मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अवधपुरी रामजन्मभूमि मंदिर के गर्भगृह के निर्माण का किया शुभारंभ, काशी में 350 साल बाद शिवलिंग के अभिषेक का अधिकार मिला डोम राजा के वंशजों को, इतिहास में महिलाओं का शौर्य, आज का पंचाग आपका राशि फल

आप और हम सौभाग्यशाली है कि कोटि-कोटि हिन्दुओं की आस्था के केंद्र अवधपुरी में हम सबके आराध्य प्रभु श्रीराम के मंदिर का निर्माण होते हुए देख पा रहे है।

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री #MYogiAdityanath जी ने पूज्य संतों के सानिध्य में शिला पूजन कर श्री रामजन्मभूमि मंदिर के गर्भगृह के निर्माण कार्य का शुभारंभ किया।

350 साल बाद बाबा के अभिषेक का अधिकार मिला डोम राजा के वंशजों को

सर्वे का दूसरा दिन था..

*सर्वे टीम वजूखाने के पास पहुँची जहाँ वजू खाने में लबालब गंदा पानी भरा हुआ था।*

जैसे ही वजू खाने की जाँच की बात हुई तो मुस्लिम पक्ष ने बेशर्मी से विरोध के तौर पर 1400 साल पहले की तरह छाती कूटना शुरू कर दिया, ध्यान भटकाने की कोशिश हुई और पानी कम किया तो मुस्लिम पक्ष द्वारा मछलियों की मौत हो जाएगी का कुतर्क दिया गया।

जबकि यह कई महीनों तक बकरा भेड़ मुर्गा पालते हैं उनसे अफेक्शन डिवेलप करते हैं फिर उसे काट कर खा जाते हैं

विरोध की ये सस्ती व घटिया नौटंकी देखकर हिन्दू पक्ष का शक और बढ़ गया..

इसके बाद अधिकारियों से बात की गई और सर्वे के तीसरे दिन वजू खाने का पानी हाई प्रेशर मोटर से कम करवाया गया..

अब शक यकीन में बदल गया..

चमत्कार हो गया, बाबा नजर आने लग गए..

पर ये क्या बाबा वजू खाने के गंदे पानी सने हुए थे और काई में लथपथ थे बाबा,

ऐसे में नगर निगम वाराणसी के कर्मचारियों की बारी थी,

बाबा को साफ करने के लिए ब्लिचिंग पाउडर की बात हुई पर फिर कहीं ब्लीचिंग पाउडर से मछलियाँ न मर जाएँ मुस्लिम पक्ष में दलील बार-बार देने लगा

इसलिए पिसी हुई चीनी को मंगवाया गया,

इन सफाई कर्मचारियों ने फिर उस चीनी से मल- मल कर बाबा को साफ किया,

काला चमकदार शिवलिंग अब सामने था, बाबा भव्य रूप में दुनिया के आगे प्रकट हो चुके थे,

सोचिये क्या किस्मत है इन नगर निगम के लड़कों की…

बाबा का अभिषेक किया चीनी से 350 साल बाद तो किसी राजा, महाराजा या करोड़पति ने नहीं बल्कि इन आम लड़कों ने किया जो नगर निगम में सफाई कर्मचारी है

शायद यह बाबा के उस आशीर्वाद का नतीजा है जब बाबा महादेव ने काशी को डोम राजा को सौंप दिया था की पूरी दुनिया में काशी में तुम राज करोगे और तुम्हारे हाथों ही सब को मोक्ष मिलेगी

मछलियों की मृत्यु न हो इसका भी ख्याल ऱखा गया जबकि यह मौका कितना खास था लेकिन उसके बाद भी अधीरता में सनातन के संस्कार नहीं तोड़े गए,

बाबा कब किससे क्या करवा दें यह उनके अलावा कोई नहीं जानता।

*(पूरा लेख श्री विष्णु शंकर जैन और हरि शंकर जैन के बाइट पर आधारित)*

🌼🥀🌿हर हर महादेव🔱🙏🏻

#जय_सनातन⛳

🕉श्री हरिहरो विजयतेतराम🕉
🌄सुप्रभातम🌄
🗓आज का पञ्चाङ्ग🗓
🌻गुरुवार, २ जून २०२२🌻

सूर्योदय: 🌄 ०५:२९
सूर्यास्त: 🌅 ०७:०६
चन्द्रोदय: 🌝 ०७:१०
चन्द्रास्त: 🌜२१:५६
अयन 🌕 उत्तरायने (उत्तरगोलीय
ऋतु: 🌞 ग्रीष्म
शक सम्वत: 👉 १९४४ (शुभकृत)
विक्रम सम्वत: 👉 २०७९ (राक्षस)
मास 👉 ज्येष्ठ
पक्ष 👉 शुक्ल
तिथि 👉 तृतीया (२४:१७ तक)
नक्षत्र 👉 आर्द्रा (१६:०४ तक)
योग 👉 गण्ड (२६:३७ तक)
प्रथम करण 👉 तैतिल (११:०२ तक)
द्वितीय करण 👉 गर (२४:१७ तक)
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॥ गोचर ग्रहा: ॥
🌖🌗🌖🌗
सूर्य 🌟 वृष
चंद्र 🌟 मिथुन
मंगल 🌟 मीन (उदित, पश्चिम, मार्गी)
बुध 🌟 वृष (अस्त, पश्चिम, वक्री)
गुरु 🌟 मीन (उदित, पूर्व, मार्गी)
शुक्र 🌟 मेष (उदित, पूर्व, वक्री)
शनि 🌟 कुम्भ (उदित, पूर्व, मार्गी)
राहु 🌟 मेष
केतु 🌟 तुला
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शुभाशुभ मुहूर्त विचार
⏳⏲⏳⏲⏳⏲⏳
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अभिजित मुहूर्त 👉 ११:४७ से १२:४३
सर्वार्थसिद्धि योग 👉 १६:०४ से २९:१६
रवियोग 👉 १६:०४ से २९:१६
विजय मुहूर्त 👉 १४:३५ से १५:३१
गोधूलि मुहूर्त 👉 १९:०० से १९:२४
सायाह्न सन्ध्या 👉 १९:१४ से २०:१४
निशिता मुहूर्त 👉 २३:५५ से २४:३५
राहुकाल 👉 १४:०० से १५:४४
राहुवास 👉 दक्षिण
यमगण्ड 👉 ०५:१६ से ०७:०१
होमाहुति 👉 सूर्य – १६:०४ तक
दिशाशूल 👉 दक्षिण
अग्निवास 👉 आकाश
चन्द्रवास 👉 पश्चिम
शिववास 👉 सभा में (२४:१७ क्रीड़ा में)
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☄चौघड़िया विचार☄
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॥ दिन का चौघड़िया ॥
१ – शुभ २ – रोग
३ – उद्वेग ४ – चर
५ – लाभ ६ – अमृत
७ – काल ८ – शुभ
॥रात्रि का चौघड़िया॥
१ – अमृत २ – चर
३ – रोग ४ – काल
५ – लाभ ६ – उद्वेग
७ – शुभ ८ – अमृत
नोट– दिन और रात्रि के चौघड़िया का आरंभ क्रमशः सूर्योदय और सूर्यास्त से होता है। प्रत्येक चौघड़िए की अवधि डेढ़ घंटा होती है।
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शुभ यात्रा दिशा
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पश्चिम-दक्षिण (दही का सेवन कर यात्रा करें)
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तिथि विशेष
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रम्भा तृतीया, महाराणा प्रताप जयन्ती, उपनयन+चूड़ाकर्म संस्कार+वाहन क्रय विक्रय मुहूर्त प्रातः १०:४२ से दोपहर ०३:५० तक, विद्या एवं अक्षर आरम्भ मुहूर्त प्रातः ०५:३७ से ०७:१२ तक, देव प्रतिष्ठा मुहूर्त प्रातः १०:४२ से दोपहर १२:२५ तक आदि।
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आज जन्मे शिशुओं का नामकरण
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आज १६:०४ तक जन्मे शिशुओ का नाम
आर्द्रा नक्षत्र के तृतीय एवं चतुर्थ चरण अनुसार क्रमश (ङ, छ) नामाक्षर से तथा इसके बाद जन्मे शिशुओ का नाम पूनर्वसु नक्षत्र के प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय चरण अनुसार क्रमशः (के, को, है) नामाक्षर से रखना शास्त्रसम्मत है।
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उदय-लग्न मुहूर्त
वृषभ – २८:१६ से ०६:११
मिथुन – ०६:११ से ०८:२६
कर्क – ०८:२६ से १०:४७
सिंह – १०:४७ से १३:०६
कन्या – १३:०६ से १५:२४
तुला – १५:२४ से १७:४५
वृश्चिक – १७:४५ से २०:०४
धनु – २०:०४ से २२:०८
मकर – २२:०८ से २३:४९
कुम्भ – २३:४९ से २५:१५
मीन – २५:१५ से २६:३८
मेष – २६:३८ से २८:१२
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पञ्चक रहित मुहूर्त
शुभ मुहूर्त – ०५:१६ से ०६:११
रोग पञ्चक – ०६:११ से ०८:२६
शुभ मुहूर्त – ०८:२६ से १०:४७
मृत्यु पञ्चक – १०:४७ से १३:०६
अग्नि पञ्चक – १३:०६ से १५:२४
शुभ मुहूर्त – १५:२४ से १६:०४
रज पञ्चक – १६:०४ से १७:४५
शुभ मुहूर्त – १७:४५ से २०:०४
चोर पञ्चक – २०:०४ से २२:०८
शुभ मुहूर्त – २२:०८ से २३:४९
रोग पञ्चक – २३:४९ से २४:१७
शुभ मुहूर्त – २४:१७ से २५:१५
मृत्यु पञ्चक – २५:१५ से २६:३८
रोग पञ्चक – २६:३८ से २८:१२
शुभ मुहूर्त – २८:१२ से २९:१६
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आज का राशिफल
🐐🐂💏💮🐅👩
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मेष🐐 (चू, चे, चो, ला, ली, लू, ले, लो, अ)
आज के दिन आर्थिक उन्नति के योग बन रहे है लेकिन साथ ही सामाजिक क्षेत्र पर बदनामी अथवा किसी मामूली बात का बतंगड़ बनने से सम्मान हानि की भी सम्भवना है। भाई बंधु अथवा मित्र मंडली में कम बैठे कुछ ना कुछ गड़बड़ ही होगी। कार्य व्यवसाय से पहके से तय आय निश्चित होगी इसके अतिरिक्त भी जोखिम वाले कार्य शेयर लॉटरी आदि से अकस्मात लाभ की संभावना है। व्यवसायी वर्ग आर्थिक रूप से समृद्ध रहने पर भी असंतोषी ही रहेंगे। गृहस्थी में जिस बात को छुपाने के प्रयास करेंगे वही तकरार का कारण बनेगी। संतान से संबंध में चंचलता आएगी।

वृष🐂 (ई, ऊ, ए, ओ, वा, वी, वू, वे, वो)
आज आपका मन संतोषी रहने पर भी अन्य लोगो से स्वयं की तुलना करने पर बेचैन रहेगा। कार्य व्यवसाय से भी कोई सकारात्मक परिणाम नही मिलेगा। धन की आमद कम और खर्च अधिक रहने के कारण आर्थिक संतुलन गड़बड़ायेगा। परिवार की महिलाए मानसिक विकार से ग्रस्त रहेंगी मामूली बातो को प्रतिष्ठा से जोड़ने पर घर का वातावरण खराब कर सकती है। पिता अथवा पैतृक संपत्ति से संबंधित कार्यो से लाभ की उम्मीद अंत समय मे उलझन में बदलेगी। व्यवहार में मिठास बनाये रहने से कई पारिवारिक एवं कानूनी लफड़ो से बच सकते है। सेहत में थोड़े बहुत विकार लगे रहेंगे।

मिथुन👫 (का, की, कू, घ, ङ, छ, के, को, हा)
आज का दिन शुभ फलदायक रहने पर भी आप इसका पूर्ण लाभ नही उठा पाएंगे। आपका स्वभाव अन्य लोगो के प्रति लापरवाह और रूखा रहेगा केवल स्वार्थ पूर्ति हेतु ही व्यवहार रखेंगे। जिसे अपना हितैषी समझेंगे वही दुख का कारण बनेगा। कार्य व्यवसाय में लाभ के अवसर मिलेंगे परन्तु अनुभव की कमी के कारण हाथ से निकलने की सम्भवना है लाभ पाने के लिये अहम की भावना त्याग किसी अनुभवी की सलाह अवश्य लें। धर्म कर्म में निष्ठा होने पर भी पाप कर्म के प्रति ज्यादा आकर्षण रहेगा। परिजन आपकी बातों का जल्दी से विश्वास नही करेंगे केवल मित्र लोग ही स्वार्थ वश आपकी हाँ में हाँ मिलाएंगे। सेहत संध्या बाद प्रतिकूल होगी।

कर्क🦀 (ही, हू, हे, हो, डा, डी, डू, डे, डो)
आज आपके अंदर तेज की कमी रहेगी मन मे कुछ ना कुछ भय बना रहेगा आस पास का वातावरण भी विपरीत रहेगा छोटी मोटी बातो अथवा हास्य परिहास में भी कलह होने की संभावना है। आज विशेषकर विपरीत लिंगीय से सीमित व्यवहार रखें अन्यथा मान भंग हो सकता है। आज आप भाई बंधुओ के लिये लाभकारी सिद्ध होंगे लेकिन आपके द्वारा दी गई आर्थिक अथवा अन्य प्रकार की सहायता का दुरुपयोग होने की संभावना अधिक है। शत्रु पक्ष को कमजोर ना आकेँ अंदर ही अंदर हानि पहुचायेंगे। धन लाभ आज मुश्किल से ही होगा।

सिंह🦁 (मा, मी, मू, मे, मो, टा, टी, टू, टे)
आज का दिन सार्वजनिक क्षेत्र से सम्मान दिलाएगा दिन के आरंभ में किसीकी बेतुकी बात को लेकर क्रोध में रहेगें थोड़ा बहुत गुस्सा दिन भर बना ही रहेगा। मध्यान के समय जिस कार्य से लाभ की उम्मीद लागये बैठे है उसके टलने से मन निराश होगा। कार्य व्यवसाय में आज दिनचार्य संभावनाओ पर केंद्रित रहेगी लाभ के कई अवसर निकट आते आते निरस्त होंगे फिर भी किसी ना किसी का सहयोग मिलने से धन लाभ हो ही जायेगा। पारिवारिक वातावरण धर्य की कमी से खराब हो सकता है घर की अपेक्षा आज बाहर समय बिताने से सहज अनुभव करेंगे। सेहत मानसिक विकार को छोड़ सामान्य रहेगी।

कन्या👩 (टो, पा, पी, पू, ष, ण, ठ, पे, पो)
आज का दिन भी सफलता वाला है लेकिन अपनी वाणी एवं व्यवहार को संतुलित रखना जरूरी है कम लाभ से संतोष करने से ही दिन का फायदा उठाया जा सकता है अन्यथा लाभ के अवसर गरमा गरमी में हाथ से निकल सकते है। भाई बंधुओ से आज सीमित व्यवहार रखना ही बेहतर रहेगा अन्यथा कुछ न कुछ मानसिक क्लेश ही बनेगा। कार्य क्षेत्र पर स्थिति मेहनत के बाद लाभदायक बनेगी प्रतिस्पर्धी हावी रहेंगे फिर भी अगर दृढ़ रहे तो सफलता अवश्य मिलेगी। पारिवारिक वातावरण सामान्य रहेगा पल में खुशी पल में उदासी बनेगी। सेहत में थोड़ी बहुत नरमी बनी रहेगी।

तुला⚖️ (रा, री, रू, रे, रो, ता, ती, तू, ते)
आज का दिन दौड़धूप वाला रहेगा दैनिक कार्यो की भागमभाग में शरीर की अवहेलना बाद में भारी पड़ेगी। व्यावसायिक कार्य मे परिश्रम अधिक करना पड़ेगा फिर भी लाभ आशाजनक नही होगा। आपके हिस्से का लाभ किसी अन्य के हिस्से में भी जा सकता है लापरवाही से बचें। आज की गई मेहनत का सकारत्मक परिणाम संध्या बाद से देखने को मिलेगा कई दिनों से चल रही आर्थिक तंगी में कमी आएगी लेकिन धन लाभ आज आंशिक लेकिन निकट भविष्य में आशाजनक रहेगा। परिवार ने संतानों का मनमाना व्यवहार मन दुख का कारण बनेगा पारिवारिक सुख में कमी आएगी। शरीर मे कोई नया रोग होने की संभावना भी है।

वृश्चिक🦂 (तो, ना, नी, नू, ने, नो, या, यी, यू)
आज का दिन अशुभ फलदायी रहेगा आज किसी ना किसी कारण से मानसिक संताप होगा। पूर्व में की किसी गलती का आभास होगा लेकिन विपरीत परिस्थिति के कारण सुधार भी नही कर सकेंगे। सेहत मध्यान तक नरम रहेगी हाथ पैर एवं अन्य शारीरिक अंगों में शितिलता के कारण कार्य बेमन से करने पड़ेंगे। कार्य व्यवसाय की स्थिति भी दयनीय ही रहेगी अन्य लोगो के ऊपर आश्रित रहना पड़ेगा। धन लाभ होगा लेकिन व्यर्थ के खर्चो में लग जायेगा। माता अथवा घर की महिलाओं की सेहत भी नरम रहने के कारण वातावरण अस्त व्यस्त रहेगा। उधारी के लेन देन से बचे वरना आगे आर्थिक समस्या गहरा सकती है।

धनु🏹 (ये, यो, भा, भी, भू, ध, फा, ढा, भे)
आज का दिन प्रत्येक कार्यो में विजय दिलाने वाला रहेगा लेकिन इसके लिये समय का सदुपयोग करना पड़ेगा परिवार में भाई बंधुओ से ईर्ष्या युक्त संबंध रहेंगे अन्य लोगो आपकी प्रगति देख वैरभाव रखेंगे आप भी आज किसी कारण से हीन भावना से ग्रस्त रहेंगे। आज अपने काम से काम रखें अन्यथा अनुकूल दिन का उचित लाभ नही मिल सकेगा। अतिआवश्यक कार्य संध्या से पहले पूर्ण कर लें इसके बाद शारीरिक अथवा अन्य कारणों से बाधा आने लगेगी। कार्य क्षेत्र पर अथवा आस पडोस में नए शत्रु पनपेंगे सतर्क रहें। स्त्री संतानों से भी किसी बात पर मतभेद हो सकता है।

मकर🐊 (भो, जा, जी, खी, खू, खा, खो, गा, गी)
आज का दिन लाभदायक बना है इसका लाभ उठायें स्वभाव में थोड़ी उग्रता एवं जल्दबाजी रहेगी प्रत्येक कार्य को बिना सोचे समझे करेंगे जिससे बाद में पछताना पड़ेगा। कार्य व्यवसाय आज अन्य प्रतिस्पर्धियों को तुलना में बेहतर चलेगा धन लाभ भी थोड़ी देर अबेर आशाजनक होगा लेकिन धन व्यर्थ के कार्यो में खर्च हो सकता है। मौज शौक की प्रवृति से दूर रहें अन्यथा घर मे विशेष कर महिला वर्ग से विवाद की संभावना है। संध्या के आस पास किसी से धन संबंधित व्यवहार को लेकर विवाद हो सकता है गुस्से को काबू में रखें वरना कल पछताना पड़ेगा।

कुंभ🍯 (गू, गे, गो, सा, सी, सू, से, सो, दा)
आज के दिन आपकी वैचारिक शक्ति प्रबल रहेगी लेकिन फिर भी अंतर्द्वन्द में ही फंसे रह जाएंगे जिस कार्य को करना आरम्भ करेंगे उसे मनमाने तरीके से ही करेंगे किसी का कार्य मे दखल देना अखरेगा बेवजह की बहस के लिये तुरंत तैयार रहेंगे। कार्य क्षेत्र पर मध्यान तक उदासीनता रहेगी इसके बाद भी मेहनत करने पर ही आय के स्तोत्र बनेंगे लाभ आज सीमित साधनों से होगा लेकिन मेहनत आगे अवश्य धन लाभ के मार्ग बनाएगी। मन कुछ समय के लिये अनैतिक कार्यो मौज शौक की ओर भटकेगा लेकिन इसमें भी कुछ ना कुछ व्यवधान आने से इच्छा पूर्ति नही कर पाएंगे। पति/स्त्री संतान सुख मिलेगा साथ ही कोई नई समस्या भी बनेगी।

मीन🐳 (दी, दू, थ, झ, ञ, दे, दो, चा, ची)
आज का दिन उतार चढ़ाव वाला रहेगा आपका ध्यान आज कम समय मे ज्यादा लाभ कमाने पर रहेगा लेकिन इसमें सफलता नही मिल सकेगी। धन लाभ के लिये दिन भर संघर्ष करना पडेगा लेकिन होगा अकस्मात ही। संतान अथवा पैतृक मामलो को लेकर कई दिनों से लगी कोई उम्मीद टूटने की संभावना है। विद्यार्थी वर्ग का अध्ययन में मन नही लगेगा प्रतियोगी परीक्षा में असफलता मिलेगी।
संध्या तक धैर्य से काम लें इसके बाद स्थिति अनुकूल बनने लगेगी जो लोग आपको बोझ समझ रहे थे वही आपका महत्त्व समझेंगे। आध्यात्म एवं परोपकार का सहारा लें निकट भविष्य में अवश्य काम आएगा। सेहत संध्या बाद थकान होने पर भी अनुकूल लगेगी।
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️🙏राधे राधे🙏

इतिहास में नारी चरित्रों ने अपनी कालजयी कीर्तिकथाओंका लेखन अपने चीर से भी अधिक लम्बा किया है। नारियों की शक्ति और सामर्थ्य के प्रसंग वेदों से लेकर पुराणों तक मिलते है और उनके गुणों की प्रशंसा संहिताओं में निबद्ध हुई मिलती है। वराहमिहिरने वनिताओं को विधाता के हाथों गढ़ा अनुपम रत्न कहा है। कामन्दक ने बल, हाल ने मदन की मूर्ति, परिमल ने प्रिया, वात्स्यायन ने गुणा, हलायुध ने मंडन और मार्कंडेय पुराणकार ने सृष्टि सहित प्रकृति की अधिष्ठात्री कहा है। यह सबके सब विशेषण या संज्ञाएं स्त्रीरत्न के कीर्तिमूलक कार्यों की उपज है। मध्यकाल और उत्तर-मध्य काल में, जब की काव्य में रतिकाल का प्रमाण रहा, राज्य शासन में अनेक प्रकारेण स्त्री शक्तियों का दौर भी रहा।

इसी काल में होलकर घराने में कीर्तिवन्त हुई अहिल्याबाई, जो अपने गुणों और धर्मपरायणता के बलबुते पर पुण्यश्लोक सिद्ध हुई। उनकी कसौटी राजकाज से ज्यादा प्रजावात्सल्य की पृष्ठभूमि वाली अधिक रही और इस कसौटीने उनके कृतित्व की प्रतिष्ठा स्त्री प्रकृती की सर्वविध स्थापना जैसे रूप में की है।

अहिल्याबाई एक आदर्श नारी के रूप में सर्वपरिचित है। भारतीय नारियां उनके व्यक्तित्व पर, कृतित्व पर गौरव का अनुभव करती है। उनके न्यायनिष्ठ हाथ में शिवप्रतीक का होना, सत्य और सुन्दर पथ प्रमाणके संकल्प के साक्षी रहे है। तो उनके साथ में देशभर की प्रजा ने तीर्थोद्वार के साथ- साथ जलस्त्रोतों के महत्त्व को भी आत्मसात कर अभिव्यक्त किया है। किसी नारी का पुण्यश्लोक होना उस दौर में बड़ा कठीन काज ही कहा जायेगा।

जो तारे वह तीर्थ कहलाता हैं। और जो निमज्जन से भितरी-बाहरी दोष दारिद्र्य का हरण करे, वह कुंड कहलाता था। शास्त्रों में इन नामकरण और उनके प्रति आचरण तथा धर्मपालन के अपने-अपने निर्देश है। स्मृतियां, जो धर्मशास्त्र है और उनपर अपरार्क जैसी टिकाएँ भारतीय शासकों का मार्गदर्शन करती रही है। अहिल्याबाईने भी स्मृतियों के निर्देशानुसार तीर्थोंके उद्धार और जलस्त्रोतों के निर्माण और संस्कार में रुचि ली।
इस दिशा में किये गये कार्य ‘इष्टापूर्त’ कोटी के कहलाते है। वराहमिहिर की बृहत्संहिता और उसपर भट्टोत्पल की विवृत्ती टीका यह सिद्ध करती है। अहिल्याबाई के कार्य भारतीय संस्कृति के निम्न मूल्यों और मर्यादाओंका पोषण करते हैं।…

१) प्रजा की आत्मनिर्भरता के लिये कृषी, शल्य, फल-फूलादि कार्योंका विकास और ऐसे सत्कार्योंको बढावा देना।

२) शासित क्षेत्रों के अलावा जो अन्य प्रसिद्ध तीर्थक्षेत्र हों, वहा पर तीर्थयात्रियों की सुख-सुविधा के लिये मंदिर, सराय, विश्रांतीगृह और जलादि का उचित प्रबंधन।

३) अकाल और पलायन को दृष्टिगत रखते हुए जलस्त्रोतों के विकास जैसे स्थायी महत्त्व के कार्यों का संपादन।

४) अपने कार्य को शिवमय, शिवपूजनमय सिद्ध करते हुए प्रजा में ‘सर्वभूत हिते रतः’ के आदर्श की स्थापना, यह रूप उनको प्रजा में पार्वती/शक्ति जैसा सिद्ध करने में सहाय्यक रहा।

#नेहा_भांडारकर जी द्वारा लिखी गयी
‘लोकहितैषी राजश्री देवी अहिल्याबाई’ नामक कृति, हमे मराठों के उच्चस्तरीय शासन व्यवस्था से परिचित कराती है। नेहा भांडारकर जी मूलतः मराठी कवयित्री और लेखिका है। परंतु उन्होंने पुण्यश्लोक अहिल्याबाई को प्रस्तुत चरित्रलेखन द्वारा हिंदी के पाठकोंको परिचित करने का कार्य किया है। यह सराहनीय बात है। क्योंकि मराठी भाषी होने पर भी हिंदी में उनका शोधकार्य, अहिल्याबाई के बचपन से लेकर अवसान तक का विस्तृत ग्रंथन है। जिसमें अहिल्याबाई द्वारा किये गये लोकल्याणकार्य तथा निर्माण कार्य, सैन्य संचालन, राजकार्य, पारिवारिक जिम्मेदारीयों का निर्वहन आदि को विश्लेषित किया गया है।

अहिल्याबाईको समझने के लिए लेखिका ने उनके बचपनकी और साथ ही में उनके राजनैतिक गुरु, संरक्षक ससुर सूबेदार श्री मल्हारराव होलकर के बचपन की भी कुछ प्रस्तुती सरल और रोचक शब्दों में प्रस्तुत की है। अहिल्याबाई के अवसान के बाद होलकर घराने की स्थिति को उपसंहार नामक शीर्षक से कथन की है। पाठकों को, कम शब्दों में अधिक आशयसे परिचित करनेवाली इस कृति को हिंदी पाठकों की प्रशंसा मिलेगी यह आशा कर सकते है।

भगवती स्वरूपा नेहा भांडारकर जी ने मेरे आग्रह पर आदरणीय अहिल्याबाई के व्यक्तित्व और कृतित्व पर इस सुंदर सुघड कृतिका प्रणयन किया है। हिंदी में इस कृति का लंबे समय से अभाव था। पाठकों को कम शब्दों में अधिक आशय पढ़ने को देनेवाली इस कृति की पुर्ति की दिशा में उन्होंने महत्वपूर्ण प्रयास किया है। प्रस्तुत कृति का परिशुद्धीकरण का दायित्व मेरे आग्रह पर ही मेरे मित्र रमेश जी जैन ने स्वीकारा है। मैं आभार ज्ञापित करूं या धन्यवाद दूँ, मेरे पास शब्द नहीं है। इस कृति के लिये मैं तो क्या हमारे भारत के पाठक विनम्र रहेंगे। अहिल्याबाई पर पुस्तक लिखने के लिये मैने अनेको मित्रों से आग्रह किया था। नेहा जी ने तत्काल आग्रह को स्वीकारा और हिंदी पाठकों तक अहिल्याबाई को पहूंचाने का उपकार किया है। इस पुस्तक की प्रशंसा में अनेक बातें कही जा सकती है। लेकिन मेरा मन है की इस के बारे में पाठक अधिक कहें। और कहने से भी अधिक अहिल्याबाई के लोककल्याण कार्य, उनके आदर्शों और गुणोंकी प्रतिष्ठा और प्रसार करने का प्रयास करें।

माँ उनके लिए गाती थी …
“ना रूप पायो ना सुहाग जीवायो
अहिल्याबाई तेरे करम सों भरतखंड हरषायो
नारी होकर तुने रानी वो सन्मान पायो
नर्मदा हंसी तो हिमालो गौरव गीत गायो”।
✍🏻श्रीकृष्ण जुगनु

अहिल्याबाई होलकर (31 मई 1725 – 13 अगस्त 1795),
मराठा साम्राज्य की प्रसिद्ध महारानी

इतिहास-प्रसिद्ध सूबेदार मल्हारराव होलकर के पुत्र खण्डेराव की धर्मपत्नी थीं।

उन्होने माहेश्वर को राजधानी बनाकर शासन किया।

भारत की प्रसिद्ध महिला है

कई धार्मिक स्थलों का जीर्णोद्धार कराया

सोमनाथ काशी मथुरा सहित पूरे भारत के धार्मिक
स्थलों का निर्माण करवाया

भेडाघाट मे अहिलेशवर शिव लिंग बीच नदी में जबलपुर में बनवाया

अहिल्याबाई ने अपने राज्य की सीमाओं के बाहर भारत-भर के प्रसिद्ध तीर्थों और स्थानों में मन्दिर बनवाए, घाट बँधवाए, कुओं और बावड़ियों का निर्माण किया, मार्ग बनवाए-

काशी विश्वनाथ में शिवलिंग को स्थापित किया,

भूखों के लिए अन्नसत्र (अन्यक्षेत्र) खोले,

प्यासों के लिए प्याऊ बिठलाईं,

मन्दिरों में विद्वानों की नियुक्ति

शास्त्रों के मनन-चिन्तन और प्रवचन हेतु की।

अहिल्याबाई का जन्म चौंडी नामक गाँव में हुआ था जो आजकल महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के जामखेड में पड़ता है। दस-बारह वर्ष की आयु में उनका विवाह हुआ। उनतीस वर्ष की अवस्था में विधवा हो गईं। पति का स्वभाव चंचल और उग्र था। वह सब उन्होंने सहा। फिर जब बयालीस-तैंतालीस वर्ष की थीं, पुत्र मालेराव का देहान्त हो गया। जब अहिल्याबाई की आयु बासठ वर्ष के लगभग थी, दौहित्र नत्थू चल बसा। चार वर्ष पीछे दामाद यशवन्तराव फणसे न रहा और इनकी पुत्री मुक्ताबाई सती हो गई। दूर के सम्बन्धी तुकोजीराव के पुत्र मल्हारराव पर उनका स्नेह था; सोचती थीं कि आगे चलकर यही शासन, व्यवस्था, न्याय और प्रजारंजन की डोर सँभालेगा; पर वह अन्त-अन्त तक उन्हें दुःख देता रहा।[1]

अहिल्याबाई ने अपने राज्य की सीमाओं के बाहर भारत-भर के प्रसिद्ध तीर्थों और स्थानों में मन्दिर बनवाए, घाट बँधवाए, कुओं और बावड़ियों का निर्माण किया, मार्ग बनवाए-सुधरवाए, भूखों के लिए अन्नसत्र (अन्यक्षेत्र) खोले, प्यासों के लिए प्याऊ बिठलाईं, मन्दिरों में विद्वानों की नियुक्ति शास्त्रों के मनन-चिन्तन और प्रवचन हेतु की। और, आत्म-प्रतिष्ठा के झूठे मोह का त्याग करके सदा न्याय करने का प्रयत्न करती रहीं-मरते दम तक। ये उसी परम्परा में थीं जिसमें उनके समकालीन पूना के न्यायाधीश रामशास्त्री थे और उनके पीछे झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई हुई। अपने जीवनकाल में ही इन्हें जनता ‘देवी’ समझने और कहने लगी थी। इतना बड़ा व्यक्तित्व जनता ने अपनी आँखों देखा ही कहाँ था। जब चारों ओर गड़बड़ मची हुई थी। शासन और व्यवस्था के नाम पर घोर अत्याचार हो रहे थे। प्रजाजन-साधारण गृहस्थ, किसान मजदूर-अत्यन्त हीन अवस्था में सिसक रहे थे। उनका एकमात्र सहारा-धर्म-अन्धविश्वासों, भय त्रासों और रूढि़यों की जकड़ में कसा जा रहा था। न्याय में न शक्ति रही थी, न विश्वास। ऐसे काल की उन विकट परिस्थितियों में अहिल्याबाई ने जो कुछ किया-और बहुत किया। वह चिरस्मरणीय है।

इन्दौर में प्रति वर्ष भाद्रपद कृष्णा चतुर्दशी के दिन अहिल्योत्सव होता चला आता है। अहिल्याबाई जब 6 महीने के लिये पूरे भारत की यात्रा पर गई तो ग्राम उबदी के पास स्थित कस्बे अकावल्या के पाटीदार को राजकाज सौंप गई, जो हमेशा वहाँ जाया करते थे। उनके राज्य संचालन से प्रसन्न होकर अहिल्याबाई ने आधा राज्य देेने को कहा परन्तु उन्होंने सिर्फ यह माँगा कि महेश्वर में मेरे समाज लोग यदि मुर्दो को जलाने आये तो कपड़ो समेत जलाये।

स्‍वतन्त्र भारत में अहिल्‍याबाई होल्‍कर का नाम बहुत ही सम्‍मान के साथ लिया जाता है। इनके बारे में अलग अलग राज्‍यों की पाठ्य पुस्‍तकों में अध्‍याय मौजूद हैं।

चूँकि अहिल्‍याबाई होल्‍कर को एक ऐसी महारानी के रूप में जाना जाता है, जिन्‍होंनें भारत के अलग अलग राज्‍यों में मानवता की भलाई के लिये अनेक कार्य किये थे। इसलिये भारत सरकार तथा विभिन्‍न राज्‍यों की सरकारों ने उनकी प्रतिमाएँ बनवायी हैं और उनके नाम से कई कल्‍याणकारी योजनाओं भी चलाया जा रहा है।

ऐसी ही एक योजना उत्तराखण्ड सरकार की ओर से भी चलाई जा रही है। जो अहिल्‍याबाई होल्‍कर को पूर्णं सम्‍मान देती है। इस योजना का नाम ‘अहिल्‍याबाई होल्‍कर भेड़ बकरी विकास योजना है। अहिल्‍याबाई होल्‍कर भेड़ बकरी पालन योजना के तहत उत्तराखणवड के बेरोजगार, बीपीएल राशनकार्ड धारकों, महिलाओं व आर्थि[6] के रूप से कमजोर लोगों को बकरी पालन यूनिट के निर्माण के लिये भारी अनुदान राशि प्रदान की जाती है। लगभग 1,00,000 रूपये की इस युनिट के निर्मांण के लिये सरकार की ओर से 91,770 रूपये सरकारी सहायता रूप में अहिल्‍याबाई होलकर के लाभार्थी को प्राप्‍त होते हैं।
✍🏻उमेश गुप्ता

जलस्रोतों की उद्धारक : अहिल्याबाई

देश की प्रेरणास्पद नारी शक्तियों में अहिल्याबाई का नाम श्रद्धा से लिया जाता है । यह नाम देश के उन तीर्थों के साथ विशेष रूप से जुड़ा हुआ है जो जन आस्था के केंद्र हैं। जगत्-जनार्दन की अर्चना के साथ ही जन-जन के लिए जलसेवा के निमित्त इस महामना का नाम लिया जाता है। एक कहावत सी लोक में है : जनार्दन ने अहिल्या की जल सेवा स्वीकार की।

सचमुच, एक प्रजानिष्ठ शासक होकर अहिल्याबाई ने जल सेवा के लिए जो संकल्प किया और जलस्रोतों के उद्धार सहित निर्माण के लिए संपदादान का जो पुण्यकार्य किया, उसने उनके पुण्य साम्राज्य की सीमाओं को बहुत बढ़ाया और चिरायु किया।

माहिष्मती में नर्मदा के घाट, जिनकी रचना तीर्थ पर शिव नामों के स्मरण के रूप में की गई है, उन महामना का सजीव स्वप्न है और देशवासियों के सम्मुख एक आदर्श है। गंगा वाला बनारस तो उनके संकल्प की फलश्रुति ही है। वे संकल्पों में शिव रही या शिव संकल्प की धनी रही, वैष्णव तीर्थ नाथद्वारा में भी उनका बनवाया कुंड है जो अहिल्या कुंड के नाम से ही जाना जाता है- वे जहां पधारी वहां वरुणदेव प्रसन्न हुए और उनके संकल्प की पूर्ति के लिए बारहों मास जलदायक रहे। (जल और भारतीय संस्कृति : श्रीकृष्ण जुगनू)

उनके अवतरण दिवस पर उनके संकल्प की सिद्धि याद आ रही है, कितने बरस पहले उन्होंने यह जान लिया था :
” नहीं जलसेवा सम कछु काजा।
महत काज एहि सरब समाजा।”

हां, यदि आपको भी उनके जलसेवा के स्मारकों की जानकारी है तो जरूर शेयर कीजियेगा। जल्द ही उनके योगदान पर किताब का मन है। मैंने इसके लिए डॉ. नेहा भंडारकर से कहा तो किताब तैयार हो गई। श्री रमेशजी जैन प्रूफ भी देख लिए और श्री गोविंद भाई ने प्रकाशन की सारी तैयारी कर ली लेकिन लॉक डाउन पीछे पड़ गया…! स्थितियां सुधरे तो हिंदी संसार में सुंदर किताब सामने आए।
जय-जय।
( “१७ से रिपोस्ट)
✍🏻श्रीकृष्ण जुगनु

देवी अहिल्याबाई होलकर का वृक्षारोपण मे योगदान
सात बारा शब्द का उद्गम
साधारणतःभारत मे (जमीन)घर real estate की खरीद बेच करते समय “सात बारा”(खसरा या मिसल बंदोबस्त, बी-वन की नकल)ये निकालना पडता है।सात बारा ये कोई कानूनी नाम या धारा नही ये अहिल्याबाई होलकर ने दिया हुआ योगदान है ।
उन्होने सरकारी खर्च से गरीब किसान के यहा १२फलो के झाड लगवाये उसमे से सात झाड किसान के व पांच झाड सरकार के।
बारह झाडो कि निगरानी कर सात झाडो की अर्थात् ७/१२के फल खुद किसान खाऐ और रहे पाच झाड के फल ५/१२सरकारी जमा करना पडता बचे फल और गरीबो को बाटने के लिऐ ।इसके लिए एक सरकारी दफ्तर निर्माण कर झाडो का हिसाब (गिनती किस कि जमीन मे कितने वृक्ष है)तैयार किया गया ।इस हिसाब दाखिले को “सात बारा” के नाम से जाना जाता था ।ज़ो आज समय तक जाना जाता है ।

गया जी (तीर्थ) में फल्गु नदी के किनारे विष्णुपाद या विष्णुपद मंदिर का निर्माण मालवा की रानी देवी अहिल्या बाई होल्कर ने सन 1787 में कराया।

इस मंदिर के निर्माण में 3 लाख रुपए का खर्च आया था और बारह वर्षों तक 6 सौ मजदूर काम करते रहे। ये शिल्पी और मजदूर राजस्थान के जयपुर से लाए गए थे। इनके साथ शर्त थी कि काम पूरा होते ही इन्हें अपने-अपने घर लौटना पड़ेगा।

सन 1795 में जब उनका देहावसान हुआ तब भी ये शिल्पी और मजदूर मंदिर के आसपास काम में लगे हुए थे लेकिन इनकी मृत्यु की खबर सुनकर काम रोक दिया गया। इस वक़्त राजा मित्रजित ने इन शिल्पियों और मजदूरों को सनद देकर बसाया जो खान बहादुर के पिता थे। खान बहादुर बहुत अच्छे चित्रकार भी थे जिनके कई चित्र आज भी ऐतिहासिक हैं। ये शिल्पी आज भी गया में देखे जा सकते हैं जिनका मुख्य पेशा पत्थरों को तराशकर मूर्तियाँ बनाना है।

अष्टकोणीय (अष्टफलकीय) आधार पर खड़े किए गए इस मंदिर के ऊपर तक 8 फलक ही हैं। इस मंदिर में 18 स्तम्भ हैं जिनके बारे में कहा जाता है कि सभी पर अलग-अलग पोज़ के ‘नारायण चरण’ बनाए गए हैं। यह ‘नारायण चरण’ 30 सेंटीमीटर का है जिस पर शंख, चक्र, गदा अंकित हैं।

विष्णुपाद मंदिर स्थानीय बैसाल्ट चट्टानों को काटकर बनाया गया है। मंदिर के शीर्ष पर सोने का कलश और झण्डा लगा हुआ है जिसका वजन 51 किलोग्राम है। मंदिर अपनी वास्तुकला के लिए विश्व विख्यात है जिसमें नट मंदिर और गर्भगृह की प्राचीन परंपरा का पालन किया गया है। गर्भगृह का शिखर 1 सौ मीटर ऊंचा है और नट मंदिर की ऊंचाई 30 मीटर है।

ये बैसाल्ट पत्थर गया से 19 मील दूर पत्थलकट्टी से लाए गए थे। इन पत्थरों को प्रभावी काला रंग देने के लिए सीम (Dolichos lablab) की पत्तियों और तने के रस इस्तेमाल किए गए। इस मंदिर को धर्मशिला के नाम से भी जाना जाता है।

ऐतिहासिक रिकॉर्ड बताते हैं कि अहिल्या बाई मालवा की रानी थी जिनकी राजधानी महेश्वर थी। वे शिव भक्त थी लेकिन विष्णु की भक्ति भी कम नहीं करती थीं।

गया में विष्णुपाद मंदिर के निर्माण से पहले उन्होंने महाराष्ट्र के अमरावती में चंद्रभागा (पूर्णा) नदी के तट पर एक विष्णुपद मंदिर बनवाया था जो बरसात के मौसम में लगभग पूरी तरह डूब जाता था। यह मंदिर 16 स्तंभों पर टिका हुआ है जिसके सभी स्तंभों पर विष्णु के एक-एक जोड़े चरण चिह्न अंकित हैं लेकिन सभी एक-दूसरे से भिन्न हैं। विष्णु का चरणचिह्न इस मंदिर में सालों भर लगभग पूरी तरह डूबा रहता है। यही वो मंदिर था जिसने गया में विशाल मंदिर बनवाने की प्रेरणा उन्हें दी।

वे राजस्थान की मीराबाई की तरह ही भक्त थी जिनका उद्देश्य था – ‘मेरो तो गिरधर गोपाल, दूसरों न कोई’। परिवार में सबको खो देने के बाद इन्होंने प्रजा और ईश्वर के प्रति अपना पूरा समय दिया।

गया के प्रति उनकी आस्था ने विवाह के पश्चात इस मंदिर का निर्माण कराया था। गया की सबसे पहली यात्रा उन्होंने अपनी दादी के साथ 1731 में की थी। तब वे 6 वर्ष की थी।

कहते हैं नर्मदा नदी को साड़ी चढ़ाने की परंपरा इन्होंने ही शुरू की थी। ये बेहतरीन तीरंदाज़ थीं। तीर में साड़ी का एक किनारा बांधकर और उसे प्रत्यंचा पर चढ़ाकर खींचते हुए नर्मदा नदी पार कर देती थी। इसे देखने के लिए जनसमूह उमड़ पड़ता था। यह परंपरा उनके बाद भी चलती रही।

जब इनकी मृत्यु हुई थी तब भारत भर में कई मंदिरों में काम चल रहा था। ये सभी रुक गए। गया में तब विष्णुपाद मंदिर के प्रांगण में इनकी एक प्रतिमा बनाकर इन शिल्पियों ने स्थापित करा दी। यह प्रतिमा आज भी इस मंदिर में है।

इन्होंने जिन मंदिरों का निर्माण कराया इनमें काशी विश्वनाथ मंदिर भी एक था, जिसे अपने वास्तविक जगह से थोड़ा हटाकर बनाया गया क्योंकि वास्तविक जगह में ज्ञानवापी मस्जिद खड़ी थी।

रानी अहिल्याबाई ने त्रयंबकेश्वर मंदिर का निर्माण भी कराया। इंदौर स्टेट गज़ेटियर बताता है कि मालवा स्टेट के अंदर के इंदौर, महेश्वर और आलमपुरा तथा स्टेट के बाहर के उज्जैन, ओंकारेश्वर, रावर, कुंभर, पुष्कर, पूना, जेजुरी, बद्रीनाथ, हरिद्वार, अयोध्या, काशी, गया, वृन्दावन, नेमिषारण्य, अमरकंटक, पंढरपुर और रामेश्वर में मंदिर, छतरी घाट और धर्मशाला का निर्माण भी इनके कार्यकाल में जमकर हुआ।

इस बात को छोडना भी गुनाह होगा कि मुसलमानों के पूजा स्थल को भी इन्होंने निर्माण तथा मरम्मत के लिए हर तरीके की सहायता दिए। खासकर, मज़ारों के निर्माण के लिए इन्होंने सदा मदद दी।

#स्त्रीविमर्श और #मक्कारवामीइतिहासकार

विदेशी इतिहास की तुलना में अगर भारतीय मंदिर स्थापत्य को देखें तो एक अनोखी सी चीज़ आपको ना चाहते हुए भी नजर आ जायेगी | आप जिस भी प्रसिद्ध मंदिर का नाम लेंगे, पूरी संभावना है की उसका पुनःनिर्माण रानी अहिल्याबाई होल्कर ने करवाया होगा | दिल्ली के कालकाजी मंदिर से काशी के ज्ञानवापी तक कई इस्लामिक आक्रमणकारियों के तुड़वाए मंदिरों के जीर्णोद्धार का श्रेय उन्हें ही जाता है |

इसी क्रम को थोड़ा और आगे बढ़ा कर अगर ये ढूँढने निकलें की जीर्णोद्धार तो चलो रानी ने करवाया, बनवाया किसने था ? तो हुज़ूर आपको आसानी से राजवंश का नाम मिलेगा | थोड़ा और अड़ जायेंगे तो पता चलेगा कि ज्यादातर को बनवाया भी रानियों ने ही था | कईयों के शिलालेख बताते हैं कि किस रानी ने बनवाया | धूर्तता की अपनी परंपरा को कायम रखते हुए इतिहासकार का वेष धरे उपन्यासकार ये तथ्य छुपा ले जाते हैं |

काफी लम्बे समय तक भारत मे परिचय के लिए माँ का नाम ही इस्तेमाल होता रहा है | पिता के नाम से परिचय देने की ये नयी परिपाटी शायद इस्लामिक हमलों के बाद शुरू हुई होगी | अक्सर बचपन में जो लोग “नंदन” पढ़ते रहे हैं उसका “नंदन” भी अर्थ के हिसाब से यही है | नामों मे “यशोदा नंदन”, “देवकीनंदन”, भारतीय संस्कृति मे कभी अजीब नहीं लगा | हाँ इसमें कुछ कपटी कॉमरेड आपत्ति जताएंगे कि ये तो पौराणिक नाम हैं, सामाजिक व्यवस्था से इनका कोई लेना देना नहीं |

ये भी छल का एक अच्छा तरीका है | ये आसान तरीका इस्तेमाल इसलिए हो पाता है क्योंकि भारत का इतिहास हजारों साल लम्बा है | दो सौ- चार सौ, या हज़ार साल वालों के लिए जहाँ हर राजा का नाम लेना, याद रखना आसान हो जाता है वहीँ भारत ज्यादा से ज्यादा एक राजवंश को याद रखता है, हर राजा का नाम याद रखना मुमकिन ही नहीं होता | भारत के आंध्र प्रदेश पर दो हज़ार साल पहले सातवाहन राजवंश का शासन था | इनके राजाओं के नामों मे ये परंपरा बड़ी आसानी से दिखती है |

सातवाहन राजवंश का नाम सुना हुआ होता है, और इसके राजा शतकर्णी का नाम भी यदा कदा सुनाई दे जाता है | कभी पता कीजिये शतकर्णी का पूरा नाम क्या था ? अब मालूम होगा कि शतकर्णी नामधारी एक से ज्यादा थे | अलग अलग के परिचय के लिए “कोचिपुत्र शतकर्णी”, “गौतमीपुत्र शतकर्णी” जैसे नाम सिक्कों पर मिलते हैं | एक “वाशिष्ठीपुत्र शतकर्णी” भी मिलते हैं | ये लोग लगभग पूरे महाराष्ट्र के इलाके पर राज करते थे जो कि व्यापारिक मार्ग था | इसलिए इन नामों से जारी उनके सिक्के भारी मात्रा मे मिलते हैं |

कण्व वंश के कमजोर पड़ने पर कभी सतवाहनों का उदय हुआ था | भरूच और सोपोर के रास्ते इनका रोमन साम्राज्य से व्यापारिक सम्बन्ध था | पहली शताब्दी के इनके सिक्के एक दुसरे कारण से भी महत्वपूर्ण होते हैं | शक्तिशाली हो रहे पहले शतकर्णी ने “महारथी” राजकुमारी नागनिका से विवाह किया था | नानेघाट पर एक गुफा के लेख मे इसपर लम्बी चर्चा है | महारथी नागनिका और शतकर्णी के करीब पूरे महाराष्ट्र पर शासन का जिक्र भी आता है |

दुनियां मे पहली रानी, जिनका अपना सिक्का चलता था वो यही महारथी नागनिका थीं | ईसा पूर्व से कभी पहली शताब्दी के बीच के उनके सिक्कों पर ब्राह्मी लिपि में, सिक्कों के बीचो बीच “नागनिका” लिखा हुआ होता है | उनके पति को विभिन्न शिलालेख “दक्षिण-प्रजापति” बताते हैं | चूँकि शिलालेख, गुफाओं के लेख कई हैं, इसलिए इस साक्ष्य को नकारना बिलकुल नामुमकिन भी हो जाता है | मर्दवादी सोच होने की वजह से शायद “महारथी” नागनिका का नाम लिखते तथाकथित इतिहासकारों को शर्म आई होगी |

बाकी अगर पूछने निकलें कि विश्व मे सबसे पहली सिक्कों पर नाम वाली रानी का नाम आपने किताबों मे क्यों नहीं डाला ? तो एक बार किराये की कलमों की जेब भी टटोल लीजियेगा, संभावना है कि “विक्टोरिया” के सिक्के निकाल आयें !