मन की गति से चलने वाले और इच्छानुसार व आवश्यकता अनुसार ढलने वाले पुष्पक विमान को भगवान विश्वकर्मा ने ब्रह्मा जी के लिए बनाया था। ब्रह्मा जी ने पुष्पक विमान को कुबेर को भेंट कर दिया। जब इस अद्भुत विमान के बारे में रावण को जानकारी हुई तो उसने शक्ति के बल पर रावण ने अपने बड़े भाई कुबेर से पुष्पक विमान छीन लिया। रावण की मृत्यु के बाद विभीषण इसका अधिपति बना और उसने फिर से इसे कुबेर को दे दिया। कुबेर ने इसे भगवान राम को उपहार में दे दिया था। भगवान श्रीराम लंका विजय के बाद अयोध्या इसी विमान से पहुंचे थे।
वर्तमान में पुष्पक विमान कुबेर जी के पास है इंद्र भी इसका उपयोग करते हैं यह वर्तमान में देवलोक में है। और कुबेर की इच्छा से बद्रीविशाल के निकट कुबेर चोटी पर भी इसका आसन है। इस विमान में बहुत सी विशेषताएं थीं, जैसे इसका आकार आवश्यकतानुसार छोटा या बड़ा किया जा सकता था। कहीं भी आवागमन हेतु इसे अपने मन की गति से असीमित चलाया जा सकता था। यह नभचर वाहन होने के साथ ही भूमि पर भी चल सकता था। इस विमान में स्वामी की इच्छानुसार गति के साथ ही बड़ी संख्या में लोगों को धारण करने की क्षमता भी थी। इस विमान में बैठने के बाद मन दुखी नहीं रहता और काया निरोग हो जाती है। ✍️हरीश मैखुरी
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