उत्तराखंडियों के माथे पर 2 अक्टूबर का दंश

डाॅ हरीश मैखुरी

आज की तारीख ने उत्तराखंड राज्य  आन्दोलन की यादें ताजा कर दी। 2 अक्टूबर 1994 की रात रामपुर तिराहे का वो खौफनाक मंजर राज्य आन्दोलन और सरकारी दमन दोनों का चरम था। उससे पहले कितने राज्य के बाबत कितनी जगहों पर आन्दोलन किए,  क्या गजब का जुनून था। सरकारी कार्य में व्यवधान, सरकारी संपत्ति की तोड़फोड़, सरकारी अधिकारियों से बदसलूकी  जैसी संगीन धाराओं में मुकदमे दर्ज हुए, कितनी बार गिरफ्तारियां दीं, जिला अधिकारी सत्यजीत ठाकुर और गोपेश्वर थाने में दरोगा बालियान  का घेराव तो रोज का काम था । सरकारी कर्मचारियों का जलनिगम राणा जी की अध्यक्षता में आन्दोलन उषा भट्ट,  नौटियाल,  जानकी प्रसाद मिश्रा कर्मचारी आन्दोलन के रणनीतिकार। भगवती भट्ट अनसूया प्रसाद मैखुरी भुवन नौटियाल मनीष नेगी किस किस का नाम लूं नामों  की रामायण से उस दौर  के अखबार पटे पडे हैं। हर गांव हर आदमी आन्दोलनकारी, हर दिन स्वत:स्फूर्त आन्दोलन, जनता का आन्दोलन।

गोपेश्वर चौराहे पर दिनभर की घटनाओं का सांध्य बुलेटिन पढना क्रांति भट्ट, मंगला कोठियाल और मेरा नितक्रम रहा। उस दौर में  बीबीसी से भी संवाद प्रेषण हेतु संपर्क बना, तब  मोबाइल फोन नहीं हुआ करते थे और लैंडलाइन भी कुछ ही लोगों के पास थे तब BBC वालों ने मुझे  निश्चित समय पर पीसीओ  से समाचार रिकॉर्ड कराने के लिए कहा, फिर दिन भर के समाचार लिखकर शाम को तीन 4:00 बजे पीसीओ से BBC के लिए फोन पर रिकॉर्डिंग करता था और अगले दिन सुबह वह बीबीसी रेडियो पर प्रसारित हो जाताथ, अपनी आवाज में समाचार सुनने से ज्यादा कौतूहल लोगों की प्रतिक्रिया का रहता था और  एक संतोष होता था कि  हमारे आंदोलन पर अब बीबीसी की भी नजर है। बाद में कुछ चंदे का धन्धा करने वाले उत्तराखंड आन्दोलन से जुड़े, इससे राज्य आन्दोलन कुकुन्द पड़ा। हम लोग 1993 से सन 2000 राज्य बनने तक आन्दोलन में रहे इइन्द्रमणि डोनी जी जब पौड़ी में बैठे तब से लेकर दिवाकर भट्ट का श्रीयंत्र टापू श्रीनगर। खैट पर्वत, कर्णप्रयाग, गैरसैंण सभी आन्दोलनों में शिरकत की। प्रधान संगठन चमोली जिले का अध्यक्ष होने नाते दिल्ली में भी प्रधान संगठन ने इस मुद्दे पर प्रदर्शन किया और प्रदेश अध्यक्ष महाबीर प्रसाद शर्मा के साथ राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा जी राष्ट्रपति भवन जाकर ज्ञापन दिया, शंकर दयाल जी से जब मैंने जानना चहा कि जो हम लोग खून से लिखे पोस्टकार्ड आपको भेजते हैं, आप उनका क्या करते हैं। तब राष्ट्रपति जी तो केवल मुस्कुरा दिए पर वहां खड़े सुरक्षा कर्मी ने अजीब सा इशारा किया जिसका मतलब हमें समझ आया कि “बातें नहीं ज्ञापन दीजिए और चलिए”। राज्य आन्दोलन से पहले भी मैने पृथक उत्तराखंड राज्य बनाने के लिए एक ज्ञापन तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री राजीव गांधी जी को दिल्ली बुराड़ी में आहुत चार दिवसीय पंचायत राज सम्मेलन में अपने हाथों से दिया, अनेक बार दिल्ली जंतर-मंतर पर आन्दोलन में शरीक हुए तब हमें  वहां नारायण बगड़ के पानसिंह परिहार बिष्ट जी पर्मानेंट मिलते थे, वे हर समय एक नयां ज्ञापन लिख रहे होते। राज्य बनने के बाद वे मुझे अपने बच्चों की नोकरी के लिए धक्के खाते अनेक बार चमोली जिला मुख्यालय में मिले। 3 अक्टूबर 1994 को गोपेश्वर जिला चिकित्सालय में मेरी बेटी का जन्म हुआ तब मैं आंदोलन में था एक साथी ने मुझे सूचना दी जब जिला चिकित्सालय पहुंचा तो दूध, आग, पानी सब बंद था तब किसी तरह से तारा दाई के यहां से एवरीडे मिल्क पाउडर घोलकर उसका दूध नवजात बच्ची को पिलाया। बाद में दोस्तों ने मेरी बेटी का नाम ही कर्फ्यू रख लिया। गोपेश्वर,  रुद्रप्रयाग, अगस्त्यमुनि जैसे छोटे छोटे बाजारों में 4-5 दिनों तक ककर्फ्यू लगना सरकारी दमन का सबसे खोपनाक उदाहरण है, गांव की बेटी बहुओं ने पहली बार कर्फ्यू के रूप में सरकार का दमन  चक्र देखा। सन 2000 में उत्तराखण्ड राज्य बनने के बाद हम गैरसैंण स्थाई राजधानी आन्दोलन में रहे,  बाबा मोहन उत्तराखंडी बेनीताल में 37 दिन आमरण अनशन पर बैठे 37 वीं रात पुलिस उस अनशनकारी को रात घसीटते हुए कर्णप्रयाग चिकित्सालय लाई जहां 38 वें दिन सुबह सात बजे के करीब उन्होंने दम तोड़ दिया।

स्थाई राजधानी आन्दोलन के लिए गैरसैंण में उत्तराखंड महिला मंच की कमला पंत और उनकी महिला सहयोगियों को  गैरसैंण में फिर जलील किया गया, पर राजधानी आज तक भी नहीं बनी।

शहीदों को श्रद्धांजलि। आन्दोलनरियों को नमन। सरकार को शमन। चेत जाओ रे राजधानी गैरसैंण लेजाओ। अन्यथा राज्य के असली दुश्मन भी तुम ही हो।