विजय बहुगुणा बनाम हरीश रावत =राकेश शर्मा……………….!

 

तिकड़ी के तीरों से घायल ईमानदार 7 नौकरशाह छोड़ना चाहते हैं बेईमान आलाकमान का दामन

मनोज इष्टवाल
कहने को देवभूमि लेकिन रहते यहाँ भ्रष्ट नौकरशाह और राजनेता हैं….यानी दानवी मायाजाल के शिकंजे में फंसे उत्तराखंड की कराह को समझने वाले ईमानदार नौकरशाह चारों खाने चित्त हैं. क्योंकि पूर्व मुख्यमंत्रियों का सबसे चहेता भ्रष्टतम राकेश शर्मा जिस तरह भ्रष्टाचार की दाल मूंगकर इन नौकरशाहों को एक लाठी से हांक रहा है उससे यह तो साबित हो ही रहा है कि यहाँ जनता का प्रतिनिधित्व करने वाले मुख्यमंत्री तो सिर्फ पुतले हैं सब कुछ राकेश शर्मा है. पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के कार्यकाल में केदार आपदा की त्रासदी में हुए हजारों करोड़ों का खेल हो या फिर सिडकुल की जमीन का खेल….! हर जगह एक ही नाम सबकी जुबाँ पर था राकेश शर्मा…! अखबारों और टीवी चैनलों की सुर्ख़ियों में  भ्रष्ट अधिकारी के सारे रिकॉर्ड अपने नाम दर्ज कराने वाले अफसर की दबंगई झेल रही प्रदेश की जनता और हरीश रावत गुट के विधायकों के हल्ला बोल के बाबजूद भी इस नौकरशाह का कद घटा नहीं. बीजेपी शासनकाल में मुख्यमंत्री डॉ.निशंक की पनाह में पला बड़ा हुआ यह भ्रष्ट बटबृक्ष उस समय अचानक इनकम टैक्स की नजर में आया जब इसके यहाँ रेड पड़ी लेकिन इसके शब्दों ने “ अगर मेरे साथ कुछ हुआ तो मैं सबके नाम उजागर कर दूंगा” जैसी धमकी इतनी कारगर साबित हुई कि बेचारी इनकम टैक्स की टीम मायूस होकर लौट आई.
शराब माफिया पौंटी चड्ढा की गोलाबारी में मौत के समय उत्तराखंड का जो अधिकारी घटना स्थल पर वह राकेश शर्मा ही बताया गया. अब इस अधिकारी का गुणगान कब तक करता रहूँ. हरीश रावत के मुख्यमंत्री बनते ही थोडा सा बेचैन दिख रहे इस अधिकारी की अब शामत आई तब शामत आई की अटकलें लगा रही जनता को तब मायूसी हाथ लगी जब हरीश रावत जैसे राजनीतिज्ञ परिपक्व व्यक्ति ने भी खनकते सिक्कों की खनखनाहट में अपने कान गूंगे कर दिए. राकेश शर्मा अपर मुख्यसचिव बनाए गए लेकिन सुभाष कुमार के कार्यकाल के समाप्त हो जाने के बाद उन्हें फिर मुख्य सचिव बनाकर लाया गया यह जताने के लिए कि एक सज्जन अधिकारी मुख्य सचिव है लेकिन इस गेम की पटकथा भी राकेश शर्मा ने ही लिखी जिसे एक ऐसा ही दृष्टराष्ट्र चाहिए था जो आँखों में पट्टी बांधे हर फाइल पर बिना सोचे समझे हस्ताक्षर कर सके.
डॉ. निशंक ने विधान सभा सत्र के दौरान सिडकुल के हजारों करोड़ रुपयों का घोटाले का प्रकरण पटल पर उठाया भी लेकिन नेता प्रतिपक्ष की सीट पर बैठे अजय भट्ट ने राजनीतिज्ञ प्रतिध्वन्धिता और डॉ. निशंक से छत्तीस का आंकड़ा होने के कारण इस पर उनका सहयोग न देने की जगह सदन का ध्यान सतपाल महाराज के ४ लाख के पोली हाउस के कमीशन पर केन्द्रित कर शह-मात का जो खेल खेला वह राजनीतिक पत्रिकारिता से जुड़े वरिष्ठ लोगों और पत्रकारों की नज़रों से भला कहाँ बच सकता है. सबकी जुबाँ में यही था चोर चोर मौसेरे भाई…..!
चलिए पुरानी दास्ताँ और गड्डे खोदने के स्थान पर ४ माह कार्य करने वाले एक ईमानदार आईएएस जिलाधिकारी श्रीधर बाबू अद्दांकी पर आते हैं जिसने एनबीसीसी द्वारा उत्तरकाशी में बन रहे करोड़ों के पुल के ऊपर गाडी चलने से पहले ही धाराशायी होने पर प्रदेश के मुख्यमंत्री हरीश रावत के इस वख्तब्य पर कि किसी को भी नहीं बख्शा जाएगा पर  तीव्रता से कार्यवाही करते हुए कंपनी पर केश दर्ज कर दिया जबकि अपर मुख्य सचिव राकेश शर्मा ने उन्हें मौखिक आदेश सुनाया था कि कम्पनी पर किसी भी सूरत में केश दर्ज नहीं किया जाना चाहिए. केश दर्ज के सिर्फ चार घंटे बाद ही प्रशासन द्वारा जिलाधिकारी का तबादला आदेश पहुँच गया जिसे देख श्रीधर बाबू अद्दांकी हक्के बक्के रह गए. उन्होंने इस प्रकरण पर नाखुशी जताते हुए प्रतिनियुक्ति पर अपने नवसृजित राज्य जाने की इच्छा भी जता दी. साकेत बहुगुणा के रहमोकरम पर खडी हुई एनबीसीसी को राकेश शर्मा के सानिध्य में आपदाग्रस्त क्षेत्र में बिना टेंडर के १४ पुलों के निर्माण हेतु ५० करोड़ रुपये के काम दे डाले. भले ही अभी तक कोई पुल निर्माण नहीं हुआ है लेकिन फ्लाईओवर और ब्रिज निर्माण पर यह अभी तक कंपनी १०० करोड़ खर्च कर चुकी है.
आईएएस अधिकारी शैलेश बगोली के छुट्टी पर चले जाने की दास्ताँ की पटकथा लिखने वाला भी यही भ्रष्ट अधिकारी है. एक जानकारी के अनुसार उधमसिंह नगर के रूद्रपुर में बनने वाले एक पॉवर स्टेशन की लागत ८० करोड़ रुपये थी जिसे जोर जबरदस्ती १२० करोड़ रुपये करने का फरमान राकेश शर्मा ने शैलेश बगोली को सुनाया..मजबूरी में इस ईमानदार अधिकारी को छुट्टी पर जाना पड़ा.
दूसरे प्रकरण की बात करें तो राकेश शर्मा के विनिवेश आयुक्त बनते ही जब १ फरबरी २०१४ को हरीश रावत ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली तो उसके मात्र १७ दिन बाद ही इस अधिकारी ने १७ फरबरी को हीरो मोटोकार्प नामक कंपनी की ६ वर्ष पूर्व खरीदी गई जमीन की रजिस्ट्री करवा दी. कहाँ यह सोचा जा रहा था कि हरदा इस अधिकारी को आते ही अपनी आँखों से दूर कर देंगे लेकिन यह उनकी आँखों का नयनतारा बन गया. जो हरीश रावत खेमे के विधायक कल तक राकेश शर्मा के प्रति अखबारों तक में अपनी नाराजगी जाहिर कर चुके थे अब वही विधायक उनका गुणगान करते फिर रहे हैं. यानी भ्रष्ट तंत्र में त्रस्त जनता के ये नुमाइंदे भी दृष्टराष्ट्र हो गए हैं.
हीरो मोटोकार्प नामक इस कम्पनी को डी गई रियायत से प्रदेश राजस्व को २५४ करोड़ की हानि पहुंचाने के पीछे इस अधिकारी और राजनीतिज्ञों की झोली में कितने करोड़ गए यह तो काली कमाई की काली तिजोरियां ही जानती हैं लेकिन प्रदेश की जनता से हो रहा यह छल आखिर कब तक चलता रहेगा. अब भले ही हरिद्वार के वर्तमान ईमानदार जिलाधिकारी सैंथिल पांडियन ने इस कंपनी पर ८८ करोड़ का जुर्माना स्टाम्प चोरी का ठोक दिया है. लेकिन बाबजूद इसके अंदर खाने क्या क्या खेल हुआ यह कहाँ छुपा रह सकता है. मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के कार्यकाल से लेकर हरीश रावत तक हो रहे करोड़ों के खेल में आखिर मुखिया खामोश क्यों हैं यही बात गले नहीं उतरती.
प्रदेश भर में दर्जनों सरकारी कार्यदायी संस्थाओं को बैठे बिठाए वेतन बांटने वाले ये अधिकारी और राजनेता आखिर कांग्रेस सरकार के दौरान एनबीसीसी जैसी दोयम कंपनी पर ही इतने मेहरबान क्यों हैं, यह बात अब सभी को समझ आने लगी क्योंकि बिना टेंडर के मनमांगी रकम में होने वाले करोड़ों के खेल पर चुंधियाती इनकी आँखें मूंदने का नाम ही नहीं ले रही हैं. गैरसैण में विधान सभा भवन की नींव का पत्थर रखने वाले पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने एनबीसीसी (नेशनल बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन कम्पनी) को बिना किसी शर्त भवन निर्माण का काम भी सौंप दिया.
अब जब मुख्यमंत्रियों के सानिध्य में फल-फूल रही कम्पनी पर अपर मुख्य सचिव जिसके हाथ में पूरे प्रदेश का रिमोट कंट्रोल है भी मेहरबान हो तो विधायक भला कैसे पीछे रहे. उत्तरकाशी के जिलाधिकारी के तबादले के पीछे गंगोत्री विधायक व संसदीय सचिव विजयपाल सजवाण के किरदार पर भी अंगुलियाँ उठने लगी हैं क्योंकि पुल ढहने के बाद भी यह विधायक जनभावनाओं की जगह कम्पनी की गोद में बैठकर उसका ही जाप करता नजर आया है जो उनकी आगामी राजनीति पर प्रश्नवाचक चिन्ह लगा रहा है.
एक और ईमानदार अधिकारी पर आते हैं जो पौड़ी के जिलाधिकारी रहते हुए बहुत जल्दी ही जनता की नजर में परवान चढ़े और जिन्होंने देहरादून आकर सूचना महानिदेशक के पद पर रहते हुए करोड़ों के विज्ञापन घोटाले की पर्त दर पर्त खोली. दलीप जावलकर को कुछ मीडिया मित्रों जिन्हें हम दलाल के नाम से ही जानते हैं के कोपभाजन का शिकार होना पड़ा और उन्हें आपदा में रूद्रप्रयाग बतौर पनिशमेंट भेजा गया लेकिन यहाँ भी उन्होंने जिस ईमानदारी के साथ स्थिति को नियंत्रित किया उससे उनका कद घटा नहीं बल्कि बढ़ा ही है. ईमानदार नौकरशाह भला एक जैसे कैसे कार्य कर सकता है उसे शासन प्रशासन में एक बिन पेंदे के लोटे की तरह कभी इधर तो कभी उधर लुढकना ही पड़ता है. दलीप जावलकर जब जिलाधिकारी देहरादून बने तो जल्दी ही उन्हें सूचना विभाग में महानिदेशक और अपर सचिव बना दिया गया फिर यहाँ से अपर सचिव मुख्यमंत्री फिर अपर सचिव लोक निर्माण विभाग…..! इस अधिकारी ने हर जगह अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन ईमानदारी के साथ किया. लोक निर्माण विभाग के कार्यों पर अनियमितता बरतने वाले अधिकारियों जिन्हें सफ़ेदपोशों का संरक्षण प्राप्त था इन्होने बेझिझक निलंबित करना शुरू कर दिया. नतीजा यह हुआ कि इन्हें इस विभाग से भी रुकसत कर दिया गया.
राजनीतिज्ञों और भ्रष्ट नौकरशाहों की कटपुतली बने इस प्रदेश के कुछ ईमानदार तारणहार नौकरशाहों ने आखिर थकहार कर इस प्रदेश को अलविदा कहने का मन बना ही लिया है. जिनमें आईएएस नितेश झा, श्रीधर बाबू अद्दांकी, डी.पी.पांडे, सचिन कुर्वे, बीबीआरसी पुरुषोतम जैसे कई अधिकारी हैं. पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के कार्यकाल में प्रदेश लुट गया लुट गया कहकर मीडिया में त्राहि-त्राहि बखान करने वाले नेता अब अचानक कौन सी बिलों में छुप गए समझ नहीं आ रहा है. आखिर राकेश शर्मा नामक इस अधिकारी ने हरीश रावत सहित इन नेताओं को कौन सी संजीवनी पिला दी है जिससे ये महात्मा जी के बन्दर बन गए यानी गूंगे, बहरे और अंधे…?