उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों के युवा भले पढाई और रोजगार के चक्कर में पहाडों से पलायन कर रहे हैं लेकिन 80 बरस के मोहन सिंह लटवाल ने उन लोगों के लिए यहां मिशाल कायम की है जो कहते हैं कि पहाड़ों पर कुछ नहीं होता।
अल्मोड़ा के सुदूर स्याहीदेवी गांव (हवालबाग ब्लॉक) के मोहन सिंह लटवाल का पहाड़ी को काटकर खेत बनाने का जुनून ही था, जिसने नजारा ही बदल दिया।
हौसले के आगे उम्र और बुढ़ापा हार जाता है। जुनून उन्हें थकने नहीं देता था।
फौलादी धुन ऐसी कि इस धरती पुत्र ने चट्टाननुमा पहाड़ी को फावड़े, गैंती व घन से पाट कर उर्वर खेत बना डाला। कभी बंजर रहे इस भूखंड पर अब फसल लहलहा रही है।
दो वर्ष पूर्व घर के पास ही बुजुर्ग मोहन सिंह ने गैंती, फावड़े व घन से पहाड़ी काटकर खेत बनाने का काम शुरू किया।
मोहन सिंह रोज चट्टान का कुछ हिस्सा तोड़ते रहे और समय के साथ-साथ चट्टान वाला स्थान समतल होने लगे।
कई बार तो दिन-रात भी खेत बनाने का काम किया गया।
आखिरकार मोहन सिंह की मेहनत रंग लाई और 80 मीटर लंबा और 20 मीटर चौड़ा खेत तैयार हो गया।
चट्टान तोड़ कर निकले करीब 1.60 टन पत्थरों से मोहन सिंह ने खेत की सुरक्षा के लिए दीवार बनाई।
खेत तैयार होने पर मोहन सिंह ने इसमें करीब तीन क्विंटल आलू और छह क्विंटल मूली उगा डाली है। आवश्यकता है हमारे युवा इन से खेती के गुर सीखें। खंडेलवाल