कब तक खुश होते रहोगे? अब तो यह DRDO का रोज रोज का काम हो गया है। रोज नई नई तकनीक डेवलप करने में लगा है। रोज प्रेस रिलीज होती है एक नई टेक्निक की। पहले DRDO की साइट पर जाकर लंबा चौड़ा लेख पढ़ो फिर उसका लिंक ढूंढो क्योंकि कोई ना कोई लिब्रान्डु कह देता है कि यह झूठ है या मैंने तो ऐसी न्यूज कहीं नहीं देखी। भारत के DRDO ने एक ऐसी तकनीक विकसित की है जो आजतक सिर्फ रूस, अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस के पास थी। यहां मैं यह बता दूं कि यह तकनीक हमारे दोनों परम मित्रों चीन और पाकिस्तान के पास भी नहीं है।
क्या है यह टेक्निक❓
यह है आइसो थर्मल फोर्जिंग।
इसका क्या फायदा होता है?
तो भाइयों कॉम्बैट फाइटर जेट के इंजिन के लिए इस तकनीक की जरूरत पड़ती है। इस टेक्निक से किये गए फोर्जिंग के पॉर्ट हाई टेम्रेचर और बहुत अधिक दबाव में भी क्रैक नहीं होते। सनद रहे कि फाइटर जेट का इंजिन हमारा परम मित्र चीन भी अभी तक नहीं बना पाया है क्योंकि चीन के पास यह तकनीक अभी तक नहीं है। भारत 1984 से कावेरी इंजिन प्रोजेक्ट पर काम कर रहा है पर आज तक इंजिन के लिए इस टेक्निक को विकसित नहीं कर पाया था पर अब ऐसा न जाने मोदी जी रोज कौन सा इंजेक्शन लगा देते हैं कि drdo रोज कुछ न कुछ कर देता है और हमें पोस्ट लिखनी पड़ती है।
अब आप अगली पोस्ट का इन्तेजार करो क्योंकि DRDO तो अब ठहरने वाला है नहीं। बता दें कि यह सब मोदी सरकार के आने के बाद हो रहा है। पिछली सरकारों ने डीआरडीओ को साईड कर रखा था। साभार-चंद्रमोहन अग्रवाल
बालब्रह्मचारी धर्मराज भारती (मोनी बाबा) बारह महिने बद्रीविशाल में ही ध्यान साधना करते हैं। और सदैव भगवान के दर्शनों के उपरांत ही भोजन करते हैं। यही गुरू शिष्य परम्प्परा है । इन दिनों लाकडाउन के कारण उन्हें दर्शन के लिए मना करने पर वे 10 दिन से भूख हड़ताल पर हैं। मोनी बाबा ने फोन पर जानकारी दी कि अब वे जल भी त्याग कर दिया है। इस संबंध में जानकारी के लिए चारधाम देवस्थानम बोर्ड के सीइओ बीडी सिंह का कहना है कि इस संबंध में हम लाकडाउन के गाईडलाइन का अनुपालन कर रहे हैं। इस प्रकरण पर शासन से प्राप्त निर्देश पर ही कुछ किया जाना संभव है। इस संदर्भ में बद्रीनाथ के विधायक और देवस्थानम बोर्ड के सदस्य महेंद्र भट्ट का कहना है कि प्रकरण उनके संज्ञान में है। यदि एक को दर्शन की अनुमति देते हैं तो काफी और लोग भी दर्शन के लिए तैयार बैैठे हैं। फिर भी एक दो दिन में रास्ता निकाल लिया जायेगा। स्थानीय लोगों ने मुख्यमंत्री जी, जो देवस्थानम बोर्ड के अध्यक्ष भी हैं, से अविलंब हस्तक्षेप कर इस प्रकरण को सुलझाने का अनुरोध किया है।
केन्या द्वारा भेजे गए 12 टन अनाज पर बहुत से लोग मज़ाक उड़ा रहे है। सोशल मीडिया पर केन्या को “भिखारी, भिखमंगा, गरीब” आदि आदि कहा जा रहा है। अब एक छोटा सा वाक़या सुनिए।
आपने अमरीका का नाम सुना होगा, मैनहैटन का भी, वर्ल्ड ट्रेड सेंटर का भी और ओसामा बिन लादेन का भी। जो ज़्यादातर लोगों ने नहीं सुना होगा वो है ‘इनोसाईन गाँव’ जो पड़ता है केन्या और तंजानिया के बॉर्डर पर और यहाँ निवास करती है लोकल जनजाति है ‘मसाई’।
अमेरिका पर हुए 9/11 के हमले की ख़बर मसाई लोगों तक पहुचने में कई महीने लग गए। ये ख़बर उन तक तब पहुँची जब उनके गाँव के पास के ही कस्बे में रहने वाली, स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी की मेडिकल स्टूडेंट किमेली नाओमा छुट्टियों में वापस केन्या आयी और वहाँ की लोकल जनजाति मसाई को 9/11 का आंखों देखा हाल सुनाया।
कोई बिल्डिंग इतनी ऊंची हो सकती है कि वहाँ से गिरने पर जान चली जाए, झोपड़ी में रहने वाले मसाई लोगों के लिए ये बात अविश्वसनीय थी मगर फिर भी उन लोगों ने अमरीकियों के दुःख को महसूस किया और उसी मेडिकल स्टूडेंट के माध्यम से केन्या की राजधानी नैरोबी में अमेरिकी दूतावास के डिप्टी चीफ़ विलियम ब्रांगिक को एक पत्र भिजवाया जिसे पढ़ने के बाद विलियम ब्रांगिक ने पहले हवाई जहाज का सफर किया, उसके बाद कई मील तक टूटी फूटी सड़क पर कठिनाई का रास्ता पर करते हुए मसाई जनजाति के गाँव पहुँचे।
गाँव पहुँचने पर मसाई जनजाति के लोग इक्कट्ठा हुए और एक कतार में 14 गायें ले कर अमरीकी दूतावास के डिप्टी चीफ़ के पास पहुँचे। मसाईयों के एक बुज़ुर्ग ने गायों से बंधी रस्सी डिप्टी चीफ़ के हांथों पे पकड़ाते हुए एक तख़्ती की तरफ इशारा कर दिया। जानते हैं उस तख़्ती पर क्या लिखा था? लिखा था- “इस दुःख की घड़ी में अमरीका के लोगों की मदद के लिए हम ये गायें उन्हें दान कर रहे हैं”। जी हाँ, उस पत्र को पढ़ कर दुनियाँ के सबसे ताकतवर और समृद्धि देश का राजदूत सैकड़ो मील चल कर चौदह गायों का दान लेने आया था।
गायों के ट्रांसपोर्ट की कठिनाई और कानूनी बाध्यता के कारण गायें तो नहीं जा पायीं मगर उनको बेंचकर एक मसाई आभूषण ख़रीद कर 9/11 मेमोरियल म्यूजियम में रखने की पेशकश की गई। जब ये बात अमरीका के आम नागरिकों तक पहुँची तो पता है क्या हुआ? उन्होंने आभूषण की जगह गाय लेने की ज़िद्द कर दी। ऑनलाइन पिटीशन साइन किये गए की उन्हें आभूषण नहीं गाय ही चाहिए, अधिकारियों को ईमेल लिखे गए, नेताओं से बात की गई और करोड़ों अमरीका वासियों ने मसाई जनजाति और केन्या के लोगों को इस अभूतपूर्व प्रेम के लिए कृतज्ञ भाव से धन्यवाद दिया, उनका अभिनंदन किया।
12 टन अनाज को सहर्ष स्वीकार करिये। दान नहीं, दानी का हृदय देखिये, कंकड़ नहीं, कंकड़ उठा कर सेतु में लगाने वाली गिलहरी की श्रद्धा देखिए।
साभार:राजीव शुक्ला ।।
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ये भाव पता नहीं हम भारतीयों ने कहाँ खो दिया है ?? जहाँ हम गिलहरी योगदान का यशोगान करते थकते नहीं, जहाँ एक भिखारन जब कारगिल योद्धाओं को अपना दान करती है तो हमारी आँखें छलक आती है वो भाव पता नहीं हमने कहाँ खो दिया है ??
क्यों हमारी मनोदशा ऐसी हो चुकी है कि किसी के दान का हम मजाक उड़ाने लगे है ?? राम के भारत भूमि में ऐसे सोच और विचार ??
केन्या के लोग गरीब है, मसाई लोग आज भी भौतिक सुख सुविधाओं से दूर है ,तन पे कपड़े नहीं होते हैं, जंगलों में रहते हैं लेकिन ये हमसे सहस्र गुना ज्यादे अमीर है और धनवान है।
तुम पढ़ लोगे,लिख लोगे,धन कमा लोगे,हर सुख सुविधाओं से लैस हो लोगे, लेकिन ये कभी नहीं कमा पाओगे। कभी नहीं।
हे मेरे केन्या के भाइयों! हमारे देश के एलीट वर्ग को क्षमा कर देना !🙏🙏 क्योंकि आपका दिल बहुत बड़ा है बहुत बड़ा। 🙏🙏गंगवा खोपोली से।

