नैराश्य जीवन की कोई विधा नहीं हो सकता

डॉ हरीश मैखुरी

आशा बहुत बलवती होती है। जीना इसी का नाम है।  नैराश्य जीवन की कोई विधा नहीं हो सकता, क्योंकि सुख शांति और प्रसन्नता प्राकृतिक रूप से भगवान की देन और दुख दरिद्रता और नैराश्य हमारे कृत्यों की। यदि मनुष्य नामक सर्व भक्षी जानवर अन्य पशुओं को कष्ट न दे तो मनुष्य के अलावा रोने वाले जीव धरती पर नहीं दिखेंगे। जबकि खुल कर हंसने का गुण भगवान ने केवल मनुष्य को दिया है। वो तब भी रोता हुआ पैदा होता है और रोते हुए ही दुनियां से विदा लेता है। आलसस्य कुतो विद्या, अविद्यस्य कुतोधनम्, अधनस्य कुतो मित्रम्, अधनस्य कुतो सुखम्? अर्थात् आलसी को विद्या कहां से आयेगी विद्या नहीं होगी तो धन कहां से आयेगा धन नहीं होगा तो मित्र कहां से आयेंगे और मित्र नहीं होंगे तो सुख कहां से मिलेगा । निर्विकार पराक्रमी बनना ही जीवन का मार्ग हो और ध्यान रहे कि दया धर्म का मूल है। अधर्मी लोगों द्वारा  गो वंश बेचने जाने के कारण अब मुझे भविष्य ऐसा ही दिखता है।