जलियांवाला बाग़ में 13 अप्रैल, 1919 को अंग्रेज़ सरकार के जनरल डायर के गोली मारने के आदेश पर एक हजार देश भक्त मारे गये और तीन हजार घायल हुए थे

जलियांवाला बाग़ 13 अप्रैल, 1919
भारत वर्ष में अंग्रेजों का राज था। वे भारत से कमाई करके इंग्लैंड में अंग्रेजों के विकास के लिए धन का उपयोग करते थे। बहुत से देशभक्तों ने अंग्रेजी सरकार के विरुद्ध भारत छोड़ो आन्दोलन छेड़ था।
प्रथम विश्व युद्ध (1914 – 1918) में भारतीय नेताओं और जनता ने खुल कर ब्रिटिशों का साथ दिया था। 13 लाख भारतीय सैनिक और सेवक यूरोप, अफ़्रीका और मिडल ईस्ट में ब्रिटिशों की ओर से नियत किये गए थे जिनमें से 43,000 भारतीय सैनिक युद्ध में शहीद हुए थे। युद्ध समाप्त होने पर भारतीय नेता और जनता ब्रिटिश सरकार से सहयोग और नरमी के रवैये की आशा कर रहे थे लेकिन ब्रिटिश सरकार ने मॉण्टेगू-चेम्सफ़ोर्ड सुधार लागू कर दिये जो इस भावना के विपरीत थे।
इसके पश्चात् पूरे देश में विशेषकर पंजाब और बंगाल में ब्रिटिश सरकार का विरोध बहुत अधिक बढ़ गया था जिसे प्रतिरक्षा विधान (1915) लागू करके कुचल दिया गया था। उसके पश्चात् 1918 में एक ब्रिटिश जज सिडनी रॉलेट की अध्यक्षता में भारत प्रतिरक्षा विधान (1915) का विस्तार करके भारत में रॉलेट एक्ट लागू किया गया था।
इस रॉलेट एक्ट के अन्तर्गत ब्रिटिश सरकार को और अधिक अधिकार दिये गये थे जिसमें वह प्रेस पर सेंसरशिप लगा सकती थी, नेताओं को बिना मुकदमे के जेल में रख सकती थी, लोगों को बिना वॉरण्ट के गिरफ्तार कर सकती थी, उन पर विशेष ट्रिब्यूनलों और बंद कमरों में बिना जवाबदेही दिये हुए मुकदमा चला सकती थी, इत्यादि। इसके विरोध में पूरा भारत उठ खड़ा हुआ और देश भर में लोग गिरफ्तारियां दे रहे थे।
इस क़ानून के तहत उन्होंने दो लोकप्रिय नेताओं सत्यपाल और किचलू को गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया। इस से क्रांतिकारी लोग और अधिक भड़क गए। जिसके कारण यह सत्याग्रह हिंसा का रूप धारण करने लगा जिससे अंग्रेज़ी राज का भारी विरोध हुआ कुछ सरकारी दफ्तरों और तारघर को नष्ट किया गया।
13 अप्रैल 1919 को वैसाखी के दिन देशभक्तों ने जलियांवाला बाग अमृतसर में एक समारोह का आयोजन किया जिसमें लगभग बीस हज़ार लोगों ने भाग लिया। शाम के लगभग 4 बजे जनरल डायर ने पुलिस को वहां पर उपस्थित देशभक्तों पर गोली चलाने का आदेश दे दिया जिसमें लगभग एक हजार देशभक्तों की अंग्रेजी सरकार ने हत्या कर दी और तीन हजार के करीब घायल हो गए।
सरदार ऊधम सिंह राठी ने जलियांवाला कांड के लैफ्टिनैंट गवर्नर ओ.डायर को मार्च, 1940 में मौत के घाट उतार दिया था. इन महान क्रांतिकारियों के त्याग व बलिदान के कारण अंग्रेजी सरकार को भारत छोड़ना पड़ा व अन्ततः भारत माँ आज़ाद हो गयी। आजादी के साठ वर्षों तक शहीदों के बलिदान का यह स्थान वीरान और उपेक्षित रहा लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस स्थान पर भव्य शहीद स्मारक बनवा दिया है। अब इस ऐतिहासिक महत्व के स्थान की राष्ट्रीय स्तर पर महत्ता बढ़ गयी है। 
अब हमें भ्रष्टाचार, आतंकवाद, देश के भीतर बैठे गद्दारों एवं अलगाववादियों आदि जंजीरों से भारत माँ को स्वतंत्रता दिलानी है। आप सभी को breakinguttarakhand.com न्यूज संस्थान की ओर से वैशाखी पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ।