एटमबम है टिहरी बांध

विनोद बिष्ट। 
आज के दौर में हर व्यक्ति, समुदाय, नागरिको को अपनी संभ्यता, संस्कारों ओर परंपराओं से जुड़ा रहना अति आवश्यक है क्योंकि आज की भावी पीड़ी अगर इतिहास से जुडेगी तो तभी वह अपने समाज ओर विरासत को समझ पायेगी। लेकिन जिसका न इतिहास हो और ना ही भविष्य तो वह आज की दुनिया में किस पायदान पर है जी हां हम बात कर रहे है उत्तराखंड के टिहरी की। टिहरी गढ़वाल एक ऐसा शहर है जो पुनिर्मित किया गया है ठीक पुरानी टिहरी की तर्ज पर भले ही नये शहर को बसाया गया हो लेकिन यह सच है कि टिहरी के साथ ही वहां की लोगनीति रिती ओर यादो सब बांध में डूब गई इतिहास को अगर याद करे तो तकरीबन दर्जनों गांव बांध में समा गए। वो गांव भी जिनकी डूबने की कल्पना तक नही की जा सकती थी। आपको बता दे कि टिहरी बांध देश का अबतक का सबसे ऊंचा बाँध है। ऐसे में यह सवाल उठना लाजमी है कि क्या भविष्य़ में टिहरी बांध खतरे में आ सकता है, और अगर भविष्य में बांध टूटा तो क्या होगा दरअसल जब बांध बन रहा था तो यह सवाल सभी वैज्ञानिकों के दिमाग में दौड़ रहा था, क्षैत्रीय लोगों के तमाम विरोध के बाद भी बांध को बनाया गया। 1977-78 में टिहरी परियोजना के विरुद्ध आन्दोलन भी चला लेकिन देश की प्रधानमंत्री के सामने किसी की एक बी न चली, आपको यह भी बताते चले कि जब बांध के निर्माण की बात चल रही थी तब तात्कालीन श्रीमती इन्दिरा गांधी ने सन् 1980 में इस परियोजना की समीक्षा के आदेश दिए थे। समीक्षा कर रहे केन्द्रीय पर्यावरण मंत्रालय द्वारा गठित भूम्बला समिति ने सम्यक विचारोपरांत इस परियोजना को रद्द कर दिया था और कहा था कि अन्तरराष्ट्रीय मानकों के अनुसार जहां भी चट्टान आधारित बांध बनते हैं वे अति सुरक्षित क्षेत्र में बनने चाहिए। सर्वे में साफ कहा गया कि यहां किसी भी हालात में बाध नही बनना चाहिये बांध का निरीक्षण कर रहे उस समय के प्रसिद्ध अमरीकी भूकम्प वेत्ता प्रो. ब्राने ने कहा था कि “यदि उनके देश में यह बांध होता तो वह इसे कभी भी अनुमति नही देते और खासकर टिहरी में तो यह बनना नही चाहिये क्योकि यह क्षेत्र उच्च भूकम्प वाला क्षेत्र है ।
प्रो.ब्राने ने यह भी कहा था कि जिस जिन यहां 9 एम.एम. तीव्रता वाला भूकम्प आयेगा उस दिन से समूचा देश खतरे में आ जाएगा। आपको यह भी बता दे कि 1991 में उत्तरकाशी में भयंकर भूकंप आया था जिसकी तीव्रता तकरीबन 8.5 आकी गई।
तो क्या टिहरी बांध पर खतरा मडंरा रहा है, और अगर बांध टूटता है तो आगे क्या होगा। अपनी एक किताब में एक वैज्ञानिक ने लिखा है भूकम्प की स्थिति में यदि यह बांध टूटा तो जो तबाही मचेगी, उसकी कल्पना करना भी कठिन है। इस बांध के टूटने पर समूचा आर्यावर्त, उसकी सभ्यता नष्ट हो जाएगी। प. बंगाल तक इसका व्यापक दुष्प्रभाव होगा। मेरठ, हापुड़, बुलन्दशहर में साढ़े आठ मीटर से लेकर 10 मीटर तक पानी ही पानी हो जाएगा । हरिद्वार, ऋषिकेश का तो नामोनिशां तक नही रहेगा । ब्राने कहते है कि मेरी समझ में नहीं आता कि केन्द्र व प्रदेश सरकार ने इसे कैसे स्वीकृति दी? जनता को इसके कारण होने वाले पर्यावरणीय असन्तुलन एवं हानि के बारे में अंधेरे में रखा गया है। देश के अनेक वैज्ञानिकों व अभियंताओं ने भी इस परियोजना का विरोध किया है। राजीव दीक्षित ने तो यहां तक कहा था कि मुझे तो लगता है कि टिहरी बांध सिर्फ एक बांध न होकर विभीषिका उत्पन्न करने वाला एक “टाइम बम” है।