आज का पंचाग आपका राशि फल, महाशिवरात्रि पर भगवान शिव के 11 रुद्र अवतारों को जाने, लक्ष्मी प्राप्ति का विशेष मंत्र, कौन है हमारे कर्मों का साक्षी! पपीते के पतों से कैंसर उपचार

महादेव का हर भक्त सौगंध ले कि मोदी इस बार के कार्यकाल में काशी विश्वनाथ का कार्य पूरा करेंगे।

🕉श्री हरिहरौ विजयतेतराम🌄सुप्रभातम🌄

आज का पञ्चाङ्ग🌻शुक्रवार, ०८ मार्च २०२४🌻

सूर्योदय: 🌄 ०६:४७, सूर्यास्त: 🌅 ०६:२८

चन्द्रोदय: 🌝 २९:५७, चन्द्रास्त: 🌜१६:०४

अयन 🌘 उत्तरायणे (दक्षिणगोलीय)

ऋतु: 🌳 वसंत, शक सम्वत: 👉 १९४५ (शोभकृत)

विक्रम सम्वत: 👉 २०८० (नल)

मास 👉 फाल्गुन, पक्ष 👉 कृष्ण 

तिथि 👉 त्रयोदशी (२१:५७ से चतुर्दशी)

नक्षत्र 👉 श्रवण (१०:४१ से धनिष्ठा)

योग 👉 शिव (२४:४६ से सिद्ध)

प्रथम करण 👉 गर (११:४१ तक)

द्वितीय करण 👉 वणिज (२१:५७ तक)

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॥ गोचर ग्रहा: ॥ 

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सूर्य 🌟 कुम्भ 

चंद्र 🌟 कुम्भ (२१:२० से)

मंगल 🌟 मकर (उदित, पूर्व, मार्गी)

बुध 🌟 मीन (अस्त, पूर्व, मार्गी)

गुरु 🌟 मेष (उदित, पश्चिम, मार्गी)

शुक्र 🌟 कुम्भ (उदित, पश्चिम, मार्गी)

शनि 🌟 कुम्भ (अस्त, पश्चिम, मार्गी)

राहु 🌟 मीन 

केतु 🌟 कन्या

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शुभाशुभ मुहूर्त विचार

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अभिजित मुहूर्त 👉 १२:०४ से १२:५१

अमृत काल 👉 २२:४३ से २४:०८

सर्वार्थसिद्धि योग 👉 ०६:३५ से १०:४१

विजय मुहूर्त 👉 १४:२५ से १५:१२

गोधूलि मुहूर्त 👉 १८:१८ से १८:४३

सायाह्न सन्ध्या 👉 १८:२१ से १९:३४

निशिता मुहूर्त 👉 २४:०३ से २४:५२

राहुकाल 👉 १०:५९ से १२:२८

राहुवास 👉 दक्षिण-पूर्व

यमगण्ड 👉 १५:२४ से १६:५२

होमाहुति 👉 केतु

दिशाशूल 👉 पश्चिम

अग्निवास 👉 पृथ्वी

भद्रावास 👉 मृत्यु (२१:५७ से) 

चन्द्रवास 👉 दक्षिण (पश्चिम २१:२० से)

शिववास 👉 भोजन में (२१:५७ से श्मशान में)

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☄चौघड़िया विचार☄

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॥ दिन का चौघड़िया ॥ 

१ – चर २ – लाभ

३ – अमृत ४ – काल

५ – शुभ ६ – रोग

७ – उद्वेग ८ – चर

॥रात्रि का चौघड़िया॥ 

१ – रोग २ – काल

३ – लाभ ४ – उद्वेग

५ – शुभ ६ – अमृत

७ – चर ८ – रोग

नोट👉 दिन और रात्रि के चौघड़िया का आरंभ क्रमशः सूर्योदय और सूर्यास्त से होता है। प्रत्येक चौघड़िए की अवधि डेढ़ घंटा होती है। 

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शुभ यात्रा दिशा

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पश्चिम-दक्षिण (दहीलस्सी अथवा राई का सेवन कर यात्रा करें)

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तिथि विशेष

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प्रदोष व्रत, महाशिवरात्रि पर्व (रात्रि चार प्रहर पूजन), पंचक आरम्भ २१:२० से, चूड़ाकर्म संस्कार मुहूर्त प्रातः ०६:४७ से ११:०९ तक, गृहप्रवेश मुहूर्त+ विधा एवं अक्षर आरम्भ मुहूर्त+देवप्रतिष्ठा मुहूर्त प्रातः ०६:४७ से ११:०९ तक, वाहन क्रय-विक्रय मुहूर्त दोपहर १२:३८ से ०२:०६ तक आदि।

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आज जन्मे शिशुओं का नामकरण 

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आज १०:४१ तक जन्मे शिशुओ का नाम श्रवण नक्षत्र के चतुर्थ चरण अनुसार क्रमशः (खो) नामाक्षर से तथा इसके बाद जन्मे शिशुओ का नाम धनिष्ठा नक्षत्र के प्रथम, द्वितीय, तृतीय एवं चतुर्थ चरण अनुसार क्रमशः (ग, गी, गू, गे) नामाक्षर से रखना शास्त्र सम्मत है।

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उदय-लग्न मुहूर्त

कुम्भ – २९:२९ से ०६:५५

मीन – ०६:५५ से ०८:१८

मेष – ०८:१८ से ०९:५२

वृषभ – ०९:५२ से ११:४७

मिथुन – ११:४७ से १४:०२

कर्क – १४:०२ से १६:२४

सिंह – १६:२४ से १८:४२

कन्या – १८:४२ से २१:००

तुला – २१:०० से २३:२१

वृश्चिक – २३:२१ से २५:४०

धनु – २५:४० से २७:४४

मकर – २७:४४ से २९:२५

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पञ्चक रहित मुहूर्त

रज पञ्चक – ०६:३५ से ०६:५५

शुभ मुहूर्त – ०६:५५ से ०८:१८

शुभ मुहूर्त – ०८:१८ से ०९:५२

रज पञ्चक – ०९:५२ से १०:४१

शुभ मुहूर्त – १०:४१ से ११:४७

चोर पञ्चक – ११:४७ से १४:०२

शुभ मुहूर्त – १४:०२ से १६:२४

रोग पञ्चक – १६:२४ से १८:४२

शुभ मुहूर्त – १८:४२ से २१:००

मृत्यु पञ्चक – २१:०० से २१:५७

अग्नि पञ्चक – २१:५७ से २३:२१

शुभ मुहूर्त – २३:२१ से २५:४०

रज पञ्चक – २५:४० से २७:४४

शुभ मुहूर्त – २७:४४ से २९:२५

चोर पञ्चक – २९:२५ से ३०:३४

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आज का राशिफल

🐐🐂💏💮🐅👩

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मेष🐐 (चू, चे, चो, ला, ली, लू, ले, लो, अ)

आज के दिन आप आराम से समय बिताना पसंद करेंगे लेकिन घरेलू कारणों से मनोकामना पूर्ति सम्भव नही हो पाएगी। घर के अधूरे कार्य इक्कठे सर पर आने के कारण मध्यान तक कोई ना कोई काम लगा रहेगा। कार्य व्यवसाय को लेकर मन मे चिंता रहेगी दोपहर के बाद व्यवसाय में वृद्धि के योग है धन लाभ भी आसानी से हो जाएगा कार्य क्षेत्र पर प्रतिस्पर्धी हावी रहेंगे फिर भी आपके कार्य को क्षति नही पहुचा पाएंगे। साधना के क्षेत्र से जुड़े लोगों को आध्यात्म में नई अनुभूति होगी पूजा पाठ का सकारत्मक परिणाम मिलने से उत्साहित रहेंगे। घरेलू वातावरण वैसे तो शांत ही रहेगा फिर भी आवश्यकता पूर्ति समय पर करें अन्यथा स्त्रीवर्ग और संतानों की जिद कलह का कारण बन सकती है। कंधे और कमर में दर्द की शिकायत होगी।

वृष🐂 (ई, ऊ, ए, ओ, वा, वी, वू, वे, वो)

आज के दिन आप शांति की तलाश में रहेंगे लेकिन कोई न कोई प्रसंग मानसिक रूप से अशांत ही बनाये रखेगा। दिन का आरंभ सुस्त रहेगा आलस्य प्रमाद फैलाएंगे। देखा देखी में पूजा पाठ में भी भाग ले सकते है लेकिन मन कही और ही भटकेगा। कार्य व्यवसाय से लाभ के अवसर मिलेंगे धन लाभ प्रयास करने पर अवश्य होगा लेकिन घरेलू और व्यक्तिगत खर्चो के लिए कम ही पड़ेगा। प्रतिस्पर्धी अथवा शत्रु पक्ष के आगे झुकना पड़ेगा तभी शांति मिलेगी। घर मे माता अथवा अन्य स्त्री वर्ग का दिमाग गर्म रहेगा घुटनो अथवा अन्य जोड़ो में समस्या के कारण चिड़चिड़ी रहेंगी काम निकालने में खासी परेशानी आएगी। संतानों का सुख उत्तम रहेगा आज्ञाकारी रहने पर गर्व अनुभव करेंगे। उटपटांग देखना भायेगा।

मिथुन👫 (का, की, कू, घ, ङ, छ, के, को, हा)

आज के दिन आप अधिकांश कार्य हड़बड़ाहट में करेंगे। खुद जल्दी से किसी कार्य को करने के लिए तैयार नही होंगे कोई और उसे करेगा तो उससे ईर्ष्या करेंगे। पति-पत्नी के बीच अंतरंग बातो को लेकर मतभेद रहेंगे। कार्य व्यवसाय में आज पिता का सहयोग तो कम रहेगा लेकिन प्रतिष्ठा का लाभ अवश्य किसी न किसी रूप में मिलेगा स्वयं के पराक्रम से इसमे वृद्धि भी करेंगे। सार्वजनिक क्षेत्र पर अपनी बचकानी हरकतों से हास्य के पात्र बनेंगे लेकिन इससे आस पास का वातावरण आनंदमय भी होगा। घर मे किसी न किसी की सेहत खराब होने के कारण अस्पताल के चक्कर लगाने पैड सकते है। यात्रा अति आवश्यक होने पर ही करें। व्यसनों से दूर रहे अन्यथा मान हानि होगी।

 

कर्क🦀 (ही, हू, हे, हो, डा, डी, डू, डे, डो)

आज के दिन आप अपनी इच्छाओं की पूर्ति थोड़े व्यवधान के बाद कर सकेंगे। घर मे किसी बात को लेकर माता से ठनेगी प्रेम से व्यवहार कर ही बात मनवाई जा सकती है। व्यवसायी वर्ग कार्य व्यवसाय से आज ज्यादा आशा ना रखें प्रतिस्पर्धा अधिक रहने व समय कम देने के कारण कम लाभ से ही संतोष करना पड़ेगा। खर्च अनियंत्रित रहेंगे सुखोपभोग एवं मनोरंजन पर आंख बंद कर व्यय करेंगे इससे संचित कोष में कमी आएगी। भाई बंधुओ को स्वयं से ज्यादा सम्मान मिलने पर मन मे ईर्ष्या की भावना रहेगी। आज स्वयं अथवा परिवार में किसी सदस्य को छाती अथवा पेट संबंधित संमस्या रहेगी। संतान अथवा अन्य घरेलू कारणों से यात्रा की योजना बनेगी।

सिंह🦁 (मा, मी, मू, मे, मो, टा, टी, टू, टे)

आज का दिन बीते दिनों की अपेक्षा राहत भरा रहेगा। घर मे कुछ समय के लिए कोई पुराने प्रसंग छिड़ने पर अशांति बनेगी मूकदर्शक बन कर रहे अन्यथा सारा दिन व्यर्थ मानसिक उलझनों के कारण बर्बाद होगा। व्यवसाय से लाभ हानि बराबर रहेगी धन की आमद होने के साथ ही खर्च भी हो जाएगी। मौज शौक एवं मनोरंजन पर दिखावे के लिये विशेष खर्च करेंगे। भाई बंधुओ से आर्थिक लाभ की संभावना है इसे सही जगह पर ही निवेश करें अन्यथा बैठे बिठाये नया झगड़ा मोल लेंगे। पिता का सुख ना के बराबर रहेगा सरकारी कार्यो में फंसने की संभावना है अथवा सरकारी उलझने बढ़ने से परेशानी होगीं। आस पड़ोसियों के कारण खर्च बढेगा।

 

कन्या👩 (टो, पा, पी, पू, ष, ण, ठ, पे, पो)

आज आप कार्य व्यवसाय को लेकर परेशान रहेंगे भाग दौड़ के पक्ष में नही रहेंगे फिर भी ना चाहकर भी करनी ही पड़ेगी आर्थिक समस्या आज लगभग सभी कार्यो में बाधक बनेगी। भाई बंधुओ के साथ ही समाज से सम्मान मिलेगा लेकिन मन को संतोष नही दे पाएगा। मैन ही मन उलझे रहेंगे लेकिन किसी को बताएंगे नही पर ध्यान दे मन मे चल रही उलझन प्रियजनों से बांटने पर ही कम हो सकती है। माता के साथ आध्यात्मिक बातो को बांटने पर कुछ समय के लिए मानसिक राहत मिलेगी। सार्वजनिक कार्यो में पिता के नाम पर खर्च करना पड़ेगा। कार्य व्यवसाय से ना के बराबर आमद होगी आवश्यकता पूर्ति के लिये भी अन्य के ऊपर निर्भर रहना पड़ेगा। आध्यात्म का सहारा लेने पर शारीरिक पीड़ा अनुभव नही होगी।

तुला⚖️ (रा, री, रू, रे, रो, ता, ती, तू, ते)

आज भी आपका जिद्दी स्वभाव घर मे कलह का कारण बनेगा विशेष कर माता को अधिक कष्ट होगा लेकिन पिता के साथ अच्छी जमेगी। सार्वजनिक क्षेत्र पर कम व्यवहार रखें मित्र मंडली अथवा अन्य कारणों से शर्मिंदा होना पड़ेगा। कार्य व्यवसाय से धन लाभ अवश्य होगा परन्तु आज हाथ खुला रहने के कारण धन आने के साथ ही जाने के रास्ते भी बना लेगा। बड़े भाई बहन से सतर्क रहें आपकी गतिविधयों पर नजर रखे हुए है गलती करने पर दया नही करेंगे। सरकारी कार्य आज अधूरे ही रहेंगे लेकिन निकट भविष्य में अवश्य ही कुछ ना कुछ लाभ देंगे। धर्म आध्यात्म में आज रुचि कम ही रहेगी। मौज शौक सुखोपभोग के लिए हर समय उपस्थित रहेंगे। संतानों की सेहत पर खर्च बढेगा।

वृश्चिक🦂 (तो, ना, नी, नू, ने, नो, या, यी, यू)

आज का दिन धन लाभ वाला है विशेष कर व्यवसायियों को पूर्व में कई मेहनत का फल अवश्य ही किसी न किसी रूप में मिलेगा भाई बंधुओ के सहयोग से भी लाभ के साधन बनेंगे परन्तु संतानों के ऊपर खर्च अनियन्त्रित रहने के कारण बचत नही कर पाएंगे। माता के द्वारा प्रसंशा होने पर आंनदित रहेंगे सार्वजनिक क्षेत्र पर भी आदर बढ़ेगा। कार्य व्यवसाय से बुद्धि चातुर्य से हानि वाले कार्यो से भी लाभ कमा लेंगे लेकिन निवेश करते समय अधिक विचार करे गलत जगह होने की संभावना अधिक है। परिवार में माता को छोड़ अन्य सभी विशेष कर पिता अथवा पिता तुल्य व्यक्ति का विरोध देखना पड़ेगा संताने भी उन्हींका पक्ष लेंगी। मित्र मंडली में बैठते समय सतर्क रहें कोई नई परेशानी खड़ी हो सकती है। सेहत पर भी खर्च करना पड़ेगा।

धनु🏹 (ये, यो, भा, भी, भू, ध, फा, ढा, भे)

आज के दिन आपका स्वभाव उदासीन रहेगा किसी से भी ज्यादा व्यवहार नही रखेंगे। आर्थिक एव व्यावसायिक दृष्टिकोण से यह आपके लिए आज हितकर भी रहेगा। कार्य क्षेत्र पर कोई भी कार्य जबरदस्ती बनाने का प्रयास ना करें वरना हानि ही होगीं। सहज रूप से आवश्यकता अनुसार लाभ हो जाएगा। आध्यात्मिक उन्नति होगी लेकिन इससे अहम भी बढ़ेगा दिखावे के लिए परोपकार करेंगे फिर भी यह शत्रुओ के दमन में सहायता करेगा। माता पिता के एकमत रहने से पैतृक संबंधित अथवा लाभ पाने के लिए अधिक मशक्कत करनी पड़ेगी तभी जाकर सफलता मिलेगी। संतान पक्ष मनमानी करेगी ढील ना दे अन्यथा बाद में पछताना पड़ेगा। आज पिता की सेहत का भी विशेष ध्यान रखें। यात्रा अंत समय मे निरस्त करनी पड़ सकती है।

 

मकर🐊 (भो, जा, जी, खी, खू, खा, खो, गा, गी)

आज के दिन आपका स्वभाव रहस्यमय रहेगा। कहेंगे कुछ लेकिन मन मे कुछ और ही रहेगा इस आदत के चलते घर एवं बाहर आपकी बातों पर विश्वास नही किया जाएगा। अपना काम निकलने के लिये झूठी कहानिया बनाएँगे। संतानों के माध्यम से कुछ न कुछ लाभ होगा लेकिन इनके ऊपर खर्च भी करना पड़ेगा। कार्य व्यवसाय में जोड़ तोड़ के बाद काम चलाऊ आय हो जाएगी। सेहत में उतार चढ़ाव लगा रहेगा सर्दी जुखाम के कारण ज्यादा परेशानी रह सकती है ठंडे एवं तले भुने से परहेज करें अन्यथा संमस्या बढ़ भी सकती हैं। घरेलू कार्यो को करने में टालमटोल करेंगे लेकिन मनोरंजन के लिये तैयार रहेंगे इस वजत से घर मे कहा सुनी होगीं। महिलाए इच्छा पूर्ति होने पर भी असंतुष्ट ही रहेंगी।

 

कुंभ🍯 (गू, गे, गो, सा, सी, सू, से, सो, दा)

आज के दिन आप अपनी ही आदतों के कारण अंदर ही अंदर परेशान रहेंगे। घर के छोटो अथवा पिता के कारण क्रोध आएगा लेकिन प्रकट करने की जगह मन मे ही रखेंगे। घर मे सुख सुविधा के साथ अन्य आवश्यक वस्तुओं की खरीददारी पर अधिक खर्च होगा फिर भी आज सभी को संतुष्ट नही कर पाएंगे। माता से लाभ होगा परन्तु पिता से आज कम ही बनेगी। संतान के व्यवहार को लेकर भी चिंतित रहेंगे।ज्यादा मेहनत करने के पक्ष में नही रहेंगे परन्तु ध्यान रहे आज कम मेहनत से भी अधिक लाभ कमाया जा सकता है आरम्भ में थोड़े व्यवधान भी आएंगे लेकिन यह निकट भविष्य में उपयोगी सिद्ध होगा। सेहत ठीक ही रहेगी।

 

मीन🐳 (दी, दू, थ, झ, ञ, दे, दो, चा, ची)

आज का दिन सार्वजनिक क्षेत्र और कार्यो से सम्मान दिलाएगा। दिन का पहला भाग आलस्य में खराब होगा स्वस्थ्य रहने पर भी बीमारी का बहाना बनाकर कार्यो से बचने का प्रयास करेंगे। कार्य क्षेत्र पर मध्यान बाद ही गति आएगी धन लाभ कम समय मे आवश्यकता से अधिक हो जाएगा। घरेलू कार्यो के साथ सामाजिक कार्यो के लिये भी समय निकालना पड़ेगा। सार्वजनिक क्षेत्र पर आपकी क्षवि उदार एवं धनवानों जैसी बनेगी भले अंदर से कुछ और ही रहे। संध्या का समय आनंद मनोरंजन में बीतेगा। अधिक बोलने से बचें अन्यथा घर अथवा मित्र मंडली में अपमानित हो सकते है।

〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️🙏राधे राधे🙏

*भगवान शिव के 11 रुद्र अवतार कौन से हैं?*

*शिव के 11 रुद्र अवतारों के नाम कपाली, पिंगल, भीम, विरुपाक्ष, विलोहित, शास्ता, अजपाद, आपिर्बुध्य, शम्भू, चण्ड, भव ये रुद्र, सुरभी के पुत्र हैं. ये सुख के अवास स्थान हैं और देवताओं की कार्य सिद्धि के लिए शिव रूप में उत्पन्न हुए हैं. ये 11 रुद्र, दिव्य प्राणियों की रक्षा के लिए अस्तित्व में आए और युद्ध में उपहार में दिए गए. रुद्र का अर्थ है “जो समस्याओं को जड़ से मिटा दे”. ऋग्वेद में, रुद्र की “पराक्रमी में भी सबसे शक्तिशाली” के रूप में प्रशंसा की गई है।*

*भगवान शिव अर्थात महादेव के 11 रुद्र अवतार कौन-कौन से हैं?*

*भगवान हनुमान किसके अवतार हैं?*

*भगवान शिव के ग्यारहवें रूद्र अवतार कौन हैं?*

*हनुमान जी भगवान रूद्र के 11 वे* *अवतार हैं तो उनके बाकी 10 अवतार कौन से हैं?*

*क्या हैं शिव जी के* *11 रुद्र अवतारों के नाम?*

*उत्तर 👉शिव के अन्य ग्यारह अवतार- कपाली, पिंगल, भीम, विरुपाक्ष, विलोहित, शास्ता, अजपाद, आपिर्बुध्य, शम्भू, चण्ड तथा भव का उल्लेख मिलता है।*

*शिव के कितने अवतार हैं।?*

*सुप्रसिद्ध शिव महापुराण में देवों के देव महादेव शिव के अनेक अवतारों का वर्णन किया गया है. इस धर्मग्रंथ के अनुसार भगवान शिव ने 19 अवतार लिए थे।*

*वीरभद्र अवतार: भगवान शिव का यह अवतार तब हुआ था, जब दक्ष के यज्ञकुंड में देवी सती ने देहदाह किया था. शिव के इस अवतार ने दक्ष के यज्ञ का विध्वंस किया और उसका सिर काटकर मृत्युदंड दिया.*

*भैरव अवतार: शिव महापुराण में भैरव को परमात्मा देवाधिदेव शिव का पूर्ण रूप बताया गया है. इनका सबसे प्रसिद्ध मंदिर काशी में है।*

*अश्वत्थामा अवतार: महाकाव्य महाभारत के अनुसार गुरु द्रोण के पुत्र अश्वत्थामा काल, क्रोध, यम और भगवान शिव के अंशावतार थे. शतरुद्रसंहिता की मानें, तो अश्वत्थामा आज भी जीवित हैं।*

*शरभावतार: इस अवतार में भगवान शिव का स्वरूप आधा हिरण और शेष शरभ पक्षी का था. पुराणों के अनुसार शरभ पक्षी आठ पैरों वाला जंतु, शेर से भी अधिक शक्तिशाली था. इस अवतार में भगवान शिव ने विष्णु के अवतार नृसिंह के क्रोध को शांत किया था।*

*ऋषि दुर्वासा: भगवान शिव के विभिन्न अवतारों में ऋषि दुर्वासा का अवतार भी प्रमुख है, जो अपने क्रोध के लिए जगविख्यात थे. कहते हैं, शिवातार ऋषि दुर्वासा जिस पर क्रोधित होते थे, उसका सदैव कल्याण होता था।*

*हनुमान अवतार: भगवान शिव का हनुमान अवतार शिव के सभी अवतारों में श्रेष्ठ माना गया है. इस अवतार में भगवान शिव ने एक वानर का रूप धरा था और प्रभु राम की भक्ति की थी।*

*वृषभ अवतार: भगवान शिव ने वृषभ अवतार विशेष परिस्थितियों में लिया था. इस अवतार में भगवान शिव ने विष्णु के अहंकारी पुत्रों का संहार किया था।*

*कृष्णदर्शन अवतार: भगवान शिव ने इस अवतार में यज्ञ आदि धार्मिक कार्यों के महत्व को बताया है. यह अवतार पूर्णत: धर्म का प्रतीक माना जाता है।*

*अवधूत अवतार: भगवान शिव ने अवधूत अवतार लेकर स्वर्गाधिपति देवराज इंद्र के अंहकार को चूर किया था।*

*सुरेश्वर अवतार: भगवान शिव ने सुरेश्वर अवतार एक छोटे से बालक उपमन्यु की भक्ति से प्रसन्न होकर उसे अपनी परम भक्ति और अमर पद का वरदान दिया।*

*किरात अवतार: किरात अवतार में भगवान शिव ने पाण्डुपुत्र धनुर्धारी अर्जुन की वीरता की परीक्षा ली थी।*

*सुनटनर्तक अवतार: पार्वती के पिता हिमालयराज से उनकी पुत्री का हाथ मागंने के लिए भगवान शिव ने सुनटनर्तक वेष धारण किया था।*

*ब्रह्मचारी अवतार: दक्ष के यज्ञ में प्राण त्यागने के बाद जब सती ने हिमालयराज के घर पार्वती के रूप में जन्म लिया तो शिव को पति रूप में पाने के लिए घोर तप किया. पार्वती की परीक्षा लेने के लिए शिवजी ब्रह्मचारी का वेष धारण कर उनके पास पहुंचे थे।*

*यक्ष अवतार: यक्ष अवतार शिवजी ने देवताओं के अनुचित और मिथ्या अभिमान को दूर करने के लिए धारण किया था।*

*भगवान शिव के ग्यारह रुद्र अवतार कौन से हैं*

*उन दिनों में जब देवता स्वर्ग और पृथ्वी के बीच स्वतंत्र रूप से चले; जब देवताओं ने न्याय और प्रकाश के लिए संघर्ष किया, तो इंद्र, वज्र के देवता, ने अमरावती पुरी नामक शहर में देवताओं का शासन किया। ऐसी ही एक लड़ाई में, राक्षस इंद्र और उसकी देवताओं की सेना को हराने में सक्षम थे और उन्होंने देवताओं को शहर से भागने के लिए मजबूर किया। देवता डर और निराशा से भरे हुए थे, वे महर्षि कश्यप के आश्रम में गए।*

*बैठक में, देवताओं के राजा, जो अब अलग हो गए, ने अपने पिता को पूरी कहानी बताई। कश्यप ने राक्षस पर क्रोध किया। महर्षि अपने परम ज्ञान और ध्यान करने की क्षमता के लिए जाने जाते थे। इस प्रकार, उन्होंने इंद्र को सांत्वना दी और वादा किया कि वह समस्या का हल ढूंढ लेंगे।*

*महर्षि काशीपुरी में ध्यान करने और स्वयं शिव से आशीर्वाद लेने के उद्देश्य से गए थे। काशीपुरी पहुँचने के बाद, उन्होंने शिव-लिंग की स्थापना की और शिव के नाम का जाप करते हुए, ध्यान में रहने लगे। काफी समय तक ध्यान करने के बाद, शिव उनके सामने प्रकट हुए। वह कश्यप के ध्यान से प्रभावित हुए और उन्होंने महर्षि से इच्छा करने को कहा।*

*कश्यप ने देवताओं की विकट स्थिति को याद किया। उन्होंने तब शिव से कहा कि राक्षस ने देवताओं को हरा दिया था, और अमरावती पुरी शहर पर अधिकार कर लिया था। उन्होंने शिव को अपने पुत्र के रूप में जन्म लेने के लिए कहा, देवताओं को न्याय देने और शहर में उनके रक्षक के रूप में जगह लेने के लिए। शिव ने “तथागत-अस्तु” शब्दों का उच्चारण करके अपनी इच्छा प्रकट की।*

*महर्षि अपने आश्रम लौट आए और देवताओं को पूरी घटना बताई। वे सब कुछ सुनकर प्रसन्न हुए। कालांतर में कश्यप ऋषि की पत्नी सुरभि ने तब 11 पुत्रों को जन्म दिया। ये आकाशीय शिव के रूप थे और रुद्र के रूप में जाने जाते थे। उनके जन्म के साथ, देवताओं, कश्यप और उनकी पत्नी सहित पूरी दुनिया प्रसन्न थी।*

*भगवान शिव ने कश्यप पत्नी के (सुरभि) गर्भ से ग्यारह रुद्रों के रूप में पृथ्वी पर जन्म लिया। निम्नलिखित ग्यारह रुद्रों के नाम हैं:*

*कपाली*

*पिंगल*

*भीम*

*वीरूपक्ष*

*विलोहित*

*शास्त्र*

*अजपद*

*अहिर्बुध्न्य*

*शम्भू*

*चाँद*

*भव*

गुरु साधना से लक्ष्मी प्राप्ति 

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महर्षि विश्वामित्र द्वारा प्रणीत, सदगुरुदेव द्वारा प्रदत्त, दुर्भाग्य को मिटाने वाली अखंड लक्ष्मी प्राप्ति साधना। यह साधना मात्र तीन घंटे कि है जिसे कि किसी भी माह की अमावस्या से आरम्भ कर कम से कम 3 या 7 अमावस्या करने पर शुभफल मिलने लगते है।

 

साधना क्रम :-

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   सफ़ेद वस्त्र, सफ़ेद आसन, उत्तर दिशा, सामने गुरु चित्र, सामग्री में- कुमकुम ,अक्षत (बिना टूटे चावल ), गंगा जल, केसर, पुष्प (किसी भी तरह के), पंचपात्र, घी का दीपक जो साधना क्रम में अखंड जलेगा, कपूर, अगरबत्ती, एक कटोरी।

 साधक शुद्धता से स्नान कर सफ़ेद वस्त्र धारण कर उत्तर कि ओर मुह कर बैठें। सामने बाजोट पर यदि गणपति विग्रह हो तो स्थापित कर पूजन करें अथवा चावल कि धेरी पर एक सुपारी में कलावा बांधा कर गणपति के रूप में पूजन संपन्न करें। तत्पश्चात पंचोपचार गुरु पूजन संपन्न करें। और चार माला गुरु मंत्र कि करें अब अपने स्वयं के शरीर को गुरु का हि शरीर मानते हुए अपने आपको गुरु में लीं करते हुए आज्ञा चक्र में “परमतत्व गुरु” स्थापन करें ।

 परमतत्व गुरु स्थापन 

ऐं ह्रीं श्रीं अम्रताम्भोनिधये नमः।रत्ना-द्विपाय नम:। संतान्वाटीकाय नम:। हरिचंदन-वाटिकायै नम। पारिजात-वाटिकायै नम:। पुष्पराग-प्रकाराय नम:। गोमेद-रत्नप्रकाराय नम:। वज्ररत्न्प्रकाराय नम:। मुक्ता-रत्न्प्रकाराय नम:। माणिक्य-रत्नाप्रकाराय नम:। सहेस्त्र स्तम्भ प्रकाराय नम:। आनंद वपिकाय नम:। बालातपोद्धाराय नम:। महाश्रिंगार-पारिखाय नम:। चिंतामणि-गृहराजाय नम:। उत्तर द्वाराय नम:। पूर्व द्वाराय नम:। दक्षिण द्वाराय नम:। पश्चिम द्वाराय नम:। नाना-वृक्ष-महोद्ध्य्नाय नम:। कल्प वृक्ष-वाटिकायै नम:। मंदार वाटिकायै नम:। कदम्ब-वन वाटिकायै नम:। पद्मराग-रत्न प्राकाराय नम:। माणिक्य-मण्डपाय नम:। अमृत-वपिकायै नम:। विमर्श- वपिकायै नम:। चन्द्रीकोद्राराय नम:। महा-पद्माटव्यै नम:। पुर्वाम्नाय नम:। दक्षिणा-म्नाय नम:। पस्चिम्माम्नाय नम:। उत्तर-द्वाराय नम:। महा-सिंहासनाय नम:। विश्नुमयैक-पञ्च-पादाय नम:। ईश्वर-मयैक पञ्च पादाय नम:। हंस-तूल-महोपधानाय नम:। महाविभानिकायै नम:। श्री परम तत्वाय गुरुभ्यो नम:।

      इस प्रकार परमतत्व गुरु को अपने आज्ञा चक्र में स्थापित करने के बाद एक पात्र में जल कुमकुम अक्षत और पुष्प कि पंखुड़ियां लेकर गुरु कि द्वादश कलाओं को अर्ध दें

 द्वादश कला पूजन

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 ऐं ह्रीं श्रीं कं भं तपिन्यै नम:।

(“ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं अं सूर्य मण्डलाय द्वादश्कलात्मने अर्घ्यपात्राय नम:”, प्रत्येक मंत्र के बाद इस मंत्र से पात्र में रखे हुए कुमकुम मिश्रित जल से दुसरे पात्र में अर्घ्य देने हैं )

 ऐं ह्रीं श्रीं खं बं तापिन्यै नम:।

 ऐं ह्रीं श्रीं गं फं धूम्रायै नम:।

ऐं ह्रीं श्रीं घं पं विश्वायै नम:।

ऐं ह्रीं श्रीं ड़ं नं बोधिन्यै नम:।

ऐं ह्रीं श्रीं चं धं ज्वालिन्यै नम:।

ऐं ह्रीं श्रीं छं दं शोषिण्यै नम:।

ऐं ह्रीं श्रीं जं थं वरण्योये नम:।

ऐं ह्रीं श्रीं झं तं आकर्षण्यै नम:।

ऐं ह्रीं श्रीं ञं णं मयायै नम:।

ऐं ह्रीं श्रीं टं ढं विवस्वत्यै नम:।

ऐं ह्रीं श्रीं ठं डं हेम-प्रभायै नम:।

  उपरोक्त कला पूजन में “ऐं ह्रीं श्रीं” लक्ष्मी के बीज मंत्र हैं अतः इस प्रकार ये लक्ष्मी के सभी स्वरूप हमारे शरीर में समाहित हो जाते हैं।

कोई भी धन का सही उपयोग तभी जीवन में पूर्ण आनंद और ऐश्वर्या देता है जब कि लक्ष्मी के साथ सुख, सम्मान, तुष्टि-पुष्टि, ओर संतोष भी प्राप्त हो अतः सोलहकला पूजन विधान है। इसके लिए गुरु को अर्घ्य पात्र में जल, अक्षत, पुष्प, कुमकुम लेकर समर्पित करें। पहले निम्न मंत्र से मूल समर्पण करें फिर सोलह कलाओं के प्रत्येक मंत्र के साथ अर्घ्य पात्र में समर्पित करें।

ऐं ह्रीं श्रीं सौं उं सोम-मण्डलाय षोडशी कलात्मने अर्घ्य पात्रामृताय नमः।

  इस अर्घ्य को समर्पित करते समय उसका जल थोड़ा थोड़ा करके सोलह बार ग्रहण करें, इसके बाद गुरु कि सोलह कलाओं का अर्घ्य पूजन करें।

सोलह कला पूजन 

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ऐं ह्रीं श्रीं अं अमृतायै नमः.

(ऐं ह्रीं श्रीं सौं उं सोम-मण्डलाय षोडशी कालात्मने अर्घ्य पात्रामृताय नमः )

 ऐं ह्रीं श्रीं आं मानदायै नमः.

 ऐं ह्रीं श्रीं इं तुष्टयै नमः

 ऐं ह्रीं श्रीं ईं पुष्टयै नमः

 ऐं ह्रीं श्रीं उं प्रीत्यै नमः

 ऐं ह्रीं श्रीं ऊं रत्यै नमः

 ऐं ह्रीं श्रीं ॠं श्रीयै नमः 

 ऐं ह्रीं श्रीं ऋृं क्रियायै नमः 

 ऐं ह्रीं श्रीं लृं सुधायै नमः 

 ऐं ह्रीं श्रीं लृं रात्रयै नमः 

 ऐं ह्रीं श्रीं एं ज्योत्स्नायै नमः 

 ऐं ह्रीं श्रीं ऐं हैमवत्यै नमः 

 ऐं ह्रीं श्रीं ओं छायायै नमः 

 ऐं ह्रीं श्रीं औं पूर्णीमायै नमः 

 ऐं ह्रीं श्रीं अः विद्यायै नमः 

 ऐं ह्रीं श्रीं वः अमावस्यायै नमः 

इसके उपरांत गुरु के मूल मंत्र का जाप करें

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 “ॐ परम तत्वाय नारायणाये नमः “ 

इस मंत्र कि एक माला फेरें या जो आपका गुरु मंत्र है उसकी माला करें। अब अपने सामने किसी पात्र में दीपक और कपूर जलाएं। फिर अपने शारीर में हि गुरु को समाहित मानकर बेठे हि बेठे समर्पण और आमंत्रण आरती करें।

पूर्ण सिद्ध आरती

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अत्र सर्वानन्द – मय व्यन्दव – चक्रे परब्रह्म – स्वरूपणी परापर – शक्ति – श्रीमहा – गुरु देव – समस्त – चक्र – नायके – सम्वित्ती – रूप – चक्र नायाकाधिष्ठिते त्रैलोक्यमोहन – सर्वाशपरी – पुरख – सर्वसंक्षोभकारक – सर्वसौ – भाग्यादायक – सर्वार्थसाधक – सर्वरक्षाकर – सर्वरोगहर – सर्वासिद्धीप्रद – सर्वानन्दरय – चक्र – समुन्मीलित – समस्त – प्रकट – गुप्त – गुप्ततर – सम्प्रदाय – कुल – कौलिनी – निगम – रहस्यातिरहस्य – परापर रहस्य – समस्त – योगिनी – परिवृत – श्रीपुरेशी – त्रिपुरसुन्दरी – त्रिपुर – वासिनी – त्रिपुरा – श्रीत्रिपुरमालिनी – त्रिपुरसिद्धा – त्रिपुराम्बा – तत्तच्चक्रनायिका – वन्दित – चरण – कमल – श्रीमहा – गुरु – नित्यदेव – सर्वचक्रेश्वर – सर्वमंत्रेश्वर – सर्वविद्येश्वर – सर्वपिठेश्वर – त्रलोक्यमोहिनी – जगादुप्तत्ति – गुरु – सर्वचाक्रमय तन्चक्र – नायका – सहिताः स – मुद्रा, स – सिद्धयः, सायुधाः, स – वाहनाः, स – परिवाराः, सर्वो-पचारे: श्री परमतत्वाय गुरु परापराय – सपर्यया पुजितास्तर्पिता: सन्तु.

इसके बाद हाँथ जोड़कर क्षमा प्रार्थना करें

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श्रीनाथादी गुरु – त्रयं गण – पति पीठ त्रयं भैरव सिद्धोध बटुक – त्रयं पद युग्म दूती क्रमं मंडलम वीरानष्ट – चतुष्क – षष्टि – नवकं वीरावली – पंचकं, श्रीमन्मालिनी – मंत्रराज – सहितं वन्दे गुरोर्मंडलम।

 स्नेही भाइयों बहनों इस प्रकार यह पूर्ण लक्ष्मी साधना केवल एक बार किसी भी अमावस्या को आरम्भ कर 3 या 7 अमावस्या अथवा दीपावली की रात्रि को केवल एक बार संपन्न करने से पूर्ण लक्ष्मी सिद्धि प्राप्त होती है।

✍️डॉ0 विजय शंकर मिश्र:! 

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➰हर हर महादेव शम्भो काशी विश्वनाथ वन्दे ➰

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👉कौन_हैं_मनुष्य_के_कर्मों_के_साक्षी?➖

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👉मृत्युलोक में प्राणी अकेला ही पैदा होता है, अकेले ही मरता है। प्राणी का धन-वैभव घर में ही छूट जाता है। मित्र और स्वजन श्मशान में छूट जाते हैं। शरीर को अग्नि ले लेती है। पाप-पुण्य ही उस जीव के साथ जाते हैं। अकेले ही वह पाप-पुण्य का भोग करता है परन्तु धर्म ही उसका अनुसरण करता है।

‘शरीर और गुण (पुण्यकर्म) इन दोनों में बहुत अंतर है, क्योंकि शरीर तो थोड़े ही दिनों तक रहता है किन्तु गुण प्रलयकाल तक बने रहते हैं। जिसके गुण और धर्म जीवित हैं, वह वास्तव में जी रहा है।’

वेदों में जिन कर्मों का विधान है, वे धर्म (पुण्य) हैं और उनके विपरीत कर्म अधर्म (पाप) कहलाते हैं। मनुष्य एक दिन या एक क्षण में ऐसे पुण्य या पाप कर सकता है कि उसका भोग सहस्त्रों वर्षों में भी पूर्ण न हो।

🎁सूर्य, अग्नि, आकाश, वायु, इन्द्रियां, चन्द्रमा, संध्या, रात, दिन, दिशाएं, जल, पृथ्वी, काल और धर्म–ये सब मनुष्य के कर्मों के साक्षी हैं।

सूर्य रात्रि में नहीं रहता और चन्द्रमा दिन में नहीं रहता, जलती हुई अग्नि भी हरसमय नहीं रहती; किन्तु रात-दिन और संध्या में से कोई एक तो हर समय रहता ही है। दिशाएं, आकाश, वायु, पृथ्वी, जल सदैव रहते हैं, मनुष्य इन्हें छोड़कर कहीं भाग नहीं सकता, इनसे छुप नहीं सकता। 

मनुष्य की इन्द्रियां, काल और धर्म भी सदैव उसके साथ रहते हैं। कोई भी कर्म किसी-न किसी इन्द्रिय द्वारा किसी-न-किसी समय (काल) होगा ही। उस कर्म का प्रभाव मनुष्य के ग्रह-नक्षत्रों व पंचमहाभूतों पर पड़ता है। जब मनुष्य कोई गलत कार्य करता है तो धर्मदेव उस गलत कर्म की सूचना देते हैं और उसका दण्ड मनुष्य को अवश्य मिलता है।

पृथ्वी पर जो मनुष्य-देह है उसमें एक सीमा तक ही सुख या दु:ख भोगने की क्षमता है। जो पुण्य या पाप पृथ्वी पर किसी मनुष्य-देह के द्वारा भोगने संभव नही, उनका फल जीव स्वर्ग या नरक में भोगता है। पाप या पुण्य जब इतने रह जाते हैं कि उनका भोग पृथ्वी पर संभव हो, तब वह जीव पृथ्वी पर किसी देह में जन्म लेता है।

कर्मों के अवशेष भाग को भोगने के लिए मनुष्य मृत्युलोक में स्थावर-जंगम अर्थात् वृक्ष, गुल्म (झाड़ी), लता, बेल, पर्वत और तृण–आदि योनि प्राप्त करता है। ये सब दु:खों के भोग की योनियां हैं। वृक्षयोनि में दीर्घकाल तक सर्दी-गर्मी सहना, काटे जाने व अग्नि में जलाये जाने सम्बधी दु:ख भोगना पड़ता है।

  यदि जीव कीटयोनि प्राप्त करता है तो अपने से बलवान प्राणियों द्वारा दी गयी पीड़ा सहता है, शीत-वायु और भूख के क्लेश सहते हुए मल-मूत्र में विचरण करना आदि दारुण दु:ख उठाता है। इसी तरह से पशुयोनि में आने पर अपने से बलवान पशु द्वारा दी गयी पीड़ा का कष्ट पाता रहता है।

 पक्षी की योनि में आने पर कभी वायु पीकर रहना तो कभी अपवित्र वस्तुओं को खाने का कष्ट उठाना पड़ता है। यदि भार ढोने वाले पशुओं की योनि में जीव आता है तो रस्सी से बांधे जाने, डण्डों से पीटे जाने व हल जोतने का दारुण दु:ख जीव को सहना पड़ता है।

इस संसार-चक्र में मनुष्य घड़ी के पेण्डुलम की भांति विभिन्न पापयोनियों में जन्म लेता और मरता है–

–माता-पिता को कष्ट पहुंचाने वाले को कछुवे की योनि में जाना पड़ता है।

–मित्र का अपमान करने वाला गधे की योनि में जन्म लेता है।

–छल-कपट कर जीवनयापन करने वाला बंदर की योनि में जाता है।

–अपने पास रखी किसी की धरोहर को हड़पने वाला मनुष्य कीड़े की योनि में जन्म लेता है।

–विश्वासघात करने से मनुष्य को मछली की योनि मिलती है।

–विवाह, यज्ञ आदि शुभ कार्यों में विघ्न डालने वाले को कृमियोनि मिलती है।

–देवता, पितर व ब्राह्मणों को भोजन न कराकर स्वयं खा लेता है वह काकयोनि (कौए) में जाता है।

इस प्रकार बहुत-सी योनियों में भ्रमण करके जीव किसी महान पुण्य के कारण मनुष्ययोनि प्राप्त करता है। मनुष्ययोनि प्राप्त करके भी यदि दरिद्र, रोगी, काना या अपाहिज जीवन मिले तो बहुत अपमान व कष्ट भोगना पड़ता है।

इसलिए दुर्लभ मनुष्य जन्म पाकर संसार-बंधन से मुक्त होने के लिए प्राणी को भगवान विष्णु की सेवा-आराधना करनी चाहिए क्योंकि वे ही कर्मफल के दाता व संसार-बंधन से छुड़ाने वाले मोक्षदाता हैं। भगवान विष्णु के जो-जो स्वरूप हैं, उनकी भक्ति करने से मनुष्य संसार-सागर आसानी से पार कर परमधाम को प्राप्त करता है।

भगवान विष्णु ने संसार-सागर से पार होने का उपाय भगवान रुद्र को बताते हुए कहा कि ‘विष्णुसहस्त्रनाम’ स्तोत्र से मेरी नित्य स्तुति करने से मनुष्य भवसागर को सहज ही पार कर लेता है।

‘जिनका मन भगवान विष्णु की भक्ति में अनुरक्त है, उनका अहोभाग्य है, अहोभाग्य है; क्योंकि योगियों के लिए भी दुर्लभ मुक्ति उन भक्तों के हाथ में ही रहती है।’ (नारदपुराण)

भक्त अपने आराध्य के लोक में जाते हैं। भगवान के लोक में कुछ भी बनकर रहना सालोक्य-मुक्ति है। भगवान के समान ऐश्वर्य प्राप्त करना सार्ष्टि-मुक्ति है। भगवान के समान रूप पाकर वहां रहना सारुप्य-मुक्ति है। भगवान के आभूषणादि बनकर रहना सामीप्य-मुक्ति कहलाती है। भगवान के श्रीविग्रह में मिल जाना सायुज्य-मुक्ति है।

जिस जीव को भगवान का धाम प्राप्त हो जाता है, वह भगवान की इच्छा से उनके साथ या अलग से संसार में दिव्य जन्म ले सकता है। वह कर्मबन्धन में नहीं बंधा होता है। संसार में भगवत्कार्य समाप्त करके वह पुन: भगवद्धाम चला जाता है।

मनुष्य बिना कर्म किए रह नहीं सकता। कर्म करेगा तो पाप-पुण्य दोनों होंगे। लेकिन जो मनुष्य सबमें भगवत्दृष्टि रखकर भगवान की सेवा के लिए, उनकी आज्ञा का पालन करने के लिए और भगवान की प्रसन्नता के लिए कर्म करता है तो उसके कर्म भी अकर्म बन जाते हैं और कर्म-बंधन में नहीं बांधते हैं। वह संसार में रहते हुए भी नित्यमुक्त है।

तत्त्वज्ञानी पुरुष संसार के आवागमन से मुक्त हो जाते हैं। उनके प्राण निकलकर कहीं जाते नहीं बल्कि परमात्मा में लीन हो जाते हैं। सती स्त्रियां, युद्ध में मारे गए वीर और उत्तरायण के शुक्ल-मार्ग से जाने वाले योगी मुक्त हो जाते हैं।

गीता में शुक्ल तथा कृष्ण मार्ग कहकर दो गतियों का वर्णन है–

जिनमें वासना शेष है, वे धुएं, रात्रि, कृष्णपक्ष, दक्षिणायन के देवताओं द्वारा ले जाए जाते हैं। ऊर्ध्वलोक में अपने पुण्य भोगकर वे फिर पृथ्वी पर जन्म लेते हैं।

जिनमें कोई वासना शेष नहीं है, वे अग्नि, दिन, शुक्लपक्ष, उत्तरायण के देवताओं द्वारा ले जाये जाते हैं। वे फिर पृथ्वी पर जन्म लेकर नहीं लौटते हैं।

यह एक प्रकार का प्रतीक्षालोक है। एक जीव को पृथ्वी पर जिस माता-पिता से जन्म लेना है, जिस भाई-बहिन व पत्नी को पाना है, जिन लोगों के द्वारा उसे सुख-दु:ख मिलना है; वे सब लोग अलग-अलग कर्म करके स्वर्ग या नरक में हैं। जब तक वे सब भी इस जीव के अनुकूल योनि में जन्म लेने की स्थिति में न आ जाएं, इस जीव को प्रतीक्षा करनी पड़ती है। पितृलोक इसलिए एक प्रकार का प्रतीक्षालोक है|

यह नियम है कि मनुष्य की अंतिम इच्छा या भावना के अनुसार ही उसे गति प्राप्त होती है। जब मनुष्य किसी प्रबल राग-द्वेष, लोभ या मोह के आकर्षण में फंसकर देह त्यागता है तो वह उस राग-द्वेष के बंधन में बंधा आस-पास ही भटकता रहता है। वह मृत पुरुष वायवीय देह पाकर बड़ी यातना भरी योनि प्राप्त करता है। इसीलिए कहा जाता है–‘अंते मति सो गति।’

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🌷भगवान शिव 🔱से जुड़े कुछ रोचक तथ्य,?

01. भगवान शिव का कोई माता-पिता नही हैं। उन्हें अनादि माना गया है। मतलब, जो हमेशा से था। जिसके जन्म की कोई तिथि नही।

02. कथक, भरतनाट्यम करते वक्त भगवान शिव की जो मूर्ति रखी जाती है उसे नटराज कहते हैं।

03. किसी भी देवी-देवता की टूटी हुई मूर्ति की पूजा नही होती, लेकिन शिवलिंग चाहे कितना भी टूट जाए फिर भी पूजा जाता है।

04. शंकर भगवान की एक बहन भी थी अमावरी। जिसे माता पार्वती की जिद्द पर खुद महादेव ने अपनी माया से बनाया था।

05. भगवान शिव और माता पार्वती का 1 ही पुत्र था। जिसका नाम था कार्तिकेय। गणेश भगवान तो मां पार्वती ने अपने उबटन (शरीर पर लगे लेप) से बनाए थे।

06. भगवान शिव ने गणेश जी का सिर इसलिए काटा था, क्योकिं गणेश ने शिव को पार्वती से मिलने नही दिया था। उनकी मां पार्वती ने ऐसा करने के लिए बोला था।

07. भोले बाबा ने तांडव करने के बाद सनकादि के लिए चौदह बार डमरू बजाया था। जिससे माहेश्वर सूत्र यानि संस्कृत व्याकरण का आधार प्रकट हुआ था।

08. शंकर भगवान पर कभी भी केतकी का फुल नही चढ़ाया जाता। क्योंकि यह ब्रह्मा जी के झूठ का गवाह बना था।

09. शिवलिंग पर बेलपत्र तो लगभग सभी चढ़ाते है। लेकिन इसके लिए भी एक ख़ास सावधानी बरतनी पड़ती है, कि बिना जल के बेलपत्र नही चढ़ाया जा सकता।

10.शंकर भगवान और शिवलिंग पर कभी भी शंख से जल नही चढ़ाया जाता। क्योकिं शिव जी ने शंखचूड़ को अपने त्रिशूल से भस्म कर दिया था। ज्ञात हो, शंखचूड़ की हड्डियों से ही शंख बना था।

11. भगवान शिव के गले में जो सांप लिपटा रहता है, उसका नाम है वासुकि। यह शेषनाग के बाद नागों का दूसरा राजा था। भगवान शिव ने खुश होकर इसे गले में डालने का वरदान दिया था।

12. चंद्रमा को भगवान शिव की जटाओं में रहने का वरदान मिला हुआ है।

13. नंदी, जो शंकर भगवान का वाहन और उसके सभी गणों में सबसे ऊपर भी है। वह असल में शिलाद ऋषि को वरदान में प्राप्त पुत्र था। जो बाद में कठोर तप के कारण नंदी बना था।

14. गंगा भगवान शिव के सिर से क्यों बहती है ? देवी गंगा को जब धरती पर उतारने की सोची तो एक समस्या आई कि इनके वेग से तो भारी विनाश हो जाएगा। तब शंकर भगवान को मनाया गया कि पहले गंगा को अपनी ज़टाओं में बाँध लें, फिर अलग-अलग दिशाओं से धीरें-धीरें उन्हें धरती पर उतारें।

15. शंकर भगवान का शरीर नीला इसलिए पड़ा क्योंकि उन्होने जहर पी लिया था। दरअसल, समुंद्र मंथन के समय 14 चीजें निकली थी। 13 चीजें तो असुरों और देवताओं ने आधी-आधी बाँट लीं, लेकिन हलाहल नाम का विष लेने को कोई तैयार नही था। ये विष बहुत ही घातक था इसकी एक बूँद भी धरती पर बड़ी तबाही मचा सकती थी। तब भगवान शिव ने इस विष को पीया था। यही से उनका नाम पड़ा नीलकंठ।

16. भगवान शिव को त्रिनेत्रधारी कहा जाता है। उनका तीसरा नेत्र जो मस्तक के मध्य स्थित है, उसे प्रलय का प्रतीक माना जाता है। उनका तीसरा नेत्र खुलने का अर्थ है सृष्टि का अन्त। इसलिए कहते है, तीसरी आँख बंद ही रहे प्रभु की।

👁️ 👁 👁️    हर हर महादेव

🙏हेभोलेनाथ,हे भोलेशंकर,हे काशी विश्व नाथ,हे सोमनाथ,हे अमरनाथ,हे महाकाल,हे त्रिनेत्रधारी,हे कैलाशपति , हे गौरीशंकर,ॐ नमः शिवाय …….कालो के काल जय श्री महाकाल देवो के देव महादेव हर हर महादेव” है नाथ हम सभी की मनोकामनाएं पूरी करें ओर हम सब के दुख दूर करे ओर हम सब को भरपूर खुशियो से मालामाल करे प्रभू 🙇‍♂️दुग्धॉ न्हाओं पूतॉ फलो भक्तगणों, दुआओ मे याद रखना जी,भगतजी, जय श्री महादेव🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺पपीते के पत्ते की चाय –

 किसी भी स्टेज के कैंसर को सिर्फ 60 से 90 दिन में जड़ से खत्म किया जा सकता है।

 पपीते के पत्ते –

 तीसरी और चौथी स्टेज का कैंसर सिर्फ 35 से 90 दिनों में ठीक हो सकता है। अब तक –

 हम इंसानों ने पपीते के पत्तों का इस्तेमाल बहुत ही सीमित तरीके से किया होगा…

 (खासतौर पर प्लेटलेट कम करने या त्वचा संबंधी या अन्य किसी छोटे या बड़े प्रयोग के लिए

 लेकिन,

 आज हम आपको क्या बताने जा रहे हैं –

 ये वाकई आपको हैरान कर देगा.

 

 आप सिर्फ पांच हफ्ते में कैंसर जैसी गंभीर बीमारी को जड़ से खत्म कर सकते हैं।

 

 यह प्रकृति की एक शक्ति है

 

 अनेक प्रकार की वैज्ञानिक खोजों से बहुत सारा ज्ञान प्राप्त हुआ जो –

 

 पपीते के हर भाग जैसे फल, तना, बीज, पत्तियां, जड़ सभी में कैंसर कोशिकाओं को मारने और उसके विकास को रोकने के लिए शक्तिशाली औषधि होती है।

 विशेष रूप से –

 पपीते की पत्तियों में कैंसर कोशिकाओं को मारने और उनकी वृद्धि को रोकने के गुण प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं।

 तो आइए जानें…

 यूनिवर्सिटी ऑफ फ्लोरिडा (2010) और अमेरिका तथा जापान के अंतरराष्ट्रीय डॉक्टरों और शोधकर्ताओं द्वारा किए गए शोध से यह पता चला है कि –

 

 पपीते की पत्तियों में कैंसर कोशिकाओं को मारने का गुण पाया जाता है।

 श्री। नाम डांग – एमडी, पीएचडी जो एक आविष्कारक हैं,

 उसके अनुसार –

 पपीते की पत्तियां सीधे कैंसर का इलाज कर सकती हैं,

उसके अनुसार –

 पपीते की पत्तियां करीब 10 तरह के कैंसर को खत्म कर सकती हैं।

 इनमें से प्रमुख हैं-

 स्तन कैंसर,

 फेफड़े का कैंसर,

 यकृत कैंसर,

 अग्न्याशय का कैंसर,

 गर्भाशय ग्रीवा का कैंसर,

 

 इसमें जितनी ज्यादा पपीते की पत्तियां डाली जाएंगी.

 परिणाम उतना ही महत्वपूर्ण होगा.

 पपीते की पत्तियां कैंसर का इलाज कर सकती हैं और कैंसर को बढ़ने से रोकता है।

 

 तो आइए जानें-पपीते की पत्तियां कैंसर का इलाज कैसे करती हैं?

 (1) पपीता कैंसर रोधी अणुओं Th1 साइटोकिन्स के उत्पादन को बढ़ाता है।

 जो इम्यून सिस्टम को दृढ़ता प्रदान करता है.

 जिससे कैंसर कोशिकाएं नष्ट हो जाती हैं।

 (2) पपीते के पत्ते में पपेन नमक है –

 प्रोटियोलिटिक एंजाइम पाए जाते हैं,

 जो कैंसर कोशिकाओं पर प्रोटीन कोटिंग को तोड़ देता है…

 इससे कैंसर कोशिकाओं का शरीर में जीवित रहना मुश्किल हो जाता है। इस प्रकार,

 पपीते के पत्ते की चाय-

 रोगी के रक्त में मिलकर मैक्रोफेज को उत्तेजित करता है…

 प्रतिरक्षा प्रणाली को उत्तेजित करके,

 कैंसर कोशिकाओं को नष्ट करना शुरू कर देता है।

कीमोथेरेपी/रेडियोथेरेपी और पपीते के पत्तों से उपचार के बीच मुख्य अंतर यह है –

 कीमोथेरेपी में –

 प्रतिरक्षा प्रणाली ‘दबी हुई’ है।

 जबकि पपीता निकलता है –

  प्रतिरक्षा प्रणाली को ‘उत्तेजित’ करता है,

 कीमोथेरेपी और रेडियोथेरेपी में सामान्य कोशिकाएं भी ‘प्रभावित’ होती हैं।

 पपीता केवल कैंसर कोशिकाओं को नष्ट करता है।

 सबसे बड़ी बात यह है कि –

 कैंसर के इलाज में पपीते की पत्तियों का भी कोई ‘साइड इफेक्ट’ नहीं होता है।

 

 *कैंसर में पपीते का सेवन नियम:

 

 कैंसर के लिए सर्वोत्तम पपीते की चाय :-

 

 दिन में 3 से 4 बार बनाएं पपीते की चाय

 यह आपके लिए बहुत फायदेमंद है.

 

 आइए अब जानते हैं –

 पपीते की चाय कैसे बनाएं:-

 

 (1) सबसे पहले 5 से 7 पपीते के पत्तों को धूप में अच्छी तरह सुखा लें।

 तब,

 इसे छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़ लें.

 

 आपके पास 500 मि.ली. पानी में –

 कुछ सूखे पपीते के पत्ते डालें और अच्छी तरह उबालें।

 इतना उबालें कि –

 यह आधा रह गया है.

 आप इसे 125 ml दे सकते हैं. दिन में 2 बार करी पियें।

 और,

 अगर ज्यादा बनता है तो इसे दिन में 3 से 4 बार पियें।

 

 बचे हुए तरल को फ्रिज में रखें और आवश्यकतानुसार उपयोग करें।

 

 इसका रखें ख्याल-

 इसे दोबारा गर्म न करें.

 

 (2) 7 ताजी पपीते की पत्तियां लें,

 – इसे हाथ से अच्छी तरह गूंथ लें.

 अब इसे 1 लीटर पानी में उबालें.

 

 जब यह 250 मि.ली. यदि यह बढ़ जाए तो इसे छानकर 125 मि.ली. इसे 2 टाइम यानि सुबह और शाम पियें।

 

 इस प्रयोग को आप दिन में 3 से 4 बार कर सकते हैं।

 

 आप जितना अधिक पपीते के पत्तों का उपयोग करेंगे…

 उतनी ही जल्दी आपको लाभ मिलेगा.

 

 टिप्पणी :-

 इस चाय को पीने के आधे घंटे तक आपको कुछ भी खाना-पीना नहीं चाहिए।

 

 *कब तक करना है यह प्रयोग?

 

 तो यह प्रयोग आपको 5 सप्ताह में अपना परिणाम दिखा देगा…

 हालाँकि

 हम आपको इसे 3 महीने तक इस्तेमाल करने की सलाह देते हैं।

 

 और,

 ये लोग जो समझ गए हैं,

 उन लोगों ने उन लोगों का भी भला किया है,

 जिनका कैंसर ‘तीसरे’ या ‘चौथे’ चरण का था।

 

 ये संदेश –

 सभी को भेजने हेतु एक विनम्र अनुरोध।

 एक कतरा चाहिए…

 ताकि अन्य जरूरतमंदों तक पहुंचा जा सके।

 डॉ. धनेश सूरत _/कनाडा मोबाइल 99796 18999

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निस्वार्थ प्रचारक 

महेश्वर सुखवाल 

C/O

तेरहँवा ज्योतिर्लिंग 

श्रृंगेश्वर महादेव 

श्रृंगीधाम 

तहसिल-रेलमंगरा 

कृपया इस मेसेज को आपके सभी समुहो मे भेजे हो सके किसी का भला हो जाये और आपको उसका आशीर्वाद मिल जाये