बुद्ध पूर्णिमा विशेष : कूर्म जयंती और पीपल पूर्णिमा आज, आज के दिन करें पीपल की पूजा, आज खुले सबसे ऊंचे तीर्थ लोकपाल लक्ष्मण मंदिर के कपाट

🚩 “हम जो कुछ भी हैं वह हमने जो सोचा है उसका परिणाम है: यह हमारे विचारों पर आधारित है और हमारे विचारों से बना है। यदि कोई व्यक्ति बुरे विचार के साथ बोलता है या कार्य करता है, तो दुख उसका पीछा उसी प्रकार करता है जैसे पहिया गाड़ी खींचने वाले जानवर के खुर का अनुसरण करता है… यदि कोई व्यक्ति अच्छे विचार के साथ बोलता है या कार्य करता है, तो खुशी उस छाया की तरह उसका पीछा करती है जो कभी उसका साथ नहीं छोड़ती। ”*

*गौतम बुद्ध*सत्य सनातन धर्म संस्कृति में भगवान नारायण जी के दशावतारों में बौद्धावतार का भी उल्लेख है, महात्मा बुद्ध का जन्म लुंबिनी में 563 ईसा पूर्व इक्ष्वाकु वंशीय सनातन धर्म संस्कृति के क्षत्रिय शाक्य कुलीन राजा शुद्धोधन के घर में हुआ था। गौतम बुद्ध श्रमण थे सनातन धर्म संस्कृति से ली गयी सत्य अहिंसा अस्तेय अपरिग्रह आदि सूत्रों पर आधारित उनकी शिक्षाओं पर कालांतर में बौद्ध पंथ का प्रचलन हुआ। पहले “बुद्ध शरणम गच्छामि, धर्ममम् शरणम् गच्छामि” बौद्ध मार्गियों का सूत्र वाक्य था।

 बुद्ध ने लगभग ढाई हजार वर्ष पहले कहा था कि ब्रह्मांड में कोई भी घटना या अनुभव पूरी तरह से नया नहीं है। आप जो कुछ भी देखते और अनुभव करते हैं वह पहले ही एक बार नहीं अपितु कई बार हो चुका है। तो, यह कहा जा सकता है कि आकर्षण का नियम कोई बिल्कुल नया विचार नहीं है। यह नई बोतल में पुरानी शराब है। इस घटना को बुद्ध ने पहले ही समझा दिया था।*

*🚩अच्छे विचारों का मनोरंजन करें, और आप अच्छे बन जायेंगे। बुरे विचार मन में लाते हैं और आप बुरे बन जाते हैं। बुद्ध के जीवन का एक सुंदर प्रसंग है। एक बार, बुद्ध के शिष्य सुभूति ने उनसे पूछा, “गुरु, आपके चेहरे से शाश्वत शांति और शांति कैसे झलकती है?” आप कभी उत्तेजित क्यों नहीं दिखते?” बुद्ध मुस्कुराये और बोले, “मैं कोशिश नहीं करता। मेरे अंदर की शांति मेरे चेहरे पर झलकती है।” जब किसी गुण का मंथन और उसे आत्मसात किया जाता है तो उसके सकारात्मक परिणाम सामने आते हैं। इसी प्रकार, जब किसी विकार को आत्मसात कर लिया जाता है, तो वह लंबे समय तक नकारात्मकता दिखाना शुरू कर देता है। बुद्ध, जिन्होंने देवताओं और निर्माता के विचार को खारिज कर दिया, ब्रह्मांड की भलाई में विश्वास करते थे, और मानते थे कि हमारे विचार, अच्छे या बुरे, एक गुंबद में गूंजती ध्वनि की तरह हमारे पास वापस आते हैं।*

*🚩एक अच्छा या सकारात्मक विचार विट्टम ​​है, वृत्तम के लिए पाली। यह हमारे अस्तित्व को प्रभावित करता है और विचार की गुणवत्ता के अनुसार मार्गदर्शन या गुमराह करता है। थेरवाद बौद्ध धर्म का मानना ​​है कि अभिव्यक्ति नहीं बल्कि विचारों के पीछे का इरादा मायने रखता है।*

*🚩अच्छे इरादे वाला विचार अच्छे भाव से प्रकट होता है और बुरे इरादे वाले विचार के बुरे परिणाम, परिणाम, प्रभाव और परिणाम होंगे।*

*🚩बुद्ध ने यह भी परामर्श दिया कि व्यक्ति को महान बनने के लिए सदैव सकारात्मक विचारों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। नकारात्मक विचार या अविवेक के एक क्षण का जीवन भर पर प्रभाव पड़ सकता है। इतिहास ने वह दृश्य भी देखा है जब एक पल की त्रुटि ने सदियों को बर्बाद कर दिया। मनुष्य अपने विचारों से आकार लेता है। हमारे इरादे हमारी नियति तय करते हैं। अच्छा सोचो चीजें अच्छी होंगी. बुरा सोचो तो स्थिति वैसे ही हो जाती है*

*🚩बुद्ध ने कहा कि एक बार जब कोई विचार आपकी सांस बन जाता है, तो वह आपका अस्तित्व बन जाता है। जिस तरह हम सांस लेते हैं, लेकिन पूरी सांस लेने की प्रक्रिया के बारे में हमें पता नहीं चलता हैं, उसी तरह एक अच्छा विचार हमारी अस्तित्वगत आवश्यकता बन जाना चाहिए। इसे हमारे मानस का अभिन्न अंग बन जाना चाहिए। तब यह सभी अच्छी चीजों को प्रकट करेगा। इस पर विचार करें, और जीवन में एक बड़ा बदलाव आएगा। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि बुद्ध आत्मज्ञान के लिए तरस रहे थे। यह आत्मज्ञान पर उनका ध्यान था कि सतोरी, ब्रह्मांडीय ज्ञान, उन पर उतर आया। बुद्ध की तरह सोचें, और आप भी एक विकसित आत्मा बन जाएंगे*

*🚩भगवान बुद्ध का जीवन दर्शन और विचार आज भी प्रासंगिक हैं*

*🚩महात्मा बुद्ध के जीवनकाल की अनेक घटनाएं ऐसी हैं, जिनसे उनके मन में समस्त प्राणीजगत के प्रति निहित कल्याण की भावना तथा प्राणीमात्र के प्रति दयाभाव का साक्षात्कार होता है। उनके हृदय में बाल्यकाल से ही प्रत्येक प्राणी में प्रति करूणा कूट-कूटकर भरी थी।*

*🚩563 ईसापूर्व वैशाख मास की पूर्णिमा को लुम्बनी वन में शाल के दो वृक्षों के बीच एक राजकुमार ने उस समय जन्म लिया, जब उनकी मां कपिलवस्तु की महारानी महामाया देवी अपने पीहर देवदह जा रही थी और रास्ते में ही उन्हें प्रसव पीड़ा शुरू हो गई थी। इस राजकुमार का नाम रखा गया सिद्धार्थ, जो आगे चल कर महात्मा बुद्ध के नाम से विख्यात हुए। महात्मा बुद्ध का जीवन दर्शन और उनके विचार आज ढाई हजार से अधिक वर्षों के बेहद लंबे अंतराल बाद भी उतने ही प्रासंगिक हैं। उनके प्रेरणादायक जीवन दर्शन का जनजीवन पर अमिट प्रभाव रहा है। हिन्दू धर्म में जो अमूल्य स्थान चार वेदों का है, बौद्धों में वही स्थान बुद्ध ‘पिटकों’ का है। महात्मा बुद्ध स्वयं अपने हाथ से कुछ नहीं लिखते थे बल्कि उनके शिष्यों ने ही उनके उपदेशों को कंठस्थ कर बाद में उन्हें लिखा और लिखकर उन उपदेशों को वे पेटियों में रखते जाते थे, इसीलिए इनका नाम ‘पिटक’ पड़ा, जो तीन प्रकार के हैं:- विनय पिटक, सुत्त पिटक तथा अभिधम्म पिटक।*

*🚩महात्मा बुद्ध के जीवनकाल की अनेक घटनाएं ऐसी हैं, जिनसे उनके मन में समस्त प्राणीजगत के प्रति निहित कल्याण की भावना तथा प्राणीमात्र के प्रति दयाभाव का साक्षात्कार होता है। उनके हृदय में बाल्यकाल से ही चराचर जगत में विद्यमान प्रत्येक प्राणी में प्रति करूणा कूट-कूटकर भरी थी। मनुष्य हो या कोई जीव-जंतु, किसी का भी दुख उनसे देखा नहीं जाता था। एक बार की बात है, जंगल में भ्रमण करते समय उन्हें किसी शिकारी के तीर से घायल एक हंस मिला। उन्होंने उसके शरीर से तीर निकालकर उसे थोड़ा पानी पिलाया। तभी उनका चचेरा भाई देवदत्त वहां आ पहुंचा और कहा कि यह मेरा शिकार है, इसे मुझे सौंप दो। इस पर राजकुमार सिद्धार्थ ने कहा कि इसे मैंने बचाया है जबकि तुम तो इसकी हत्या कर रहे थे, इसलिए तुम्हीं बताओ कि इस पर मारने वाले का अधिकार होना चाहिए या बचाने वाले का। देवदत्त ने सिद्धार्थ की शिकायत उनके पिता राजा शुद्धोधन से की। शुद्धोधन ने सिद्धार्थ से कहा कि तीर तो देवदत्त ने ही चलाया था, इसलिए तुम यह हंस उसे क्यों नहीं दे देते?*

*🚩इस पर सिद्धार्थ ने तर्क दिया, ‘‘पिताजी! इस निरीह हंस ने भला देवदत्त का क्या बिगाड़ा था? उसे आसमान में स्वच्छंद उड़ान भरते इस बेकसूर हंस पर तीर चलाने का क्या अधिकार है? उसने इस हंस पर तीर चलाकर इसे घायल किया ही क्यों? मुझसे इसका दुख देखा नहीं गया और मैंने तीर निकाल कर इसके प्राण बचाए हैं, इसलिए इस हंस पर मेरा ही अधिकार होना चाहिए।’’ राजा शुद्धोधन सिद्धार्थ के इस तर्क से सहमत होते हुए बोले, ‘‘तुम बिल्कुल सही कह रहे हो सिद्धार्थ। मारने वाले से बचाने वाला ही बड़ा होता है, इसलिए इस हंस पर तुम्हारा ही अधिकार है।’’*

*🚩महात्मा बुद्ध जब उपदेश देते जगह-जगह घूमते तो कुछ लोग उनका खूब आदर-सत्कार करते तो कुछ उन्हें बहुत भला-बुरा बोलकर खूब खरी-खोटी भी सुनाते तो कुछ दूर से ही उन्हें अपमानित कर दुत्कार कर भगा देते लेकिन महात्मा बुद्ध सदैव शांतचित्त रहते। एक बार वे भिक्षाटन के लिए शहर में निकले और उच्च जाति के एक व्यक्ति के घर के समीप पहुंचे ही थे कि उस व्यक्ति ने उन पर जोर-जोर से चिल्लाना तथा गालियां देना शुरू कर दिया और कहा कि नीच, तुम वहीं ठहरो, मेरे घर के पास भी मत आओ।*

*🚩बुद्ध ने उससे पूछा, भाई, यह तो बताओ कि नीच आखिर होता कौन है और कौन-कौन-सी बातें किसी व्यक्ति को नीच बनाती हैं?’*’

*🚩उस व्यक्ति ने जवाब दिया, ‘‘मैं नहीं जानता। मुझे तो तुमसे ज्यादा नीच इस दुनिया में और कोई नजर नहीं आता।’’*

*🚩इस पर महात्मा बुद्ध ने बड़े प्यार भाव से उस व्यक्ति को समझाते हुए कहा, ‘‘जो व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति से ईर्ष्या करता है, उससे वैर भाव रखता है, किसी पर बेवजह क्रोध करता है, निरीह प्राणियों पर अत्याचार या उनकी हत्या करता है, वही व्यक्ति नीच होता है। जब कोई किसी पर चिल्लाता है या उसे अपशब्द कहता है अथवा उसे नीच कहता है तो ऐसा करने वाला व्यक्ति ही वास्तव में नीचता पर उतारू होता है क्योंकि असभ्य व्यवहार ही नीचता का प्रतीक है। जो व्यक्ति किसी का कुछ लेकर उसे वापस नहीं लौटाता, ऋण लेकर लौटाते समय झगड़ा या बेईमानी करता है, राह चलते लोगों के साथ मारपीट कर लूटपाट करता है, जो माता-पिता या बड़ों का आदर-सम्मान नहीं करता और समर्थ होते हुए भी माता-पिता की सेवा नहीं करता बल्कि उनका अपमान करता है, वही व्यक्ति नीच होता है। जाति या धर्म निम्न या उच्च नहीं होते और न ही जन्म से कोई व्यक्ति उच्च या निम्न होता है बल्कि अपने विचारों, कर्म तथा स्वभाव से ही व्यक्ति निम्न या उच्च बनता है। कुलीनता के नाम पर दूसरों को अपमानित करने का प्रयास ही नीचता है। धर्म-अध्यात्म के नाम पर आत्मशुद्धि के बजाय कर्मकांडों या प्रतीकों को महत्व देकर खुद को दूसरों से श्रेष्ठ साबित करके दिखाने का दंभ ही नीचता है।’’*

*🚩🕉️महात्मा बुद्ध के इन तर्कों से प्रभावित हो वह व्यक्ति उनके चरणों में गिरकर उनसे क्षमायाचना करने लगा। बुद्ध ने उसे उठाकर गले से लगाया और उसे सृष्टि के हर प्राणी के प्रति मन में दयाभाव रखने तथा हर व्यक्ति का सम्मान करने का मूलमंत्र देकर वे आगे निकल पड़े।

सनातनी राजा #सम्राट_अशोक के समय बौद्ध पंथियों को बहुत बढ़ावा मिला। क्यों कि बौद्ध पंथियों की बड़ी संख्या थी इसलिए सम्राट अशोक भी इनके कार्यक्रमों हेतु मठों में जाते थे लेकिन सम्राट अशोक ने कभी बौद्ध पंथ नहीं अपनाया। क्यों सम्राट अशोक सनातन की वैज्ञानिक विधि-विधान के प्रबल अनुयायी थे शस्त्र और शास्त्र उनके शिक्षा के अंग थे इसी चतुर्मुख शेर सम्राट अशोक का राज्य चिन्ह था जो भारत की मुद्रा पर भी है। सम्राट अशोक द्वारा बौद्ध मत अपनाने की झूठी कहानी बामपंथी कहानीकारों ने केवल पाठ्यक्रमों को विद्रुप करने के लिए गढी। जैसे आज मुस्लिम ईसाई नेता भगवा ओढ़ कर मंदिर जाते हैं। लेकिन हैं वे सनातन धर्म संस्कृति बड़े विरोधी हैं।

जैसा समय के साथ परिवर्तन होता रहता है अस्तु बौद्ध पंथ में भी बाद के काल खंड में भारी परिवर्तन आया अनेक विकृतियां भी आयी तिब्बत में वे मांस भक्षण करने लगे मंदिरों को क्षति पंहुंचाने लगे। मंदिरों में भगवान की प्रतिमा को क्षति पहुंचा कर वहां बौद्ध मूर्तियां रखने लगे, बदरीनाथ मंदिर को भी क्षति पंहुंची।

वर्तमान में #बौद्ध पंथ को धम्म कहने लगे हैं, आज तो रैडिकल अंबेडकराईड स्वयं भी स्वयं को बौद्ध कहते हैं लेकिन फोटो अंबेडकर की पूजते हैं और सनातन धर्म संस्कृति का विरोध करने के लिए मीम भीम एकता का नारा देते हुए साथ इस्लाम का देते हैं। बहुत से लोगों ने तो हिन्दूओं को मिलने वाले आरक्षण लाभ लेने के लिए नाम भले हिन्दू ही रखा हुआ है लेकिन वे इस्लाम अपना भी चुके, जबकि पाकिस्तान अफगानिस्तान बंगाल में इस्लाम मानने वालों ने सबसे बड़ा कुठाराघात इन्हीं काफिरों पर किया है। क्यों कि वे सभी अपनी किताब के अनुसार गैर इस्लामी व्यक्तियों को काफिर मानते हुए उनकी हत्या जायज मानते हैं। ऐसे ही कई हिन्दू नाम वाले #अंबेडकराईड ईसाई भी बन गये। समय की बलिहारी है।

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*🚩🕉️भगवान बुद्ध के उपदेश🚩🕉️*

*🚩🕉️निम्नलिखित बिंदु भगवान बुद्ध की पांच महत्वपूर्ण शिक्षाओं को उजागर करते हैं। उपदेश हैं*

*1. 🚩चरित्र के लिए प्रमुखता*
*2. 🚩कर्म और पुन: जन्म में विश्वास*
*3.🚩 ईश्वर के अस्तित्व में अविश्वास*
*4. 🚩अहिंसा*
*5. 🚩जाति व्यवस्था*

*1. 🚩🕉️चरित्र के लिए प्रमुखता*

*🚩🕉️बुद्ध ने पूजा के बजाय नैतिक जीवन पर बहुत जोर दिया। उन्होंने नैतिक चरित्र के निर्माण के लिए बहुत अधिक महत्व दिया और उद्देश्य के लिए विभिन्न सिद्धांतों को निर्धारित किया।*

*🚩नैतिकता के इन नियमों में सच्चाई, प्रेम और परोपकार, माता-पिता के प्रति आज्ञाकारिता और बड़ों के प्रति सम्मान, संयम का जीवन जीना, नशीले पेय से परहेज़, दान, दया और बीमारों पर दया करना और सभी जीवित प्राणियों पर जोर दिया गया।*

*2. 🚩🕉️कर्म और पुन: जन्म में विश्वास*

*🚩🕉️गौतम बुद्ध कर्म के सिद्धांत में विश्वास करते थे और मानते थे कि इस जीवन में लोगों की स्थिति और उनके कर्म पर टिकी हुई है। एक आदमी पढ़ता है कि वह क्या बोता है रेत नहीं भगवान या देवी इसे बदल सकते हैं। कोई भी व्यक्ति अपने कर्मों के परिणाम से बच नहीं सकता है।*

*🚩🕉️व्यक्ति अपने कर्म के फल को पाने के लिए बार-बार जन्म लेता है। बुद्ध ने धारण किया “यदि कोई व्यक्ति पाप नहीं करता है तो वह और नहीं मरता है और जब वह नहीं मरता है, तो वह जन्म नहीं लेता है और इस प्रकार वह अंतिम आनंद का जीवन जीने के लिए आता है।” यद्यपि कर्म का सिद्धांत बुद्ध का नया योगदान नहीं था क्योंकि यह पहले से ही ज्ञात था लेकिन इस सिद्धांत को लोकप्रिय बनाने का श्रेय बुद्ध को जाता है।*

*3. 🚩🕉️ईश्वर के अस्तित्व में अविश्वास*

*🚩🕉️कर्म के सिद्धांत में दृढ़ विश्वास के कारण, भगवान ने इस मुद्दे पर कोई ध्यान नहीं दिया। इस मौन की व्याख्या विद्वानों ने ईश्वर के अस्तित्व में अविश्वास के रूप में की है। वास्तव में, बुद्ध ने भगवान और देवी-देवताओं के अस्तित्व को न तो स्वीकार किया और न ही खारिज किया।*

*4. 🚩🕉️अहिंसा*

*अहिंसा भगवान बुद्ध की शिक्षाओं की एक और प्रमुख विशेषता थी। उनके अनुसार प्रेम की भावना अच्छे कार्यों से अधिक महत्वपूर्ण है और अहिंसा को व्यावहारिक नैतिकता का एक अभिन्न अंग माना जाता है।*

*🚩🕉️हालाँकि, अहिंसा को बुद्ध ने उतना महत्व नहीं दिया जितना कि जैन धर्म ने दिया था। इसके अलावा, हालांकि उन्होंने जीवित प्राणियों के लिए प्रेम और अहिंसा पर जोर दिया, उन्होंने अपने अनुयायियों को कुछ परिस्थितियों में मांस लेने की अनुमति दी।*

*5. 🚩🕉️जाति व्यवस्था*

*🚩🕉️  जाति व्यवस्था सनातन धर्म संस्कृति का कभी अंग नहीं रहा। गौतम बुद्ध ने भी जाति व्यवस्था की आलोचना की और जाति भेद को नहीं माना। उनके अनुसार सभी पुरुष समान हैं और व्यक्ति की स्थिति उसके कर्मों से निर्धारित होती है। यही सनातन धर्म संस्कृति की का मूल सिद्धांत है कार्यउन का स्वेच्छा से वरण करना जिसे वर्ण व्यवस्था कहा जाता है। बुद्ध का भी यही मानना था कि किसी व्यक्ति की जाति उसके जन्म पर नहीं बल्कि उसके कर्मों पर निर्भर करती है। बुद्ध के इस सिद्धांत ने सभी जातियों के लोगों से बहुत अपील की और वे बड़ी संख्या में उनके पास आते गये।*

*🚩🕉️इस प्रकार हम पाते हैं कि बुद्ध के सिद्धांत और शिक्षाएँ बहुत ही सरल थीं, उन्होंने किसी भी हठधर्मिता का परिचय नहीं दिया, लेकिन केवल विचार, भाषण और क्रिया की शुद्धता पर बल दिया। वह दुनिया के पहले तर्कवादी थे जिन्होंने दावा किया कि किसी की बाहरी शक्ति के संदर्भ के बिना अपने स्वयं के उद्धारकर्ता और स्वामी थे।*

*🚩🕉️बुद्ध कहते हैं दुखी होने से परेशानियां खत्म नहीं होती, हर इंसान को दुख से छुटकारा पाने के लिए उससे जुड़ी बातों पर विचार करना चाहिए।*

*🚩🕉️भगवान बुद्ध द्वारा दी गई सीख आज भी प्रासंगिक है। गौतम बुद्ध ने सारनाथ में दिए अपने पहले उपदेश में भी दुख के बारे में बात की है। बुद्ध ने कहा है दुख के बारे में अच्छे से जान लेने के बाद ही सुख मिलता है। उन्होंने बताया कि हर इंसान कभी न कभी दुखी होता ही है। हर इंसान को ये जान लेना चाहिए कि दुख का कारण क्या है, क्यों दुख आता है, हर तरह के दुख से छुटकारा पाया जा सकता है। और दुख को खत्म करने के क्या उपाय हैं। इन बातों को जो इंसान समझ लेता है वो किसी भी हालात में परेशान नहीं होता है।*

*🚩🕉️आज हर इंसान किसी न किसी बात को लेकर परेशान है या कहा जा सकता है कि दुखी है। भगवान बुद्ध का कहना है कि दुखी होने से परेशानियां खत्म नहीं होती हैं। हर इंसान को दुख से छुटकारा पाने के लिए उससे जुड़ी बातों पर विचार करना चाहिए। इसके लिए भगवान बुद्ध की सीख से मदद मिलती है।*

*🚩🕉️दुख है: महात्मा बुद्ध की पहली सीख कहती है कि संसार में दुःख है। बुद्ध कहते हैं कि इस संसार में कोई भी प्राणी ऐसा नहीं है जिसे दुःख ना हो। उनके मुताबिक दुख को एक सामान्य स्थिति समझना चाहिए। इसे खुद पर हावी नहीं होने देना चाहिए। इसलिए हर इंसान को दुखी होने पर चिंतित और परेशान नहीं होना चाहिए। इसके उलट खुद को खुश रखने की कोशिश करनी चाहिए।*

*🚩🕉️दुख का कारण है: महात्मा बुद्ध ने अपनी दूसरी सीख में दुख के कारण का उल्लेख किया है। बुद्ध का कहना है कि दुखों का तृष्णा यानी अपरिमित और पाने की प्रबल इच्छा है। इसलिए किसी भी चीज के लिए अति तृष्णा नहीं रखना चाहिए। यानी कहा जा सकता है कि किसी चीज या इंसान से उम्मीद नहीं रखनी चाहिए।*

*🚩🕉️दुख का निवारण है: महात्मा बुद्ध ने तीसरी सीख में बताया है कि किसी भी तरह का दुख हो उसको दूर किया जा सकता है। उनका कहना है कि हर इंसान को ये समझना चाहिए कि कोई भी दुख हमेशा नहीं रहता है, उसको खत्म किया जा सकता है।*

*🚩🕉️दुख निवारण का उपाय है: बुद्ध का कहना है कि हर दुख को दूर करने का उपाय मौजूद होता है। निवारण के उपाय भी मौजूद है। दुःख को दूर करने के लिए इंसान को भगवान बुद्ध के बताए गए सद् मार्ग यानी अष्टांगिक मार्ग को जानना चाहिए। जिससे कभी दुख महसूस नहीं होगा।*

🚩🕉️🚩🕉️🚩🕉️🚩🚩कूर्म जयंती आज*

*🚩इस दिन भगवान विष्णु ने अपने ‘कूर्म’ अवतार में ‘क्षीर सागर मंथन’ के समय विशाल मंदरांचल पर्वत को अपनी पीठ पर उठाया था।*

*🚩🕉️भगवान विष्णु के कछुए के रूप में जन्म का जश्न मनाता है, जिन्हें संस्कृत भाषा में ‘कूर्म’ कहा जाता है। यह हिंदू कैलेंडर के अनुसार ‘वैशाख’ महीने में ‘पूर्णिमा’ (पूर्णिमा दिवस) पर पड़ता है। अंग्रेजी कैलेंडर में यह तिथि मई-जून के बीच आती है। हिंदू किंवदंतियों के अनुसार यह माना जाता है कि भगवान विष्णु ने अपने ‘कूर्म’ अवतार में ‘क्षीर सागर मंथन’ के दौरान विशाल मंदरांचल पर्वत को अपनी पीठ पर उठाया था। तभी से कूर्म जयंती को भगवान कूर्म (कछुआ) की जयंती के रूप में मनाया जाता है। यह रूप श्री हरि विष्णु के दूसरे अवतार के रूप में जाना जाता है और हिंदू भक्त इस दिन पूरे उल्लास और समर्पण के साथ धार्मिक रूप से उनकी पूजा करते हैं। कूर्म जयंती के दिन पूरे देश में भगवान विष्णु के मंदिरों में विशेष पूजा और समारोह आयोजित किए जाते हैं। आंध्र प्रदेश में ‘श्री कुर्मन श्री कुर्मानाथ स्वामी मंदिर’ में उत्सव बहुत भव्य होता है और यह उत्सव दूर-दूर से भक्तों को आकर्षित करता है।*

*🚩🕉️कूर्म जयंती के दिन, भक्त कठोर उपवास रखते हैं। यह व्रत पिछली रात से शुरू होकर पूरे दिन तक चलता है। कूर्म जयंती व्रत का पालन करने वाला पूरी रात नहीं सोता है और ‘विष्णु सहस्रनाम’ और अन्य वैदिक मंत्रों का जाप करते हुए जागता है। इस दिन भगवान विष्णु की भक्ति और स्नेह से पूजा की जाती है। भक्त अपने भगवान से जीवन में बाधाओं को दूर करने और समृद्धि और सफलता सुनिश्चित करने के लिए दिव्य आशीर्वाद मांगने के लिए प्रार्थना करते हैं। कूर्म जयंती पर भक्त शाम को भगवान विष्णु के मंदिरों में जाते हैं और वहां आयोजित अनुष्ठानों को देखते हैं। ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा देना भी इस दिन का एक महत्वपूर्ण कार्य है। दान भोजन, धन, कपड़े या जीवन की किसी अन्य आवश्यक वस्तु के रूप में हो सकता है और यह व्यक्ति की वित्तीय क्षमता पर निर्भर होना चाहिए।*

*🚩🕉️कूर्म जयंती का महत्व:*

*🚩🕉️कूर्म जयंती हिंदुओं के लिए एक शुभ त्योहार है। इस दिन भगवान विष्णु का कूर्म अवतार हिंदुओं द्वारा पूजनीय है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, ‘क्षीर समुद्र मंथन’ की खगोलीय घटना के दौरान समुद्र मंथन के लिए ‘मंदारांचल पर्वत’ का उपयोग किया गया था। हालाँकि जब पर्वत डूबने लगा, तो भगवान विष्णु एक विशाल कछुए के रूप में उभरे और पर्वत को अपनी पीठ पर पकड़ लिया। इसलिए इस कूर्म अवतार के बिना, ‘क्षीरसागर’ का मंथन नहीं किया जा सकता था और 14 दिव्य उपहार या ‘रत्न’ देवताओं या ‘देवों’ को नहीं दिए जाते। अब से कूर्म जयंती हिंदुओं के लिए अत्यधिक धार्मिक महत्व रखती है और भक्त भगवान विष्णु की महानता के लिए अपना आभार व्यक्त करते हैं। कूर्म जयंती का दिन निर्माण कार्य शुरू करने के लिए शुभ माना जाता है क्योंकि लोकप्रिय मान्यता है कि योगमाया भगवान कूर्म के साथ रहती है। नए घर में शिफ्ट होने या वास्तु से जुड़े काम के लिए भी यह दिन अनुकूल है।*

*🚩🕉️कुर्मा जयंती के लिए अनुष्ठान*

*🚩🕉️सूर्योदय से पहले पवित्र स्नान करें।*

*🚩🕉️साफ-सुथरे या पूजा वस्त्र धारण करें।*

*🚩🕉️धूप, तुलसी के पत्ते, चंदन, कुमकुम, फूल और मिठाई लेकर प्रसाद के साथ भगवान विष्णु की पूजा करके प्रार्थना करें।*

*🚩🕉️इस दिन व्रत करना बहुत ही शुभ माना जाता है। इसलिए, कई भक्त मौन उपवास या कठोर कूर्म जयंती व्रत करते हैं।*

*🚩🕉️व्रत के दौरान दाल या अनाज का सेवन वर्जित है और फलों के साथ केवल दुग्ध उत्पादों का ही सेवन किया जा सकता है।*

*🚩🕉️पूर्ण तपस्या करनी चाहिए और प्रेक्षकों को किसी भी प्रकार के पाप कर्म या झूठ बोलने से बचना चाहिए।*

*🚩🕉️रात के समय जागरण करें और पूरी रात भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए मंत्रों का जाप करें।*

*🚩🕉️प्रसिद्ध ‘विष्णु सहस्रनाम’ का पाठ करना बहुत शुभ माना जाता है।*

*🚩🕉️सभी रस्में पूरी होने के बाद आरती करें।*

*🚩🕉️कूर्म जयंती के दिन आप दान या दान कर सकते हैं क्योंकि इससे अत्यधिक फल की प्राप्ति होती है। आप जरूरतमंद या ब्राह्मणों को भोजन, कपड़े, या धन सहित कुछ भी दान कर सकते हैं।*

*🕉️🚩कूर्म जयंती मंत्र*

*🕉️🚩ॐ कूर्माय नम:*
*ॐ हां ग्रीं कूर्मासने बाधाम नाशय नाशय*
*ॐ आं ह्रीं क्रों कूर्मासनाय नम:*
*ॐ ह्रीं कूर्माय वास्तु पुरुषाय स्वाहा*

*🚩🕉️भगवान विष्णु इस शुभ अवसर पर उनकी पूजा करने वाले सभी लोगों को जीवन में स्थिरता और सफलता प्रदान करते हैं। इस दिन भगवान विष्णु को प्रसन्न कर अपने पापों से छुटकारा पाया जा सकता है। साथ ही जीवन में अच्छा स्वास्थ्य, प्रचुरता और सुख प्राप्त कर सकते हैं। आप प्रतिस्पर्धा या प्रतिद्वंद्विता पर काबू पाने के लिए भी सशक्त हो सकते हैं। उम्मीद करतें हैं इस कूर्म जयंती पर आप संपूर्ण वैदिक रिवाजों से ही भगवान श्रीहरि विष्णु को प्रसन्न करें।* चंद्रशेखर शर्मा

*कूर्म जयंती की शुभकामनाएं…*

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*🚩🌳आज पीपल पूर्णिमा 2024- के दिन पीपल वृक्ष की पूजा की जाती है, पितृ और ग्रह दोष से मिल जाती है मुक्ति*

*🚩🌳हिंदू धर्म में पूर्णिमा का विशेष महत्व है. वैशाख माह में आने वाली पूर्णिमा को वैशाख पूर्णिमा, पीपल पूर्णिमा और बुद्ध पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है. इस साल वैशाख पूर्णिमा 23 मई 2024, गुरुवार के दिन पड़ रही है. बता दें कि इस बार वैशाख पूर्णिमा के दिन पूर्ण चंद्र ग्रहण भी पड़ रहा है. ऐसे में पूजा का महत्व और अधिक बढ़ जाता है. बता दें कि पूर्णिमा के दिन स्नान-दान का विशेष महत्व है. इस दिन पीपल की पूजा का भी खास महत्व बताया गया है.*

*🚩🌳शास्त्रों के अनुसार वैशाख पूर्णिमा के दिन पीपल की पूजा करना शुभ फलदायी होता है. मान्यता है कि इस दिन पीपल की पूजा करने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है. साथ ही, पितर भी संतुष्ट होते हैं. धार्मिक ग्रंथों के अनुसार इस दिन पेड़ लगाने से बृहस्पति ग्रह का अशुभ फल भी कम होता है. जानें इस दिन पीपल की पूजा से क्या लाभ होते हैं.*

*🚩🌳पीपल के वृक्ष की पूजा से होगा ये लाभ*

*- 🚩🌳धार्मिक मान्यता है कि वैशाख पूर्णिमा के दिन पीपल के पेड़ की पूजा करने से कुंडली में शनि, गुरु और अन्य ग्रह भी शुभ फल देने लगते हैं.*

*- 🚩🌳पीपल के पेड़ में तीन देवताओं- ब्रह्मा, विष्णु, महेश का वास होता है. सुबह उठकर इस पर जल अर्पित करने, पूजा करने और दीपक जलाने से तीनों देवताओं की कृपा मिलती है*

*- 🚩🌳पीपल के पेड़ पर पानी में दूध और काले तिल मिलाकर अर्पित करने से पितर संतुष्ट होते हैं और उनकी कृपा प्राप्त होती है. मान्यता है कि इस पेड़ पर सुबह के समय पितरों का भी वास होता है.*

*- 🚩🌳 शास्त्रों में लिखा है कि सूर्योदय के बाद मां लक्ष्मी का वास होता है और इसलिए सूर्योदय के बाद पीपल की पूजा करने से परिवार में सुख-समृद्धि का वास होता है.*

*-🚩🌳 पीपल पूर्णिमा पर शुभ कार्य किए जाते हैं. इस दिन अबूझ साया होता है. सुबह पीपल के पेड़ की पूजा के बाद दिन में किसी भी समय कोई भी मांगलिक या शुभ कार्य किया जा सकता है.*

*- 🚩🌳मान्यता है कि अगर किसी व्यक्ति की कुंडली में विधवा योग हो तो पहले पीपल या घड़े से शुभ लग्न में उसकी शादी करवाने से उसका वैधव्य योग समाप्त हो जाता है. मान्यता है कि ऐसा करने से ग्रहों के अशुभ प्रभाव भगवान विष्णु ग्रहण कर लेते हैं.*

*- 🚩🌳पीपल पूर्णिमा के दिन सूर्योदय के बाद पीपल के पेड़ में जल अर्पित करें. इसके बाद पेड़ की 3 परिक्रमा लगाएं. ऐसा करने से गुरू और शनि ग्रह शुभ फल देते हैं.*

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आज बुद्ध पूर्णिमा के शुभ अवसर पर भगवान श्री लक्ष्मण जी ( लोकपाल मंदिर ) के कपाट विधि विधान से मेरे गांव भ्यूंडार की लक्ष्मण मंदिर समिति द्वारा समस्त भक्तजनों के लिए लिए खोल दिए गए हैं। इस स्थान पर प्रभु श्रीराम के भाई लक्ष्मण जी द्वारा अपने पूर्व जन्म में भगवान शेषनाग के रूप में अखंड तपस्या की गई थी। यह स्थान उत्तराखंड राज्य के चमोली जिले के जोशीमठ तहसील के भ्यूंडार गांव के क्षेत्रांतर्गत सिक्खों के दसवें गुरु गोविंद सिंह जी की तपस्थली हेमकुंड साहिब के पास है। भगवान लक्ष्मण जी लोकपाल जी का यह एकमात्र ऐसा मंदिर है जो विश्व की सबसे ऊंचाई वाले स्थान पर स्थित है जो समुद्र तल से 15200 फीट की ऊंचाई पर है। इस मंदिर की देखरेख अनादि काल से ही गांव भ्यूंडार के लोगों द्वारा किया जाता है इसीलिए आज भी इस मंदिर के पुजारी इस गांव के लोग ही होते हैं। इस मंदिर तक पहुंचने के लिए भक्तगण ऋषिकेश से जोशीमठ और वहां से बद्रीनाथ धाम जाने वाले मार्ग पर गोविन्द घाट में बस द्वारा पहुंचते हैं और उसके बाद का सफर हेमकुंड साहिब तथा फूलों की घाटी वाले मार्ग पर आगे बढ़ कर 18 किलोमीटर पैदल चलकर पूरा करते हैं। सम्पूर्ण पैदल यात्रा मार्ग पर खाने, पीने, रहने व डांडी कांडी, घोड़े खच्चर की पर्याप्त व्यवस्था है। इस मार्ग पर आपको विश्व प्रसिद्ध फूलों की घाटी और काकभूषडीं ताल को देखने का भी अवसर प्राप्त होता है।आप सभी भक्तजनों को भगवान लक्ष्मण जी का आशीर्वाद प्राप्त होता रहे। 🙏✍️ भवान सिंह चौहान