से जीनी चहिये,,,
औरो के कहने पर तो सर्कस में शेर भी नाचता है…👌आलेख ✍️ मंगला कोठियाल