ज्ञान की दुकानदारी को विश्वविद्यालय कहा जाता है?

 

दुखनाशक ज्ञानवर्धक गणपति

डाॅ हरीश मैखुरी

भारत विश्व गुरू है। यहां विद्या दान की महान परम्परा रही है। देश में 5 लाख गुरू कुल थे,  प्रत्येक व्यक्ति के लिए जीवन के प्रथम सोपान में विद्याअर्जन अनिवार्य था, प्रथमे अर्जिते विद्या, द्वितीये धनम्, तृतिये पुण्यं, चतुर्थे मुक्तिंम, 100%साक्षरता थी। विद्या को व्यवसाय और शिक्षा व सूचना को बेचने का कारोबार अंग्रेजों ने शुरू किया। आज  उसी को विश्व विद्यालय कहा जाता  है । देश विदेश के एक एक लाख विद्यार्थियों की संख्या वाले  हमारे गुरूकुल आत्मनिर्भर थे। एक  सौहार्द व शांतिपूर्वक  जीवन था। चंगेज खां ने सातवीं शदी में पहली बार अखंड भारत पर आक्रमण किया,  उससे पहले भारत की धरती पर एक भी  विविधर्मी नहीं था। तब  से इन  मुगल आक्रांताओं ने  हमारे नालंदा और तक्षशिला जैसे हजारों गुरूपरम्परा के  विश्वविद्यालय जलाये इन विविद्यालयों को धन देने वाले मंदिरों को लूटा और तोड़ डाला, हमारे  सह अस्तित्व को चकनाचूर कर दिया और विद्या दान की महान परंपरा नष्ट कर दी। यह सिलसिला तब से लेकर अंग्रेजी शासन काल होते हुए आज तक जारी है।

 4 वेद 18 पुराण, 6 दर्शन, सैकड़ों भाष्य, लघु और दीर्घ सिद्धान्त कौमुदी, ब्राह्मण ग्रन्थ, रामायण महाभारत गीता, मठान्मय आदि इत्यादि में जो रचा गया है, वह शेष विश्व के किसी विज्ञान साहित्य और संस्कृति में नहीं है। इनमें  एक एक शब्द गहन शोध के बाद लिखा गया है, जो लिखा गया है वह अकाट्य सत्य और सार्वभौमिक सूत्र यानी कोड है। शास्त्र का अर्थ ही विज्ञान होता है। शास्त्रों में वर्णित इस वर्डिक्ट और कोडिफिकेशन को जानने के लिए गुरु भी जरूरी है। श्रुति स्मृति इसी गुरू परम्परा की कड़ी हैं। इसी गुरू परम्परा का दुरुपयोग वर्तमान में टीवी पर आने वाले एटीएम बाबा कर रहे हैं। लेकिन ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य और शूद्र स्वेच्छा से अपनाये जाने वाले कर्म अथवा पेशे थे,  न कि आज की भांतिजातीय  व्यवस्था,  लेकिन इस सत्य को  कोई भी नहीं बताता। 

एक पते की बात,  हमारा ब्रह्माण्ड है देव शक्तियों अधीन। देव शक्तियां हैं मंत्रों के अधीन। मंत्र हैं ब्राह्मणों के अधीन। ब्राह्मण हैं नियम संयम के अधीन। नियम संयम हैं शास्त्रों के अधीन और शास्त्र हैं शूद्रों के अधीन। शूद्रों ने रचे हैं। जी हाँ हमारे लगभग सभी आर्ष ग्रंथ व्यास बाल्मीकि, मनु, पुलस्त्स्य, पुलह, कणात, भृगु आदि जैसे मंत्रदृष्टा ऋषियों ने लिखे हैं। जन्मनात् जायते शूद्र:। शूद्र का अर्थ है असीम संभावना युक्त बचपन। जो लोग अरैबिक फंडिंग पोषित बामसेफ मीमासुरों भीमासुरों के चक्कर में पड़ कर दलित मानसिकता पाल कर अपना पतन कर रहे हैं वे भारत की विशाल सांस्कृतिक परम्परा और जाति विहीन समाज व्यवस्था से अनजान हैं। इसी लिए आज सरकारें जाति प्रमाण पत्र बांटने और बांटो और राजनीतिक लाभ लो की ऐजेन्सी बन गयीं है। और शिक्षाका  कारोबार चलाने को विश्वविद्यालय बताया जा रहा है।