इराक के 5 लाख यजीदी प्राचीन यजुर्वेदी हिन्दू है?

इराक के 5 लाख यजीदी प्राचीन यजुर्वेदी हिन्दू है ?

यजीदी लोग स्वयं को न तो मुसलमान मानते हैं, न पारसी और न ईसाई। यह अपने को ‘यजीदी’ कहते हैं। इस समुदाय के उपासना-स्थल  हिन्दू मंदिरों की तरह होते हैं, ये सूर्य की भी पूजा करते हैं और इनमें  मोर पक्षी की बहुत मान्यता है। उल्लेखनीय है कि मोर केवल दक्षिण एशिया में पाया जाता है। इराक, सीरिया इत्यादि देशों में मोर नहीं पाए जाते। सदियों के उत्पीड़न के बावजूद यज़ीदियों ने अपना धर्म नहीं छोड़ा, जो दर्शाता है कि वे अपनी पहचान और धार्मिक चरित्र को लेकर कितने दृढ़ हैं। इस समुदाय के लोगों ने सीरिया में म्लेच्छ आक्रांताओं द्वारा उन पर हो रहे जानलेवा अत्याचारों और उनकी महिलाओं की आबरू की नीलामी से बचने के लिए भारत में शरण पाने हेतु भारत के प्रधानमंत्री मोदी से आग्रह किया है।

हिन्दुओं और यजीदियों में कुछ महत्वपूर्ण समानताएं – 

• यजीदियों के घरों में तथा मंदिरों मे मोर के आकार के दीप स्तम्भ पाए जाते हैं। हिन्दू उसमें बाती लगाते हैं, तो यजीदी उसका चुम्बन लेते हैं।
• यजीदियों के मंदिरों का आकार हिन्दू मंदिरों के समान ही होता है और उसमें गर्भगृह भी होते हैं।
• यजीदियों के घरों में आरती की थाली पायी जाती है। थाली से हिन्दू भी देवताओं की आरती करते हैं।
• यजीदियों के पवित्र लतीश मंदिर की दीवारों पर साड़ी पहनी हुई महिला का भित्तिचित्र है। साड़ी हिन्दू महिलाओं का सर्वमान्य परिधान है।
• लतीश मंदिर के प्रवेश-द्वार पर नाग का चिह्न है। इस क्षेत्र के किसी भी प्राचीन संस्कृति के मंदिर में नाग का चिह्न नहीं है। शिवालयों पर नाग का चिह्न अवश्य होता है।
• यजीदियों के वैवाहिक सम्बन्ध उनके ही मुरीद, शेख, पीर इन जातियों में किए जाते हैं। जाति के बाहर नहीं होते। हिन्दू समाज में भी यही पद्धति है। कदाचित येजीदी समाज में भी गोत्रादि रूढि प्रचलित होंगी।
• यजीदी और हिन्दू पुनर्जन्म में विश्वास करते हैं।
• यजीदियों की देवता को प्रार्थना करने की पद्धति हिन्दू धर्म में स्थित नमस्कार के समान ही है। साथ ही यजीदी प्रातः तथा सायंकाल के समय सूर्य की ओर मुख करके नमस्कार एवं प्रार्थना करते हैं। हिन्दुओं में भी उदयाचल और अस्ताचल सूर्य को इसी पद्धति से नमस्कार करते हैं।
• यजीदी मंदिर में प्रार्थना करते समय बिंदी, कुमकुम धारण करते हैं। हिन्दू धर्म में भी ऐसी द्ध एजति प्राचीन काल से है।
• किसी भी मंगल समय पर दीए जलाने की पद्धति येजीदियों में हैं।
• यजीदियों के बर्तनों पर त्रिशूल का चिह्न होता है। उनके वाद्य भी ढोल एवं ताशानुसार होते हैं।

°भारत में भी शुक्ल यजुर्वेदीय नमस्कार की एक बहुत बड़ी शाखा है। शुक्ल यजुर्वेदीय ब्राह्मण निश्चित रूप से वैदिक पूजा-पाठ और प्रक्रियाओं में लगे रहते हैं। जब भारत आर्यव्रत अखंड रहा और मनुष्य कश्यप ऋषि की सृष्टि में विद्ध्याध्यन शुरू किया  तब भारत जंबूद्वीप के नाम से विश्वविख्यात था और हमारा यह राष्ट्र ईरान इराक सीरिया आदि देशों तक भी फैला हुआ था इसीलिए यह समझा जाता है कि तमाम यवन आक्रांताओं के अत्याचारों के बावजूद यजीदी कहे जाने वाले यजुर्वेदीय ब्राह्मण भले सनातन धर्म संस्कृत और इसकी सभी महान परम्पराओं को नहीं बचा सके हों लेकिन कुछ हद तक अपने संस्कृति के चिह्न बचा सके हैं  जिन्हें आज हम यजीदी के नाम से जानते हैं। 

 ( साभार – सौजन्य अमिताभ अग्रवाल)