गौरय्या नहीं बची तो इंसान भी समाप्त हो जायेंगे?

हरीश मैखुरी

   गौरय्या को उत्तराखंड में ‘घ्यनुड़ी’ कहा जाता है। आपको यह जानकर बड़ा आश्चर्य होगा कि गौरैया मनुष्यों के आसपास रहना पसंद करती है वह मनुष्यों के घरों में छोटे-छोटे छेद ढूंढ कर उन्हीं में अपना घोंसला तैयार करती है यही नहीं मनुष्यों के लिए गौरैया प्रकृति की ओर से सफाई कर्मी है। यह घरों के आसपास के छोटे-मोटे कीड़े मकोड़े खा जाती है जिससे घर में परजीवियों का वास नहीं रहता और बड़े जीवो के आने पर यह सब को अलर्ट करती है घर में सांप छछूंदर बन बिल्ली सियार आदि घुसने पर गौरैया शोर मचा कर आप को जागृत करती है आपको बता दें कि 1958 में चीन की वामपंथी सरकार ने फसलों को नुकसान पहुंचाने की दृष्टि से गौरैया आदि चिड़ियों को मारने का सरकारी फरमान जारी किया स्कूलों में भी बच्चों को चिड़िया मारने की ट्रेनिंग दी गई और जो चिड़िया मार कर सबसे ज्यादा चिड़िया मार कर लाता उस को पुरस्कृत किया गया 1 साल में ही लगभग चीन की सभी चिड़िया ने समाप्त हो गई उसके अगले साल से चीन में चावल आदि की फसलों पर कीड़े मकोड़ों लगने की वजह से बर्बाद हो गई थी और लगभग आधी रह गई चीन में भुखमरी की नौबत आ गई। तब चीन सरकार को पता चला कि गौरैया जैसी छोटी छोट चिड़ियाएं फसलों के कीड़े मकोड़े खा कर उनकी निगरानी करती थी और अनाज दुगना पैदा होता था। भारत में दुनिया की सबसे ज्यादा गौरैया पाई जाती है क्योंकि भारत में घरों में गौरैया के लिए घरौंदा बनाना हमारी संस्कृति का अभिन्न अंग था हम पुराने जमाने में मिट्टी पत्थर के घरों में गौरैया के लिए आवश्यक रूप से छेद छोड़ते थे। लेकिन अब सीमेंट के घरों में गौरैया के लिए छेद नहीं छोड़े जाते अब भले ही हमारे घर पक्के और बड़े हो गए हैं लेकिन हमारे दिल छोटे हो गए हैं।                 

         इसीलिए अब गौरैया का जीवन संकट में है अंतर्राष्ट्रीय फौरईवर नेचर सोसायटी की शोध में पाया गया कि यदि मनुष्य ने इन छोटी छोटी गौरर्याओं को बचाने कोई कदम नही उठाए तो अगले कुछ १०-१५ वर्षों में गौरर्या विश्व से समाप्त हो जाऐंगी ।वैज्ञानिकों के शोध में पाया गया है कि यदि गौरैया धरती से समाप्त हो जाती है तो रोग फैलाने वाले कीड़े मकोड़े विकसित हो जाएंगे और जब गौरय्या जैसी एक बीच की एक कड़ी समाप्त हो जाएगी उनको खाने वाली गोराया नाम की चिड़िया समाप्त हो जाएगी तो बड़ी बड़ी बीमारियां विकसित होंगी और अंततोगत्वा इसका असर मनुष्य पर पड़ेगा और निश्चित रूप से मनुष्य भी धरती से समाप्त हो जाएंगे यह एक तरह का प्रकृति का फूड चेन है जिसको किसी को डिस्टर्ब नहीं करना चाहिए।

    गौरय्या संरक्षण के लिए उतराखंड के कोटद्वार मोढा़ढा़क निवासी शिक्षक दिनेश कुकरेती पिछले बीस सालों से निरन्तर गौरैया  संरक्षण के लिए काम कर रहे हैं। पहले दिनेश सालभर में 50 से 60 घोसले बनवाकर लगाते थे परन्तु धीरे-धीरे उन्होंने स्वयं ही गौरय्या के लिए पलाई बोर्ड से घरोंदे बनाना शुरू कर दिया और इसी क्रम में 2008 से प्रतिवर्ष 100 से 200 घरोंदे बनाने और लगाने के लक्ष्य बनाया, अब तक दिनेश कुकरेती 6000 से ऊपर घोसलें बना चुके हैं जिनको विभिन्न घरों, स्कूलों, सामाजिक आयोजनों और पहाड़ी गाँवों में लगाया या बांटा है।  साल 2018 में उन्होंने 1046 घोसलें बनाने का लक्ष्य रखा था। जिसमें से 700 का आकड़ा उन्होंने छुआ। इस  वर्ष  के लिए उन्होंने 2000 घरोंदे बनाने का लक्ष्य अभी से निर्धारित कर दिया है। काश सभी में इतनी ही चेतना होती। नहीं तो कमसे कम अपने सीमेंट के घरों में ही गौरय्या के लिए छेद छोड़ दें। गौरय्या भी बचेगी और हम भी।

      चींटियों का जीवन संरक्षण तो और भी आवश्यक है। जब चीटियां निरंतर पेड़ों की काई और फंगल इंफेक्शन को चाटती रहती हैं तब पेड़ स्वस्थ रहते हैं और हमें ऑक्सीजन देते हैं। यदि चीटियां समाप्त हो जाएं तो पेड़ धीरे-धीरे रोग ग्रस्त हो जाएंगे और मनुष्यों को ऑक्सीजन मिलना बंद हो जाएगी। इस तरह प्रत्यक्ष रूप से हमारे फेफड़े पेड़ों की आक्सीजन पर आश्रित हैं किंतु अपरोक्ष रूप से हमारी सांसें चीटियों के कारण चलती हैं। यही प्रकृति की अन्योन्याश्रिता है। कीटनाशक दवाओं के अनावश्यक छिड़काव से करोंडो़ं चींटियों को मार कर ये चैन टूटती रही तो प्राकृतिक बैलेंस समाप्त हो जायेगा। और परिणामत: मनुष्यों का अंत हो जायेगा।