रुद्रप्रयाग की रंजना रावत ने बंजर खेतों में उगाई बेशकीमती केसर

रिपोर्ट – मोहन भुलानी

रुद्रप्रयाग की रंजना रावत ने बंजर खेतों में उगाई बेशकीमती केसर

पहाड़ की किसाण (मेहनती) बेटी रंजना रावत की मेहनत रंग लाई है। रंजना ने बंजर खेतों में बेशकीमती अमेरिकन सैफ्रॉन (केसर) उगाकर मिशाल पेश की है। दवा बनाने में इस्तेमाल होने वाली अमेरिकन केसर बाजार में 40 हजार से डेढ़ लाख रुपये प्रतिकिलो तक बिकती है। रंजना की सफलता के बाद पहाड़ में अमेरिकन सैफ्रॉन की खेती की उम्मीद जगी है, जो स्वरोजगार के जरिये पहाड़ से पलायन रोकने में कारगर साबित होगी।

रुद्रप्रयाग जिले के भीरी गांव की रंजना रावत ने फार्मेसी की डिग्री के बाद शहर में अच्छी खासी नौकरी को अलविदा कह पहाड़ का रुख किया। यहां उन्होंने स्वरोजगार की नींव रखी। मशरूम, सब्जियां और फूल को उगाकर वह लोगों को भी स्वरोजगार से जोड़ रही हैं। एक नया प्रयोग करते हुए रंजना ने बंजर पड़े खेतों में बेशकीमती अमेरिकन सेफ्रॉन की खुशबू बिखेरी है। पौधे तैयार हो गए हैं, रंजना ने अभी रुद्रप्रयाग, भीरी और धारकोट गांव (प्रतापनगर, टिहरी) में अमेरिकन सैफ्रॉन को उगाया है। अब रंजना ने प्रदेश में किसानों के साथ मिलकर बड़े स्तर पर इसकी व्यापारिक खेती करने का लक्ष्य रखा है।

अमेरिकन सैफ्रॉन (कारथेमस टिंकटोरियस) बहुमूल्य हर्ब है। अमेरिकन सैफ्रॉन का 50 ग्राम बीज एक बीघा जमीन पर रोपा जाता है। एक बीज 40 रुपये का मिलता है। अक्तूबर में लगाई गयी फसल पांच से छह महीने में तैयार हो जाती है। यदि टेस्टिंग में केसर का 45 प्रतिशत अर्क निकला तो उसका भाव 70 हजार रुपये से लेकर 1.5 लाख रुपये प्रति किलो तक मिल सकता है। देश में कश्मीर के बाद राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र में कई जागरूक किसान अमेरिकन सैफ्रॉन से लाखों रुपये कमा रहे हैं।

पहाड़ में इससे पहले भी अमेरिकन सैफ्रॉन उगाने की कोशिश की, लेकिन कई किसान सफल नहीं रहे। इससे सबक लेते हुए रंजना ने इंटरनेट और विशेषज्ञों की मदद से इसकी खेती को लेकर काफी रिसर्च की। वह दिल्ली से इसके पौध लेकर आईं। रंजना ने बताया कि ड्रिप पद्धति से फसल तैयार होती है। पौधों में बीमारी नहीं लगती। जैविक फसल का पौधा 4.5 फुट लंबा होता है। इस पर दो सौ से ढाई सौ तक फूल लगते हैं, जिनकी पंखुड़ियों से केसर मिलती है। फूल 3-4 घंटे में सूख जाते हैं। फूल के सूखने के बाद फूलों से केसर को निकल लिया जाता है।

अमेरिकन केसर की खेती पहाड़ में उपयोगी साबित हो सकती है। क्योंकि इसे जंगली जानवरों से कम खतरा है। सरकारी स्तर पर प्रयास हुए तो इसकी खेती पलायन रोकने और रोजगार सृजन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।