नये भारत के लिए मेक इन इंडिया जरूरी है?

 

डाॅ. हरीश मैखुरी

भारत में लोग परिवर्तन विकास और नयेपन के प्रति शंकालु और पुरातनपंथी हैं, जबकि अपनी संस्कृति के प्रति उदासीन और लापरवाह। एक जमाने में लोग कम्प्यूटरीकरण के विरोध में थे। लेकिन जैसे राजीव गांधी के कम्प्यूटरीकरण और डिजिटल इंडिया के काम आज दिख रहे हैं । वैसे ही मोदी के भारत को विकसित और शक्तिशाली राष्ट्र बनाने विश्व गुरू बनाने भारत निर्माण न्यूं इंडिया, मेकइन इंडिया, स्वच्छ भारत अभियान, इमानदारी और आधार लिंक के फायदे और विदेश यात्राओं के परिणाम आने में 5 से 10 साल का समय लग सकता हैं।

वहीं पिछले तीन सालों में जबसे आतंकवाद के खिलाफ अभियान तेज किया गया है तो परिणाम दिखने लगे हैं,  पहले आतंकवादी हर रोज कहीं न कहीं बम फोड़ते रहते थे,  सीरियल ब्लास्ट करते और सालों तक पता भी नहीं चलता कि  किसने किया। आज पिछले सारे आतंकवादी या तो 72 हूरों के पास जन्नत में भेजे गए हैं या जेलों में बंद हैं। और पिछले तीन शाल से देश दहशतगर्दों से राहत महसूस कर रहा है। टीवी से लावारिस वस्तु न छुयें बम हो सकती है विज्ञापन तो गायब हो ही गया। पिछले तीन साल में केन्द्र द्वारा अरबों खरबों के काम हुए पर एक पैंसे का घोटाला नहीं, आज बेईमान और देश विरोधी लोग तो ऐसे मैसेज वायरल कर रहे जैसे इमानदारी अपराध हो गई। पाकिस्तान में पैट्रोल 65 रू है। जर्मनी में 112 लेकिन जर्मनी में शिक्षा और स्वास्थ्य सरकार की जिम्मेदारी है,

हमें तय करना है भारत को पाकिस्तान जैसा आतंकवादी देश बनाना है कि जर्मनी की तरह इमानदार और विकसित शौचालय बनवाना या आधार लिंक कराना विकसित भारत की जरूरत है, गंदगी कहीं हो साफ होनी ही चाहिए।