कभी अंग्रेजो के बंगले की शान होते थे चैस्टनट, अब मीठे पाँगरके के नाम से लोकप्रिय हो रहे हैं उत्तराखण्ड में
यूरोप का प्रसिद्ध फल चेस्टनट या पाँगर उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में मीठे पांगर के नाम से लोकप्रिय हो रहा है। इसे यहां कबासी भी कहा जाता है। सैलानियों में भी लोकप्रिय है इसकी बाजार में भी खासी मांग है। यह बादाम से भी महंगा बिक रहा है।
शोध के अनुसार मीठा पांगर स्वास्थ्य के लिए भी बेहद मुफीद है। वर्षों तक पहाड़ के लोग इस फल से अनजान बने रहे। राष्ट्रीय पादप संस्थान के वैज्ञानिको ने वन विभाग को मीठे पांगर की नर्सरी तैयार कर आम लोगों तक इसकी पौध उपलब्ध कराने को कहा है। इस पेड़ की उम्र तीन सौ साल मानी जाती है।
यह पेड़ भी जमीन को भूस्खलन के खतरों से बचाता है। अब काश्तकार भी मीठे पांगर का उत्पादन कर अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। इसके सेवन से गठिया जैसी बीमारी से राहत मिलती है।इसके पेड़ में बरसात में फूल और सर्दियों में फल आना शुरू हो जाता है। वन विभाग के कई पुराने बंगलों के आसपास आज भी अंग्रेजों द्वारा लगाए गए चेस्टनट के पेड़ लगे हुए हैं। विभाग भी अपनी नर्सरी में अधिक से अधिक पौध तैयार कर रहा है। अब तो पांगर के अच्छे जंगल भी बन रहे हैं एक जगह का तो नाम ही पांगर वासा पड़ गया है।