श्रावणी पूर्णिमा ऋषि तर्पणी भद्रा काल और रक्षा बंधन का शुभ मुहूर्त

श्रावणी पूर्णिमा क्या केवल रक्षा बंधन तक सीमित है,या और भी हैं, इसके राज़।
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रक्षा बंधन क्यों नहीं मनाया जाता भद्रा काल में।
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रक्षाबंधन का शुभ मुहूर्त क्या है ?
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शशि शर्मा:-
श्रावण मास की पूर्णिमा सनातन धर्मियों और हिन्दू ब्राह्मणों के लिए महत्वपूर्ण होती है, क्योंकि इस दिन को ब्राह्मण अपना वर्ष भर का पुराना जनेऊ उतार, नये जनेऊ को धारण कर नूतन जन्म के पर्व के रूप में मनाते हैं,उपनयन और वेदारंभ संस्कार भी इसी दिन किया जाता है।
वैदिक परंपरा के अनुसार वेदपाठी ब्राह्मणों के लिए श्रावण मास की पूर्णिमा सबसे बड़ा त्यौहार है। इसी दिन अपने ज्ञात अज्ञात पूर्वजों और ऋषियों को तर्पण देने का विधान है शास्त्रों के अनुसार इस दिन दिया गया तर्पण और सूर्य अर्घ्य अक्षय होता है उसका कभी क्षय नहीं होता और वह अनन्तकाल तक फलदायी होता है। 

वर्ष भर यजमानों के लिए कर्मकांड यज्ञ, हवन आदि करने वाले ब्रहाम्ण इस दिन खुद अपनी आत्मशुद्धि के लिए अभिषेक और हवन करते हैं।
इस दिन रक्षाबंधन का त्यौहार तो मनाया जाता है लेकिन साथ ही इस दिन श्रावणी उपाकर्म भी किया जाता है। श्रावणी उपाकर्म को संस्कृत दिवस और ब्रहाम्ण दिवस के रूप में मनाया जाता है।
इस दिन दशस्नान,का विधान है,इस पर्व को ब्राह्मणों द्वारा सामूहिक रूप से पवित्र नदी के घाट पर मनाया जाता है। इस दिन स्नान और आत्म शुद्धि कर पितरों और खुद के कल्याण के लिए आहुतियां दी जाती हैं

ऐसा क्यों होता है इस बारे में बता रहे हैं हरिद्वार के भारतीय प्राच्या विद्या सोसाइटी के प्रमुख डॉक्टर प्रतीक मिश्रपुरी, उन्होंने कहा श्रावण ब्राह्मणों का मुख्य त्यौहार उपा कर्म है। इस दिन प्रत्येक ब्राह्मण पूरे वर्ष में किए गए ज्ञात अज्ञात पापो का शमन करते हुए समाज की रक्षा के लिए रक्षा सूत्र का निर्माण करता है। ब्राह्मण समाज ने सबसे कठिन समय अपने लिए ही चुना है। बरसात का काल कठिन समय होऐ है क्षत्रियों के लिए दशहरा है बहुत सुंदर मौसम होता है, वैश्य समाज के लिए दीवाली बहुत सुंदर मौसम होता है। और अन्य जातियों के लिए होली का त्यौहार बहुत ही अच्छे मौसम में होता है ।
चारों वेदों के ब्रह्मण अलग अलग हे ऋग्वेद ब्राह्मणों के लिए उपा कर्म श्रवण शुक्ल पंचमी, श्रवण शुक्ल में हस्त नक्षत्र, ओर श्रावण शुक्ल में श्रवण नक्षत्र, ये तीनों हैं, वो जबकि यजुर्वेद के ब्राह्मणों के लिए श्रावण पूर्णिमा, श्रावण शुक्ल पंचमी, श्रावण शुक्ल में हस्त नक्षत्र परन्तु सभी विद्वानों ने श्रावण पूर्णिमा को ही सर्वोत्तम कहा हैे। यदि उस दिन ग्रहण हो तो तो दूसरी तिथियों में हो सकता है। इसके बाद सामवेद ब्राह्मणों के लिए भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष में हस्त नक्षत्र में किया जाता है। इस दिन हेमाद्रि संकल्प के द्वारा समस्त पापो का विनाश किया जाता है। ये संकल्प ही बहुत ही लंबा होता है। इस संकल्प में पूरे विश्व का वर्णन है समस्त वन, अरण्य, नदियों, पुरियो, नागो, दीपो, राज्यो, देवताओं सभी का वर्णन हे। इसके बाद कई तरह का स्नान होता है इस पूरे कर्म काण्ड में 4 घंटे लग जाते हैैं, उसके बाद भद्रा रहित समय में रक्षा बांधी जाती है, बारह प्रकार की भद्रा होती है, धान्य, दधी मुखी, भद्रा, महामारी, खरा नना, काल रात्रि, महा रुद्रा, विस्टी, कुल पुत्रिका, भैरवी, महा काली, असुर छ य करी, इन बारह नामों का उच्चारण करते हुए भी भद्रा में रक्षा बंधन हो सकता है। परन्तु मेरे विचार से भद्रा में रक्षा बंधन
नही करना चाहिए, इस बार रक्षा बंधन 3 अगस्त को सोमवार के दिन सूर्य के नक्षत्र में आएगी। इस दिन भद्रा प्रात 9.30तक होगी उसके बाद रक्षा बंधन कभी भी कर सकते हे।
इसमें भी 11.59 से 12.47 तक अभिजीत योग उत्तराखंड में होगा इसमें रक्षा सूत्र बांधने से बहुत शुभ होगा।
कुछ लोग जल्दी चाहते हैं तो वो 9.30 के बाद 10.43 तक भी शुभ की चौघड़िया में रक्षा बंधन कर सकते हैं।

वैदिक शास्त्रों की ये मान्यता है कि भद्रा काल में रक्षा बंधन नहीं किया जाता इस बारे में newsok24 ने हरकी पैड़ी के पंडा आचार्य नितिन शुक्ला ने कहा रक्षाबंधन के दिन यानि 3 अगस्त को सुबह 9 बजकर 29 मिनट तक भद्रा काल रहेगा,इस समय राखी नहीं बांधनी चाहिए,कहा जाता है कि रावण की बहन ने भद्रा काल में ही रावण को राखी बांधी थी, जिसके कारण रावण का विनाश हो गया।

राखी का पर्व सुबह 09:30 बजे से आरंभ होगा। दोपहर में 01:35 बजे से लेकर शाम को 04:35 बजे तक का समय राखी बांधने के लिए अति शुभ है। इसके बाद शाम को 07:30 बजे से 09:30 बजे तक राखी बांधने के लिए मुहूर्त शुभ रहेगा।(साभार-ओके24)

देहरादून

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*रक्षाबंधन और उसका पौराणिक महत्व*

 दिनांक 3 अगस्त 2020 सोमवार, श्रावण मास शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा जिसको हम लोग पावन रक्षाबंधन पर्व के रूप में जानते हैं इसको श्रावणी उपाकर्म भी कहा जाता है जिसमें जो लोग जनेऊ का पूजन करके उसको पहनने या जो लोग पहने हुए होते है उस दिन नया जनेऊ धारण करने का विधान है।
रक्षा बंधन का मुहूर्त प्रातः काल 9 बजकर 28 मिनट तक भद्रा रहेगी जिसके बाद रक्षा बंधन का शुभ मुहूर्त प्रारभ होगा। पूर्णमासी रात्रि 9 बजकर 31 मिनट तक रहेगी अतः व्रत भी उसी दिन होगा।
कई लोगो ने पूछा है कि उस दिन सावन का सोमवार भी है तो व्रत कर सकते हैं कि नहीं। जो लोग व्रत कर रहे हैं, अपना व्रत पूर्ण करें। 2 व्रत एक साथ में हैं। सोमवार और पूर्णिमा का।
रक्षा बंधन के सम्बधन में पुराणों में अनेक कथाएं आती है, जिसमें से कुछ आपको बताता हूँ।
*भविष्‍य पुराण की कथा*
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार धरती की रक्षा के लिए देवता और असुरों में 12 साल तक युद्ध चला लेकिन देवताओं को विजय नहीं मिली। तब देवगुरु बृहस्पति ने इंद्र की पत्नी शची को श्राणण शुक्ल की पूर्णिमा के दिन व्रत रखकर रक्षासूत्र बनाने के लिए कहा। इंद्रणी ने वह रक्षा सूत्र इंद्र की दाहिनी कलाई में बांधा और फिर देवताओं ने असुरों को पराजित कर विजय हासिल की।

*वामन अवतार कथा*
एक बार भगवान विष्णु असुरों के राजा बलि के दान धर्म से बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने बलि से वरदान मांगने के लिए कहा। तब बलि ने उनसे पाताल लोक में बसने का वरदान मांगा। भगवान विष्णु के पाताल लोक चले जाने से माता लक्ष्मी और सभी देवता बहुत चिंतित हुए। तब मां ने लक्ष्मी गरीब स्त्री के वेश में पाताल जाकर बलि को राखी बांधा और भगवान विष्णु को वहां से वापस ले जाने का वचन मांगा। उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा थी। तभी से रक्षाबंधन मनाया जाता है।

*द्रौपदी और श्रीकृष्‍ण की कथा*
महाभारत काल में कृष्ण और द्रोपदी को भाई बहन माना जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार शिशुपाल का वध करते समय भगवान कृष्ण की तर्जनी उंगली कट गयी थी। तब द्रोपदी ने अपनी साड़ी फाड़कर उनकी उंगली पर पट्टी बांधा था। उस दिन श्रावण पूर्णिमा का दिन था। तभी से रक्षाबंधन श्रावण पूर्णिमा को मनाया जाता है। कृष्ण ने एक भाई का फर्ज निभाते हुए चीर हरण के समय द्रोपदी की रक्षा की थी।
*भविष्यपुराण* के अनुसार इन्द्राणी द्वारा निर्मित रक्षासूत्र को देवगुरु बृहस्पति ने इन्द्र के हाथों बांधते हुए निम्नलिखित स्वस्तिवाचन किया (यह श्लोक रक्षाबन्धन का अभीष्ट मन्त्र है)-

येन बद्धो बलिराजा दानवेन्द्रो महाबल:।
तेन त्वामपि बध्नामि रक्षे मा चल मा चल ॥
इस श्लोक का हिन्दी भावार्थ है- “जिस रक्षासूत्र से महान शक्तिशाली दानवेन्द्र राजा बलि को बाँधा गया था, उसी सूत्र से मैं तुझे बाँधता हूँ। हे रक्षे (राखी)! तुम अडिग रहना (तू अपने संकल्प से कभी भी विचलित न हो।)”
*विष्णु पुराण* के एक प्रसंग में कहा गया है कि श्रावण की पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु ने हयग्रीव के रूप में अवतार लेकर वेदों को ब्रह्मा के लिये फिर से प्राप्त किया था। हयग्रीव को विद्या और बुद्धि का प्रतीक माना जाता है।
इसे रक्षाबंधन भी कहते हैं। इस दिन यजुर्वेदी द्विजों का उपाकर्म होता है। उत्सर्जन, स्नान-विधि, ॠषि-तपंणादि करके नवीन यज्ञोपवीत धारण किया जाता है। ब्राह्मणों का यह सर्वोपरि त्यौहार माना जाता है।
उत्तराखंड में रक्षा बंधन का पर्व ब्राह्मण के द्वारा अपने यजमान के यहाँ जाकर अपने घर में पूजा की गई रक्षा सूत्र को यजमानों को सपरिवार बाधा जाता है एवं नया जनेऊ पहनने को दिया जाता है और यह सिलसिला श्री कृष्ण जन्माष्टमी के दिन तक गाँव गाँव अपने यजमानों को रक्षा सूत्र बाँधकर मनाया जाता है,
आप सभी मित्रों को रक्षाबंधन के पावन पर्व की बहुत बहुत मंगल शुभकामनाएं।
*आचार्य गोपाल दत्त सती(ज्योतिषाचार्य)*
श्री बद्रीनाथ ज्योतिष केंद,
इंदिरा नगर, लखनऊ।💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐