शाकाहार से मिलता है सुखी, सुदीर्घ व सात्विक जीवन

डाॅ हरीश मैखुरी 

अब तक के बहुत सारे अध्ययनों और रिसर्च में पाया गया कि जो लोग शाकाहारी व सात्विक जीवन जीते हैं, अपनी दिनचर्या नियमित रखते हैं वे लोग लंबा और सुखी जीवन जीते हैं। इसीलिए शाकाहार भारत की श्रेष्ठ परंपराओं में से एक है। यहां बिना किसी जीव को कष्ट पहुंचाए अपना भोजन तैयार करने की संस्कृति अनादि काल से ऋषि मुनियों द्वारा प्रतिपादित की गई है। हमारे अनेक ऋषि मुनि व संत तो जल पृथ्वी अग्नि तत्वों से भी परहेज करते थे, वे केवल वायु भक्षण से ही लाखों साल जिया करते थे। आज भी यदि कोई व्यक्ति साधना के माध्यम से पहले पृथ्वी तत्व पर अपनी निर्भरता त्यागे, फिर जल तत्व पर अपनी निर्भरता त्यागे, फिर अग्नि व फिर आकाश तत्व पर अपनी निर्भरता त्यागे, और केवल सांस में ही वायु से भोजन लेने की साधना सीख ले, तो वह पारगामिता की स्थिति को प्राप्त कर लेता है, और जीवन मरण के बंधनों से मुक्त होकर लाखों साल जी सकता है।

लेकिन अज्ञानतावश इतिहासकारों ने हमें बताया कि आदिकाल (पाषाण काल) में हम सब भूखे नंगे असभ्य थे। वहीं डार्विन के सिद्धांत में बताया गया कि सबसे पहले पृथ्वी में एक कोशिकीय जीव उत्पन्न हुए फिर वह चप्पल के आकार का बना फिर बंदर बना फिर बंदर से आदमी बना, तो ऐसी थ्योरी व इतिहास पढ़कर आदमी पशुवत ही बना रहेगा, उसमें मानवता विकसित कहां से होगी? सच्चाई ये है कि अखंड भारत में मांसाहार सर्व प्रथम सातवीं शताब्दी में मुगल आक्रांताओं के बाद आया। मुगल आक्रांता अरैबिक कबीलों के दुर्दांत मांसाहारी परंपरा से रहे हैं उन्हीं के आने के बाद भारत में अभक्ष्य का भक्षण शुरू हुआ, इनका एक त्यौहार ईद- उल – अजहा तो पूरी राक्षसी परंपरा का द्योतक है। मुगल आक्रांताओं के आने के बाद ही भारत में गालियों का प्रचलन भी हुआ। यदि हम देखें तो संस्कृत और देवनागरी हिंदी में कहीं कोई गाली अथवा अपशब्द है ही नहीं, यहां तक कि तलाक (विवाह विच्छेद) शब्द भी नहीं है, विवाह जन्म मरण का साथ माना जाता था, ऐसी श्रेष्ठ परंपराओं के साथ ही हम गहन शोध व अनुभूत जन्य ज्ञान के बाद युगों से मानवतावादी सभ्यता विकसित किए हुए थे, जिसे मुगलों ने रणनीतिक तौर पर सबसे पहले मंदिरों और गुरुकुलों को नष्ट करके चंद शदियों में ही समाप्त कर दिया। वैसे भी मांसाहार लंबी आंत वालों के लिए ठीक नहीं है, हमारे दांत भी मांसाहारी जीवों की तरह नुकीले नहीं होते। मांसाहारी जीवो के दांत नुकीले होते हैं वे जीभ से पानी पीते हैं और उनकी आंतें छोटी होती है। हमारे पेट में जब मांस जैसी गरिष्ठ वस्तुएं जाती हैं तो वहां 28 घंटे तक पेट में ही पचती और सड़ती रहती हैं। और व्यवहारिक रूप से भी देखा जाए तो हमारे एक समय के भोजन या लम्पट जीभ के स्वाद के लिए सुन्दर जीव पशुओं को हमारी क्रूरता के कारण अपना जीवन त्यागना पड़ता है, हमें कांटा चुभने भर से दर्द होता है, तो जिसकी जान जाती है समझो उसे कितनी पीड़ा पहुंचती होगी?? इसी लिए मांस भक्षण सर्वथा वर्जित बताया गया है ।
आज हमें कोई यह बताने वाला भी नहीं रहा कि हम श्रेष्ठ ऋषि मुनियों की संताने हैं और ऋषि परंपरा में किसी को भी कष्ट नहीं पहुंचाने की श्रेष्ठ मानसिकता से आगे बढ़ा जाता है। हम द्यो शांति: अंतरिक्षग्वं शांति: पृथ्वी शांति: आप:शांति:, शांतिरेवशांति: विश्व देवा शांति: परंपरा एवं मानवता के श्रेष्ठ वाहक हैं, इसलिए पशुओं की रक्षा का जिम्मा भी हमारा ही है। वस्तुतः जीव जंतु हमारे सहयोगी और परिवार के अंग हैं चाहे वह जहरीले नाग बाघ बिच्छू मधुमक्खी ही क्यों न हो। यह भी देखा गया है कि  जो लोग बार-बार बहुत सारा खाना खाते हैं और आलसी होते हैं  शारीरिक काम नहीं करते हैं  उन्हीं को ब्लड प्रेशर  शुगर थायराइड  और ओबेसिटी यानी मोटापा जैसी बीमारियां होती हैं  यदि आप मोटे हैं  और आपको ब्लड प्रेशर और शुगर भी है  तो सिर्फ इतना करिए की मांस मदिरा छोड़ दें और रात का खाना छोड़ दें सिर्फ हल्दी वाला दूध पी कर सो जाएं, यदि दूध नहीं मिले तो एक कटोरी शब्जी या दाल भी ले सकते हैं। इससे साल भर में ही  आपका मोटापा चले जाएगा और बीपी व शुगर भी सामान्य हो जाएगा। जय गो माता की,