चंबाला की चोंरी बाड़ा जहाँ होते हैं साक्षात् शक्ति के दर्शन

सावित्री सकलानी उनियाल-

चम्बाला की चोंरी बाड़ा (बाड़ाहाट उत्तरकाशी) शक्ति  स्थल, जहाँ की दिव्य शक्तियाँ शब्दों से परे हैं । (परशुराम मंदिर सहित 4 मंदिर एक ही चौक पर) ये मंदिर 12वीं शताब्दी आसपास के  बने हुए हैं।  पहले परशुराम मंदिर पुराने शिल्प कलाकृति से बना हुआ था पर अब मंदिर को जीर्णोद्धार करके बनाया गया है  लेकिन परशुराम जी की मूर्ति को बिलकुल भी नहीं छेड़ा गया है ।


चूंकि मेरा मामाकोट ,मायके यंही बाड़ाहाट में  ही  तो बचपन से सुनते भी आए और कई बुजुर्गों से भी कुछ कुछ जानकारी मिलती रहती है 
कि पहले यहां आबादी कम होने के कारण इस मंदिर में अकेले जाने से लोग डरते थे अगर जाते भी तो 4 ,5 के संख्या में एक साथ जाते थे । जहां पर मूर्ति रखी हुई है वहां की पूजा केवल नोटियाल जाति के पुजारी ही करते हैं उसके अलावा कोई मूर्ति स्थान पर नहीं जाता ।
अनेक बुजुर्ग  बताते हैं कि कई बार परशुराम सफेद घोड़े पर सवार रात्रि को घूमते हुए भी दिखाई दिए। लेकिन तब बस्ती कम थी अब मकान ही मकान दिखाई देते हैं।

माँ का कहना कि साबूत पेड़ उखाड़ कर उसे ही खम्बे की तरह प्रयोग करके झूला बनाया गया था जिसमे बाड़ाहाट की लड़कियां,बहुएं झूला -झूला करती थीं  वो भी समय के साथ नदारद हो गई।
एक बुज़ुर्ग महिला का कहना पहले जब घर में कोई मरता था तो क्रिया क्रम में बैठा व्यक्ति जिस बर्तन में खाना बना कर खाता था उन बर्तनों को यहाँ बाहर पर छोड़ दिया जाता था और बर्तन को छोड़ते वक्त पीछे मुड़कर नहीं देखना होता था और तुरन्त उस स्थान को छोड़ दिया जाता था।
कह यह भी जाता है कि पहले इस मंदिर में पूजा करने को केवल ब्राह्मण जाति के लोग ही मन्दिर में जा सकते थे पर अब सभी जाते हैं, लेकिन  अभी भी मूर्ति को नहलाने ,सजाने और पूजने का अधिकार केवल पुजारियों को ही है। 
परशुराम जन्मदिवस काफी धूमधाम से अक्षय तृतीया के दिन मनाया जाता है। इस दिन ढोल-दमाऊ-बाजा के साथ नगर में घूम कर गंगा स्नान और भजन और भगवान के नारे लगाते जाते हैं।
इस मंदिर के दरवाजे की चौखटों पर ताम्रपत्र, और कई  प्राकृत पाली भाषा में लिखे ताम्र पत्र उस इतिहास के गवाह हैं। इनमें पांडवो भाइयों का चित्रण भी है। जय परशुराम भगवान की..?