क्या इतिहास बन जायेगी उत्तराखण्ड राज्य को बनाने वाली अग्रणि पार्टी

 
2017 का चुनाव हुआ और जनता ने अपने प्रत्याशी चुनकर भी विधानसभा भेजें, परन्तु इस बार के चुनाव में क्षेत्रीय दलों के लिए सबसे बुरा साबित हुयी. उत्तराखण्ड के एकमात्र क्षेत्रीय दल उत्तराखण्ड़ क्रान्ति दल को एक भी सीट नसीब नहीं हुई……यह चुनाव यूकेडी के लिए अच्छा नहीं रहा. उत्तराखण्ड राज्य की माँग के लिए उक्रांद अगुवा दल था..यूकेडी का मकसद ही उत्तराखण्ड राज्य बनाना था.मगर राज्य बनते ही यूकेडी कही गुम हो गया.जनता का विश्वास जीतने में यूकेडी नाकाम साबित हुआ….2002 के चुनाव में यूकेड़ी चार सीट जीतकर आयी थी….2007 के चुनाव में यूकेडी ने तीन सीटें जीतीं थीं. यही से यूकेडी के पतन की शुरुआत हो गई.इस बार के चुनाव में यूकेड़ी ने भाजपा को समर्थन दिया।…2012 के चुनाव में यूकेड़ी मात्र एक सीट पर सिमटकर रह गयी. इस चुनाव में यूकेड़ी ने कांग्रेस को समर्थन दे दिया। ..अब 2017 के चुनाव में यूकेडी एक भी सीट नहीं जीत पायी..यूकेडी के बड़े नेता काशी सिंह ऐरी और अध्यक्ष पुष्पेश त्रिपाठी भी चुनाव हार गये.
यूकेड़ी की हार के कारणों में आपसी फूट भी महत्वपूर्ण भी रहा..त्रिवेन्द्र पंवार और काशी सिंह ऐरी के बीच भी आपसी कलह के कारण भी यूकेडी टूटती रही.विधानसभा चुनावों में यूकेडी के प्रत्याशियों का हर सीट पर प्रत्याशियो की लगभग जमानत जब्त हो गयी. अब ऐसे में पहाड़ की आवाज किस तरीके से विधानसभा तक पहुँच पायेगी.उत्तराखण्ड़ में अब तक की सरकारों में सभी मुख्यमंत्री पैराशूट से उतारे हैं..
उत्तराखण्ड़ जनमानस का मुख्यमंत्री कभी बन नही पाया…
उत्तराखण्ड़ परिवर्तन,यूकेडी डौमोक्रिटव और प्रजामण्डल पार्टी भी इसबार के चुनाव में एक भी सीट नही जीत पायी……
परिसीमन का मामला हो या राजधानी गैरसैण का मामला राष्ट्रीय पार्टियो ने कभी ये मुद्दा नही उठाया..पहाड़ से पलायन हो या बोली भाषा का मुद्दा हो राष्ट्रीय पार्टियां हमेशा इससे कन्री काटती रही…उत्तराखण्ड़ के लोगों की सोच हमेशा से ही राष्ट्रीय रही, जिस कारण भी यहाँ कभी क्षेत्रीय पार्टीयाँ पनप नही पायी…राष्ट्रीय पार्टियो के धन बल के सामने भी क्षेत्रीय पार्टियाँ टिक नही पाती हैं.
अब जरूरत है यूकेड़ी को आत्ममंथन की नही तो यूकेड़ी का इतिहास बनना तय है….
2017 के चुनाव से यूकेड़ी से सबक नही लिया तो वो दिन भी दूर नही होगा जब यूकेडी इतिहास बनकर रह जायेगी….