भोपाल गैस त्रासदी की ३३ वर्षगांठ
संदीप
भोपाल गैस त्रासदी की आज 33वीं बरसी है। साल 1984 में भोपाल में हुए इस गैसकांड को पूरी दुनिया के औधोगिक इतिहास की सबसे बड़ी दुर्घटना माना जाता है। वो 3 दिसंबर 1984 की आधी रात थी जब मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में हजारों लोग सोए तो थे अगली सुबह जागने के लिए लेकिन वो सुबह कभी नहीं हुई। यूनियन कार्बाइड के संयत्र में गैस रिसाव से लोगों का दम घुटने लगा यूनियन कार्बाइड की फैक्टरी से निकली गैस ने हजारों लोगों की जान ले ली थी। इस गैस कांड में करीब 150,000 लोग विकलांग हुए वहीं 22000 लोग दुर्घटना के कारण मारे गए। इसकी वजह से भोपाल त्रासदी पूरी दुनिया के औद्योगिक इतिहास की सबसे बड़ी दुर्घटना है।
चारों ओर सिर्फ धुंध ही धुंध थी, धुंध के कारण कुछ दिखाई नहीं दे रहा था और लोगों को कुछ नहीं सूझ रहा था कि किस रास्ते भागना है चारों ओर दम घुटने से मर रहे थे। उस सुबह यूनियन कार्बाइड के प्लांट नंबर ‘सी’ में हुए रिसाव से बने गैस के बादल को हवा के झोंके अपने साथ बहाकर ले जा रहे थे, और लोग मौत की नींद सोते जा रहे थे।
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इस दुर्घटना के कुछ ही घंटों के अंदर 3000 से अधिक लोग मारे गए थे, लेकिन अगर प्रत्यक्षदर्शियों का और गैस त्रासदी पर काम कर रहे एनजीओ की मानें तो उस त्रासदी में मरने वालों की संख्या कई गुना थी जिसे मौजूदा सरकार ने दबा दिया था। वो तो महज एक रात थी लेकिन मरने वालों का और उस गैस से पीड़ित लोगों के मौतों का सिलसिला बरसों तक चलता रहा। इस दुर्घटना के शिकार लोगों की संख्या 20 हजार तक बताई जाती है।
उस रात यूनियन कार्बाइड की फैक्टरी से करीब 40 टन गैस का रिसाव हुआ था। वहीं इस रिसाव के बारे में बताया जाता है कि टैंक नंबर 610 में जहरीली मिथाइल आइसोसाइनेट गैस का पानी से मिल जाना, इससे हुई रासायनिक प्रक्रिया की वजह से टैंक में दबाव पैदा हो गया और टैंक खुल गया और उससे रिसी गैस ने हजारों लोगों की जान ले ली। इस रिसाव से सबसे बुरी तरह प्रभावित हुए कारखाने के पास स्थित झुग्गी बस्ती में रहने वाले लोग, ये वो लोग थे जो रोजीरोटी की तलाश में दूर-दूर के गांवों से आ कर वहां रह रहे थे।
इस रिसाव ने महज तीन मिनट में हजारों लोग न केवल मौत की नींद सो गए बल्कि लाखों लोग हमेशा-हमेशा के लिए विकलांग हो गए, जो आज भी इंसाफ के इंतजार में है। उस रात के कई किस्से आज भी लोग याद करके सिहर जाते हैं। हांफते और आंखों में जलन लिए जब प्रभावित लोग अस्पताल पहुंचे तो ऐसी स्थिति में उनका क्या इलाज किया जाना चाहिए, ये डॉक्टरों को मालूम ही नहीं था। डॉक्टरों की मुश्किलें शहर के दो अस्पतालों में इलाज के लिए आए लोगों के लिए जगह नहीं थी। वहां आए लोगों में कुछ अस्थाई अंधेपन का शिकार थे, कुछ का सिर चकरा रहा था और सांस की तकलीफ तो सब को थी।