डाॅ हरीश मैखुरी
मनुष्य जीवन में जीवनचर्या का बहुत बड़ा महत्व है। जीवनचर्या का अर्थ है कि हम शास्त्रोक्त विधि से सादगीपूर्ण और चिंतामुक्त जीवन यापन करें, शास्त्रोक्त विधि मनुष्य जीवन को विज्ञान सम्मत ढंग से जीने की अनुशासित प्रक्रिया का नाम है, इसके अनुसार मनुष्य जिस स्रोत से आया है अपनी चेतना का उपयोग करके पुनः उसी स्रोत में विलीन हो सकता है, अर्थात ब्रह्म में ही वापस जा सकता है। क्योंकि वही हमारा मूल स्थान या आदि श्रोत है। अन्यथा वह अपने कर्मों के अनुसार शूकर कुकर की योनियों में भटकता रहेगा, इसीलिए हमारे शास्त्रों में जीवन को शास्त्रोक्त विधि से जीने के लिए प्रेरित किया है। शास्त्रोक्त विधि के अनुसार हमें अपने जीवनचर्या वैज्ञानिक ढंग से संचालित करनी है, क्योंकि हम पशु नहीं हैं जो प्राकृतिक ढंग से रहें, इसलिए नियमित संयमित जीवन जीना जरुरी है नियमित जीवन का अर्थ है कि हम रात को जल्दी सोए सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठें स्नान करें ध्यान करें अपनी सामर्थ्य के अनुसार दान करें और किसी का भी बुरा ना करें और बुरा ना सोचें। शास्त्रों का अध्ययन करें, भगवत भक्ति में लीन रहें, अपनी दैनिक चर्या में भी भगवान का ध्यान बना रहे, नारायण का ध्यान बना रहे, तभी भगवत् कृपा प्राप्त होती है। यदि हमने इस चेतन योनि में भी भगवत कृपा प्राप्त नहीं की और पशुओं जैसा आहार बिहार कर के शरीर छोड़ दिया तो हमारी यह चेतन योनि व्यर्थ हो जाती है। हम गुरूपंथियों के चक्कर में न फंसें अपितु अनंत कोटि ब्रह्माण्ड नायक भगवान नारायण का चिंतन व अपने इष्ट का ध्यान करें, पंच देवों पंच तत्वों पंचकर्मों का शास्त्रोक्त विधि से अनुपालन करें। यही वेद विज्ञान की आज्ञा है। इस क्रम में आत्मतत्व का चिंतन मन और आत्मा का परिष्कार करना चाहिए इसीलिए हमारे धर्म शास्त्रों में सोलह संस्कार बताए गए हैं ताकि आत्मा का परिष्कार इसी जन्म में हो जाय और शरीर छोडने के बाद वह भुक्त भोग्य के चक्कर में पुनः पशुवत योनियों में ना जाना पड़े। यही मानव जीवन की सार्थकता और चरम व परम उदेश्य है।
Dr Harish maikhuri
The wey of Life is great importance in life. Life is meant to live a life of scientific method. Lifestyle means that we should live by scientific method, scientific method is the disciplined process of living life in science in a scientific manner, according to which the source of human being comes from the source using its consciousness, it can merge into the same source ie Only in Brahma can be returned, because that is our original place . Otherwise, he will continue to wander in the of pig, dog or snake etc according to his actions, that is why in our scriptures life has been inspired by the scientific method. we have to operate our lifecycle in a scientifically manner, because we are not animals which are natural, so it is necessary to live a regular temperate life. Regular life means that we get up early in the morning at the Brahma muhurat. Make a donation according to your strength and do not harm anyone and do not think bad. Study the scriptures, remain absorbed in devotion, keep God’s meditation even in their daily activities, keep meditating on Narayana, then only God receives grace. If we did not receive God’s grace even in this conscious life and left the body after coms and go’s cycle , then our conscious anorexia becomes useless. We should not be caught in the circle of the gurupantharies, but meditate on the thought of our great Lord Narayana and the eternal God, the Panch Gods, the five elements, follow the scientific method of Panchkarma. This is the commandment of Vedic science. In this sequence, the contemplation of the soul should refine the mind and the soul; therefore, in our Dharm Shastras, sixteen rites have been reported so that the siddhar of the soul should be born in this life and after leaving the body, the hunger should not be allowed to go back into the animal’s vagina. . This is the meaning and purpose of human life and the ultimate and ultimate objective.