पितृ मोक्ष हेतु बदरीनाथ में करें पिंड दान

बदरीनाथ धाम

बद्रीनाथ गया तीर्थ की महिमा – श्रीमद्भागवत महापुराण नारद पुराण एवं कूर्म पुराण
ॐ श्री गणेशाय नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

भवाब्धिमग्नं दीनं मा समुद्धर भवार्णवात्। कर्मग्राह गृहीत अङ्गं दासो अहम् तव शंकर।।

आश्विनमास के कृष्णपक्ष को पितरों के श्राद्ध के लिए अति उत्तम समय माना गया है। वैसे तो प्रत्येक वर्ष इसे किया जाना चाहिए, किन्तु सबको एक बार बद्रीनाथ गया तीर्थ में जाकर इस आवश्यक कर्म को सम्पादित करना चाहिए।

सहस्राक्ष, सहस्रपाद और जगतपालक भगवान द्वारा राजा बलि से लिए गए दान के अनुसार इस पृथ्वी पर बद्रीनाथ धाम में भगवान बद्री नारायण जी के सामने और गया मैं चरण कमल से बिभूषित गयातीर्थ की महिमा का शास्त्र-पुराणों में मुक्तकण्ठ से प्रसंशा की गयी है।

बद्री गयातीर्थं परन गुह्यं पितृणां च अति वल्लभम्।
कृत्वा पिण्ड प्रदानं तु न भूयो जायते नरः।। (कूर्मपुराण)

अर्थात्, बद्रीनाथ (उत्तराखण्ड) गया(बिहार) इन दोनों जगहों पर गुह्य तीर्थ पितरों को अत्यंत प्रिय हैं। इन दोनों जगहों पर एक बार भी जाकर जो मनुष्य पिण्डदान करता है, उसका पुनर्जन्म नहीं होता।

वस्तुतः बद्रीनाथ गया पितृतीर्थ है। इन दोनों तिर्थों को अत्यंत पावन तीर्थ माना गया है, जहाँ त्रिदेव (ब्रम्हा, विष्णु और शिव) के समेत सभी देवतागण निवास करते हैं।
पितरगण इसकी गाथा इस प्रकार गाते हैं- मेरे कुल का जो कोई भी इन तिर्थों में जायेगा वही हमें तारेगा, अर्थात् असदगति (बुरी गति) से मुक्त करेगा।

मेरे वंश में उत्पन्न व्यक्ति भले ही किसी कारणवश पापयुक्त हो, अधर्मी हो, तब भी यदि इन तिर्थों की यात्रा करेगा तो वह हमलोगों का तारक होगा।

शीलवान और गुणवान बहुत से पुत्रों की कामना करनी चाहिए ; क्योंकि उनमें से कोई एक भी इन तिर्थों में जायेगा।

बद्री नाथ गया जाने पर समर्थ होने पर भी जो वहाँ नहीं जाता, उसके लिए पितर शोक करते हैं, उसका अन्य सभी कर्म विफल हो जाते हैं!

वे मनुष्य धन्य हैं जो इन तिर्थों में पिण्डदान करते हैं। वे दोनों कुल (माता-पिता के) का उद्धार कर स्वयं भी परमगति को प्राप्त करते हैं।
इस लिए आप सभी महानुभावों को अपने जीवन में एक बार इन तिर्थों में अवश्य जाना चाहिए।