आज का पंचाग आपका राशि फल, जाने वास्तु क्या होता है और सतत् उन्नति में वास्तु का योगदान क्या है, आध्यात्मिक चिंतन और सोलह संस्कारों की आवश्यकता

आज का पंचाग आपका राशि फल,

जाने वास्तु क्या होता है और सतत् उन्नति में वास्तु का योगदान क्या है,

आध्यात्मिक चिंतन और सोलह संस्कारों की आवश्यकता

 🕉श्री हरिहरो विजयतेतराम🕉
🌄सुप्रभातम🌄
🗓आज का पञ्चाङ्ग🗓
🌻शनिवार, २० अगस्त २०२२🌻

सूर्योदय: 🌄 ०६:०४
सूर्यास्त: 🌅 ०६:३३
चन्द्रोदय: 🌝 २४:१३
चन्द्रास्त: 🌜१३:५५
अयन 🌖 दक्षिणायने (उत्तरगोलीय)
ऋतु: ⛈️ वर्षा
शक सम्वत: 👉 १९४४ (शुभकृत)
विक्रम सम्वत: 👉 २०७९ (राक्षस)
मास 👉 भाद्रपद
पक्ष 👉 कृष्ण
तिथि 👉 नवमी (२५:०८ से दशमी)
नक्षत्र 👉 रोहिणी (२८:४० से मृगशिरा)
योग 👉 व्याघात (२१:४२ से हर्षण)
प्रथम करण 👉 तैतिल (१२:०० तक)
द्वितीय करण 👉 गर (२५:०८ तक)
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॥ गोचर ग्रहा: ॥
🌖🌗🌖🌗
सूर्य 🌟 सिंह
चंद्र 🌟 वृष
मंगल 🌟 वृष (उदित, पश्चिम, मार्गी)
बुध 🌟 कन्या (उदित, पश्चिम, मार्गी)
गुरु 🌟 मीन (उदित, पूर्व, वक्री)
शुक्र 🌟 कर्क (उदित, पूर्व)
शनि 🌟 मकर (उदित, पूर्व, वक्री)
राहु 🌟 मेष
केतु 🌟 तुला
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शुभाशुभ मुहूर्त विचार
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अभिजित मुहूर्त 👉 ११:५४ से १२:४६
अमृत काल 👉 २५:०५ से २६:५३
सर्वार्थसिद्धि योग 👉 ०५:४७ से २८:४०
अमृत सिद्धि योग 👉 ०५:४७ से २८:४०
विजय मुहूर्त 👉 १४:३१ से १५:२४
गोधूलि मुहूर्त 👉 १८:४० से १९:०४
सायाह्न सन्ध्या 👉 १८:५३ से १९:५९
निशिता मुहूर्त 👉 २३:५८ से २४:४२
राहुकाल 👉 ०९:०३ से १०:४२
राहुवास 👉 पूर्व
यमगण्ड 👉 १३:५८ से १५:३७
होमाहुति 👉 राहु
दिशा शूल 👉 पूर्व
नक्षत्र शूल 👉 पश्चिम (२८:४० तक)
अग्निवास 👉 पृथ्वी (२५:०८ तक)
चन्द्रवास 👉 दक्षिण
शिववास 👉 सभा में (२५:०८ से क्रीड़ा में)
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☄चौघड़िया विचार☄
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॥ दिन का चौघड़िया ॥
१ – काल २ – शुभ
३ – रोग ४ – उद्वेग
५ – चर ६ – लाभ
७ – अमृत ८ – काल
॥रात्रि का चौघड़िया॥
१ – लाभ २ – उद्वेग
३ – शुभ ४ – अमृत
५ – चर ६ – रोग
७ – काल ८ – लाभ
नोट– दिन और रात्रि के चौघड़िया का आरंभ क्रमशः सूर्योदय और सूर्यास्त से होता है। प्रत्येक चौघड़िए की अवधि डेढ़ घंटा होती है।
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शुभ यात्रा दिशा
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दक्षिण-पूर्व (वाय विडिंग अथवा तिल मिश्रित चावल का सेवन कर यात्रा करें)
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तिथि विशेष
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नन्दोत्सव, श्री गोगानवमी, बुध कन्या में २६:०५ से, विवाहादि मुहूर्त (हिमाचल-पंजाब -कश्मीर-हरियाणा) आदि प्रांतो के लिये गोधुलि सायं ०६:४५ से रात्रि ०८:१५ तक, देवप्रतिष्ठा मुहूर्त प्रातः ०७:३९ से ०९:१६ तक आदि।
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आज जन्मे शिशुओं का नामकरण
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आज २८:४० तक जन्मे शिशुओ का नाम
रोहिणी नक्षत्र के प्रथम, द्वितीय, तृतीय एवं चतुर्थ चरण अनुसार क्रमश (ओ, वा, वी, वू) नामाक्षर से तथा इसके बाद जन्मे शिशु का नाम मृगशिरा नक्षत्र के प्रथम चरण अनुसार क्रमशः (वे) नामाक्षर से रखना शास्त्रसम्मत है।
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उदय-लग्न मुहूर्त
सिंह – २९:३७ से ०७:५६
कन्या – ०७:५६ से १०:१३
तुला – १०:१३ से १२:३४
वृश्चिक – १२:३४ से १४:५४
धनु – १४:५४ से १६:५७
मकर – १६:५७ से १८:३८
कुम्भ – १८:३८ से २०:०४
मीन – २०:०४ से २१:२८
मेष – २१:२८ से २३:०१
वृषभ – २३:०१ से २४:५६
मिथुन – २४:५६ से २७:११
कर्क – २७:११ से २९:३३
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पञ्चक रहित मुहूर्त
रज पञ्चक – ०५:४७ से ०७:५६
शुभ मुहूर्त – ०७:५६ से १०:१३
चोर पञ्चक – १०:१३ से १२:३४
शुभ मुहूर्त – १२:३४ से १४:५४
रोग पञ्चक – १४:५४ से १६:५७
शुभ मुहूर्त – १६:५७ से १८:३८
मृत्यु पञ्चक – १८:३८ से २०:०४
अग्नि पञ्चक – २०:०४ से २१:२८
शुभ मुहूर्त – २१:२८ से २३:०१
मृत्यु पञ्चक – २३:०१ से २४:५६
अग्नि पञ्चक – २४:५६ से २५:०८
शुभ मुहूर्त – २५:०८ से २७:११
रज पञ्चक – २७:११ से २८:४०
शुभ मुहूर्त – २८:४० से २९:३३
चोर पञ्चक – २९:३३ से २९:४७
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आज का राशिफल
🐐🐂💏💮🐅👩
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मेष🐐 (चू, चे, चो, ला, ली, लू, ले, लो, अ)
आज का दिन पूर्वार्ध में अस्त व्यस्त रहेगा लेकिन आज आपके सभी कार्य सही दिशा में आगे बढ़ेंगे मध्यान तक व्यक्तिगत अथवा अन्य कारणों से व्यवसायिक कार्यो में विलंब होगा। लेकिन धीरे धीरे गाड़ी पटरी पर आने लगेगी व्यवसाय में थोड़ी तेजी मंदी लगी रहेगी कुछ समय के लिये मानसिक बेचैनी बनेगी लेकिन संध्या तक धन की आमद संतोष जनक हो जाएगी। नए कार्यो में निवेश करना आज शुभ रहेगा। उधारी अथवा अन्य लेन देन के कारण किसी से गरमा गरमी होने की संभावना है। गृहस्थ में आज अन्य दिनों की अपेक्षा शांति रहेगी तालमेल की कमी रहने के बाद भी स्थिति सामान्य रहेगी। शरीर मे कुछ कमी अनुभव करेंगे।

वृष🐂 (ई, ऊ, ए, ओ, वा, वी, वू, वे, वो)
आज का दिन आशानुकूल रहने से दिन भर प्रसन्न रहेंगे आज आपकी दिनचार्य व्यवस्थित नही रहेगी फिर भी सौभाग्य वृद्धि के योग बनने से सभी तरह से खुशहाली मिलेगी। काम-धंधा दिन के आरंभ से मध्यान तक इसके बाद संध्या से रात्रि तक प्रगति पर रहेगा। आज आपके द्वारा गलती से किया कार्य भी कुछ ना कुछ लाभ ही देकर जाएगा। सार्वजनिक क्षेत्र पर अपनी प्रतिभा दिखाने का अवसर मिलेगा। प्रतिस्पर्धा में किसी से आंतरिक मतभेद होने की भी संभावना है। पारिवारिक जीवन आनदमय रहेगा सभी सदस्य एक दूसरे को आदर देंगे भाई बंधु से थोड़ी नोंकझोंक हो सकती है परन्तु स्थिति गंभीर नही होगी। थकान को छोड़ सेहत ठीक रहेगी।

मिथुन👫 (का, की, कू, घ, ङ, छ, के, को, हा)
आज का दिन बनते कार्यो में विघ्न खड़े करेगा। दिन का पहला भाग शांति से व्यतीत करेंगे लेकिन इसके बाद किसी ना किसी उलझन में फंसते ही रहेंगे जिस भी कार्य को करने का मन बनाएंगे वह किसी ना किसी अभाव के कारण आरम्भ नही हो सकेगा। कार्य व्यवसाय में भी आज अकस्मात हानि के योग बन रहे है धन संबंधित मामले निवेश अथवा उधार के कार्य को आज निरस्त ही रखे।
धन लाभ अधिक परिश्रम के बाद अल्प मात्रा में होगा। घर मे भी किसी से नुकसान होने की संभावना है सतर्क रहकर कार्य करें। सेहत में भी कुछ ना कुछ कमी लगी रहेगी।

कर्क🦀 (ही, हू, हे, हो, डा, डी, डू, डे, डो)
आज के दिन सार्वजिनक कार्यो आपका महत्त्वपूर्ण योगदान स्वयं के साथ परिजनों का भी मान बढ़ाएगा किसी अपरिचित से कहासुनी भी हो सकती है धैर्य से काम लें। मध्यान तक घरेलू अथवा अन्य कार्यो में व्यस्त रहेंगे जिससे व्यवसायिक कार्यो में फेरबदल करना पड़ेगा। अधीनस्थों के प्रति नरमी रखें आज इनके सहयोग से ही धन लाभ की प्राप्ति होगी लेकिन ज्यादा जिम्मेदारी वाले कार्य भी ना सौपे अन्यथा नुकसान भी हो सकता है। धन लाभ आवश्यकतानुसार होगा ज्यादा पाने के चक्कर मे हाथ आये लाभ से भी वंचित ना रह जाये इसका ध्यान रखें। हर में कार्य अधिक रहने के कारण महिलाए बेचैन रहेंगी आरोग्य में कमी आयेगी।

सिंह🦁 (मा, मी, मू, मे, मो, टा, टी, टू, टे)
आज का दिन शुभफलदायक रहेगा। दिन के पूर्वार्ध और अंत मे शुभ कर्म के लिये प्रेरित होंगे घर मे मांगलिक आयोजन होने से नई ऊर्जा का संचार होगा। कार्य व्यवसाय से भी आज निराश नही होना पड़ेगा परिश्रम के अनुसार लाभ अवश्य मिल जाएगा। धन संबंधित उलझन भी आज थोड़ी कम रहने से राहत मिलेगी। व्यवसायी वर्ग नए कार्य आरंभ करेंगे भविष्य में इससे उन्नति होगी। नौकरी वाले लोग आज काम पर ज्यादा ध्यान नही देंगे। महिलाए आज कम समय मे अधिक पाने की लालसा रखेंगी लेकिन सफलता नही मिलेगी। परिजनों से संबंध सामान्य रहेंगे। शारीरिक कमजोरी अनुभव होगी।

कन्या👩 (टो, पा, पी, पू, ष, ण, ठ, पे, पो)
आज परिस्थितियां आपके पक्ष में रहेंगी भाग्य का साथ भी मिलने से सोची हुई योजनाए निर्विघ्न पूर्ण कर सकेंगे। दिन के आरंभ में घर मे पूजा पाठ के कारण भाग-दौड़ करनी पड़ेगी लेकिन इसका आध्यत्मिक लाभ भी किसी ना किसी रूप में अवश्य मिलेगा। मन के आज शांत रहने से किसी भी कार्य को बेहतर रूप से कर सकेंगे कार्य व्यवसाय में विलंब के बाद भी धन लाभ के अवसर मिलते रहेंगे धन लाभ थोड़े थोड़े अंतराल पर होते रहने से संतुष्ट रहेंगे। महिलाए सेहत का विशेष ध्यान रखें कमजोरी अथवा अन्य शारीरिक समस्या बनेगी। धार्मिक यात्रा एवं कार्यो में खर्च होगा।

तुला⚖️ (रा, री, रू, रे, रो, ता, ती, तू, ते)
आज का दिन प्रतिकूल रहेगा खराब सेहत आज प्रत्येक कार्य मे बाधक बनेगी फिर भी जबरदस्ती कार्य करेंगे जिससे कम समय मे अधिक थकान बनेगी। घर का वातावरण भक्तिमय रहेगा पूजापाठ आदि में सम्मिलित होने के अवसर सुलभ होंगे परन्तु मानसिक रूप से आज किसी भी कार्य मे उत्साह नही रहेगा। कार्य क्षेत्र पर भी व्यवहारिकता मात्र रहेगी मजबूरी में किये गए कार्य फलित नही होंगे सीमित साधन से काम निकालना पड़ेगा। व्यवसायी वर्ग आज व्यवसाय से काफी उम्मीद लगाए रहेंगे लेकिन आशा निराशा में बदलेगी। घर मे कुछ ना कुछ परेशानी में डालने वाले प्रसंग लगे रहेंगे।

वृश्चिक🦂 (तो, ना, नी, नू, ने, नो, या, यी, यू)
आज आपका मानसिक संतुलन स्थिर नही रहेगा असमंजस की स्थिति के कारण पल पल में निर्णय बदलेंगे इससे कार्य विलंब के साथ अन्य लोगो को परेशानी होगी फिर भी स्वार्थी पूर्ति के कारण आज आपसे कोई शिकायत नही करेगा। मन आज अनैतिक कार्यो में जल्दी आकर्षित होगा स्वभाव में भी उदण्डता रहेगी बिना कलह किये किसी कार्य को नही करेंगे। कार्य क्षेत्र पर भी मन मर्जी व्यवहार के कारण जिस लाभ के अधिकारी है उसमें कमी आएगी। धन की आमद आज पूर्व नियोजित रहेगी थोड़ी बहुत अतिरिक्त आय भी बना लेंगे लेकिन खर्च के आगे आज कमाई कम ही लगेगी। मौसमी बीमारियों एवं संयम की कमी के कारण सेहत बिगड़ सकती है।

धनु🏹 (ये, यो, भा, भी, भू, ध, फा, ढा, भे)
आज का दिन धन-धान्य में वृद्धि करने वाला रहेगा। दिन का आरंभिक भाग घरेलू व्यस्तता के कारण व्यावसायिक कार्यो से लाभ नही उठा सकेंगे। लेकिन मध्यान बाद से स्थिती पूर्ण रूप से आपकी पकड़ में रहेगी बाजार में तेजी रहने से लाभ के अवसर मिलते रहेंगे प्रतिस्पर्धा भी आज कुछ अधिक रहेगी लेकिन आपके व्यवसाय पर इसका ज्यादा असर नही पड़ेगा धन लाभ आज निश्चित ही आशाजनक रहेगा। नौकरी वाले लोग आज काम की जगह इधर उधर की बातों पर ज्यादा ध्यान देंगे अधिकारी वर्ग से कहा सुनी हो सकती है। घर मे सुख के साधनों की वृद्धि होगी खर्च भी करना पड़ेगा। स्वास्थ्य संबंधित थोड़ी बहुत समस्या लगी रहेगी।

मकर🐊 (भो, जा, जी, खी, खू, खा, खो, गा, गी)
आज के दिन आप अपनी कमियों को छुपाने का प्रयास करेंगे। लोगो के आगे अपनी बुद्धि चातुर्य का प्रदर्शन करेंगे बाहर से व्यवहारिकता लेकिन अंदर से ईर्ष्या और अहम की भावना रहेगी। परिजन को छोड़ अन्य सभी लोग आपकी मनगढंत बातो के झांसे में आसानी से आ जाएंगे लेकिन पोल खुलने के बाद लोगो का आपके ऊपर से विश्वास कम होगा। कार्य व्यवसाय में सोची हुई योजना स्वयं अथवा सहकर्मी की गलती से अनियंत्रित रहेगी। धन लाभ के अवसर मिलेंगे परन्तु सभी अवसरों का लाभ नही उठा सकेंगे फिर भी काम चलाऊ हो ही जायेगा। परिजनों के आगे ज्यादा अक्लमंदी ना दिखाये बेज्जती हो सकती है।

कुंभ🍯 (गू, गे, गो, सा, सी, सू, से, सो, दा)
आज का दिन आपके लिये विपरीत फलदायक रहेगा। परिवार के सदस्य आपसे अधिक सहयोग की अपेक्षा रखेंगे लेकिन टालमटोल करने पर घर का वातावरण खराब होगा। कार्य क्षेत्र पर लाभ की उम्मीद लगाए रहेंगे परन्तु आज मानसिक रूप से अशान्त रहने के कारण वहां से भी सकारात्मक परिणाम नही मिल सकेंगे फिर भी धन संबंधित उलझन अकस्मात लाभ होने से कुछ हद तक शांत रहेंगी। घरेलू खर्च के साथ अन्य खर्च आने से बजट प्रभावित होगा। घर मे आज मनमानी व्यवहार से बचें अन्यथा मनोकामना पूर्ति होने की जगह अन्य समस्याओं का सामना करना पड़ेगा। सेहत मानसिक क्लेश के कारण शिथिल रहेगी।

मीन🐳 (दी, दू, थ, झ, ञ, दे, दो, चा, ची)
आज का दिन अकस्मात लाभ की प्राप्ती कराएगा लेकिन ध्यान रखें लापरवाही से कार्य करने पर आज जो विचार में नही रहेगा वह घटना घट सकती है। मध्यान तक का समय मानसिक रूप से शांति प्रदान करेगा। आध्यात्मिक आयोजनों में सम्मिलित होंगे धर्म कर्म के प्रति आस्था बढ़ेगी लेकिन अन्य व्यस्तता के चलते चाह कर भी अधिक समय नही दे सकेंगे महिलाए आज धर्म के रंग में रंगी रहेंगी सेहत संबंधित शिकायत रहने के बाद भी सामर्थ्य से अधिक कार्य करने पर बाद में स्थिति गंभीर होने की संभावना है। कार्य व्यवसाय से अचानक धन मिलने पर प्रसन्न रहेंगे। सरकारी कार्य मे आज ढील ना दे वर्ना लंबे समय तक पूर्ण नही कर सकेंगे।
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〰️ वास्तुपुरुष

ॐ वास्तुपुरूषाय नमः
ॐ वास्तु देवाय नमः

‘मत्स्य पुराण’, ‘भविष्य पुराण’ ‘स्कंद पुराण’ गरुड़ पुराण इत्यादि पुराणों का अध्ययन करने पर ज्ञात होता है कि ‘वास्तु’ के प्रादुर्भाव की कथा विस्तार से मिलती है।

मत्स्य पुराण के अनुसार मत्स्य रूपधारी भगवान विष्णु ने सर्वप्रथम मनु के समक्ष वास्तु शास्त्र को प्रकट किया था, तदनंतर उनके उसी उपदेश को सूत जी ने अन्य ऋषियों के समक्ष प्रकट किया।

इसके अतिरिक्त ‘भृगु’, वशिष्ठ, विश्वकर्मा, मय, नारद, नग्नजित, भगवान शिव, इंद्र, ब्रह्मा, कुमार, नंदीश्वर, शौनक, गर्ग, वासुदेव, अनिरुद्ध, शुक्र तथा बृहस्पति- ये अठारह वास्तु शास्त्र के उपदेष्टा माने गये हैं।

‘मत्स्य पुराण’ के अनुसार प्राचीन काल में भयंकर अंधकासुर वध के समय विकराल रूपधारी भगवान शंकर के ललाट से पृथ्वी पर उनके स्वेद बिंदु गिरे थे, उससे एक भीषण एवं विकराल मुख वाला प्राणी उत्पन हुआ। वह पृथ्वी पर गिरे हुए अंधकों के रक्त का पान करने लगा, रक्त पान करने पर भी जब वह तृप्त न हुआ, तो वह भगवान शंकर के सम्मुख अत्यंत घोर तपस्या में संलग्न हो गया।

जब वह भूख से व्याकुल हुआ तो पुनः त्रिलोकी का भक्षण करने के लिए उद्यत हुआ। तब उसकी तपस्या से संतुष्ट होकर भगवान शंकर उससे बोले- ‘निष्पाप तुम्हारा कल्याण हो, अब तुम्हारी जो अभिलाषा है, वह वर मांग लो।’’ तब उस प्राणी ने शिवजी से कहा- देवदेवेश मैं तीनों लोकों को ग्रस लेने के लिए समर्थ होना चाहता हूं।

इस पर त्रिशूल धारी ने कहा-’’ ऐसा ही होगा, फिर तो वह प्राणी शिवजी के वरदान स्वरूप अपने विशाल शरीर से स्वर्ग, संपूर्ण भूमंडल और आकाश को अवरुद्ध करता हुआ पृथ्वी पर आ गिरा।

तब भयभीत हुए देवता और ब्रह्मा, शिव, दैत्यों और राक्षसों द्वारा वह स्तंभित कर दिया गया। उसे वहीं पर औंधे मुंह गिराकर सभी देवता उस पर विराजमान हो गये।

इस प्रकार सभी देवताओं के द्वारा उसपर निवास करने के कारण वह पुरुष ‘वास$तु= ‘वास्तु’ नाम से विख्यात हुआ।

तब उस दबे हुए प्राणी ने देवताओं से निवेदन किया- ‘‘देवगण आप लोग मुझ पर प्रसन्न हों, आप लोगों द्वारा दबाकर मैं निश्चल बना दिया गया हूं, भला इस प्रकार अवरुद्ध कर दिये जाने पर नीचे मुख किये मैं कब तक और किस तरह स्थित रह सकूंगा।

उसके ऐसा निवेदन करने पर ब्रह्मा आदि देवताओं ने कहा- वास्तु के प्रसंग में तथा वैश्वेदेव के अंत में जो बलि दी जायेगी वह तुम्हारा आहार होगा।

आज से वास्तु शांति के लिए जो- यज्ञ होगा वह भी तुम्हारा आहार होगा, निश्चय ही यज्ञोत्सव में दी गई बलि भी तुम्हें आहार रूप में प्राप्त होगी। गृह निर्माण से पूर्व जो व्यक्ति वास्तु पूजा नहीं करेंगे अथवा उनके द्वारा अज्ञानता से किया गया यज्ञ भी तुम्हें आहार स्वरूप प्राप्त होगा।

ऐसा कहने पर वह (अंधकासुर) वास्तु नामक प्राणी प्रसन्न हो गया। इसी कारण तभी से जीवन में शांति के लिए वास्तु पूजा का आरंभ हुआ।

वास्तुमण्डल निर्माण एवं वास्तुपूजन विधि:-
उत्तम भूमि के चयन के लिए तथा वास्तु मण्डल के निर्माण के लिए सर्वप्रथम भूमि पर अंकुरों का रोपण कर भूमि की परीक्षा कर लें, तदनंतर उतम भूमि के मध्य में वास्तु मण्डल का निर्माण करें।

वास्तु मण्डल के देवता 45 हैं, उनके नाम इस प्रकार हैं-

1. शिखी 2. पर्जन्य 3. जयंत 4. कुलिशायुध 5. सूर्य 6. सत्य 7. वृष 8. आकश 9. वायु 10. पूषा 11. वितथ 12. गहु 13. यम 14. गध्ंर्व 15. मगृ राज 16. मृग 17. पितृगण 18. दौवारिक 19. सुग्रीव 20. पुष्प दंत 21. वरुण 22. असुर 23. पशु 24. पाश 25. रोग 26. अहि 27. मोक्ष 28. भल्लाट 29. सामे 30. सर्प 31. अदिति 32. दिति 33. अप 34. सावित्र 35. जय 36. रुद्र 37. अर्यमा 38. सविता 39. विवस्वान् 40. बिबुधाधिप 41. मित्र 42. राज यक्ष्मा 43. पृथ्वी धर 44. आपवत्स 45. ब्रह्मा।

इन 45 देवताओं के साथ वास्तु मण्डल के बाहर ईशान कोण में चर की, अग्नि कोण में विदारी, नैत्य कोण में पूतना तथा वायव्य कोण में पाप राक्षसी की स्थापना करनी चाहिए।

मण्डल के पूर्व में स्कंद, दक्षिण में अर्यमा, पश्चिम में जृम्भक तथा उतर में पिलिपिच्छ की स्थापना करनी चाहिए।इस प्रकार वास्तु मण्डल में 53 देवी-देवताओं की स्थापना होती है। इन सभी का विधि से पूजन करना चाहिए।

मंडल के बाहर ही पूर्वादि दस दिशाओं में दस दिक्पाल देवताओं की स्थापना होती है। इन सभी का विधि से पूजन करना चाहिए।

मंडल के बाहर ही पूर्वादि दस दिशाओं में दस दिक्पाल देवताओं- इंद्र, अग्नि, यम, निऋृति, वरुण, वायु, कुबेर, ईशान, ब्रह्मा तथा अनंत की यथास्थान पूजा कर उन्हें नैवेद्य निवेदित करना चाहिए।

वास्तु मंडल की रेखाएं श्वेतवर्ण से तथा मध्य में कमल रक्त वर्ण से निर्मित करना चाहिए। शिखी आदि 45 देवताओं के कोष्ठकों को रक्तवर्ण से अनुरंजित करना चाहिए।

पवित्र स्थान पर लिपी-पुती डेढ़ हाथ के प्रमाण की भूमि पर पूर्व से पश्चिम तथा उतर से दक्षिण दस-दस रेखाएं खींचें। इससे 81 कोष्ठकों के वास्तुपद चक्र का निर्माण होगा।

इसी प्रकार 9-9 रेखाएं खींचने से 64 पदों का वास्तुचक्र बनता है।

वास्तु मण्डल के पूर्व लिखित 45 देवताओं के पूजन के मंत्र इस प्रकार हैं-

ऊँ शिख्यै नमः, ऊँ पर्जन्यै नमः, ऊँ जयंताय नमः, ऊँ कुलिशयुधाय नमः, ऊँ सूर्याय नमः, ऊँ सत्याय नमः, ऊँ भृशसे नमः, ऊँ आकाशाय नमः, ऊँ वायवे नमः, ऊँ पूषाय नमः, ऊँ वितथाय नमः, ऊँ गुहाय नमः, ऊँ यमाय नमः, ऊँ गन्धर्वाय नमः, ऊँ भृंग राजाय नमः,, ऊँ मृगाय नमः, ऊँ पित्रौ नमः, ऊँ दौवारिकाय नमः, ऊँ सुग्रीवाय नमः, ऊँ पुष्पदंताय नमः, ऊँ वरुणाय नमः, ऊँ असुराय नमः, ऊँ शेकाय नमः, ऊँ पापहाराय नमः, ऊँ रोग हाराय नमः, ऊँ अदियै नमः, ऊँ मुख्यै नमः, ऊँ भल्लाराय नमः, ऊँ सोमाय नमः, ऊँ सर्पाय नमः, ऊँ अदितयै नमः, ऊँ दितै नमः, ऊँ आप्ये नमः, ऊँ सावित्रे नमः, ऊँ जयाय नमः, ऊँ रुद्राय नमः, ऊँ अर्यमाय नमः, ऊँ सवितौय नमः, ऊँ विवस्वते नमः, ऊँ बिबुधाधिपाय नमः, ऊँ मित्राय नमः, ऊँ राजयक्ष्मै नमः, ऊँ पृथ्वी धराय नमः, ऊँ आपवत्साय नमः, ऊँ ब्रह्माय नमः।

इन मंत्रों द्वारा वास्तु देवताओं का विधिवत पूजन हवन करने के पश्चात् ब्राह्मण को दान दक्षिणा देकर संतुष्ट करना चाहिए।

तदनंतर वास्तु मण्डल, वास्तु कुंड, वास्तु वेदी का निर्माण कर मण्डल के ईशान कोण में कलश स्थापित कर गणेश जी एवं कुंड के मध्य में विष्णु जी, दिक्पाल, ब्रह्मा आदि का विधिवत पूजन करना चाहिए। अंत में वास्तु पुरुष का ध्यान निम्न मंत्र द्वारा करते हुए उन्हें अघ्र्य, पाद्य, आसन, धूप आदि समर्पित करना चाहिए।

वास्तुपुरुष का मंत्र:
वास्तोष्पते प्रति जानीहृस्मान्त्स्वावेशो अनमीवो भवान्।
यत् त्वेमहे प्रति तन्नो जुषस्वं शं नो’’ भव द्विपेद शं चतुषपदे।।

कलश पूजन: वास्तु पूजन में किसी विद्वान ब्राह्मण द्वारा कलश स्थापना एवं कलश पूजन अवश्य करवाना चाहिए। कलश में जल भरकर नदी संगम की मिट्टी, कुछ वनस्पतियां तथा जौ और तिल छोड़ें। नीम अथवा आम्र पल्लवों से कलश के कंठ का परिवेष्टन करें। उसके ऊपर श्रीफल की स्थापना करें। कलश का स्पर्श करते हुए (मन में ऐसी भावना करें कि उसमें सभी पवित्र तीर्थों का जल है) उसका आवाहन पूजन करें।

अपनी सामर्थ्य के अनुसार वास्तु मंत्र का जप करें तत्पश्चात् ब्राह्मण और गृहस्थ मिलकर अपने घर में उस जल से अभिषेक करें।

हवन एवं पूर्णाहुति देकर सूर्य देव को भी अघ्र्य प्रदान करें, अंत में ब्राह्मण को सुस्वादु, मीठा, उतम भोजन कराकर, दक्षिणा देकर उनका आशीर्वाद ग्रहण कर घर में प्रवेश करें और स्वयं भी बंधु-बांधवों के साथ भोजन करें।

इस प्रकार जो व्यक्ति वास्तु पूजन कर अपने नवनिर्मित गृह में निवास करता है उसे अमरत्व प्राप्त होता है तथा उसके गृहस्थ एवं पारिवारिक जीवन में रोग, कष्ट, भय, बाधा, असफलता इत्यादि का प्रवेश नहीं होता है तथा ऐसे गृह में निवास करने वाले प्राणी प्राकृतिक एवं दैवीय आपदाओं तथा उपद्रवों से सदा बचे रहते हैं और ‘वास्तु पुरुष’ एवं वास्तु देवताओं की कृपा से उनका सदैव कल्याण ही होता है।

2-वास्तुदेव की 3विशेषताएं होती हैं

चर वास्तु :-
इसमें वास्तु पुरुष की नजर या रुख
1· भाद्रपद ( अगस्त, सितम्बर ), आश्विन तथा कार्तिक ( अक्टूबर , नवम्बर ) महीनों के अवधि में वास्तु पुरुष की नजर या रुख दक्षिण की ओर होता है।

2· मार्गशीर्ष (नवम्बर- दिसंबर ), पौष ( दिसंबर – जनवरी ), और माघ (जनवरी-फरवरी ) महीनों में वास्तु पुरुष की नजर या रुख पश्चिम की ओर होता है।

3· फाल्गुन (फरवरी – मार्च ), चैत्र (मार्च – अप्रैल ), और वैशाख (अप्रैल – मई ) महीनों में वास्तु पुरुष की नजर या रुख उत्तर की ओर होता है।

4· ज्येष्ठ (मई – जून ), आषाढ़ (जून – जुलाई ), तथा श्रावण (जुलाई – अगस्त ) महीनों की अवधि में वास्तु पुरुष की नजर या रुख पूर्व की ओर होता है।

5· निर्माण कार्य का आरम्भ या शिलान्यास और मुख्य द्वार की स्थापना ऐसे स्थान पर होनी चाहिए जो वास्तुपुरुष की दृष्टी या नजर की ओर हो , ताकि मनुष्य उस मकान में शान्ति और सुख से रह सके।

स्थिर वास्तु :
वास्तु पुरुष का सिर सदैव :- उत्तर-पूर्व की ओर रहता है।

पैर :- दक्षिण – पश्चिम की ओर रहता है
दाहिना हाथ :- उत्तर-पश्चिम की ओर रहता है।

बांया हाथ :- दक्षिण – पूर्व की ओर रहता है रहता है।
इस बात को ध्यान में रखते हुए मकान का डिजाइन एवं प्लान बनाना चाहिए।

3-वास्तुपुरुष की नजर या नित्य वास्तु :

प्रत्येक दिन
· सुबह प्रथम 3 घंटे – वास्तु पुरुष की दृष्टी अथवा नजर सुबह प्रथम 3घंटे पूर्व की ओर रहती है।
· इसके पश्चात 3घंटे दक्षिण की ओर रहती है।
· तथा उसके बाद 3घंटे पश्चिम की ओर रहती है।
· तथा अंतिम 3घंटे उत्तर की ओर रहती है।

भवन का निर्माण कार्य इसी प्रकार समयानुसार करना चाहिए।

वास्तु पुरुष की तीन अवसरों पर पूजा अर्चना करनी चाहिये-
1· निर्माण कार्य में शिलान्यास करते समय।
2· दूसरी बार मुख्य द्ववार लगाते समय।
3· तीसरी बार गृह प्रवेश के समय पूजा करनी चाहिये।
4· गृह प्रवेश उस समय होना चाहिये जब वास्तुपुरुष की नजर उस ओर हो ये शुभ रहता है।

4-वास्तु में दिशाओं का महत्व एवं क्षेत्र :-
सूर्य जिस दिशामें उदय होता है उस दिशा को पूर्व दिशा कहते हैं एवं जिस दिशा में सूर्य अस्त होता है उस दिशा को पश्चिम दिशा कहते हैं , जब कोई पूर्व दिशा की ओर मुहँ करके खड़ा होता है , उसके बांयी ओर उत्तर दिशा एवं दांयी ओर दक्षिण दिशा होती है।

वह कोण जहाँ दोनों दिशाएँ मिलती हैं वह स्थान अधिक महत्वपूर्ण होता है क्योंकि वह स्थान दोनों दिशाओं से आने वाली शक्तियों को मिलाता है।

उत्तर – पूर्वी कोने को ईशान ,
दक्षिण- पूर्वी कोने को आग्नेय ,
दक्षिण – पश्चिम कोने को नैरत्य ,
और उत्तर–पश्चिम कोने को वायव्य कहते हैं।

दिशाओं का महत्व निम्न प्रकार से है :-

1· पूर्व – पित्रस्थान , इस दिशा में कोई कोई रोक या रुकावट नहीं होनी चाहिए , क्योंकि यह नर- शिशुओं व् संतति का स्रोत है।
2· दक्षिण – पूर्व (आग्नेय) : यह स्वास्थ्य का स्रोत है , यहाँ अग्नि का वास रसोई आदि का कार्य करना चाहिए।
3· दक्षिण – सुख , सम्पन्नता और फसलों का स्रोत है
4· दक्षिण – पश्चिम ( नैरत्य) : व्यवहार और चरित्र का स्रोत है तथा दीर्घ जीवन एवं मृत्यु का कारण।
5· पश्चिम- नाम , यश, और सम्पन्नता का स्रोत है।
6· उत्तर – पश्चिम (वायव्य) :व्यापार , मित्रता, और शत्रुता में परिवर्तन का स्रोत ।
7· उत्तर – माँ का स्थान , यह कन्या शिशुओं का स्रोत है , अतः इसमें कोई रूकावट नहीं होनी चाहिये।

8· उत्तर – पूर्व (ईशान) : स्वास्थ्य , संपत्ति , नर- शिशुओं , और सम्पन्नता का स्रोत है।

5- उपयुक्त भूखंड –

पूर्व मुखी भूखंड – शिक्षा एवं पत्रकारिता तथा फिलोस्फर जैसे लोगों के लिए उपयुक्त रहते हैं तथा हवा व् प्रकाश के लिए भी अच्छे रहते हैं।

उत्तर मुखी भूखंड – सरकारी कर्मचारी , प्रशासन से सम्बंधित कार्यों व् सेना के लोगों के लिए ज्यादा अच्छे रहते हैं।

दक्षिण मुखी भूखंड – ब्यापारिक प्रतिष्ठानों एवं व्यापार के कार्यों तथा धन के लिए अच्छे रहते हैं।

पश्चिम मुखी भूखंड सामाजिक कार्यकर्ताओं के लिए ज्यादा अच्छे रहते हैं।

शिलान्यास करने व् मुख्य द्वार लगाने का शुभ समय :-
· वैशाख शुक्ल पक्ष (अप्रैल – मई ),
· श्रावण मास (जुलाई – अगस्त ),
· मार्गशीर्ष मास (नवम्बर – दिसंबर),
· पौष मास (दिसंबर – जनवरी )
· और फाल्गुन मास (फरवरी – मार्च) महीने शुभ होते हैं
व् अन्य महीने अशुभ माने जाते हैं।

उपरोक्त महीनों के शुक्ल पक्ष की तिथि द्वितीया , पंचमी , सप्तमी, नवमी, एकादशी , त्रयोदशी तिथियों में वार , सोमवार, बुधवार, गुरूवार, शुक्रवार, आदि का दिन होना शुभ रहता है।तथा सूर्य की वृषभ राशि , वृश्चिक राशि , और कुम्भ राशि में सूर्य अनुकूल रहता है।
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प्रत्येक व्यक्ति प्रसन्न रहना चाहता है। बचपन और जवानी में तो वह पढ़ाई लिखाई खेलकूद नौकरी व्यापार इत्यादि अपने लौकिक कामों में ही उलझा रहता है। और उसी में असली सुख समझता है।
*”परन्तु जब प्रौढ़ावस्था आती है, अर्थात जब उम्र 40 वर्ष के आसपास या उससे अधिक हो जाती है, तब उसे जीवन जीने का थोड़ा थोड़ा होश आता है। तब समय का मूल्य भी समझ में आता है।”* तब ऐसा लगता है, कि *”मुझे कुछ आध्यात्मिक काम भी कर लेने चाहिएं थे, जो मैं अब तक नहीं कर पाया, और मैंने अपना सारा समय व्यर्थ ही इधर-उधर के गौण कामों में खो दिया। जिन खेलकूद नौकरी व्यापार इत्यादि कार्यों में मैं लगा रहा, वे इतने मूल्यवान नहीं थे, कि उनसे मेरी सर्वांगीण उन्नति हो जाती। उन लौकिक कार्यों से मुझे कुछ भौतिक लाभ तो हुआ, धन-संपत्ति तो मिली, परंतु जो वास्तविक प्रसन्नता और आनंद है, उसे मैं प्राप्त नहीं कर पाया।”*
अब मुझे बात समझ में आ रही है, कि *”मुझे वे आध्यात्मिक कार्य भी करने चाहिएं थे, जो मैंने अब तक जीवन में नहीं किए। जैसे रात को जल्दी सोना, सुबह जल्दी उठना, ईश्वर का ध्यान करना, प्रतिदिन यज्ञ करना, वेदों का स्वाध्याय करना, वैदिक सत्संग में जाना, शुभ कर्मों में कुछ दान देना, स्वास्थ्य की रक्षा के लिए कुछ व्यायाम खेलकूद करना, और अपने बच्चों को भी अच्छे संस्कार देना, इत्यादि।”* युवावस्था में ये सब कार्य न करने पर प्रौढ़ावस्था में फिर इस प्रकार का पश्चाताप होता है।
*”अतः छोटी उम्र से ही थोड़ा थोड़ा समय निकाल कर इन उत्तम कार्यों को भी प्रतिदिन करना चाहिए, तभी आपको जीवन का वास्तविक आनंद मिलेगा। और 40 वर्ष की उम्र के बाद फिर आपको उक्त पश्चाताप नहीं करना पड़ेगा।”*
तब आपको ऐसा लगेगा, कि *”मैंने अपने जीवन का पूरा लाभ उठाया। अच्छे काम किए, और मैं आज उनके कारण सुखी हूं। मेरा अगला जन्म भी बहुत अच्छा होगा।” “तब आप इस प्रकार के संतोष तथा आनन्द का अनुभव कर सकेंगे।”*
—- *स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक, रोजड़ गुजरात।*