सद्दाम हुसैन और कर्नल गद्दाफी के बाद खामनेई का ‘दहन काल’

*सद्दाम हुसैन और कर्नल गद्दाफी के बाद खामनेई का ‘दहन काल’* 
     देहरादून। अमेरिका ने अपनी सैन्य शक्ति की बदौलत मध्य पूर्व के मुस्लिम देशों में तबाही का खौफनाक मंजर पैदा करने में कोई संकोच नहीं किया। इराक के पूर्व तानाशाह सद्दाम हुसैन और लीबिया के कर्नल गद्दाफी के दर्दनाक अंत से पूरी दुनिया वाकिफ है। परंतु अब ऐसा प्रतीत होता है कि इस कड़ी में नया नाम ईरान के अयातुल्लाह अली खामनेई का जुड़ने वाला है, जो मुसलमानों का खलीफा बनने की हसरत पाले हुए सारी हदें पार कर रहे हैं।
     विश्व की एकमात्र महाशक्ति अमेरिका के समक्ष किसी अन्य देश का युद्ध के मैदान में टिक पाना फिलहाल असंभव प्रतीत होता है। फिर चाहे वह 90 के दशक में लड़ा गया खाड़ी युद्ध हो या फिर 21वीं सदी में लीबिया के कर्नल गद्दाफी की तबाही का मंजर हो, हर जगह कमोवेश एक जैसे ही हालत दिखाई पड़ते हैं। इराक के सद्दाम हुसैन की सेना उस समय की विश्व की चौथी सबसे बड़ी सेना थी, जिसे अमेरिका और उसके सहयोगियों ने महज कुछ दिनों में नेस्तनाबूत करके रख दिया था। जैविक हथियार होने के शक में छिड़ी इस जंग में लाखों इराकियों ने अपनी जान गवाई। खुफिया दस्तावेज इस और इशारा करते हैं कि अमेरिका के हमले में एक लाख से ज्यादा लोग मारे गए। जिसमें 66000 नागरिक, 25000 विद्रोही और 15000 इराकी सैनिक शामिल थे। वहीं गठबंधन की सेना के भी 3500 सैनिक इस युद्ध में मारे गए। 
     सद्दाम हुसैन दो दशकों तक इराक पर शासन किया और अपने ही लाखों लोगों का कत्लेआम किया। अपने खिलाफ आवाज उठाने वाले किसी भी व्यक्ति को मार डालना उनका पहला लक्ष्य होता था। 1991 में उन्होंने करीब 2 लाख लोगों को मौत के घाट उतार दिया था। इराक के पास महाविनाश के हथियार होने की आशंका के चलते अमेरिका और उसके सहयोगी देशों ने हमला कर दिया और सद्दाम हुसैन की तलाश शुरू की। 2003 में ही 8 महीने बाद दिसंबर को उन्हें उनके गृहनगर तिकरित के बाहर एक फार्म हाउस के बंकर से सद्दाम को गिरफ्तार कर लिया गया। 2006 में कोर्ट ने सद्दाम को मानवता के खिलाफ अपराधों का दोषी ठहराते हुए मौत की सजा दी।
     लीबिया के तानाशाह कर्नल गद्दाफी को भी कुछ इसी तरह का अंजाम भुगतना पड़ा। 2011 में मारे गए कर्नल गद्दाफ़ी भी कुछ ऐसी प्रवृत्ति के व्यक्ति थे। लीबिया पर 42 वर्षों तक राज करने के बाद उसकी मौत सवालों के घेरे में रही। उन्होंने एक बार कहा कि ‘जब ब्रिटेन की महारानी 50 साल तक शासन कर सकती है और थाईलैंड के राजा 68 सालों तक राज कर सकते हैं तो फिर वह क्यों नहीं कर सकते’। गद्दाफी ने 27 साल की उम्र में लीबिया में तख्तापलट कर सत्ता कब्जा ली थी और अमेरिकी और ब्रिटिश सैनिक ठिकानों को बंद करने का आदेश जारी कर दिया। लीबिया में काम करने वाली विदेशी कंपनियों को राजस्व का बड़ा हिस्सा देने के लिए बाध्यता लगाई। लीबिया में अपने राजनीतिक विरोधियों की हत्या कराई। इटली के नागरिकों को निष्कासित करने के साथ यहूदियों पर दमन चक्र चलाया। जिसने उसके अंत की पटकथा लिख दी। 
     गद्दाफी की दमनकारी नीतियों के कारण धीरे-धीरे कई देशों की सरकारों ने लीबिया पर प्रतिबंध लगा दिए। फलस्वरूप लीबिया की अर्थव्यवस्था बिगड़ने लगी। इसके बाद कई आतंकी हमले में लीबिया का नाम सामने आया। जिसमें 1986 के बेस्ट बर्लिन डांस क्लब की बमबारी भी शामिल थी। इसके बाद अमेरिकी राष्ट्रपति रोनाल्डो की करने कार्यवाही की और त्रिपोली स्थित गद्दाफी के निवास पर हमला किया। गद्दाफी की विरोधियों को अमेरिकी और उसके सहयोगों में समर्थन दिया अंततः 2011 में गद्दाफी को मार डाला गया।
     ईरान भी अब वही गलती करता नजर आ रहा है। हूती, हिजबुल्लाह, हमास जैसे आतंकवादी संगठनों को समर्थन देकर वह पश्चिमी देशों को चुनौती दे रहा है। अमेरिका के हूतियों पर किए गए हमले ईरान के लिए सीधी चेतावनी हैं कि अगर वह नही सुधरता है तो अगला नंबर उसका ही होगा। ईरान चाहे कुछ भी कहे, लेकिन अमेरिकी सैन्य शक्ति के आगे वह शून्य के आसपास ही है और रूस उसकी मदद नहीं कर सकता, यूक्रेन युद्ध के कारण उसकी हालत खराब है, जबकि चीन ताइवान के साथ कई देशों के साथ सीमा विवाद में उलझा हुआ है। ऐसे में ईरान के सर्वोच्च नेता आयतुल्ला अली खामनेई के लिए हालात बेहद विषम होते जा रहे हैं। अदावत की इस जंग में किसकी बलि चढ़ेगी। भविष्य उसकी तस्वीर सबके सामने रख देगा। (साभार)