जब यूरोपीय और अरैबिक कबीले कच्चा मांस खाते और पशुओं की खाल पहनते थे तब भारत के लोगों को सोलह संस्कारों से परिमार्जित कराया जाता था यहां की महिलाएं ऐड़ी से लेकर चोटी तक सोने चांदी के वस्त्र आभूषणों से लकदक रहती थीं तब यहां आठ लाख गुरूकुल थे

संस्कार और मनुहार हमारी विरासत और परंपरा है।

हमारा देश नही था सपेरों का_बस शिकार हो गया, लुटेरों का।

14 वीं 15वीं शताब्दी तक यूरोप के अधिकांश लोग जंगल में रहते थे और कपड़े बनाना जानते नहीं थे ।

कपड़ों के स्थान पर जानवरों की खाल का लबादा लपेटते थे या जानवरों की खाल से मोटे बने हुए जो जूट की बोरी से भी ज्यादा खराब क्वालिटी के कपड़े जिसको कहा नही जा सकता वह ओढते थे। नग्नता, असभ्यता की अशिक्षा की अवैज्ञानिकता की निशानी है।

भारत में केवल रुई के नही बल्कि सोने चांदी के तारों से कपड़े बनाना जानता था और नग्नता भारत की कभी भी निशानी नहीं रही । 

भारत ऐसा देश है जिसने ऐड़ी से लेकर चोटी तक उंगली के नाखून से लेकर बाजू तक लगभग हजारों प्रकार के आभूषण ,हजारों प्रकार के कपड़ों के डिजाइन और उसमें भी हजारों प्रकार के अलग-अलग जेवर में कपड़ों के डिजाइन भारत ने बनाए हैं। 

इस भारत में यदि कोई नग्नता को आधुनिकता मानता है तो वह निरा महामूर्ख है, नग्नता आधुनिकता की नहीं असभ्यता और दरिद्रता की निशानी है। जब यूरोपीय और अरैबिक कबीले नग्नावस्था में थे कच्चा मांस खाते या पशुओं की खाल पहते थे तब भारत के लोगों को सोलह संस्कारों से परिमार्जित कराया जाता था यहां की महिलाएं ऐड़ी से लेकर चोटी तक सोने चांदी के वस्त्र आभूषणों से लकदक रहती थीं तब यहां आठ लाख गुरूकुल थे

जय सनातन संस्कृति 🙏