हम जूठा व बासी नहीं खाते , अगली बार ये कहने से पहले सोचियेगा !

*कुछ दिन पहले एक परिचित दावत के लिये उदयपुर के एक मशहूर रेस्टोरेंट में ले गये।*

*मैं अक़्सर बाहर खाना खाने से कतराता हूँ किन्तु सामाजिक दबाव तले जाना पड़ा।*

*आजकल पनीर खाना रईसी की निशानी है इसलिए उन्होंने कुछ डिश पनीर की ऑर्डर की।*

*प्लेट में रखे पनीर के अनियमित टुकड़े मुझे कुछ अजीब से लगे। ऐसा लगा की उन्हें कांट छांट कर पकाया है।*

*मैंने वेटर से कुक को बुलाने के लिए कहा, कुक के आने पर मैंने उससे पूछा पनीर के टुकड़े अलग अलग आकार के व अलग रंगों के क्यों हैं तो उसने कहा ये स्पेशल डिश है।”*

*मैंने कहा की मैं एक और प्लेट पैक करवा कर ले जाना चाहता हूं लेकिन वो मुझे ये डिश बनाकर दिखाये।*

*सारा रेस्टोरेंट अकबका गया…*
*बहुत से लोग थे जो खाना रोककर मुझे  देखने लगे…*

*स्टाफ तरह तरह के बहाने करने लगा। आखिर वेटर ने पुलिस के डर से बताया की अक्सर लोग प्लेटों में खाना, सब्जी, सलाद व रोटी इत्यादी छोड़ देते हैं। रसोई में वो फेंका नही जाता। पनीर व सब्जी के बड़े टुकड़ों को इकट्ठा कर दुबारा से सब्जी की शक्ल में परोस दिया जाता है।*

*प्लेटों में बची सलाद के टुकड़े दुबारा से परोस दिए जाते है । बासी व सड़ी सब्जियाँ भी करी की शक्ल में छुप जाती हैं…*

*ये बड़े बड़े होटलों का सच है। अगली बार जब प्लेट में खाना बचे तो उसे इकट्ठा कर एक प्लास्टिक की थैली में साथ ले जाएं व बाहर जाकर उसे या तो किसी जानवर को दे दें या स्वयं से कचरेदान में फेंके*

*वरना क्या पता, आपका झूठा खाना कोई और खाये, या आप किसी और की प्लेट का बचा खाना खाएं।*

*दूसरा क़िस्सा भगवान कृष्ण की भूमि वृंदावन का है. वृंदावन पहुंच कर, मैं मुग्ध होकर पावन धरा को निहार रहा था। जयपुर से लंबी यात्रा के बाद हम सभी को कड़ाके की भूख लगी थी सो एक साफ से दिखने वाले  रेस्टोरेंट पर रुक गये । समय नष्ठ ना करने के लिए थाली मंगाई गई।*

*एक साफ से ट्रे में दाल, सब्जी,चावल, रायता व साथ एक टोकरी में रोटियां आई।*

*पहले कुछ कौर में ध्यान नही गया फिर मुझे कुछ ठीक नही लगा। मुझे रोटी में खट्टेपन का अहसास हुआ, फिर सब्जी की ओर ध्यान दिया तो देखा सब्जी में हर टुकड़े का रंग अलग अलग सा था। चावल चखा तो वहां भी माजरा गड़बड़ था। सारा खाना छोड़ दिया। फिर काउंटर पर बिल पूछा यो 650 का बिल थमाया।*

*मैंने कहा ‘भैया! पैसे तो दूँगा लेकिन एक बार आपकी रसोई देखना चाहता हूं” वो अटपटा गया और पूछने लगा “क्यों?”*

*मैंने कहा “जो पैसे देता है उसे देखने का हक़ है कि खाना साफ बनता है या नहीँ?”*

*इससे पहले की वो कुछ समख पाता मैंने होटल की रसोई की ओर रुख किया।*

*आश्चर्य की सीमा ना रही जब देखा रसोई में कोई खाना नहीं पक रहा था। एक टोकरी में कुछ रोटियां पड़ी थी। फ्रिज खोल तो खुले डिब्बों में अलग अलग प्रकार की पकी हुई सब्जियां पड़ी हुई थी।कुछ खाने में तो फफूंद भी लगी हुई थी।*

*फ्रिज से बदबू का भभका आ रहा था।डांटने पर रसोइये ने बताया की सब्जियां करीब एक हफ्ता पुरानी हैं। परोसने के समय वो उन्हें कुछ तेल डालकर कड़ाई में तेज गर्म कर देता है और धनिया टमाटर से सजा देता है।*

*रोटी का आटा 2 दिन में एक बार ही गूंधता है।*

*कई कई घण्टे जब बिजली चली जाती है तो खाना खराब होने लगता है तो वो उसे तेज़ मसालों के पीछे छुपाकर परोस देते हैं। रोटी का आटा खराब हो तो उसे वो नॉन बनाकर परोस देते हैं।*

*मैंने रेस्टोरेंट मालिक से कहा कि “आप भी कभी यात्रा करते होंगे, इश्वर करे जब अगली बार आप भूख से बिलबिला रहे हों तो आपको बिल्कुल वैसा ही खाना मिले जैसा आप परोसते हैं”*

*हर दुकान व प्रतिष्ठान में एक कोने में भगवान का बड़ा या छोटा मंदिर होता है, व्यापारी सवेरे आते ही उसमे धूप दीप लगाता है, गल्ले को हाथ जोड़ता है और फिर सामान के साथ आत्मा बेचने का कारोबार शुरू हो जाता है!!!*

*जागरूक बनिये!!*
*और कोई चारा नही है।*