कांवड़ियों की जिद से हो सकती है गोमुख की हत्या

गोमुख से गंगाजल का कोई शास्त्रीय विधान नहीं है। क्योंकि वास्तविक गंगा देवप्रयाग में अलकनंदा से मिलने के बाद हरिद्वार में बनती है। भागीरथी का जल नहीं, गंगाजल शिव को पसंद है। कुछ नशेड़ी कंवडि़ये अपने गंदे कपड़े प्लास्टिक बोतल जैसा प्रदूषणकारी कचरा गोमुख व गंगोत्री में छोड़ कर आते हैं, सबसे बड़ी व खतरनाक बात जहाँ मनुष्य के पैरपड़ते हैं, वहां सदा के लिए वर्फ पिघल जाती है। इसलिए भी कांवड़ियों का गोमुख तक जाने का कोई औचित्य नहीं है। जलाभिषेक गंगा जल से किया जाना उत्तम है, जो हरिद्वार में ही मिल जाता है। लेकिन स्वच्छ जल से अभिषेक करने की मनाही कहां है? शौक से अभिषेक करो, लेकिन अभिषेक के लिए प्रदूषण फैलाने का न तो कोई औचित्य है न विधान। ग्लोबल और मैनमेड वार्मिंग से गोमुख पहले ही पिघल कर मीलों पीछे खिसक गया था, लेकिन कांवड़ियों की सनक से गोमुख समाप्त हो रहा है। इससे भविष्य की पीढियों के लिए गंगा ही नहीं बचेगी। बद्रीनाथ के पूर्व धर्माधिकारी पंडित जगदम्बा प्रसाद सती जी ने बताया कि जो मनमाफिक आचरण करता है वह वानर है जबकि शास्त्र सम्मत ढंग से कार्य करने वाला ही नर है। इसीलिए हमें शास्त्रों में बताया गया विधान अपनाना चाहिए। और जल के लिए गोमुख जाने की नराधम जिद नहीं करनी चाहिए। यहाँ हम गोमुख की दो तस्वीरें दे रहे हैं जिसमें स्पष्ट रूप से गोमुख मिटता हुआ दिखाई देता है। उत्तराखंड शासन को भी इस अति संवेदनशील मसले पर कठोर नीति अपनानी चाहिए।.. हरीश मैखुरी, दि0-28-07-2018