बद्रीनाथ यात्रा व्यवस्था का चमोली जिला अधिकारी हिमांशु खुराना ने श्रध्दालु बन कर किया निरीक्षण, यात्रियों की सुविधाएं बढ़ाने और मास्टर प्लान के कार्य में तेजी लाने के दिए निर्देश

 

✍️हरीश मैखुरी

पंक्ति में मास्क पहने जो दिख रहे हैं ये चमोली के जिलाधिकारी हिमांशु खुराना हैं वे भगवान बद्रीनाथ के दर्शन के लिए पंक्ति में लगे और श्रद्धालुओं की समस्याओं को आत्मसात कर व्यवस्थाओं को समझ रहे हैं। आज ऐसे संवेदनशील और कर्तव्यनिष्ठ अधिकारियों की आवश्यकता है।

  चारधाम यात्रा मार्ग अब चौड़े चकले हो चुके हैं ऋषिकेश कर्णप्रयाग रेल मार्ग का काम भी लगभग 60% से अधिक पूरा हो चुका है चार धामों को रेल परियोजना से जोड़ने की योजना पर भी तेजी से कार्य हो रहा है। केदारनाथ और बद्रीनाथ को आध्यात्मिक सिटी के रूप में मास्टर प्लान के अंतर्गत विकसित किया जा रहा है बदरीनाथ को तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट के अन्तर्गत विकसित करने का कार्य तेजी से हो रहा है अब बदरीनाथ में अनेेक नयी और चौड़ी मक्खन मोटर सडकें विकसित कर दी गयी है। बदरीनाथ मंदिर को घेर चुकी दुकानें हटा कर मंदिर को खुला करने का काम चल रहा है। भविष्य में यहां भोज के वृृक्ष भीी लगाने की योजना है। चारधाम यात्रियों की संख्या में हर वर्ष 20% से अधिक बढ़ोतरी हो रही है जब से प्रधानमंत्री मोदी केदारनाथ और बद्रीनाथ यात्रा पर आए हैं तब से यह वृद्धि अप्रत्याशित रूप से कई गुना बढ़ी है वर्ष 2022 में 1600000 यात्री केदारनाथ आए जबकि 4000000 यात्री बद्रीनाथ की दर्शन कर अपने घरों को लौटे हैं। भविष्य में चारधाम यात्रा मार्ग और रेलवे लाइन बनने के बाद एक करोड़ से अधिक श्रद्धालुओं के चार धामों में पहुंचने की आशा है। चार धाम यात्रा उत्तराखंड राज्य पर्यटन की आधार और अर्थव्यवस्था की रीढ़ है, इसीलिए उत्तराखंड सरकार भी चार धाम यात्रा को लेकर बहुत संवेदनशील रहती है अब हेलीकॉप्टरों से भी यात्रा का प्रचलन बढ़ रहा है। लोग भारी संख्या में हेलीकॉप्टरों के माध्यम से भी चार धाम यात्रा कर रहे हैं, गोचर हवाई पट्टी और चिन्यालीसौड़ हवाई पट्टी को भी विकसित किया जा रहा है। जौलीग्रांट को अन्तरराष्ट्रीय एयरपोर्ट के रूप में विकसित किया जा रहा है।

एक नई हवाई पट्टी चमोली के कंथोलीसैंण बनाने की आवश्यकता अनुभव की जा रही है। यह हवाई पट्टी कम लागत पर बनेगी और अंतरराष्ट्रीय व सामरिक उड़ानों के लिए महत्वपूर्ण होगी यहां से चीन सीमा पर भी नजर रखी जा सकेगी साथ ही इस हवाई पट्टी से बद्रीनाथ केदारनाथ यात्रा के लिए बड़े जहाजों की उड़ान भी संभव हो पाएगी। 

 साथ ही चमोली के सिमली में एक मेडिकल कॉलेज की नितांत आवश्यकता अनुभव की जा रही है। यह मेडिकल कॉलेज भविष्य में उत्तराखंड की स्थाई राजधानी गैरसैण के निकट होने के कारण अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाएगा। इससे बद्रीनाथ और केदारनाथ आने वाले यात्रियों को भी सुविधा होगी और चमोली रुद्रप्रयाग अल्मोड़ा जनपद के कई क्षेत्रों और बागेश्वर जनपद के क्षेत्र इस मेडिकल कॉलेज के कारण लाभान्वित होगा। उम्मीद की जानी चाहिए कि सरकार इस दिशा में प्रयासरत होगी।

बद्रीनाथ मन्दिर में सनातन धर्म संस्कृति के देवता विष्णु के एक रूप “बद्रीनारायण” की पूजा होती है। यहाँ उनकी १ मीटर (३.३ फीट) लंबी शालिग्राम शिला से निर्मित मूर्ति है जिसके बारे में मान्यता है कि आदि शंकराचार्य ने ८वीं शताब्दी में समीपस्थ नारद कुण्ड से निकालकर स्थापित किया था। इस मूर्ति को कई हिंदुओं द्वारा विष्णु के आठ स्वयं व्यक्त क्षेत्रों (स्वयं प्रकट हुई प्रतिमाओं) में से एक माना जाता है। यद्यपि, यह मन्दिर उत्तर भारत में हिमालय वैकुण्ठ धाम में अवस्थित है, “रावल” कहे जाने वाले यहाँ के मुख्य पुजारी दक्षिण भारत के केरल राज्य के नम्बूदरी सम्प्रदाय के ब्राह्मण होते हैं। बद्रीनाथ मन्दिर को उत्तर प्रदेश राज्य सरकार अधिनियम – ३०/१९४८ में मन्दिर अधिनियम – १६/१९३९ के अंतर्गत सम्मिलित किया गया था, जिसे बाद में “श्री बद्रीनाथ तथा श्री केदारनाथ मन्दिर अधिनियम” के नाम से जाना जाने लगा। वर्तमान में उत्तराखंड में सरकार द्वारा नामित सत्रह सदस्यीय समिति दोनों, बद्रीनाथ एवं केदारनाथ मन्दिरों, को प्रशासित करती है। विष्णु पुराण , महाभारत तथा स्कंद पुराण जैसे कई प्राचीन ग्रन्थों में इस मन्दिर का उल्लेख मिलता है। आठवीं शताब्दी में भी इसकी महिमा का वर्णन है। बद्रीनाथ नगर, जहाँ ये मन्दिर स्थित है, हिन्दुओं के पवित्र चार धामों में मुख्य और सतयुग का धाम है। यह विष्णु भगवान को समर्पित १०८ दिव्य देशों में से भी एक है। इस मन्दिर को बद्री-विशाल के नाम से पुकारते हैं और विष्णु को ही समर्पित निकटस्थ चार अन्य मन्दिरों: योगध्यान-बद्री, भविष्य-बद्री, वृद्ध-बद्री और आदि बद्री के साथ जोड़कर पूरे समूह को “पंच-बद्री” के रूप में जाना जाता है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार, बद्रीनाथ तथा इसके आस-पास का पूरा क्षेत्र किसी समय शिव भूमि (केदारखण्ड) के रूप में अवस्थित था। जब गंगा नदी धरती पर अवतरित हुई, तो यह बारह धाराओं में बँट गई, तथा इस स्थान पर से होकर बहने वाली धारा विष्णुपदी अलकनन्दा के नाम से विख्यात हुई। मान्यतानुसार भगवान विष्णु जब अपने ध्यानयोग हेतु उचित स्थान खोज रहे थे, तब उन्हें अलकनन्दा के समीप यह स्थान अति सुन्दर लगा। नीलकण्ठ पर्वत के समीप भगवान विष्णु ने बाल रूप धारण कर लिया, और क्रंदन करने लगे। उनका रूदन सुन कर माता पार्वती का हृदय द्रवित हो उठा, और उन्होंने बालक के समीप उपस्थित होकर उसे मनाने का प्रयास किया, माता पार्वती उन्हे लीलाढुंगी से उठा कर अपने महल में ले गयी। तब बालक ने अपना विष्णु स्वरूप प्रकट कर उनसे ध्यानयोग करने हेतु वह स्थान मांग लिया। यही पवित्र स्थान वर्तमान में बद्रीविशाल के नाम से दिग्दिगंत में सुविख्यात है।

विष्णु पुराण में इस क्षेत्र से संबंधित एक अन्य कथा है, जिसके अनुसार धर्म के दो पुत्र हुए- नर तथा नारायण, जिन्होंने धर्म के विस्तार हेतु कई वर्षों तक इस स्थान पर तपस्या की थी। अपना आश्रम स्थापित करने के लिए एक आदर्श स्थान की चाह में में वे वृद्ध बद्री, योग बद्री, ध्यान बद्री और भविष्य बद्री नामक चार स्थानों में गये। अंततः उन्हें अलकनंदा नदी के पीछे एक गर्म और एक ठंडा पानी की जलधारा मिली, जिसके पास के क्षेत्र को उन्होंने बद्री विशाल नाम दिया। यह भी माना जाता है कि व्यास जी ने महाभारत इसी क्षेत्र में व्यास गुफा नामक स्थान पर लिखी थी। नर-नारायण ने ही अगले जन्म में अर्जुन तथा तथा कृष्ण के रूप में जन्म लिया था। महाभारतकालीन एक अन्य मान्यता यह भी है कि इसी स्थान पर ब्रह्म कपाल तीर्थ में पाण्डवों ने अपने पितरों का पिंडदान किया था। इसी कारण से बद्रीनाथ के ब्रम्हाकपाल क्षेत्र में आज भी तीर्थयात्री अपने पितरों का आत्मा की शांति के लिए पिंडदान करते हैं। यहां के पंच कुंड और पंच सिलायें भी पाप हारी और सुखदायी बतायी गयी है। यहां पंच रात्रि विश्राम करने से वैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है।breakinguttarakhand.com