कलयुग के द्वितीय चरण में गंगा धरती से लुप्त जायेगी

अंतिम सांस ले रही हूँ मैं, बस कुछ दिन ही और दिखूंगी ! दुर्बल तन पर इतने बंधन, कितने दिन तक और सहूँगी ! अन्तरमन

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