भारतीय इतिहास का महत्वपूर्ण “पन्ना” भुला दिया गया जिस कारण संभवतः कोई नहीं जानता कि वह कौन थी ! क्यों की हमारी इतिहास कि किताबे आक्रांता मुगलों और गांधी में इतनी खो गई हैं कि भारतीय इतिहास के ज़रूरी अध्याय ही ओझल कर दिए गए हैं।🕸️🕷️
आप सब ने #तैमूर_लंग के बारे में तो जरूर सुना होगा, नहीं पता तो बता दूं कि वो एक बर्बर लुटेरा था।जो मध्य एशिया से दिल्ली को लूटने आया था १४ वी सदी में । जब वह दिल्ली पहुंचा तो उसने दिल्ली पर कब्ज़ा कर १००००० हिन्दुओं को बंदी बना लिया और उनका बेरहमी से कत्ल करके उनके सिरों का पिरामिड बना दिया । फिर वह मेरठ को लूटने निकला और जो रास्ते में आया उसे बेरहमी से मारता और मंदिरों को तोड़ता हुआ बढ़ता जा रहा था।🌵🐖
इतिहासकार उसकी दिल्ली विजय का खूब बखान करते हैं लेकिन मेरठ और हरिद्वार के बारे में लिखने से बचते हैं।✍️
तब ,एक २० साल की हिंदू वीरांगना के नेतृत्व में ४०००० वीरांगनाओ और ६००००० वीरों की फ़ौज तैयार हुई। जिसमें जाट,राजपूत, ब्राह्मण, अहीर,आदिवासी सब शामिल थे वो वीरांगना थी #रामप्यारी_गुर्जर और उसने मेरठ और आस पास के सभी गांवों को खाली करवा दिया । जब तैमूर अपनी सेना के साथ पहुंचा तो ये देख कर परेशान हो गया । तब दिन में वीर सैनिकों ने तैमूर पर हमला कर दिया और उसकी सेना को भारी नुकसान पहुंचाया और रात में रामप्यारी गुजरी के साथ वीरांगनाओ ने हमला किया और तैमूर की सेना के छक्के छुड़ा दिए । दोनों तरफ सैनिक मरे लेकिन तैमूर की सेना में मरने वालो की संख्या बहुत ज्यादा थी । इससे उसके सैनिक बेचैन हो गए । फिर उसने मेरठ को छोड़ हरिद्वार की ओर रुख किया ।
हरिद्वार में भी तैमूर की सेना का वहीं हश्र हुआ जो मेरठ में हुआ। आखिरी युद्ध में एक २२ साल के जाट हरबीर सिंह गुलिया ने तैमूर के सीने पर तीर मारा । रात में वापिस से रामप्यारी ने हमला किया और उसकी सेना को समेट कर रख दिया। इस से घबराकर तैमूर वहीं भाग गया जहां से आया था और इस चोट से कभी नहीं उबर पाया और ७ साल बाद मर गया।ऐसी वीरांगना रामप्यारी गुर्जर की जिसे इतिहास में दफ़ना दिया गया उनकी 4 अप्रैल को पुण्यतिथि थी।आइए हम मिलकर उनको श्रद्धाजंलि अर्पित करते हैं।🌹🙏💐