आज का पंचाग आपका राशि फल, कूर्मावतार के प्राकट्य दिवस पर विशेष आलेख, आपदा को अवसर बनाने की कला ही जीवन का मर्म है, पुनर्जन्म होता है कि नहीं यदि होता है तो कैसा?

*तेजोराशे जगत्पते ।**अनुम्प्यमां भक्त्या*  *गृहाणाघ्यरं दिवाकर।।* *ॐ सूर्याय नम:*

*जीवन एक क्रीड़ा हैं और चुनौतियाँ इस खेल का अभिन्न भाग हैं, जो इसको और रोमांचक बनाती हैं, जो लोग इस खेल को समझ नहीं पाते और वे विपदा व चुनौतियों को अपना शत्रु मान बैठते हैं, जबकि हर चुनौती अपने साथ एक अच्छा उपहार लेकर आती हैं*

*एक ऐसा उपहार, जो आपको हर बार यह विश्वास दिलाता हैं कि आप कुछ भी कर सकते हैं, आपके लिए असंभव कुछ भी नहीं, यह उपहार व्यक्ति तभी प्राप्त कर पाता हैं जब वह धैर्य और साहस के साथ उस विपदा का सामना करता है, जो उसके जीवन में घटित होती है। जब जब लोग चुनौतियों और विपत्ति से भयभीत होते हैं, तब तब वे आगे नहीं बढ़ पाते!!* 

🙏🌹 *सुप्रभात* 🌹🙏

🕉श्री हरिहरौ विजयतेतराम🕉  

🌄सुप्रभातम🌄

🗓आज का पञ्चाङ्ग🗓

🌻रविवार, ०७ मई २०२३🌻

सूर्योदय: 🌄 ०५:४८

सूर्यास्त: 🌅 ०६:५८

चन्द्रोदय: 🌝 २०:५६

चन्द्रास्त: 🌜०६:२१

अयन 🌖 उत्तरायणे (उत्तरगोलीय)

ऋतु: 🌡️ग्रीष्म 

शक सम्वत: 👉 १९४५ (शोभकृत)

विक्रम सम्वत: 👉 २०८० (नल)

मास 👉 ज्येष्ठ 

पक्ष 👉 कृष्ण

तिथि 👉 द्वितीया (२०:१५ से तृतीया)

नक्षत्र 👉 अनुराधा (२०:२१ से ज्येष्ठा)

योग 👉 परिघ (२६:५३ से शिव)

प्रथम करण 👉 तैतिल (०९:०६ तक)

द्वितीय करण 👉 गर (२०:१५ तक)

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॥ गोचर ग्रहा: ॥ 

🌖🌗🌖🌗

सूर्य 🌟 मेष 

चंद्र 🌟 वृश्चिक 

मंगल 🌟 मिथुन (उदित, पश्चिम, मार्गी)

बुध 🌟 मेष (अस्त, पश्चिम, मार्गी)

गुरु 🌟 मेष (उदित, पश्चिम, मार्गी)

शुक्र 🌟 मिथुन (उदित, पश्चिम)

शनि 🌟 कुम्भ (उदित, पूर्व, मार्गी)

राहु 🌟 मेष 

केतु 🌟 तुला 

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शुभाशुभ मुहूर्त विचार

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अभिजित मुहूर्त 👉 ११:४७ से १२:४१

अमृत काल 👉 १०:२० से ११:५२

विजय मुहूर्त 👉 १४:२८ से १५:२२

गोधूलि मुहूर्त 👉 १८:५७ से १९:१८

सायाह्न सन्ध्या 👉 १८:५८ से २०:०१

निशिता मुहूर्त 👉 २३:५२ से २४:३४

राहुकाल 👉 १७:१७ से १८:५८

राहुवास 👉 उत्तर

यमगण्ड 👉 १२:१४ से १३:५५

होमाहुति 👉 मंगल

दिशाशूल 👉 पश्चिम

नक्षत्र शूल 👉 पूर्व (२०:२१ से)

अग्निवास 👉 पृथ्वी

चन्द्र वास 👉 उत्तर

शिववास 👉 सभा में (२०:१५ से क्रीड़ा में)

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☄चौघड़िया विचार☄

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॥ दिन का चौघड़िया ॥ 

१ – उद्वेग २ – चर

३ – लाभ ४ – अमृत

५ – काल ६ – शुभ

७ – रोग ८ – उद्वेग

॥रात्रि का चौघड़िया॥ 

१ – शुभ २ – अमृत

३ – चर ४ – रोग

५ – काल ६ – लाभ

७ – उद्वेग ८ – शुभ

नोट– दिन और रात्रि के चौघड़िया का आरंभ क्रमशः सूर्योदय और सूर्यास्त से होता है। प्रत्येक चौघड़िए की अवधि डेढ़ घंटा होती है। 

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शुभ यात्रा दिशा

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उत्तर-पश्चिम (पान का सेवन कर यात्रा करें)

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तिथि विशेष

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श्रीनारद जयन्ती (वीणा दान), उपनयन (जनेऊ) संस्कार+विद्या एवं अक्षर आरम्भ+व्यवसाय आरम्भ मुहूर्त प्रातः ०७:२५ से दोपहर १२:२४ तक आदि।

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आज जन्मे शिशुओं का नामकरण 

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आज २०:२१ तक जन्मे शिशुओ का नाम अनुराधा नक्षत्र के द्वितीय, तृतीय एवं चतुर्थ चरण अनुसार क्रमशः (नी, नू, ने) नामक्षर से तथा इसके बाद जन्मे शिशुओ का नाम ज्येष्ठा नक्षत्र के प्रथम एवं द्वितीय चरण अनुसार क्रमशः (नो, या) नामक्षर से रखना शास्त्रसम्मत है।

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उदय-लग्न मुहूर्त

मेष – २८:२५ से ०५:५९

वृषभ – ०५:५९ से ०७:५४

मिथुन – ०७:५४ से १०:०९

कर्क – १०:०९ से १२:३१

सिंह – १२:३१ से १४:४९

कन्या – १४:४९ से १७:०७

तुला – १७:०७ से १९:२८

वृश्चिक – १९:२८ से २१:४८

धनु – २१:४८ से २३:५१

मकर – २३:५१ से २५:३२

कुम्भ – २५:३२ से २६:५८

मीन – २६:५८ से २८:२१

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पञ्चक रहित मुहूर्त

शुभ मुहूर्त – ०५:२९ से ०५:५९

मृत्यु पञ्चक – ०५:५९ से ०७:५४

अग्नि पञ्चक – ०७:५४ से १०:०९

शुभ मुहूर्त – १०:०९ से १२:३१

रज पञ्चक – १२:३१ से १४:४९

शुभ मुहूर्त – १४:४९ से १७:०७

चोर पञ्चक – १७:०७ से १९:२८

शुभ मुहूर्त – १९:२८ से २०:१५

रोग पञ्चक – २०:१५ से २०:२१

शुभ मुहूर्त – २०:२१ से २१:४८

मृत्यु पञ्चक – २१:४८ से २३:५१

अग्नि पञ्चक – २३:५१ से २५:३२

शुभ मुहूर्त – २५:३२ से २६:५८

रज पञ्चक – २६:५८ से २८:२१

अग्नि पञ्चक – २८:२१ से २९:२९

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आज का राशिफल

🐐🐂💏💮🐅👩

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मेष🐐 (चू, चे, चो, ला, ली, लू, ले, लो, अ)

आज के दिन आप अपनी ही किसी गलती अथवा लापरवाही के चलते संकट में फंस सकते हैं। शारीरिक रूप से दिन के आरंभ में ही शिथिलता अनुभव होगी फिर भी इसकी अनदेखी कर दैनिक कार्यों में व्यस्त रहेंगे। जिसके फलस्वरूप मध्यान्ह के बाद सेहत में अक्समात गड़बड़ी आने से कार्य में व्यवधान पड़ेगा। कार्यक्षेत्र पर किसी भी प्रकार के जोखिम वाले कार्य करने से पहले आगे मिलने वाले फलों का विचार अवश्य करें। धन की आमद आज सरल नहीं रहेगी जोड़ तोड़ कर अथवा जबरदस्ती करने पर अल्प आय के योग है। लेकिन आज धन की क्षति किसी न किसी रूप में होने वाली है। आपके अथवा किसी परिजन के द्वारा कोई पाप कर्म भी हो सकता है जिसकी गिलानी बाद में होगी। सार्वजनिक क्षेत्र पर भी शत्रुओं में वृद्धि होगी। लंबी यात्रा की योजना बना रहे हैं तो फिलहाल कुछ दिन स्थगित करें दुर्घटना अथवा चोरी से हानि हो सकती है।

 

वृष🐂 (ई, ऊ, ए, ओ, वा, वी, वू, वे, वो)

आज के दिन बीते कुछ दिनों से जिस कार्य योजना पर प्रयासरत थे उसमें विजय मिलने की संभावना है स्वभाव में अहम की भावना अधिक रहेगी अपनी बातों को बढ़ा चढ़ाकर पेश करना एवं गलत बात को भी सही सिद्ध करने का प्रयास करेंगे दांपत्य जीवन एवं घर परिवार व्यवसाय में भागीदारी वाले कार्य को छोड़कर अन्य जिस भी कार्य में भाग्य आजमाएंगे वहां से तुरंत ही अच्छे फल मिल सकते हैं आज बैटरी कार्य अथवा पिता से संबंधित किसी भी कार्य से अक्समात लाभ होने की संभावना है धन की आमद सामान्य से उत्तम रहेगी फिर भी आपको संतोष नहीं दे पाएगी परिवार में पति पत्नी के बीच अनैतिक अथवा कुटुंबी कारणों से तीखी झड़प होने की संभावना है कार्यक्षेत्र पर भी आज भागीदारों के ऊपर आंख बंद कर कर भरोसा ना करें निश्चित ही धोखा हो सकता है दाद खाज अन्य प्रकार के चर्म रोग एवं रक्ताल्पता की शिकायत हो सकती है।

 

मिथुन👫 (का, की, कू, घ, ङ, छ, के, को, हा)

आज का दिन आपके धन धान्य कोष में वृद्धि करेगा लेकिन खर्च भी आज अनियंत्रित ही रहेंगे। दिन के आरंभिक भाग में आपके सनकी मिजाज के चलते जीवनसाथी अथवा किसी अन्य परिजन से छोटी मोटी बहस होगी। आपके स्वभाव पर इसका फर्क नही पड़ेगा परन्तु परिजन अवश्य ही दुखी होंगे। घरेलू आवश्यकताओं की पूर्ति समय पर नही करने के कारण नया विवाद बढ़ेगा। कार्य क्षेत्र पर आप के दिमाग में कम समय में ज्यादा धन पाने की युक्तियां लगी रहेगी अनैतिक साधनों का भी प्रयोग करेंगे इससे लाभ भी होगा लेकिन मन में अपमानित होने का भय भी रहेगा। आज हर किसी को संदेह की दृष्टि से ना देखें अन्यथा आप पर भारी पड़ जाएगा। व्यवसाय से संबंधित सरकारी कार्य की खानापूर्ति आज अवश्य करें आने वाले दिनों में इसमें सफलता मिल जाएगी। अन्यथा लंबे समय तक अधूरे रह सकते हैं। ईर्ष्यालु स्वभाव मानसिक अंतर्द्वंद को छोड़ सेहत सामान्य ही रहेगी।

 

कर्क🦀 (ही, हू, हे, हो, डा, डी, डू, डे, डो)

आज के दिन आपको बौद्धिक एवं शारीरिक दोनों प्रकार के परिश्रम करने पड़ेंगे। इसका तुरंत कोई लाभ नहीं मिल सकेगा लेकिन निकट भविष्य में धन के साथ सम्मान दोनों की प्राप्ति होगी। दिन को लापरवाही में व्यर्थ ना करें अन्यथा आगे पछताना पड़ेगा। कार्यक्षेत्र पर आज उधारी के व्यवहार बढ़ने से धन की प्राप्ति ना के बराबर ही होगी। उधारी के व्यवहारों पर नियंत्रण रखें अन्यथा निकट भविष्य में आर्थिक विषमताओं का सामना करना पड़ेगा। घरेलू वातावरण में छोटी-मोटी खींचतान लगी रहेगी फिर भी बाहर की अपेक्षा यही अधिक सहज अनुभव करेंगे। आज आपको कोई झूठ बोलकर ठग सकता है अथवा अन्य लोगों के सामने आपको हास्य का पात्र बना सकता है। हित शत्रुओं से विशेषकर सतर्क रहें। सेहत छोटी मोटी समस्याओं को छोड़ ठीक बनी रहेगी। भोजन भूख लगने पर ही करें अन्यथा पेट संबंधित व्याधि हो सकती है।

 

सिंह🦁 (मा, मी, मू, मे, मो, टा, टी, टू, टे)

आज का दिन मानसिक अशांति वाला रहेगा। बचते बचते भी अन्य लोगों के झगड़ों में पड़कर स्वयं का नुकसान करेंगे। आपको भी किसी परिजन के कारण अक्समात क्रोध आ सकता है जिसके कारण घर में व्यवस्था एवं अशांति फैलेगी। कार्यक्षेत्र पर सहयोगी वातावरण मिलने के बाद भी इसका ठीक से लाभ नही उठा पाएंगे। सहकर्मी डरे-सहमे रहने के कारण खुलकर कार्य नहीं कर पाएंगे। अचल संपत्ति से संबंधित मामले किसी ना किसी रूप में मानसिक उद्वेग का कारण बनेंगे। कार्य व्यवसाय से सामान्य आय होगी ज्यादा भागदौड़ से बचें इसका कोई अतिरिक्त लाभ नहीं मिल सकेगा। परिवार में माता अथवा अन्य किसी स्त्री वर्ग के कारण झगड़ा होने की प्रबल संभावना है। सोच समझकर ही वाणी का प्रयोग करें यही आपके लिए हितकर रहेगा। गर्म सर्द की परेशानी हो सकती है।

 

कन्या👩 (टो, पा, पी, पू, ष, ण, ठ, पे, पो)

आज का दिन आप को किसी न किसी रूप में अवश्य ही धन लाभ कराएगा। लेकिन दिन के आरंभ से मध्यान्ह तक जिस भी कार्य को करेंगे उस में विलंब अथवा असफलता मिलने से निराशा होगी। फिर भी प्रयास जारी रखें संध्या तक आर्थिक दृष्टिकोण से दिन राहत ही प्रदान करेगा। आज कई दिनों से रुके हुए कार्य में गति आने से भी राहत मिलेगी लेकिन इससे आर्थिक लाभ की अपेक्षा ना ही रखें। परिवार में छोटे भाई अथवा बहनों का ईर्ष्यालु व्यवहार मन को आहत कर सकता है। धर्म अध्यात्म के कार्यों में रुचि नहीं मिलेंगे दिन में परोपकार के कार्यों के अवसर भी मिलेंगे लेकिन इनमें केवल व्यवहारिकता मात्र ही दिखाएंगे। व्यवसायिक यात्रा अवश्य ही लाभदायक रहेगी। पेट संबंधित छोटी मोटी समस्या आज भी लगी रहेगी।

 

तुला⚖️ (रा, री, रू, रे, रो, ता, ती, तू, ते)

आज के दिन आप स्वयं स्वभाव से संतोषी रहेंगे। लेकिन परिजनों का व्यवहार आपके प्रति गैरजिम्मेदाराना रहेगा। कार्य व्यवसाय हो या नौकरी दोनों में ही विविध कष्टों एवं संघर्ष का सामना करना पड़ेगा। आप अपने मन से झंझटों वाले कामों में नहीं पड़ेंगे लेकिन अन्य लोगों के दबाव में आकर ऐसा करना ही पड़ेगा। संध्या के आसपास का समय दिन की अपेक्षा राहत वाला रहेगा किसी घनिष्ट से उपहार सम्मान मिलने पर कुछ समय के लिए अपनी परेशानियों को भूल जाएंगे। आज किसी भी प्रकार के साज सज्जा सौंदर्य एवं सफेद वस्तुओं से जुड़े कार्यों को छोड़कर अन्य सभी में संघर्ष के बाद भी निराशा ही हाथ लगेगी। परिवार कुटुंब में सदस्य एक दूसरे के ऊपर आरोप प्रत्यारोप लगाकर माहौल खराब करेंगे। आज का दिन वाणी का प्रयोग ना करें मूकदर्शक बनकर बताएं तो मानसिक रूप से शांति बनी रहेगी। आंखों में जलन नेत्रज्योति में कमी एवं पित्त संबंधित व्याधि हो सकती है।

 

वृश्चिक🦂 (तो, ना, नी, नू, ने, नो, या, यी, यू)

आज का दिन आपके व्यक्तिगत सुख में वृद्धि करेगा। आप स्वभाव से अत्यंत ईर्ष्यालु रहेंगे किसी अन्य विशेषकर प्रतिद्वंदी की खुशी देखकर सहन नहीं कर पाएंगे परिवार हो या कार्यक्षेत्र स्वयं तो जल्दी से कुछ करेंगे नहीं अन्य लोगों के कार्यों में भी नुक्स निकालेंगे जिस वजह से कुछ समय के लिए अपमानजनक स्थिति का सामना करना पड़ेगा। आप की कथनी और करनी में भी अंतर रहेगा आज किसी से भावुकता में आकर कोई वादा ना करें। अन्यथा बाद में शर्मिंदा होना पड़ेगा। कार्य व्यवसाय से अनुभव होने के बाद भी कोई विशेष लाभ नहीं उठा पाएंगे। संध्या बाद दिमाग मनोरंजन में अधिक रहेगा आवश्यक कार्यों को छोड़कर मित्र मंडली के साथ मौज शौक में समय व्यतीत करेंगे लेकिन यहां भी आपके आचरण को लेकर कहासुनी हो सकती है। ठंडे पदार्थों ठंडे स्थान एवं जल से दूरी रखें अन्यथा सर्दी जुखाम शीघ्र ही हो सकते है।

 

धनु🏹 (ये, यो, भा, भी, भू, ध, फा, ढा, भे)

आज दिन के प्रथम भाग में आप जिस भी कार्य से आशा लगाए रखेंगे बाद में वही हानि करेगा। कोई भी निर्णय सोच समझकर ही ले जल्दबाजी में जो भी कार्य करेंगे उसमें असफलता निश्चित है। व्यवसाय में अक्समात खर्च करना पड़ेगा लेकिन प्राप्ति कुछ भी नहीं होगी हो सके तो किसी भी प्रकार का निवेश कुछ दिनों के लिए टाले अन्यथा धन निश्चित ही फंसेगा। व्यवसाई वर्गों को आर्थिक कार्यों में विशेष सतर्कता बरतने की आवश्यकता है। ऋण वृद्धि होने से आर्थिक संतुलन गड़बड़ाएगा किसी से पूर्व में किया वादा तोड़ना पड़ेगा। संध्या का समय थोड़ा मानसिक राहत वाला रहेगा। जिन लोगों से आप भयभीत हो रहे थे वह दिखावे के लिए सांत्वना एवं सम्मान देंगे। लेकिन यह ज्यादा देर के लिए टिकाऊ नहीं रहेगा इसका ध्यान रहे। ज्वार सर दर्द नेत्र पीड़ा संबंधित शिकायत हो सकती है।

 

मकर🐊 (भो, जा, जी, खी, खू, खा, खो, गा, गी)

आज का दिन आपके भौतिक फलों में वृद्धि कारक है। सार्वजनिक क्षेत्र पर आपकी छवि में बीते दिनों से सुधार आएगा।आज के दिन से लाभ लेने के लिए भाग्य को कोसना छोड़कर मेहनत पर ध्यान दें राज समाज से आवश्यकता पड़ने पर उचित सहयोग मिल सकता है। इसके लिए स्वयं में भी आत्मविश्वास जागृत करें। कार्य व्यवसाय से दिन के आरंभिक भाग में निराशा होगी लेकिन धीरे-धीरे कार्य क्षेत्र का वातावरण समझ आने के बाद गुप्त युक्तियों से लाभ के मार्ग प्रशस्त कर लेंगे। धन की आमद आवश्यकता अनुसार हो जाएगी। ज्यादा के चक्कर में ना रहे अन्यथा हाथ आया भी निकल सकता है। पारिवारिक वातावरण मिलाजुला रहेगा हल्की-फुल्की नोकझोंक के बाद भी घर से सुख की प्राप्ति होगी। बोलचाल में सतर्कता बरतें मुख से अपशब्द निकलने पर किसी से झगड़ा हो सकता है। मानसिक वहम अथवा किसी दवा का दुष्प्रभाव हो सकता है।

 

कुंभ🍯 (गू, गे, गो, सा, सी, सू, से, सो, दा)

आज का दिन आपके लिए मिश्रित फलदायक रहेगा आज आप प्रत्येक कार्य सोच समझकर ही करेंगे फिर भी मध्यान्ह तक की दिनचर्या अस्त व्यस्त रहेगी। अधिकांश कार्य में रुकावट आने से मन में नकारात्मक भाव उत्पन्न होंगे। व्यवसाय एवं नौकरी में आज बिना झंझट में पड़े लाभ कमाना मुश्किल है। धन की आमद आशा से कम ही होगी। घरेलू सुख सुविधा की वस्तुओं में वृद्धि होगी लेकिन परिजनों में आपसी अनबन के चलते मानसिक दुख भी रहेगा। संतानों से जिस कार्य की अपेक्षा करेंगे उसका उल्टा ही करेंगे। आज इनसे बहस ना करें अन्यथा अपमानित होना पड़ेगा। पैतृक अचल संपत्ति विषयक शुभ समाचार मिल सकते हैं। सार्वजनिक क्षेत्र पर आप की छवि पहले जैसी ही बनी रहेगी। मधुमेह अथवा अन्य रक्त संबंधित समस्याएं परेशान कर सकती है।

 

मीन🐳 (दी, दू, थ, झ, ञ, दे, दो, चा, ची)

आज का दिन बीते कुछ दिनों की अपेक्षा बेहतर रहेगा सुबह सुबह के समय अवश्य ही थोड़ी बहुत शारीरिक अकड़न एवं कमजोरी अनुभव होगी। लेकिन धीरे-धीरे सेहत में स्थिरता आने लगेगी। आध्यात्मिक आकर्षण बढ़ेगा विचारों में धार्मिक भाव उत्पन्न होंगे। कार्यक्षेत्र पर कई काम एक साथ आने से कुछ दुविधा होगी लेकिन आप आवश्यकता के समय मेहनत से पीछे नहीं हटेंगे। कार्यशैली अवश्य मंदी रहेगी जिस कार्य को करना आरंभ करेंगे आरंभ में उस में कुछ ना कुछ रुकावट आएगी फिर भी धीरे-धीरे अधूरे कार्यों को शाम तक काफी हद तक पूरा कर लेंगे। कार्य पूरा होने के बाद भी धन ना मिलने पर मन कुछ समय के लिए उदास होगा। आज सरकार अथवा इससे संबंधित किसी मामले में मानसिक भय भी रहेगा। घर में खर्च अथवा अन्य आर्थिक कारणों से खींचतान हो सकती है। व्यवसायिक यात्रा से सामान्य लाभ होगा।

〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️🙏राधे राधे🙏

प्रश्न :- पुनर्जन्म किसे कहते हैं ?
उत्तर :- आत्मा और इन्द्रियों का शरीर के साथ बार बार सम्बन्ध टूटने और बनने को पुनर्जन्म या प्रेत्याभाव कहते हैं ।

प्रश्न :- प्रेत किसे कहते हैं ?
उत्तर :- जब आत्मा और इन्द्रियों का शरीर से सम्बन्ध टूट जाता है तो जो बचा हुआ शरीर है उसे शव या प्रेत कहा जाता है ।

प्रश्न :- भूत किसे कहते हैं ?
उत्तर :- जो व्यक्ति मृत हो जाता है वह क्योंकि अब वर्तमान काल में नहीं है और भूतकाल में चला गया है इसी कारण वह भूत कहलाता है ।

प्रश्न :- पुनर्जन्म को कैसे समझा जा सकता है ?
उत्तर :- पुनर्जन्म को समझने के लिये आपको पहले जन्म और मृत्यु के बारे मे समझना पड़ेगा । और जन्म मृत्यु को समझने से पहले आपको शरीर को समझना पड़ेगा ।

प्रश्न :- शरीर के बारे में समझाएँ ।
उत्तर :- शरीर दो प्रकार का होता है :- (१) सूक्ष्म शरीर ( मन, बुद्धि, अहंकार, ५ ज्ञानेन्द्रियाँ ) (२) स्थूल शरीर ( ५ कर्मेन्द्रियाँ = नासिका, त्वचा, कर्ण आदि बाहरी शरीर ) और इस शरीर के द्वारा आत्मा कर्मों को करता है ।

प्रश्न :- जन्म किसे कहते हैं ?
उत्तर :- आत्मा का सूक्ष्म शरीर को लेकर स्थूल शरीर के साथ सम्बन्ध हो जाने का नाम जन्म है । और ये सम्बन्ध प्राणों के साथ दोनो शरीरों में स्थापित होता है । जन्म को जाति भी कहा जाता है ( उदाहरण :- पशु जाति, मनुष्य जाति, पक्षी जाति, वृक्ष जाति आदि )

प्रश्न :- मृत्यु किसे कहते हैं ?
उत्तर :- सूक्ष्म शरीर और स्थूल शरीर के बीच में प्राणों का सम्बन्ध है । उस सम्बन्ध के टूट जाने का नाम मृत्यु है ।

प्रश्न :- मृत्यु और निद्रा में क्या अंतर है ?
उत्तर :- मृत्यु में दोनों शरीरों के सम्बन्ध टूट जाते हैं और निद्रा में दोनों शरीरों के सम्बन्ध स्थापित रहते हैं ।

प्रश्न :- मृत्यु कैसे होती है ?
उत्तर :- आत्मा अपने सूक्ष्म शरीर को पूरे स्थूल शरीर से समेटता हुआ किसी एक द्वार से बाहर निकलता है । और जिन जिन इन्द्रियों को समेटता जाता है वे सब निष्क्रिय होती जाती हैं । तभी हम देखते हैं कि मृत्यु के समय बोलना, दिखना, सुनना सब बंद होता चला जाता है ।

प्रश्न :- जब मृत्यु होती है तो हमें कैसा लगता है ?
उत्तर :- ठीक वैसा ही जैसा कि हमें बिस्तर पर लेटे लेटे नींद में जाते हुए लगता है । हम ज्ञान शून्य होने लगते हैं । यदि मान लो हमारी मृत्यु स्वाभाविक नहीं है और कोई तलवार से धीरे धीरे गला काट रहा है तो पहले तो निकलते हुए रक्त और तीव्र पीड़ा से हमें तुरंत मूर्छा आने लगेगी और हम ज्ञान शून्य हो जायेंगे और ऐसे ही हमारे प्राण निकल जायेंगे ।

प्रश्न :- मृत्यु और मुक्ति में क्या अंतर है ?
उत्तर :- जीवात्मा को बार बार कर्मो के अनुसार शरीर प्राप्त करे के लिये सूक्ष्म शरीर मिला हुआ होता है । जब सामान्य मृत्यु होती है तो आत्मा सूक्ष्म शरीर को लेकर उस स्थूल शरीर ( मनुष्य, पशु, पक्षी आदि ) से निकल जाता है परन्तु जब मुक्ति होती है तो आत्मा स्थूल शरीर ( मनुष्य ) को तो छोड़ता ही है लेकिन ये सूक्ष्म शरीर भी छोड़ देता है और सूक्ष्म शरीर प्रकृत्ति में लीन हो जाता है । ( मुक्ति केवल मनुष्य शरीर में योग समाधि आदि साधनों से ही होती है )

प्रश्न :- मुक्ति की अवधि कितनी है ?
उत्तर :- मुक्ति की अवधि 36000 सृष्टियाँ हैं । 1 सृष्टि = 8640000000 वर्ष । यानी कि इतनी अवधि तक आत्मा मुक्त रहता है और ब्रह्माण्ड में ईश्वर के आनंद में मग्न रहता है । और ये अवधि पूरी करते ही किसी शरीर में कर्मानुसार फिर से आता है ।

प्रश्न :- मृत्यु की अवधि कितनी है ?
उत्तर :- एक क्षण के कई भाग कर दीजिए उससे भी कम समय में आत्मा एक शरीर छोड़ तुरंत दूसरे शरीर को धारण कर लेता है ।

प्रश्न :- जन्म किसे कहते हैं ?
उत्तर :- ईश्वर के द्वारा जीवात्मा अपने सूक्ष्म शरीर के साथ कर्म के अनुसार किसी माता के गर्भ में प्रविष्ट हो जाता है और वहाँ बन रहे रज वीर्य के संयोग से शरीर को प्राप्त कर लेता है । इसी को जन्म कहते हैं ।

प्रश्न :- जाति किसे कहते हैं ?
उत्तर :- जन्म को जाति कहते है । कर्मों के अनुसार जीवात्मा जिस शरीर को प्राप्त होता है वह उसकी जाति कहलाती है । जैसे :- मनुष्य जाति, पशु जाति, वृक्ष जाति, पक्षी जाति आदि ।

प्रश्न :- ये कैसे निश्चय होता है कि आत्मा किस जाति को प्राप्त होगा ?
उत्तर :- ये कर्मों के अनुसार निश्चय होता है । ऐसे समझिए ! आत्मा में अनंत जन्मों के अनंत कर्मों के संस्कार अंकित रहते हैं । ये कर्म अपनी एक कतार में खड़े रहते हैं जो कर्म आगे आता रहता है उसके अनुसार आत्मा कर्मफल भोगता है । मान लो आत्मा ने कभी किसी शरीर में ऐसे कर्म किये हों जिसके कारण उसे सूअर का शरीर मिलना हो । और ये सूअर का शरीर दिलवाने वाले कर्म कतार में सबसे आगे खड़े हैं तो आत्मा उस प्रचलित शरीर को छोड़ तुरंत किसी सूअरिया के गर्भ में प्रविष्ट होगी और सूअर का जन्म मिलेगा । अब आगे चलिये सूअर के शरीर को भोग जब आत्मा के वे कर्म निवृत होंगे तो कतार में उससे पीछे मान लो भैंस का शरीर दिलाने वाले कर्म खड़े हो गए तो सूअर के शरीर में मरकर आत्मा भैंस के शरीर को भोगेगा । बस ऐसे ही समझते जाइए कि कर्मों की कतार में एक के बाद एक एक से दूसरे शरीर में पुनर्जन्म होता रहेगा । यदि ऐसे ही आगे किसी मनुष्य शरीर में आकर वो अपने जीवन की उपयोगिता समझकर योगी हो जायेगा तो कर्मो की कतार को 36000 सृष्टियों तक के लिये छोड़ देगा । उसके बाद फिर से ये क्रम सब चालू रहेगा ।

प्रश्न :- लेकिन हम देखते हैं एक ही जाति में पैदा हुई आत्माएँ अलग अलग रूप में सुखी और दुखी हैं ऐसा क्यों ?
उत्तर :- ये भी कर्मों पर आधारित है । जैसे किसी ने पाप पुण्य रूप में मिश्रित कर्म किये और उसे पुण्य के आधार पर मनुष्य शरीर तो मिला परंतु वह पाप कर्मों के आधार पर किसी ऐसे कुल मे पैदा हुआ जिसमें उसे दुख और कष्ट अधिक झेलने पड़े । आगे ऐसे समझिए जैसे किसी आत्मा ने किसी शरीर में बहुत से पाप कर्म और कुछ पुण्य कर्म किए जिस पाप के आधार पर उसे गाँय का शरीर मिला और पुण्यों के आधार उस गाँय को ऐसा घर मिला जहाँ उसे उत्तम सुख जैसे कि भोजन, चिकित्सा आदि प्राप्त हुए । ठीक ऐसे ही कर्मों के मिश्रित रूप में शरीरों का मिलना तय होता है ।

प्रश्न :- जो आत्मा है उसकी स्थिति शरीर में कैसे होती है ? क्या वो पूरे शरीर में फैलकर रहती है या शरीर के किसी स्थान विशेष में ?
उत्तर :- आत्मा एक सुई की नोक के करोड़वें हिस्से से भी अत्यन्त सूक्ष्म होती है और वह शरीर में हृदय देश में रहती है वहीं से वो अपने सूक्ष्म शरीर के द्वारा स्थूल शरीर का संचालन करती है । आत्मा पूरे शरीर में फैली नही होती या कहें कि व्याप्त नहीं होती । क्योंकि मान लें कोई आत्मा किसी हाथी के शरीर को धारण किये हुए है और उसे त्यागकर मान लो उसे कर्मानुसार चींटी का शरीर मिलता है तो सोचो वह आत्मा उस चींटी के शरीर में कैसे घुसेगी ? इसके लिये तो उस आत्मा की पर्याप्त काट छांट करनी होगी जो कि शास्त्र विरुद्ध सिद्धांत है, कोई भी आत्मा काटा नहीं जा सकता । ये बात वेद, उपनिषद्, गीता आदि भी कहते हैं ।

प्रश्न :- लोग मृत्यु से इतना डरते क्यों हैं ?
उत्तर :- अज्ञानता के कारण । क्योंकि यदि लोग वेद, दर्शन, उपनिषद् आदि का स्वाध्याय करके शरीर और आत्मा आदि के ज्ञान विज्ञान को पढ़ेंगे तो उन्हें सारी स्थिति समझ में आ जायेगी और लेकिन इससे भी ये मात्र शाब्दिक ज्ञान होगा यदि लोग ये सब पढ़कर अध्यात्म में रूचि लेते हुए योगाभ्यास आदि करेंगे तो ये ज्ञान उनको भीतर से होता जायेगा और वे निर्भयी होते जायेंगे । आपने महापुरुषों के बारे में सुना होगा कि जिन्होंने हँसते हँसते अपने प्राण दे दिए । ये सब इसलिये कर पाए क्योंकि वे लोग तत्वज्ञानी थे जिसके कारण मृत्यु भय जाता रहा । सोचिए महाभारत के युद्ध में अर्जुण भय के कारण शिथिल हो गया था तो योगेश्वर कृष्ण जी ने ही उनको सांख्य योग के द्वारा ये शरीर, आत्मा आदि का ज्ञान विज्ञान ही तो समझाया था और उसे निर्भयी बनाया था । सामान्य मनुष्य को तो अज्ञान मे ये भय रहता ही है ।

प्रश्न :- क्या वास्तव में भूत प्रेत नहीं होते ? और जो हम ये किसी महिला के शरीर मे चुड़ैल या दुष्टात्मा आ जाती है वो सब क्या झूठ है ?
उत्तर :- झूठ है । लीजिए इसको क्रम से समझिए । पहली बात तो ये है कि किसी एक शरीर कां संचालन दो आत्माएँ कभी नहीं कर सकतीं । ये सिद्धांत विरुद्ध और ईश्वरीय नियम के विरुद्ध है । तो किसी एक शरीर में दूसरी आत्मा का आकर उसे अपने वश में कर लेना संभव ही नही है । और जो आपने बोला कि कई महिलाओं में जो डायन या चुड़ैल आ जाती है जिसके कारण उनकी आवाज़ तक बदल जाति है तो वो किसी दुष्टात्मा के कारण नहीं बल्कि मन के पलटने की स्थिति के कारण होता है । विज्ञान की भाषा में इसे कहते हैं जिसमें एक व्यक्ति परिवर्तित होकर अगले ही क्षण दूसरे में बदल जाता है । ये एक मान्सिक रोग है ।

प्रश्न :- पुनर्जन्म का साक्ष्य क्या है ? ये सिद्धांतवादी बातें अपने स्थान पर हैं पर इसके प्रत्यक्ष प्रमाण क्या हैं ?
उत्तर :- आपने ढेरों ऐसे समाचार सुने होंगे कि किसी घर में कोई बालक पैदा हुआ और वह थोड़ा बड़ा होते ही अपने पुराने गाँव, घर, परिवार और उन सदस्यों के बारे में पूरी जानकारी बताता है जिनसे उसका प्रचलित जीवन में दूर दूर तक कोई संबन्ध नहीं रहा है । और ये सब पुनर्जन्म के प्रत्यक्ष प्रमाण हैं । सुनिए ! होता ये है कि जैसा आपको ऊपर बताया गया है कि आत्मा के सूक्ष्म शरीर में कर्मो के संस्कार अंकित होते रहते हैं और किसी जन्म में कोई अवसर पाकर वे उभर आते हैं इसी कारण वह मनुष्य अपने पुराने जन्म की बातें बताने लगता है । लेकिन ये स्थिति सबके साथ नहीं होती । क्योंकि करोड़ों में कोई एक होगा जिसके साथ ये होता होगा कि अवसर पाकर उसके कोई दबे हुए संस्कार उग्र हो गए और वह अपने बारे में बताने लगा ।

प्रश्न :- क्या हम जान सकते हैं कि हमारा पूर्व जन्म कैसा था ?
उत्तर :- साधक दयानंद सरस्वति जी कहते हैं कि सामान्य रूप में तो नहीं परन्तु यदि आप योगाभ्यास को सिद्ध करेंगे तो आपके करोंड़ों वर्षों का इतिहास आपके सामने आकर खड़ा हो जायेगा । और यही तो मुक्ति के लक्षण है||

कश्य॑पोऽष्ट॒मः।

वैशाख पौर्णिमा
अर्थात् कूर्म जयन्ती ।
विष्णु का द्वितीय अवतार #कूर्म रूप में हुआ।

कूर्म अवतार को ‘कच्छप अवतार’ (कछुआ अवतार) भी कहते हैं। कूर्म अवतार में भगवान विष्णु ने क्षीरसागर के समुद्रमंथन के समय मंदर पर्वत को अपने कवच पर संभाला था। इस प्रकार भगवान विष्णु, मंदर पर्वत और वासुकि नामक सर्प की सहायता से देवों एवं असुरों ने समुद्र मंथन करके चौदह रत्नों की प्राप्ति की।

समुद्रमन्थन (विचारमन्थन) के लिए इन्द्रियों को नियन्त्रित रखनेवाले स्थितप्रज्ञ कच्छप का आधार आवश्यक है ।

“यदा संहरते चायं कूर्मोऽङ्गानीव सर्वशः।
इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेभ्यस्तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता।। — गीता, 2.58।।

कूर्म सम्यक् बुद्धि के द्योतक हैं।
कूर्मस्तारक तारामंडल को भी कहते हैं। कूर्मासन ब्रह्म सायुज्य प्राप्त महात्माओं का आसन है।

मुझे याद आया- अरविन्दो सिम्बल। महर्षि अरविन्द के आश्रम में कूर्म उत्सव मनाया जाता है।

मैं 1993 में नवभारत टाइम्स के लिए ‘बोलते प्रतीक’ स्तंभ लिखता था।
तब यह कूर्म प्रतीक मेरे प्रेक्षण में आया था।

मुझे लगा कि यह प्रतीक नहीं, दृश्य भाषा है। इस भाषा को स्थापित करने से पुराण की आख्यानिक भाषा भी स्थापित होगी।

ग्रीक मैथोलाॅजी को पुराण की आख्यानिक भाषा पर आरोपित नहीं किया जा सकता।

इस तरह की सोच रखनेवाला व्यक्ति अकेला हो जाता है।

पर, मैं तभी अकेला होता हूँ जब इन तथ्यों पर विचार करता हूँ और इन्हें स्थापित करता हूँ

अन्यथा मेरे भी साथ प्रत्येक स्तर का संसार है।

कूर्मावतार परस्पर विरोधी तथ्यों में स्थिर हैं।

स्थितिप्रज्ञ की यही स्थिति है, कोई अन्य नहीं।
श्रीकृष्ण ने कहा- मैं समासों में द्वन्द्व समास हूँ।

सृष्टि में द्वन्द्व है। यह त्रिगुणात्मक है, पर इसमेें केवल चेन रिएक्शन नहीं है, इसमें साम्यावस्था है।
इसलिए यह त्रिवृत्त है। 360÷108×3=10 > 100> 1000 >….. सहस्र शीर्षा !

यह तथ्य आधुनिक- उत्तराधुनिक पश्चिमी विचारक की समझ में नहीं आता और हमारे वालों को भी अपनी बात कहने नहीं आता!
✍🏻प्रमोद दुबे

कमठ या कूर्म स्वरूप मिस्र के देव
*
मिस्र में 664-332 ईसा पूर्व खेप्री स्करब देव की मान्यता रही है। यह कमठ के समान पेट वाला माना गया था जिसका वह कवच आयुध भी था। भारतीय कथाओं में भी ऐसे रूप वर्णित है।
किसी भी तरह की रचना, चिंतन और नियमन के साथ साथ स्वरूप के लिए उसके पास मानव मस्तिष्क और मानव जैसी ही मुखाकृति स्वीकारी गई थी। इसे गुबरेला के रूप में भी देखकर पहचान दी जा सकती है।
यह अनोखी आकृति अभी बर्लिन के मिस्र संग्रहालय में संरक्षित है और देखी जा सकती है…
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Humanoid Khepri Scarab
This rare model of the Egyptian scarab beetle creator god Khepri, with a human head and arms emerging from a scarab’s exoskeleton.
Most likely from the Late Period, ca. 664-332 BC.
Now in the Egyptian Museum of Berlin.
✍🏻श्रीकृष्ण जुगनू

कूर्मावतार के प्राकट्य दिवस पर

विष्णु के नवें अवतार के अवतरण दिवस पर ही विष्णु के द्वितीय अवतार का प्रकटीकरण हुआ था। और वह अब नवें की तुलना में बहुत डेटेड भले ही हो गया हो लेकिन उसने इस पृथ्वी के स्थिरीकरण में जो भूमिका निभाई, किसी समय उसकी एक जागतिक स्वीकृति थी।

कूर्म का भी एक वैश्विक मोटिफ है। योरोप में ऐसे बहुत से प्राचीन स्तंभ हैं जिनमें कच्छपों की पीठ को आधार के रूप में दिखाया गया है। सिर्फ हिंदू या चीनी ही नहीं, देसी अमेरिकी विश्वासों में भी एक ऐसे वैश्विक कूर्म का उल्लेख आता है। एडवर्ड बने टेलर ने वैश्विक कूर्म की थीम का विभिन्न सभ्यताओं में होना न केवल पाया बल्कि उनका तुलनात्मक अध्ययन भी किया। 1678 से 1680 के बीच जास्पर टैंकीर्ट्स ने ‘ग्रेट टर्टल’ के लेनेप मिथक को अभिलिखित किया। उत्तरपूर्वी वुडलैंड जनजातियों खासकर आरोको में भी यह मिथक पाया। चीन में ‘आओ’ नामक कूर्म का मिथक है। अमेरिका के डेलावेअर इंडियंस का मानना है कि दुनिया कछुए की पीठ पर टिकी है।

मिलर का कहना था कि : I viewed the turtle as a logical choice for this atlantan burden because its shape and appearance were appropriate to this role. स्पेक का कहना था the turtle is the earth, is life. डेलावारी लोग कूर्म को स्थैर्य कि (perseverance), अतिजीवन (longevity) और धृति (steadfastness) के लिये जानते हैं। वे जीवन, समय और कूर्म को पूर्व से पश्चिम की ओर सतत गतिमान समझते हैं। उनका कहना है कि जीवन और पृथ्वी असंभव थी, यदि कूर्म ने आधार नहीं उपलब्ध कराया होता। कभी कूर्म की समुद्र में गति को आज भी देखें।वह कभी भी लहरों से नहीं लड़ता। वह उनका, चाहे वे कैसी भी हों, उपयोग करता है। क्या जीवन जीने की यह कला हमें न आनी चाहिए थी?

बर्नार्ड नीत्शमान की उक्ति है ‘when the turtle collapses, the world ends.’ (नेचुरल हिस्ट्री, 83 (6) : 34 (जून-जुलाई 1974) में भी एक ऐसी ही कथा है।

कूर्मावतार की कथा भारतीयों में विशेषतः प्रचलित है। समुद्र मंथन के समय मंदार पर्वत कूर्म पर ही, उनके कमठ पृष्ठ पर ही टिका था। कोलंबिया में 1.5 m के दैत्याकार प्रागैतिहासिक कच्छप के जीवाश्म मिलने पर भी लोगों को उन मिथकों की याद आई थी। न्यूज़ीलैंड के माओरी लोगों के मिथक एक पृथ्वी देवी Papatuanuku की और उनके एक महाकार कच्छप A’tuin महान् का उल्लेख करते हैं। Inuit पौराणिकी में विश्व एक महाकार कूर्म Akychaकी पीठ पर टिका है। यही कूर्म पृथ्वी को भी पीठ पर ले चला है। पोलीनीशिया की पौराणिकी में होनू नामक यह कूर्म देवताओं और मनुष्यों के बीच संदेशवाहक का भी काम करता है। अज्तेकों की पौराणिकी Cipactli नामक विश्वधारक महाकूर्म की चर्चा करती है। वियतनामी मिथक Cụ Rùa नामक एक महाकच्छप की बात बताते हैं। इस नाम का अर्थ है- परदादा।

मंगोलिया, इटली, कोरिया में भी कूर्म-मिथक हैंकच्छप एफ्रोडाइट (वीनस) और हर्मेसर (मर्करी) दोनों के लिये पवित्र ग्रीक पौराणिकी में माना गया। कूर्म का सर उठाना और फिर गर्दन का छुप जाना प्रजनन व उर्वरता से जोड़ा गया। कई संस्कृतियों में कूर्म को खगोल का भार वहन करने वाला बताया गया है। आकाश इस कूर्म के टॉप गोलार्द्ध में और पृथ्वी फ्लैट स्क्वेयर में प्रतीकायित होती है।

मय धार्मिकी में यह ब्रह्मांडीय कूर्म सृष्टि- सिंधु में तैरता बताया गया है। बाद की मय सभ्यता में यही कच्छप देवता में बदल गया है।

यानी कच्छपावतार की यह कथा उन देशों से ज़्यादा फैली हुई है जिनमें नवें अवतार की फैली।

कूर्म पुराण में भगवान के कच्छपावतार की कथा है। कहा जाता है कि कूर्मावतार में कूर्म की पीठ का व्यास एक लाख योजन था। जिस तरह से एक जागतिक सर्प के एक आधारभूत अर्थ की चर्चा molecular biology के संदर्भ में की गई है, उसी प्रकार से कूर्म का संबंध एक योगचर्या से है । सुषुम्नाशीर्ष को चारों ओर से वैसे ही घेरे है। जैसे मानव सिर को पगड़ी घेरे रहती है- ऊष्णीष, जो आकृति है वह स्पष्टतः कछुए की भांति है। कहते हैं और ताराशंकर वैद्य कहते हैं- ‘यही कूर्म शरीर को स्थिर रखता है अर्थात् गिरने नहीं देता।’ इसी पर मस्तिष्क व समस्त शरीर की अवधारणा निर्भर है ।

कणाद ने ‘तिर्यक कूर्मो देहिनां नाभिदेशे वामे वक्त्रं तस्य पुच्छं च याम्ये/ऊर्ध्वे भागे हस्तपादौ च वामौ / तस्याधस्तात् संस्थितौ दक्षिणौ तु’ में नाड़ीविज्ञान के प्रसंग में कूर्म-चर्चा की है। वसवराज का इसी नाड़ीविज्ञान प्रसंग में कहना है : कूर्म व्यतिक्रान्तात् सर्वत्रैव व्यतिक्रमः ‘कूर्मचक्रम’ में भी कूर्म के संबंध में विज्ञान की बात सामने आई है : ‘कूर्म चक्रं प्रवक्ष्यामि यदुक्तं कोशलागमे / यस्य विज्ञान मात्रेण यदुक्तं देश विप्लवः’ । यह देशविप्लव होने भी जा रहा है।

यह शेष और कूर्म संगति कूर्मचक्र में यों बताई गई है- ‘स शेषोऽपि कुण्डली भूमिसंस्थितः / कूर्मपृष्ठैक भागेन पद्मतन्तुरिवाबभौ।’ कूर्मशरीर ‘शङ्कों शतसहस्राणि योजनानि बपुः स्थितम्’ के अनुसार एक लाख x शंकुमान जो बराबर 1000000000000000000 योजन के तुल्य है ।” एवं ‘कूर्मप्रमणन्तु कथितं चादि यामले’ के अर्थों में कूर्म दृश्य ब्रह्माण्ड या दृश्य सौर मंडल हो सकता है।

राजा भोज ने अवनिकूर्मशतम् की रचना की क्योंकि ‘भुवन- भार को वहन करने में सक्षम इस अद्वितीय कूर्म को विश्राम देने में उन्होंने सामर्थ्य प्रकट किया था’, ऐसा तत्कालीन प्राकृत रचनाओं में कहा गया।

कूर्म के ऊपर पृथ्वी टिकी होने या संसार टिके होने पर कई लोगों ने व्यंग्य भी किये। ‘टर्टल्स आल द वे डाउन’ की प्रसिद्ध उक्ति इसी मजाक पर टिकी थी कि जब शेषनाग कूर्म पर हैं तो कूर्म किस पर हैं तो जवाब था- कछुआ कछुए पर है। वह कछुआ किसी और कछुए पर। लेकिन मजाक एक तरफ। या तो आप ही ही खी खी कर लीजिए या स्टीफन किंग की तरह कविता लिख लीजिए:
See the turtle of enormous girth,
on his shell he holds the earth
If you want to run and play,
come along the beam today.
(The Waste Lands)

सीखा तो कच्छप से भी जा सकता है।किलरॉय जे ओल्डस्टर तो इतनी अच्छी तरह से बताते हैं: Human beings can learn valuable lessons in conservation of necessary personal resources for accomplishing the fundamental tenants of life by observing a judiciously paced turtle determinedly and stealthily traversing the world.
(Dead Toad Scrolls)

यह एक बिम्ब बहुत से अर्थों में प्रभावी है। प्रथमत: भार वहन करने में। यह तो उदार भार है क्योंकि रामचरितमानस में राम की सेनाएं तो पृथ्वी के वास्तविक और अनुदार भार रावण-राज को खत्म करने चल पड़ी है। उन लोगों के, जो ‘ते मर्त्यलोके भुवि भारभूता’ हैं – इस पृथ्वी पर भार के समान हैं- बोझ से धरती को मुक्त कराना ही वास्तविक औदार्य है। धरती इस बोझ को महसूस कर भी रही थी- ‘गिरि सरि सिन्धु भार नहिं मोही / जस मोहि गरुअ एक परद्रोही।’ इस भार को हरने के लिये हरि का जिस प्रकार ‘उदार अवतार’ हुआ है- अंसन्ह सहित मनुज अवतारा/लेहउँ दिनकर बंस उदारा- वैसे ही उनकी इस वानर सेना का भी । इसलिए इसका भार उदार है। और ‘हरिहउँ सकल भूमि गरुआई कि मैं पृथ्वी का सब भार हर लूंगा’ का जो वादा हरि ने किया था, उस वादे को पूरा करने के लिये हरि-भक्त भी संगठित और सन्नद्ध हो गये हैं। ‘सुर नर मुनि करि अभय, दनुज हति हरहि धरनि गरुआई’ यह भार खत्म हुये बिना ये सैनिक भी अपनी नियति से मुठभेड़ नहीं कर सकेंगे। यह भार या गरुआई अहं के संघनन की है। नारद को हुआ था-उर अंकुरेउ गरब तरु भारी- तो हरि ने ही ‘अवसि उपाय करबि मैं सोई’ का निश्चय किया था। जब ‘भृगुपति केरि गर्व गरुआई’ हुआ तब भी राम ने अपना करिश्मा दिखाया था । लेकिन अब यह काम राम किसी माया या करिश्मे से नहीं करेंगे। अब यह कार्य तो राम अपने सारे भक्तों की सामूहिक शक्ति के साथ करेंगे। तो पृथ्वी टलमल न हो, यह भार तब भी तुलसी के अनुसार कूर्म ही धारण करेंगे।

कूर्म अवतार का लक्ष्मी जी के साथ सीधा सम्बन्ध है। प्राय: कूर्म की पीठ पर ही श्रीयंत्र रहता है। पौराणिक कथा यह बताती है कि इन्द्र ने जब दुर्वासा की दी हुई पारिजात की माला अपने हाथी ऐरावत को दे दी और उसने उसे पैरों तले कुचल दिया तो दुर्वासा ने उनकी राज्यलक्ष्मी लुप्त हो जाने का श्राप दिया था और तब फिर मंथन हुआ और विष्णु का कूर्मावतार उन लक्ष्मी के पुनः प्रकट होने में काम आया। पारिजात स्वयं समुद्र मंथन से प्रकट हुए रत्नों में से था। पारिजात में लक्ष्मी जी का वास माना जाता है और लक्ष्मी पूजा में उसी का प्रयोग होता है। पारिजात का अपमान स्वयं लक्ष्मी का अपमान था — और यह कितनी मीठी कथा है कि जो एक पुष्प को श्रीसमृद्धि की एकात्मता में देखती है- तो लक्ष्मी को ग़ायब होना ही था। पुनः जीवनमूल्यों का, शुभ अशुभ का, अच्छे बुरे का एक मंथन ज़रूरी था।पुनः इस संदर्भ में लिये गये निर्णय का स्थिरीकरण ज़रूरी था तो कूर्म को आना ही आना था।

यह भी देखें कि कूर्म सिर्फ़ पृथ्वी को स्थैर्य वाली पर्यावरणीयता के प्रतीक नहीं हैं, मंदराचल भी उन पर ही टिका है। समुद्र मंथन एक बहुत आधारभूत कथा है जिसके अनेक पहलुओं को मैंने कुछ वर्षों पहले अपनी कविता-पुस्तक ‘अमृत नाम अनंत’ में प्रस्तुत किया था। समुद्रमंथन आधार-कथा है तो कूर्मावतार आधार-पीठ। इन कूर्मावतार ने ही कूर्मपुराण में चार पुरुषार्थों का विवरण दिया है। प्रज्ञा, स्थैर्य, अतिजीवन, पुष्टि और संरक्षण के प्रतीक देव हैं कूर्मावतार।

सो आज पूरे दिन बैठे बैठे मैं यही देखता रहा कि कैसे हम उन्हें भूल जाते हैं जिन्होंने आधारभूत काम किया होता है। नींवों पर काम करने वालों की खिल्ली उड़ाई जाती है। कंगूरे चमकते हैं, बुनियाद याद नहीं आती।
✍🏻मनोज श्रीवास्तव