आतंकवादियों के जनाजे में लाखों की संख्या में जाने वालों पर दया आ गई, जब सुज्जात बुखारी के जनाजे में आने के लिए उनकी पेंट गीली हो गई

डॉ हरीश मैखुरी

चरमपंथी इस्लामिक जिहादियों को आईना दिखाने वाले पत्रकार Shujaat Bukhari कश्मीर में आम आदमी की आवाज़ थे वह आतंकवादियों की धमकियों के बावजूद डरते नहीं थे कुछ दिन पहले ही उन्होंने महबूबा मुफ्ती को मिलकर आतंकवादियों के खिलाफ मुहिम तेज करने की बात कही थी, इसीलिए आतंकवादी उनसे बौखलाए हुए थे। मुस्लिम चरमपंथियों ने उन्हें 4 बार धमकी दी, बावजूद इसके वे अपने अखबार द राइजिंग कश्मीर में आतंकवाद के खिलाफ मुहिम चलाते रहे और आतंकवादियों को आइना दिखाते रहे। बस यही बात आतंकवादियों को खटक गई और उन्होंने अखबार के दफ्तर के सामने ही गोली मारकर पत्रकार की कायराना हत्या कर दी। इस जघन्य हत्याकांड की पूरे देश में निंदा होनी चाहिए और आतंकवाद के खिलाफ सभी पत्रकारों को भी एकजुट होकर अपने मोर्चे पर लड़ाई लड़नी पड़ेगी। राजनाथ सिंह को भी अब समझ लेना चाहिए कि निंदा पुराण से आतंकवाद समाप्त नहीं होता। लातों के भूत बातों से नहीं मानते। इसलिए आतंकवाद के खिलाफ ऑपरेशन ऑल आउट से भी आगे जाना पड़े तो जाना चाहिए और इनका एलिमिनेशन हर हाल में होना चाहिए। जब तक एक भी आतंकवादी धरती पर बचा है वह चलता फिरता रक्तबीज है। हर हाल में यह रक्तबीज समाप्त होने चाहिए चाहे। चाहे नक्सलवादी आतंकवादी हों और चाहे इस्लामिक आतंकवादी हों पत्रकारों को इन दोनों को कंडेम करना चाहिए सज्जात बुखारी को श्रद्धांजलि। पाकिस्तान की भीख पर पलने वाले अलगाववादियों के इशारे पर मुजरा करने वाले ढीट और कायर पत्थर बाज जो लाखों की संख्या में आतंकवादियों के जनाजे में जाते हैं मगर उन पर तरस आ गया जब सुजात बुखारी के जनाजे में जाने के लिए उनकी पेंट गीली होने लगी। प्रकारान्तर से आतंकवादियों के समर्थन में रहने वाले पत्रकारों की मौत पर कैंडल मार्च निकालने वाले गैंग भी इस पत्रकार की मौत पर अपने बिलों में दुबक गई क्योंकि इसे आतंकवादियों ने ही मारा।