गौरा देवी : चिपको आंदोलन वनों का अव्यावहारिक कटान रोकने और वनों पर आश्रित लोगों के वनाधिकारों की रक्षा का आंदोलन था

 

आज 26 मार्च को रेणी गांव के चिपको आंदोलन की 48वीं वर्षगाँठ है, 26 मार्च 1974 को आज ही के दिन रेणी के जंगल में वन विभाग द्वारा कटाई के लिए छापे गए 2473 पेड़ों को महिला मंगल दल रेणी की अध्यक्ष गौरा देवी ने अपनी 20 महिला साथियों और 7 बालिकाओं के साथ बड़ी कुशलता और साहस से, जंगल कटने से बचा लिया था। यह पहला सफल आंदोलन था जिसमें महिलाओं ने वनों के साथ स्थानीय लोगों के अंतर्सम्बन्धों की सुस्पष्ट व्याख्या के द्वारा वन विज्ञानियों और सरकारों की आँखों पर पड़े पर्दों को तार-तार कर उतार दिया था। वन विभाग और प्रशासन की पेड़ों को काटने की कुटिल चाल को रेणी जैसे अंतरवर्ती गाँव की साधारण महिलाओं ने सीधी चुनौती दी थी और पूरी गम्भीरता के साथ पेड़ न कटने देने का संकल्प लेते हुए, ठेकेदार के मजदूरों को पेड़ नहीं काटने देकर खाली हाथ वापस लौटने को विवश कर दिया था। महिलाओं के सीधे और सपाट तर्कों के आगे बड़े अधिकारियों की ही नहीं, सरकार की भी एक न चलने पाई थी और हार कर सरकार को कटाई के लिए नीलाम किये गए इस वन-खण्ड को 10 वर्षों के लिए बंद कर देना पड़ा, गौरा देवी जी के मजबूत नेतृत्व में सफल हुए उस आंदोलन को सारे विश्व का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया था और देश के एक सुदूर हिमालयी कोने से शुरू हुए इस आंदोलन ने वैश्विक स्वरूप धारण कर लिया  आज धरती पर पर्यावरण के प्रति जागरूकता भी चिपको की ही प्रेरणा से आगे बढ़ रहा है 

      सुविख्यात पैंसिल सकैचर और चित्रकार सुनिता नेगी उत्तराखंड पुलिस सेवा में है, उनके चित्रों पर हम कभी अलग से आलेख देंगे। आज के बहुत संदर्भित दिन पर चिपको आंदोलन की पुरोधा रही सीमांत जनपद चमोली के रैणी गांव की गौरा देवी पर सुनिता नेगी का सारगर्भित आलेख और जीवंत पैंसिल चित्र प्रस्तुत है–✍️ डाॅ हरीश मैखुरी संपादक 

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आलेख ✍️ सुनिता नेगी
क्या हैं जंगल के उपकार, मिट्टी, पानी और बयार।
मिट्टी, पानी और बयार, जिन्दा रहने के आधार।

चिपको आन्दोलन एक पर्यावरण-रक्षा का आन्दोलन था। यह भारत के उत्तराखण्ड राज्य में किसानो ने वृक्षों की कटाई का विरोध करने के लिए किया था। वे राज्य के वन विभाग के ठेकेदारों द्वारा वनों की कटाई का विरोध कर रहे थे और उन पर अपना परम्परागत अधिकार जता रहे थे।
यह आन्दोलन उत्तराखंड के चमोली जिले में सन 1973 में प्रारम्भ हुआ। एक दशक के अन्दर यह पूरे उत्तराखण्ड क्षेत्र में फैल गया था। चिपको आन्दोलन की एक मुख्य बात थी कि इसमें स्त्रियों ने भारी संख्या में भाग लिया था। इस आन्दोलन की शुरुवात 1973 में भारत के प्रसिद्ध पर्यावरणविद् सुन्दरलाल बहुगुणा, कामरेड गोविन्द सिंह रावत, चण्डीप्रसाद भट्ट तथा श्रीमती गौरादेवी के नेत्रत्व मे हुई थी।
चिपको आंदोलन वनों का अव्यावहारिक कटान रोकने और वनों पर आश्रित लोगों के वनाधिकारों की रक्षा का आंदोलन था रेणी में 2400 से अधिक पेड़ों को काटा जाना था, इसलिए इस पर वन विभाग और ठेकेदार जान लडाने को तैयार बैठे थे जिसे गौरा देवी जी के नेतृत्व में रेणी गांव की 27 महिलाओं ने प्राणों की बाजी लगाकर असफल कर दिया था।💞