नैराश्य जीवन की कोई विधा नहीं हो सकता

डॉ हरीश मैखुरी आशा बहुत बलवती होती है। जीना इसी का नाम है।  नैराश्य जीवन की कोई विधा नहीं हो सकता, क्योंकि सुख शांति और

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सड़कों के अभाव को हम सरकारी उपेक्षा नहीं  बल्कि देश के साथ खिलवाड़ कहेंगे

डॉ हरीश मैखुरी  फोटो में दिख रही खुशनुमा तस्वीर उत्तराखंड के हर गाँव की नहीं है। देखने में आया है कि जिन गांवों में मोटर

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कहां वो गांव का अल्हड़ बचपन, कहां ये शहर की उम्र पचपन ?

  *कुछ यूँही जो यादों में है* हम देहाती बच्चे थे ।प्राथमिक स्कूल की शुरुवात घर से ही तख्ती (पाटी) लेकर स्कूल जाना स्लेट को

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कौन है इन रजवाड़ों को खाली कराने का दोषी

डॉ हरीश मैखुरी उत्तराखंड के लोग अपने रजवाड़े छोड़कर मैदानों की बिना धूप हवा पानी वाले किराये की गंदगी में जाने को अभिशप्त हैं। सीमा

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